सिर्फ सलमान ही कसूरवार नहीं

बचन सिंह सिकरवारMkW-cpu flag fldjokj
हाल में अभिनेता सलमान खान ने पहलवानी पर आधारित फिल्म 'सुल्तान' के फिल्मांकन के लिए सेट पर अभ्यास के समय  कठोर मेहनत की चर्चा करते-करते अपने थक कर चूर होने पर अपनी हालत की तुलना जिस तरह बलात्कार की शिकार महिला से की, वह अत्यन्त अशोभनीय, अमर्यादित, लज्जाजनक ही नहीं, उनकी महिलाओं के प्रति असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा को प्रकट करती है। उसे कोई भी संवेदनशील और सभ्य व्यक्ति उचित नहीं  कहेगा, बल्कि उनकी ऐसी ओछी और गन्दी मानसिकता की निन्दा ही करेगा। उनकी इस बेजा हरकत की राष्ट्रीय महिला आयोग समेत कई राजनीतिक दलों और महिला सामाजिक संगठनों ने बहुत भर्त्सना की है। यहाँ तक कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने उन्हें सम्मन भेज कर उनसे जवाब माँगा। इस मामले को तूल पकड़ते देख सलमान खान के विद्वान लेखक पिता सलीम खान ने तत्काल अपने बेटे की तरफ से माफी माँग ली, जो पहले भी सलमान के मुम्बई बमकाण्ड के अभियुक्त याकूब मेमन की फाँसी को लेकर टि्‌वटर पर उल्टी-सीधी बातें लिखने पर ऐसा कर चुके हैं। उनका कहना था कि उदाहरण 'बेहूदा' था और 'शब्दावली भी गलत' थी,पर सलमान का इरादा गलत नहीं था। इस पर भी  देश की युवक-युवतियों के आदर्श/प्रेरणा स्रोत यानी रोल मॉडल/आइकॉन सलमान खान को अपनी इस बेहूदा तुलना पर अफसोस करने में भी तौहीन लग रही है। दरअसल, सलमान खान जैसे माहौल में ज्यादातर पले-बढ़े हुए हैं और रहते हैं उसमें उनसे किसी बेहतर तुलना की उम्मीद करना ही फिजूल है।
 वैसे भी सलमान खान से यह अनायास ऐसी चूक नहीं हुई। वे एक अन्य साक्षात्कार में महिलाओं का उल्लेख 'बुरी आदत'के रूप में चुके हैं। तब उनका कहना था कि लड़कियों के अलावा जिन्दगी में लगने वाली सभी बुरी आदतें (कॉफी, सिगरेट,एल्कोहल की सूची) उन्होंने छोड़ दी हैं। हमारा सलमान खान से एक सवाल है कि क्या उन्होंने कभी प्रचण्ड गर्मी में दोपहर में  पत्थर तोड़ते /फावड़ा / कुदाल चलाते या  बोझा ढोने वाले पुरु/महिला मजदूरों को नहीं देखा ? विभिन्न घरों में लगातार घरेलू काम करने वाली महिलाओं को तो उन्होंने जरूर देखा होगा। फिर उनकी थकान की पीड़ा का उन्हें अहसास क्यों नहीं हुआ ? सलमान खान ने बलात्कार पीड़ित महिला कहाँ देख ली? फिर उसका अहसास उन्होंने कैसे कर लिया?यह भी शोध का विय है।
 इधर  अब दंबग सलमान खान के कहे पर अपनी फेसबुक पर टिप्पणी करने वाली पार्श्व गायिका सांेना महापात्र को लेने के देने पड़ गए हैं। उन्होंने कहा था कि सलमान खान आम लोगों को कुछ समझते ही नहीं। महिलाओं का सम्मान नहीं करते। लोगों पर गाड़ी चढ़ा देते हैं। जंगली जानवरों को नुकसान पहुँचाते हैं। फिर भी लोग उन्हें देश का 'हीरो' बोलते हैं। इसके जवाब में सोना महापात्र को  कुछ ही समय में 1000 से ज्यादा दुष्कर्म की धमकियाँ दी गयी हैं। उन्हें नंगी फोटो भेजी जा रही हैं जो बताती हैं कि हमारे समाज में जहर किस कदर घुला हुआ है। यह जहर सिर्फ फैन्स (प्रशंसक), फोलोअर्स (अनुयायी) या ऑडियन्स (दर्शक) द्वारा ही नहीं, बल्कि उनके साथियों और मीडिया द्वारा फैलाया जा रहा है। उधर हिसार (हरियाणा) की दुष्कर्म पीड़ित महिला ने सलमान खान को दस करोड़ रुपए का क्षतिपूर्ति का लीगल नोटिस भिजवाया है। उसमें लिखा है कि वह भी दुष्कर्म से पीड़ित है। सलमान खान के बयान से उसे अपने साथ हुई भयानक व रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना की यादें ताजा हो गईं। उनके अपमानजनक बयान के चलते अपनी जिन्दगी बोझ नजर आने लगी है। उसके दिमाग में आत्महत्या करने जैसे विचार आ रहे हैं। वह बतौर अभिनेता सलमान खान की फैन है,लेकिन उनकी इस टिप्पणी ने उनके प्रति नफरत पैदा कर दी है।
