कोई भी पीछे नहीं है जनधन की लूट में

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन पर्यन्त सरकारी बंगला उपलब्ध कराने वाले दो दशक पुराने नियम को अवैध ठहराने का जो निर्णय किया है, वह सर्वथा उचित और अत्यन्त न्यायपूर्ण है। यद्यपि यह निर्णय उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों के सम्बन्ध में हैं, तथापि देर-सबेर यह उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों पर भी लागू होगा। वैसे निर्णय यह भी दर्शाता है कि वर्तमान राजनेता  किस तरह जनता के धन और सार्वजनिक सुविधाओं को किस तरह लूट कर रहे हैं। ये लोग विभिन्न राजनीतिक दलों में रहते हुए भले ही कथित नीति, सिद्धान्त, जनहित के बहाने सड़क से लेकर संसद और विधानसभाओं में एक-दूसरे से लड़ते-भिड़ते, झगड़ते-गरियाते नजर आते हों, मगर जनता के धन को लूटने में इन सभी के बीच अटूट मैत्री और अद्‌भुत एकता है।
जनता के धन की इस सामूहिक लूट में न नीति-सिद्धान्त आड़े आते हैं और न जाति, मजहब, भाषा, क्षेत्रवाद ही बाधक है। एक तरह से जनता के विरुद्ध इन सभी  ने एक दुरभि सन्धि की हुई है जिसका पता कर पाना आमजन के लिए दुष्टकर है। लेकिन सुयोग से उत्तर प्रदेश में यह असम्भव-सा कार्य एक गैर सरकारी संगठन 'लोक प्रहरी'के अदम्य साहस और अथक प्रयासों से सम्भव हो पाया है जिसने सन्‌ 1997के पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन पर्यन्त के लिए आवास आवण्टन के नियम को अवैध ठहराने के लिए 2004 में एक जनहित याचिका दायर कर इसका विरोध किया था। जिस पर न्यायालय ने नवम्बर, सन्‌ 2014 में सुनवायी पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था।
अब उक्त याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने अपने इस निर्णय में सरकारी सम्पत्तियों को इस तरह बाँटने पर तल्ख टिप्पणी करते हुए सरकारी बंगलों पर काबिज पूर्व मुख्यमंत्रियों को दो माह के भीतर बंगले लौटने का आदेश दिया है। इतना ही नहीं, न्यायालय ने राज्य सरकार से अवैध रूप से काबिज रहने की अवधि का इनसे किराया वसूलने का आदेश भी दिया है। उच्चतम न्यायालय के इस आदेश से जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों को झटका लगा है उनमें पूर्व मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी, रामनरेश यादव, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह यादव, मायावती हैं। ये सभी विभिन्न राजनीतिक दलों यथा-काँग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के हैं, जो अलग-अलग जाति और वर्ग के हैं। इनमें से कुछ दूसरे राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री, तो एक केन्द्र में गृहमंत्री हैं। इनमें दलित वर्ग की एकमात्र हितैषी बताने वाले ने सबसे ज्यादा सरकार भवन हथियाये हुए हैं। लेकिन थोक वोट की राजनीति के चलते उनकी इस खुली लूट का विरोध करने की किसी में हिम्मत और साहस नहीं। ये लोग चुनाव प्रचार के दौरान जनता को भरमाने को खुद को ईमानदार और दूसरे को बेईमान बताते हुए सत्ता में आने पर उसे जेल में बन्द कराने का भरोसा भले ही दिलाते हों, पर सत्ता में आने पर वह उनके लिए बेईमान नहीं रह जाता। इस तरह ये लोग बस दिखावे को एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी हैं, किन्तु जनता को लूटने में सब साथ-साथ हैं।
