कब लगेगी रिश्वतखोरी पर लगाम?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में उच्चतम न्यायालय ने अन्ना द्रमुक की महासचिव वी.के.शशिकला के आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में निर्णय देते समय देश में बढते भ्रष्ट्राचार को लेकर जो गम्भीर टिप्पणी की है वह अत्यन्त चिन्तनीय एवं विचारणीय है। न्यायालय का कहना है कि जिन्दगी के हर पहलू में भ्रष्ट्राचार बढ़ता जा रहा है। वह एक रोग के समान है, उसके आगे आम आदमी असहाय है। भष्टाचारियों को सजा नहीं मिलना राष्ट्र के तत्व को खत्म कर रहा है। भ्रष्ट्राचार को खत्म करने को व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर प्रयास करने होंगे। हालाँकि गत 8 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाँच सौ और एक हजार रुपए के नोटबन्दी के माध्यम से भ्रष्ट्राचार, कालाधन, नकली मुद्रा, आतंकवादी, नक्सलवादी गतिविधियों पर रोक लगाने का दावा कर पूरे देश के लोगों को बैंकों की कतारों में लगा दिया, इससे बैंकों में पाँच सौ तथा एक हजार रुपए के नोटों के ढेर जरूर लग गए, लेकिन यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि देशभर में रिश्वतखोरी पर रोक तो कतई नहीं लगी है। भ्रष्टाचारी पहले की तरह बेखौफ होकर रिश्वत ले रहे हैं, इस तरह वे फिर कालाधन एकत्र करने में जुट हैं। यहाँ तक कि नोटबन्दी के दौरान भी उन्हें इस रिश्वत लेने में तनिक भी भय नहीं लगा। बस ये लोग नयी मुद्रा या फिर सौ रुपए के नोटों या हीरा / सोने / चाँदी के आभूषण के रूप में माँग रहे थे।