 हकीकत यह है कि सलमान खान और उन जैसों की असलियत देखकर इस पीढ़ी को अब अपनी भूल सुधारने को आगे आना चाहिए। सोशल मीडिया में एक ने ट्‌वीट में किया है कि वह अभिनेता के ऐसे उदाहरण से भयभीत हैं। एक अन्य ने सवाल किया है कि क्या सलमान की महिला प्रशंसकों को यह बयान चलेगा ? अगर ऐसा है तो उनका इस दुनिया से विश्वास उठ गया है। एक युवती ने लिखा है कि अगर महिलाएँ सलमान की फैन हैं तो मुझे दुनिया के लिए डर लग रहा है।
 वैसे इसमें सलमान खान का कोई खास कसूर नहीं है, वह और उनके जैसे ज्यादातर कलाकर किसी सभ्यता और सांस्कृतिक जागरण को लेकर तो फिल्मी दुनिया में आये नहीं हैं और न ही उनका उद्‌देश्य समाज में किसी तरह के नैतिक या जीवन मूल्य या फिर इन्सानियत की भावना उत्पन्न करना या बढ़ाना है। इनमें से ज्यादातर कम पढ़े़ / अधपढ़े या ले देकर पढ़े लोग हैं,जो दूसरों के लिखे संवाद/गाने बोलते-गाते हैं, उसमें उनका अपना कुछ नहीं होता। वे तो इस काम में अपनी रोजी-रोटी और मौज-मस्ती की चाहत लेकर चले आए हैं। इन्हें हम अपना प्रेरणा स्रोत/जीवन आदर्श मान लें, तो इसमें कसूरवार वे नहीं, हम हैं जो असली - नकली, पीतल - सोना, शैतान और फरिश्ते में फर्क नहीं समझते। वे फिल्मों के जरिए  जिस तथाकथित प्रेम/मुहब्बत की दुहाइयाँ देकर दर्शकों को बरगलाते हैं उनमें से कितने हैं जो अपने फिल्मों में निभाये किरदार को असल जिन्दगी में भी निभाते देखें गए हैं।
वैसे यह भी हकीकत है कि भौतिकवाद की इस दौड़ में समाज में संवेदनशीलता, शालीनता, मानवीय मूल्यों का तेजी से क्षरण हो रहा है इसमें हर वर्ग के लोगों में बाजी मार लेने की होड़ लगी हुई है। ऐसे अशालीन, अश्लील, अमर्यादित बयान देने में राजनीतिक दलों के नेतागण भी पीछे नहीं हैं जिन पर देश को नेतृत्व देने का महत्त्वपूर्ण दायित्व है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का मु
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 इतना ही नहीं, अपने विद्वता में स्वयं को ईश्वर से भी बढ़ कर समझने वाले साहित्यकार भी मिथ्या और अशोभनीय वक्तव्य देने में पीछे नहीं हैं। उन्हें अपनी सुविधा अनुसार असहिष्णुता और सहिष्णुता दिखायी देने लगने का रोग हैं। उनकी राष्ट्र प्रेम/राष्ट्रीयता, प्रगतिशीलता/बुर्जुआ, शालीन/अशालीन, अश्लीलता / श्लीलता, साम्प्रदायिकता / पंथनिरपेक्षता आदि देखने तथा इन्हें परिभाषित करने की अपनी द्दष्टि और कसौटियाँ हैं।
ऐसे में यह कहना कि सही नहीं होगा कि ऐसे अशोभनीय, अशालीन, अमर्यादित बेहूदा तुलना करने को सिर्फ सलमान खान ही कसूरवार नहीं, बल्कि हर तबके के लोग हैं। यहाँ तक वे भी, जिन्हें समाज का पथ प्रदर्शक समझा जाता है। लेकिन ऐसी गलतियाँ करने वाले इन सभी लोगों के विरोध में जब तक हम खड़े नहीं होंगे, तब उन्हें अपनी गलतियों का अहसास कैसे होगा?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार  63 ब,गाँधी नगर ,आगरा-282003
  मो.नम्बर-9411684054

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