उत्तर प्रदेश की तरह पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भी पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी बंगले कब्जाये हुए हैं। ये पूर्व मुख्यमंत्री हैं मोतीलाल वोरा, दिग्विजय सिंह, कैलाश जोशी, सुन्दर लाल पटवा, उमा भारती, बाबू लाल गौर, जो काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के हैं। ये पूर्व मुख्यमंत्री भोपाल में श्यामला हिल पर स्थित सरकारी बंगलों पर काबिज हैं। इनमें अब मोतीलाल वोरा छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं जो यदा-कदा ही भोपाल आते हैं। मध्य प्रदेश में तो पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी बंगले का सुख उठाने के साथ-साथ कैबीनेट मंत्री का दर्जा भी प्राप्त किये हुए हैं।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो बंगलों पर काबिज हैं। इनमें एक बंगला वर्तमान मुख्यमंत्री के रूप आवण्टित है और दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से। ऐसे ही छत्तीस गढ़ में अजीत जोगी पूर्व मुख्यमंत्री के अधिकार से सरकारी बंगले सालों से रह रहे हैं। राजधानी दिल्ली में भी स्थिति राज्यों से किसी माने बेहतर नहीं है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की पत्नी एक सरकारी बंगले पर काबिज है, जबकि वह सालों से अपनी पति से अलग रह रही हैं। फिर भी वह सुरक्षा के बहाने सरकारी बंगला नहीं छोड़ रही हैं। मायावती ने बहुजन पार्टी के नेता कांशीराम की स्मृति को सहेजन के नाम पर दो बंगले आवण्टित कराये हुए हैं, जिन्हें तत्कालीन मनमोहन सिंह की संप्रग सरकार ने संसद में सहयोग के बदल में दिये थे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजित सिंह भी अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का स्मारक बनाने के लिए सरकारी बंगला खाली नहीं करना चाहते थे। इसके लिए वे हर तरह से लड़ने-भिड़ने की तैयारी कर रहे थे । शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू सरकारी बंगले खाली कराने में कितनी मुश्किलें आ रही हैं, यह वे ही जानते हैं। कई पूर्व मंत्री तरह-तरह के बहानें बनाते हुए सालों से डटे हुए हैं जिसके कारण नये मंत्रियों और सांसदों को सरकारी खर्च पर होटलों में रहना पड़ रहा है। कई मंत्रियों ने लुटियन क्षेत्र के बंगलों नियम विरुद्ध निर्माण कराये हुए हैं।
 कुछ तिकडमी पूर्व विधायकों और सांसदों ने लखनऊ में न्यास(ट्रस्ट)के नाम से पॉश  इलाके माल एवेन्यू में बंगले आवण्टित कराये हुए हैं। इनमें भाजपा की पूर्व सांसद कुसुम राय ने महातम ट्रस्ट, बसपा संस्थापक कांशीराम ट्रस्ट, राज नारायन ट्रस्ट, पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ट्रस्ट, डॉ.राम मनोहर लोहिया ट्रस्ट, नाम से सरकारी बंगले आवण्टित हैं। कई स्वयंसेवी संस्थाओं के नाम पर सरकारी आवास आवण्टित हैं। लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार उक्त पूर्व नियम की कमियों को दूर कर विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन पर्यन्त सरकारी आवास में रहने के अधिकार बनाये रखने का नियम फिर से पारित कराने की सोच रही है, ताकि उच्चतम न्यायालय के निर्णय के कारण किसी पूर्व मुख्यमंत्री को सरकारी बंगला खाली न करना पड़े। ऐसा करके वह 'लोक प्रहरी' के इन कथित जनसेवकों की पेंशन बन्द कराने के अगले प्रयास को विफल करना चाहती है।
वस्तुतः पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्रीगण और दूसरे नेता सत्ता से जुड़ी सुख - सुविधाओं को भोगने के बाद वे इनके इतने आदी हो जाते हैं कि वे सत्ता में न रहने पर भी उन्हें किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहते। उनका सरकारी बंगले और अन्य सुविधाएँ, विशेष सुरक्षा पाने का एकमात्र उद्‌देश्य जनधन की लूट के साथ-साथ आमजन पर रुतबा जताना / जमाना है, जिनकी आड़ में देश और समाज को और भी आसानी से लूटा जा सके। ऐसे स्वार्थी नेताओं द्वारा जनता के धन को लूटे जाने पर रोक लगाने के लिए लोगों को जागरूक करना होगा, ताकि वे स्वयं स्वार्थी नेताओं को सबक सिखाने को आगे आए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार

63 ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कोई आजम खाँ से यह सवाल क्यों नहीं करता ?

अफगानिस्तान में संकट बढ़ने के आसार

कौन हैं अनुच्छेद 370 को बरकरार रखने के हिमायती?