 रिश्वतखोरी को लेकर कुछ युवकों कहना था, ''हमें नौकरी के लिए परीक्षा पास करने में उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ी, जितनी कि पुलिस वैरीफिकेशन में करनी पड़ी। इसके लिए कई दिनों तक पुलिस अधिकारियों के चक्कर लगाने के साथ-साथ उनकी अण्टी भी गर्म करनी पड़ी। यह सब करने में नेताओं से लेकर वकीलों की सेवाएँ भी लेनी पड़ीं।'' यह कहना है हाल में भारतीय नौसेना में लिखित और चिकित्सीय परीक्षण में उत्तीर्ण करने के बाद इस सेवा में अधिकारी, तकनीकी, तटरक्षक पद के अभ्यार्थियों का, जिन्हें इस सेवा में सम्मिलित होने के लिए जरूरी पुलिस जाँच प्रक्रिया का। वैसे हर शासकीय / सैन्य सेवा के लिए यह अनिवार्य जाँच प्रक्रिया इसलिए रखी गयी है, ताकि कोई आपराधिक चरित्र या पृष्ठभूमि का अभ्यर्थी सेवा में शामिल न हो जाए ।  
      विडम्बना यह है कि उनके चाल-चरित्र की जाँच वे लोग करते हैं जो स्वयं घोर भ्रद्गटचारी और दूषित चरित्र वाले हैं। क्या उन्हें यह अहसास नहीं कि वे इन अभ्यार्थियों को तंग कर रिश्वत लेकर कैसा पाठ पढ़ा रहे हैं ? इन पुलिस अधिकारियों और दूसरे कर्मचारियों इस बात की कतई परवाह नहीं है कि ये नवयुवक देश की सुरक्षा सेवा में जा रहे हैं, कम से कम इन्हें तो बखश दें। अगर ये भी उंन्हीं की तरह भ्रष्ट हो गए, तो क्या देश की सुरक्षा खतरे में नहीं पड़ जाएगी ? यह हालत के केवल उत्तर प्रदेश की नहीं, देश के दूसरे राज्यों की भी है। इनमें कुछ राज्य सरकारों ने सरकारी विभागों में भ्रष्ट्राचार पर रोक लगाने को ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू की है जिसके माध्यम से निश्चित शुल्क चुका कर जन्म, मृत्यु, हैसियत, जाति आदि प्रमाणपत्र प्राप्त किये जा सकते हैं। लेकिन भ्रद्गट सरकारी कर्मचारियों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है। भारतीय नौसेना में सम्मिलित होने वाले इन अभ्यार्थियों को पुलिस वैरीफिकेशन के लिए एक हजार से पाँच हजार रुपए रिश्वत देनी पड़ी है। इनमें से कुछ ने ना नकुर की, तो उनके वैरीफिकेशन में पुलिसकर्मियों ने जानबूझकर कुछ न कुछ कमी छोड़ दी, जिससे उनकी नौकरी ही खतरे में पड़ गयी।
 बिना चौथ लिए पासपोर्ट के लिए पुलिस/एल.आई.ओ. रिपोर्ट नहीं लगाता। ऐसे ही लेखपाल जमीन की नापजोख और दाखिल खारिज नहीं करता। जिस आयकर विभाग पर प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे ज्यादातर भरोसा जताया है वह सबसे अधिक भ्रद्गट  है। फिर भी उन्हें उनकी जाँच कराने की जरूरत नहीं महसूस नहीं हुई। देश के लोग कालेधन से नहीं,रिश्वतखोरों से परेशान और बेबस हैं जो बिना रिश्वत लिए कुछ भी नहीं करते,बल्कि न देने पर उसका सबकुछ बर्बाद करने पर उतर आते हैं। वाणिज्यकर, आबकारी, पुलिस, राजस्व, च्चिक्षा, खनन, मनोरंजन, यातायात, चिकित्सा विभाग को सबसे ज्यादा चौथा वसूलने में कौन आगे हैं, यह अब शोध का विद्गाय है। सरकारी विभागों में नौकरी पाने, वेतन लगवाने, पेंशन, बकाया लेने, स्थानान्तरण आदि सभी कार्यों के लिए पुजापा चढ़ाना होता है। चिकित्सक धन के लालच में अनावश्चक जाँचों से लेकर गैरजरूरी दवाएँ लिखते और ऑपरेशन तक करते हैं। ये रिश्वत लेकर फर्जी चिकित्सा प्रमाणपत्र देते और चोटें भी बनाते हैं। देश के ज्यादातर न्यायालयों में न्याय बिक रहा है। फिर भी न्यायालय के दण्ड से लोग उसके बारे में लिखने / कहने से डरते हैं। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय खुलेआम धन लेकर डिग्रियाँ बाँट रहे हैं। दवा निर्माता कम्पनियों द्वारा चिकित्सकों को अपनी कम्पनी की दवा लिखने पर कुछ रकम दी जाती है। नोटबन्दी के समय चिकित्सकों ने दवा कम्पनियों से रिश्वत के रूप में धनराशि लेने से इन्कार करने के बजाय उन्होंने रिश्वत की धनराच्चि के साथ अपने एक हजार और पाँच सौ के पचास हजार रुपए के नोट नयी मुद्रा में देने को और दे दिये। अब भी ज्यादातर चिकित्सक पहले की तरह कालाधन एकत्र करने में लगे हैं।
  कुछ लोगों का कहना है कि हम रिश्वत देते हैं इसलिए रिश्वतखोरी बनी हुई है, किन्तु सच यह नहीं है। ज्यादातर लोग मजबूरी में ही रिश्वत देते हैं, क्योंकि ऐसा करने पर उनकी नौकरी जा सकती है, सम्पत्ति छीन सकती है,बिना अपराध के जेल जाना, यहाँ तक कि जान भी जा सकती। उच्चतम न्यायालय ने देश में फैले भ्रष्ट्राचार पर चिन्ता यूँ ही नहीं कही है कि इससे देश में आर्थिक विद्गामता, अनैतिकता, अनाचार, अत्याचार के साथ-साथ सीमाओं की असुरक्षा, स्वतंत्रता, अखण्डता को भी खतरा बढ़ रहा है। इसलिए भ्रष्ट्राचार के राक्षस का समूल नाश करने को रिश्वतखोरों को नमूने की सजा के साथ उनकी सम्पत्ति जब्त करने को कानून बनाने और उन्हें सखती से लागू करने होंगे।
  सम्पर्क - डॉ.बचनसिंह सिकरवार
63 ब, गाँधी नगर, आगरा - 282003

मो.नम्बर-9411684054

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