आखिर बँटने के दर्द से बच गया ब्रिटेन

डॉ.बचन सिंह सिकरवार  
हाल में स्कॉटलैण्ड में ब्रिटेन से तीन सौ साल से भी अधिक पुराने गठबन्धन को तोड़ कर स्वतंत्र देश के रूप में  अलग  होने या उसके साथ ही बने के मुद्‌दे को लेकर हुए जनमत संग्रह में साथ रहने के पक्ष में आधे से अधिक मत आने से अब ब्रिटेन को बहुत बड़ी राहत मिल गयी है जिसकी उसे भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है। वैसे वह बँटवारे से  बच जरूर गया हैं, लेकिन उसके लिए विभाजन का खतरा सदैव के लिए खत्म नहीं हुआ है। हालाँकि इस जनमत संग्रह में स्कॉटलैण्ड की आजादी के विरोध में 55.3 तथा समर्थन में 44.7 प्रतिशत पड़े हैं और 32 में से 26 निकायों के लोगों ने एकजुट रहने को सही माना है, किन्तु जिस तरह यहाँ के लोगों ने जनमत संग्रह से ठीक पहले अन्तिम क्षणों में  ब्रिटेन के साथ बने रहने से अपना विचार बदला, वे भविद्गय में किसी भी सवाल पर अपने इस निर्णय से पलट भी सकते हैं। वैसे सशाई यह है कि जनमत संग्रह से पहले ब्रिटेन और स्कॉटलैण्ड की स्वतंत्रता के समर्थकों ने एकजुट रहने या अलग होने से मिलने फायदों और नुकसानों का पूरा हिसाब लगा लिया था। इसका कारण यह है कि जहाँ स्कॉटलैण्ड में स्थित स्कॉच व्हिस्की बनाने वाली कम्पनी समेत ज्यादातर डिस्टलारी, बैंकें तथा बहुराद्गट्रीय कम्पनियाँ विच्च्व व्यापार में आने वाली बाधाओं को देखते हुए यहाँ से अपना कारोबार समेटने की सोच रही थीं इससे स्कॉटलैण्ड के लोगों के रोजगार के अवसरों में भारी कमी आती। इसके साथ ही कुल घरेलू उत्पादन(जी.डी.पी.) भी बहुत घट जाता। कुछ लोगों को वैच्च्विक स्तर पर स्कॉटलैण्ड का रूतबा कम होने के साथ-साथ करों  का बोझ बढ़ने भी का डर सताने लगा, वहीं अमरीका और  ब्रिटेन के संयुक्त समझौते  अन्तर्गत स्कॉटलैण्ड में अमरीका द्वारा ब्रिटेन को पट्‌टे पर दी गयी 58 अमरीकी  ट्राईडेण्ट-2डी 5मिसाइलें तैनात हैं।इनके हटाने पर अरबों अमरीकी डॉलर व्यय करने होंगे।  ब्रिटेन की  रक्षा क्षमता कमजोर होने से  यूरोप में अमरीकी सुरक्षा कमी आएगी। ब्रिटेन के नौसैनिक ठिकाने स्कॉटलैण्ड में हैं।
    कभी दुनिया के बहुत बड़े हिस्से  पर राज करने और उसे बरकरार रखने को अपने हिसाब से भारत समेत दूसरे देशों उनके इलाकों को जोड़ने और बाँटने वाले ब्रिटेन को अब अपने देश के बँटने का दर्द समझ में आ रहा होगा। इसी 18सितम्बर को  जनमत संग्रह होने से पहले पूरा ब्रिटेन परेशान था कि किसी तरह से देश को बँटने से बचाया जाए, भले ही इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े। इसका कारण यह था कि गत 8 सितम्बर को यहाँ कराये गए एक सर्वेक्षण में 51 प्रतिशत निवासियों के स्वतंत्रता के पक्ष में अपने विचार व्यक्त किये है इससे ब्रिटेन के नेता बहुत ज्यादा परेशान हो गये। इनके साथ यहाँ के लोग भी बहुत चिन्तित थे। उन्हें यह भय था कि अगर स्कॉटलैण्ड ग्रेट ब्रिटेन अलग हुआ, उस दशा में इससे वेल्स और उत्तरी आयरलैण्ड में भी पृथकतावाद की भावना बढ़ेगी। इतना ही नहीं, इससे यूरोप के दूसरे देच्चों  में भी अलगाववादी द्राक्तियों को प्रोत्साहन मिलेगा। इस विभाजन से ब्रिटेन को गम्भीर आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ेगी।
