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भेड़ों की भीड़ नहीं, रेशमा सी पीर चाहिए............

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विनीत सिंह अरे भाई सुनो … . क्या रेशमा रंगरेज को जानते हो..... अरे दो पल ठहरो तो सही .. जिससे भी पूछो यह सवाल, हर कोई झल्ला कर एक ही जवाब देता है..... देश अन्ना के रंग में रंगा है और तुम रंगरेज को तलाश रहे हो.... नहीं जानते लोग उस रेशमा को जिसे में तलाश रहा हूं..... आखिर भेड़ बनी यह भीड़ जानेंगे भी कैसे ? उनके अंदर की रेशमा मर जो गयी है... उन्हें तो बस चरवाहों की चीख का पीछा करने की आदत हो गयी है ... जिधर हांको उधर ही चल पड़ती हैं..... यह लानत यूं हीं नहीं है .... अधिकारों की भूख से तो हर कोई तड़पता मिल जाता है लेकिन कर्तव्यों की बेदी पर खुद को हवन करने वालों का हर ओर टोटा जो है...फिलहाल देश में क्रांति आयी हुई है ... माहौल बना है भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का... मांग उठी है एक कानून बनाने की ... लेकिन इन भेड़ों के सामने एक सवाल भी मुंह बांये खड़ा है ..... जो मांगता है इस भीड़ से जवाब कि कितने लोग हैं यहां, जो अब तक बने कानूनों का पालन करते आये हैं... या फिर उन्होंने क्या कभी नहीं तोड़ा कोई कानून...सबके सब मौन साध लेते हैं.... नहीं तो भीड़ के खिलाफ भाषण देने पर पत्थर उछालने लगते है...