पाकिस्तान की राह पर बांग्लादेश
-डॉ.बचन सिंह सिकरवार
पड़ोसी बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा लगातार
प्रगतिशील,उदार,स्वतंत्र विचाधारा वाले सभी धर्मों के ब्लागरों, साहित्यकारों के साथ-साथ अल्पसंख्यक हिन्दू, बौद्धों, ईसाइयों, विदेशियों
की निमर्म हत्याएँ और उनके मन्दिरों को तोड़े, घर जलाने, औरतों के साथ बलात्कार की वारदातें
हृदय विदारक और चिन्तनीय हैं लेकिन इन मजहबी दहशतगर्दों के खिलाफ वहाँ की अवामी लीग
की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की सरकार द्वारा वांछित सख्त कार्रवाई न किये जाने
से उनके हौसले से बढ़ते ही जा रहे हैं जबकि वह अपने को पंथनिरपेक्ष बताती हैं। इन घटनाओं
को बांग्लादेश का आन्तरिक मामलों मानते हुए
भारत ने भी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त
नहीं की। इस कारण वहाँ की सरकार इन हत्याओं को लेकर बहुत अधिक गम्भीर नहीं हैं।
निश्चय ही उसका यह रवैया सही नहीं है, क्यों कि एक ओर तो वह बांग्लादेश
के सन् 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के समय के उन
मुजरिमों को सजा दिला रही हैं
जिन्होंने अपने कठ मुल्लेपन के कारण न केवल स्वतंत्र
संग्राम की मुखालफत की, बल्कि पाकिस्तानी
सेना का साथ भी दिया। इतना ही नहीं, तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में उसके जरिए तीस लाख बंगालियों खासकर हिन्दुओं के
कत्ले आम कराया और करीब दो लाख हिन्दू-मुसलमान औरतों के साथ बलात्कार किया तथा कराया
था । हालाँकि अब उनके खिलाफ कार्रवाई किये जाने पर शेख हसीन की सरकार का विपक्षी
सियासी पार्टियाँ 'बांग्लादेश नेशनलिस्ट्स पार्टी', 'जमायते इस्लामी' समेत मुल्क तमाम इस्लामिक कट्टरपन्थियों
द्वारा बड़े पैमाने पर मुखालफत की जा रही है। फिर भी वे अपने इस चुनावी वायदे पर डाटी
हुई हैं जिसमें जनता से इन्हें सजा दिलाने का वायदा किया था। लेकिन उनकी ब्लागरों,
साहित्यकारों, अल्पसंख्यकों के साथ कट्टरपन्थियों के लगातार किये जा रहे जुल्मों-सितम
पर खामोशी खल रही है। तत्कालीन पाकिस्तान के इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ जंग लड़कर
उससे मुक्ति पाकर यहाँ के लोगों ने बांग्लादेश बनाया, जो भारत की सहायता-सहयोग के बगैर असम्भव थी, अब ऐसा लगता है कि इस मुल्क के लोग फिर से पाक की राह पर चले पड़े हैं।
अब बांग्लादेश में जब-जब अदालतों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम
के गद्दारों को सजा सुनायी जाती है, उसके विरोध में वहाँ की सड़कों पर लोगों की जैसी
भीड़ उमड़ती है, उससे यहाँ के लोगों में बढ़ते इस्लामिक कट्टरवाद का पता चलता है। वैसे
इस मुल्क में उदारवादी मुसलमानों की भी कमी नहीं है, पर वे अपनी हिफाजत का पुखता इन्तजाम न देख खामोश रहने में ही खैरियत समझते
हैं।
ये दहशतगर्द बेकसूर
हिन्दुओं, बौद्धों, ईसाइयों को
अकारण मार रहे हैं। गत 7 जून को झिनईगाह में
बाइक सवार तीन दहशतगर्दों ने 70 वर्षीय हिन्दू पुरोहित