 इस जनमत संग्रह से ब्रिटेन के बिखराव को बचाने के लिए पहले सांसदों ने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से स्कॉटलैण्ड से अलग न होने का आग्रह करने का अनुरोध किया। लेकिन अपनी मर्यादाओं का हवाले देते हुए जब उन्होंने अपनी असमर्थता जता दी, तब  प्रधानमंत्री डेविड कैमरून समेत विपक्षी राजनीतिक दल लेबर पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता भी स्कॉटलैण्ड वासियों को ब्रिटेन से अलग न होने को 'एकसाथ रहना ही बेहतर' (बेटर टूगेदर) का मंत्र समझाने को निकल पडे़। देश को एक रखने के अभियान में पूर्व प्रधानमंत्री और स्कॉटिश नेता गॉर्डन ब्राउन भी शामिल हो गए। उन्होंने स्कॉटलैण्ड की संसद को दी जाने वाली नई द्राक्तियों की समय सीमा की घोद्गाणा की। उस समय प्रधानमंत्री कैमरून ने कहा था कि वे 307 साल पुराने इस गठजोड़ को तोड़ने से सभी को नुकसान होगा। वे स्कॉटिच्चों से यह वादा भी करते रहे कि ब्रिटेन को एक साथ रखने के लिए उनकी सरकार जो भी बन पड़ेगा, वह करेंगे। उनके इस बयान का जवाब देते हुए स्कॉटलैण्ड की आजादी के कट्‌टर समर्थक एलेक्स सेलमण्ड ने कैमरन सरकार की घोद्गाणाओं को नाकाफी बताया। उनका कहना था कि इस मौके पर हाथ न जाने दीजिए। अब हमें आजादी पर मुहर लगा देनी चाहिए।
   वैसे अगर स्कॉटलैण्ड ब्रिटेन से अलग हो जाता, उस दशा  में जहाँ  ब्रिटेन के क्षेत्रफल का 32 प्रतिशत भू - भाग और 8 प्रतिशत जनसंखया में कमी हो जाती, इसके साथ वह उत्तरी सागर में स्थित वह तेल के कुओं से वंचित हो जाता, क्योंकि इसके 90 प्रति हिस्से पर स्कॉटलैण्ड की दावेदारी है, वहीं स्कॉटलैण्ड के लोगों के वर्तमान रूतबे में कमी आती, जो उन्हें ग्रेट ब्रिटेन का नागरिक होने के कारण दुनियाभर में मिलता है। उन्हें बहुत छोटे से देश का नागरिक कहलाने से क्या हासिल होता ? वैसे भी ब्रिटेन का क्षेत्रफल उसके कभी प्रतिद्वन्द्वी राद्गट्र फ्रान्स और जर्मनी के क्षेत्रफल से आधे से भी कम है। उसका क्षेत्रफल संयुक्त राज्य अमरीका  का चालीसवें हिस्से के बराबर है। अब जहाँ तक स्कॉटलैण्ड की जानकारी का सवाल है तो इसका  क्षेत्रफल – 78387 वर्ग किलोमीटर और जनसंखया 53 लाख  है इसकी राजधानी - एडिनबर्ग तथा सबसे बड़ा द्राहर-ग्लासगो है। यहाँ के लोग की आय 44378 डॉलर प्रति व्यक्ति आय है। स्कॉटलैण्ड तेल सम्पदा से धनी है। सन्‌ 1608 में स्कॉटलैण्ड के राजा जेम्स द्याद्गठम को इंग्लैण्ड और आयरलैण्ड की राजगद्‌दी विरासत में प्राप्त हुई थी। इस कारण तब उन्होंने इन सभी को एक ही साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। लेकिन जेम्स इन्हें मिलाकर ग्रेट ब्रिटेन का गठन करने पर भी अपनी तमाम कोशिशों के बाद वे इनकी आपसी प्रतिद्वन्द्विता खत्म नहीं कर पाये। ये दोनों पृथक सम्प्रभु राज्य बने रहे। इनकी संसद, न्यायपालिका और कानून अलग-अलग बने रहे।
 फिर सन्‌ 1698 में स्कॉटलैण्ड के करीब-करीब सभी बड़े जमींदारों ने महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत इस्थमस ऑफ पनामा को व्यापारिक उपनिवेश  बनाने के लिए उसमें भारी धन लगाया, किन्तु इसमें विफल रहे। परिणामतः वहाँ का कुलीन तंत्र दिवालिया हो गया। उन्हें इंग्लैण्ड के हमले का खतरा नजर आने  लगा। इससे बचने के लिए इन सभी ने इंग्लैण्ड के साथ संघ (यूनियन) बनाने का निर्णय किया। इस कारण 22 जुलाई, 1706 की स्कॉटलैण्ड राज्य तथा इंग्लैण्ड राज्य (वेल्स सहित) की संसद के प्रतिनिधियों के मध्य समझौता हुआ। दोनों देच्चों की संसद में इस समझौते के अनुमोदन के पश्चात एक मई, 1707 को इनका राजनीतिक एकीकरण प्रभावी हुआ। इस यूनियन के गठन से 'युनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन' अस्तित्व में आया। अब कहा यह  जा रहा है कि ब्रिटिश राजशाही के हाच्चिये पर जाने तथा 1987 में मार्गरेट थैचर की कंजरवेटिव पार्टी स्कॉटलैण्ड के कुल 60 स्थानों में से एक भी जीत नहीं सकी। तब प्रधानमंत्री बने के बाद माग्ररेट थैचर ने बदले की भावना से स्कॉटलैण्ड में रहने वालों पर सामुदायिक कर लगा दिये।