क्या यही कश्मीरियत है ?
हाल में कश्मीरी पण्डितों को बसाने हेतु प्रस्तावित सैनिक
कॉलोनी को लेकर श्रीनगर में हुर्रियत कान्फ्रेंस अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक
की अगुवाई में श्रीनगर में उग्र प्रदर्शन में जुटी भारी भीड़ को देखकर कतई हैरानी नहीं
हुई, जिसमें प्रदर्शनकारी गले फाड़-फाड़ कर भारत विरोधी नारों के साथ पाकिस्तानी और दुनिया
के सबसे खूंखार दहशतगर्द संगठन 'आइ.एस.'के झण्डे लहरा रहे थे। उनकी इस बेजा हरकत से
एक बार फिर साफ हो गया कि ये लोग न सिर्फ मुल्क विरोधी और पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट
के हिमायती हैं, बल्कि वे सभी किसी भी सूरत में कश्मीरी पण्डितों की घर वापसी
नहीं चाहते। हकीकत यह है कि दिखावे को जम्मू-कश्मीर
की सभी सियासी
पार्टियाँ कश्मीरियत या साझा संस्कृति की बातें जरूर करती हैं, यहाँ तक कि कश्मीरियत के माने महज पंथनिरपेक्षता ही नहीं,
इन्सानियत भी बताती हैं, पर असल में यह सब
इनका फेरब है। क्या कभी किसी ने इनसे पूछा कि ये कौन-सी इन्सानियत और भाईचारा था ? जो किसी मुसलमान पड़ोसी ने सदियों से संग-संग रहते ही
नहीं,एक के ही पुरखे की औलाद होते भी जालिम
इस्लामी कट्टरपन्थियों से कश्मीरी पण्डित और उनकी बहू-बेटियों की जान तथा अस्मत तक
बचाने की कोशिश तक नहीं की। क्या मजहब बदल देने से खून भी बदल जाता है?लेकिन कश्मीर
ही क्या? पूरे मुल्क में ही ऐसा नजर आता है जबकि अब तक ये अपने नामों से वंशों/ और जातियाँ
तक नहीं हटा पायें हैं।
अफसोस तो यह है
कि केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार तथा राज्य में पी.डी.पी. और भाजपा
की साझा सरकारे बनने से न केवल कश्मीरी पण्डितों, बल्कि पूरे देश के लोगों को इस राज्य में बदलाव की बहुत उम्मीद थी, पर अब तक ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। जम्मू-कश्मीरी
के नेताओं का रवैया भी आम लोगों से अलहदा नहीं है। यहाँ की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती
कहती हैं कि जब कश्मीरी पण्डितों को अपने घरों का अता-पता नहीं है तो हम थोड़े ही उन
घर ढूँढ़ने जाएँगे? ऐसे ही पूर्व मुख्यमंत्री
उमर अब्दुल्ला ने कश्मीरी पण्डितों के विस्थापन कभी अफसोस जाहिर नहीं किया है, जब कि उन्हीं की पार्टी के सत्ता में रहते वे विस्थापित हुए थे। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री
उमर अब्दुल्ला मामूली से मामूली घटनाओं पर टिवट् करते रहते हैं,पर कभी उन्होंने 'पाकिस्तानी
झण्डा' लहराते हुए 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' करने वालों से उसी पाक स्थान को चले जाने
क्यों नहीं
कहा ? या उन्होंने उनसे आई.एस.का झण्डा उठाने
वाले से ये पूछने की जुर्रत की कि कश्मीर में इस्लामिक स्टेट बन गयी तो हमारा और महबूबा
मुफ्ती का खानदान कहाँ जाकर हुकूमत करेंगे ? यहाँ तो
आई.एस.के आने से पहले ही हमने 'इस्लामिक स्टेट' बना दिया है।
एक तो वैसे ही
अब तक श्रीनगर या कश्मीर घाटी में कश्मीरी पण्डितों के लिए अलग से कॉलोनी बसाने की
कोई सोची-समझी योजना नहीं बन पायी है, फिर कश्मीरी पण्डितों को जब तक राज्य सरकार और
आम लोगों द्वारा सुरक्षा का पक्का भरोसा नहीं दिया जाता, तब तक उनका अपने घर वापसी कैसे सम्भव है ? जब कि अलगाववादी उनके लिए अलग बस्ती बसने देना नहीं चाहते,ताकि वे घाटी में
लौट न सके। दो दशक गुजर जाने के बाद भी ये अलगवादी अपने इस घृणित इरादे में कामयाब
रहे हैं।
असल में इनमें
से कोई भी कश्मीर पण्डितों के घाटी में लौट आने के पक्ष में नहीं हैं। अगर ऐसा होता, तो इनमें से कोई ऐसे लोगों की मुखालफत को आगे क्यों नहीं
आते ? अलगाववादियों के इस प्रदर्शन का किसी भी सियासी पार्टी
ने खुलकर दूर दबी जुबान से भी विरोध नहीं किया है। यह सब यह दर्शाता है कि ये सभी देर
सबेर पूरे जम्मू-कश्मीर में दारुल इस्लाम के हक में हैं।
जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों के ज्यादातर मुसलमान नेताओं
के हकीकत यह है कि उन्होंने सियासती फायदे उठाने या दिल्ली हुकूमत की नजरों पर पर्दा
डालने को अलग-अलग पार्टियाँ जरूर बना रखी हैं और बाहर वालों को दिखाने लड़ते-झगड़ते और
एक-दूसरे से जान के प्यासे भले ही नजर आते हों, लेकिन गैर मुसलमानों के लिए एक हैं।
यहाँ तक कि इन सभी सिर्फ-सिर्फ एक ही मकसद है किसी भी तरह सत्ता पर काबिज होना। यही
कारण है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भले ही विधायक मार्क्सवादी पार्टी का हो,पर काँग्रेस
या भाजपा का वह किसी भी माने में हुर्रियत कान्फ्रेंस या जे.के.लिबरेशन फ्रण्ट के यासीन
मलिक से कमतर साबित नहीं होगा। यहाँ के सियासी लोगों का सोचना है कि जब तक हिन्दुस्तान
की हुकूमत कायम है, कश्मीरियत और जम्हूरियत का राग आलापते हुए सत्ता से हर तरह की सहूलियतें
और फायदे उठाते रहो। इसके साथ इस पूरे इलाकों के हिन्दुओं और बौद्धों को डरा-धमका कर
मजहब बदलवा कर और उनकी युवतियों को प्रेम जाल में फँसा कर उनकी आबादी घटना और खत्म
करना है। सच्चाई यह है कि राज्य में सत्तारूढ़ काँग्रेस - नेशनल कान्फ्रेंस की साझा सरकार के समय की शह पर नब्बे
दशक में बेदखल किये कश्मीरी पण्डितों की अपने घरों, जमीन-जायदादों पर जायज-नाजायज तरीकों से मुसलमान ही काबिज हैं। उनके मन्दिरों
या ध्वंस्त पड़े हैं, या उनके हो गए हैं। मुहल्लों, पहाड़ियों, घाटियों, मुख्य जगहों के नामों का इस्लामीकरण कर दिया गया है।
जम्मू-कश्मीर सरकार
इस सच्चाई वाकिफ न हो, यह सम्भव नहीं है, किन्तु सत्ता की भूख भाजपा को जरूर कमजोर कर दिया है, जो अलगाववादियों की हिमायती रही महबूबा मुफ्ती के साथ उसकी
शर्तों पर सरकार बनाने को बेचैन हो गए थे, अब इस गलती
को वे कैसे सुधारेंगे, यह देखना बाकी है।
सम्पर्क-डॉ.बचन
सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर ,आगरा-282003
मो.नम्बर-9411684054
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