इससे आक्रोशित लोगों ने यह प्रश्न उठाया कि वे राजनीतिक दल को ठुकरा चुके हैं उसका दासता स्वीकार करें? इस विवाद को हल करने के लिए सभी राजनीतिक दलों एक बैठक आहूत की पर थैचर की पार्टी उसमें शामिल नहीं हुई। इससे स्कॉटलैण्ड के लोगों में यह भावना उभरने लगी कि वे ब्रिटेन से अलग हों। जुलाई, 1997 में लेबर पार्टी की सरकार ने स्कॉटलैण्ड को आंशिक स्वायत्ता देने की योजना को पूरा किया। इसकी परिणति सन्‌ 1998 के स्कॉटलैण्ड एक्ट के रूप में हुई। इसके अन्तर्गत स्कॉटलैण्ड के लोगों को अधिक अधिकार देते हुए उनको अपने लिए कुछ विच्चेद्गा  कानून बनाने की अनुमति ब्र्रिटिश संसद ने प्रदान की। परिणामतः मई, 1999 पहली स्कॉटलैण्ड की संसद तीन सदी के बाद बनी और सरकार अस्तित्व में आयी। मई 2011 में स्कॉटलैण्ड में स्वतंत्र जनमत संग्रह का वादा करने वाली राद्गट्रवादी स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी) बहुमत के साथ स्कॉटलैण्ड की संसद में जीती। अक्टूबर, 2012 में ब्रिटेन और स्कॉटलैण्ड की सरकारें जनमत संग्रह कराने पर सहमत हुईं।
   अगर स्कॉटलैण्ड ब्रिटेन से अलग होकर स्वतंत्र देश बन जाता तो उस स्थिति में उसे 28 सदस्यीय यूरोपीय संघ (ई.यू. )की सदस्यता पाने के लिए इससे बातचीत करनी पड़ती। यह एक महत्त्वपूर्ण मुद्‌दा है । यूरोपीय संघ की सदस्यता मिलने का अर्थ कई किस्म के आर्थिक लाभों का मिलना है। लेकिन यह बहुत आसान नहीं है।
यदि स्कॉटलैण्ड की स्वतंत्रता के पक्ष में जनमत संग्रह का निर्णय आता, तो  2016 तक यह  पृथक होकर अलग एक नये देश के रूप में अस्तित्व में आता । स्कॉटलैण्ड के नेता स्वतंत्र  होने के बाद  पौण्ड को ही अपनी मुद्रा के रूप में अपनाने की सोच रहे थे, पर  ब्रिटेन इसके लिए राजी नहीं है। इस स्थिति में स्कॉटलैण्ड को नयी मुद्रा की आवच्च्यकता होगी। ऐसा करना आसान नहीं है। वैसे इस दौरान ब्रिटेन की वित्तीय नियामक ने स्कॉटलैण्ड के अलग होने की आशंकाओं के बीच आपात योजना तैयार करना शुरु कर दी थी। स्वतंत्रता का विरोध करने वालों ने स्कॉटलैण्ड की सड़कों पर उतरना शुरु कर दिया। तेल सम्पदा से भरपूर अबरदीन द्राहर में एकता के समर्थक प्रदर्शनकारियों ने जुलूस निकाला। तब उनके नेता रॉब वॉकर ने कहा था,  '' मैं एक छोटे देश का स्कॉटिश नहीं कहलाना चाहता। मैं ताकतवर ब्रिटेन का स्कॉटिश रहना चाहता हूँ।'' दूसरी ओर स्वतंत्रता के पक्ष में अभियान चला रहे लोग अपनी तेल सम्पदा के दम पर जनता को आगे बढ़ने का सपना दिखा रहे थे।
स्कॉटलैण्ड के लोगों ने अब ब्रिटेन के द्रासकों और लोगों को भारत के तीन टुकड़े करने का दर्द भी समझ में आना चाहिए, जिसके कारण हुए कत्ल – ए - आम में अपनों की लाखों जानें गंवाने के साथ-साथ मिले बिछोह का दर्द - पीड़ा अब तक सह रहे हैं। फिलहाल, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सहित दूसरे राजनीतिक दलों के नेता स्कॉटलैण्ड के लोगों को कई तरह की स्वतंत्रता के साथ-साथ अनेक सुविधाएँ तथा रियायतें देकर की स्कॉटलैण्ड के लोगों को अपने देश के साथ रखने में कामयाब रहे हैं लेकिन अब देखना यह है कि भविद्गय में भी ब्रिटेन  स्कॉटलैण्ड के निवासियों कब तक अपने साथ रख पाता है।

सम्पर्क - 63ब, गाँधी नगर, आगरा - 282003 मो.नम्बर - 9411684054

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कोई आजम खाँ से यह सवाल क्यों नहीं करता ?

अफगानिस्तान में संकट बढ़ने के आसार

कौन हैं अनुच्छेद 370 को बरकरार रखने के हिमायती?