अनन्त कुमार गांगुली की धारदार हथियार से उन्हें मार डाला, जब वे प्रातः साढ़े नौ बजे
साइकिल से नोलडांगा में बाजार में मन्दिर जा रहे थे। उनके बाद पावना के हिमायतपुर में
अनुकूल ठाकुर के सत्संग आश्रम के
नित्यरंजन पाण्डे की हत्या कर दी। इसके पहले हिन्दू
दर्जी निखिल चन्द्र को मार डाला, उनकी जान
लेने दहशतगर्द बाइक सवार पर होकर आये थे। इससे पहले 29 मई को गिरजाघर के पास ईसाई दुकानदार सुनील गोमज की धारदार हथियार से कत्ल कर दिया, जो किराने की दुकान
करता था। इसके एक घण्टे पहले दहशतगर्दों ने आतंकवाद निरोधी दस्ते के वरिष्ठ अधिकारी
की पत्नी की गोली मार कर हत्या कर दी। पंचगढ़ में एक हिन्दू पुरोहित को बम और गोली से
मार दिया। फिर दहशत पैदा करने के इरादे पैने हथियार से गला काट दिया। इसी 14 मई को बन्दरबान जिले के पर्वतीय इलाके में एकान्त में स्थित
बौद्ध मठ के प्रमुख भिक्षु मवांग की आधी रात के बाद दहशतगर्दों ने गला रेत कर मार डाला।
उनकी मौत से 7 मई को राजशाही शहर में स्थित एक आम के
बाग 65 वर्षीय शहीदुल्ला नाम के मुस्लिम सूफी सन्त धर्मगुरु की
लाश पायी गयी है । उनकी किसी ने गला रेतकर हत्या कर दी।
शरीर पर धारदार हथियार के और भी घाव पाए गए हैं। तब हत्या का शक अतिवादी संगठनों पर
किया जा रहा है। वैसे इस तरह कई घटनाओं की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन आइ.एस ले चुका
है लेकिन सरकार देश में आइ.एस.की मौजूदगी से इंकार करती है। गत फरवरी में एक हिन्दू
पुजारी की गोली मार कर हत्या कर दी और बचाने आगे बढ़े धर्मावलम्बी को घायल कर दिया।
2 अगस्त, 2015। बांग्लादेश
में 40 वर्षीय साल के एक धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर निलय नील की उसके फ्लैट
में गलाकाट कर निर्मम हत्या कर दी गयी। देश में यह चौथे ब्लॉगर की हत्या हुई है । उनकी अज्ञात लोगों ने उत्तरी गोरहान इलाके में हत्या
की है। उनका शव चौथी मंजिल स्थित उनके फ्लैट से बरामद किया गया। ये दहशतगर्द एक जापानी
और इतालवी की भी जान ले चुके हैं।
यहाँ तक ये सुन्नी मुसलमान दहशतगर्द मुसलमानों उन मुसलमानों
की जान ले रहे हैं जिन्हें वे या तो मुसलमान नहीं मानते या फिर उन्हें इस्लामी कट्टरपन्थी
विचारधारा के विरोधी नजर आते हैं। वैसे उनकी निगाह में शिया, सूफी, अहमदिया आदि मुसलमान ही नहीं हैं। इस दहशत के माहौल को देखते
हुए हिन्दू और दूसरे अल्पसंख्यक अपना घर-द्वार, खेत-खलियान, कारोबार छोड़ कर सुरक्षित जगहों पर जान
बचाने को भाग रहे हैं, जिससे दूसरे मुसलमान खुश हैं, क्यों कि उन्हें मुफ्त में या औने-पौने दामों में उनकी
जायदादें मिल रही हैं। सन् 1947 के भारत के विभाजन
के समय पूर्वी पाकिस्तान में सन् 1941 की जनगणना के अनुसार हिन्दुओं की आबादी 28 प्रतिशत थी, जो सन् 1951 में 22.05 फीसदी थी। फिर 1961 की जनगणना
में 18.5 प्रतिशत तथा 1974 में 13.5 फीसदी रह गयी। इसके पश्चात् 1981 की जनगणना में 12.13 प्रतिशत
तथा 1991 में 11.62 फीसदी हो गयी।
फिर 2001 की जनगणना में 9.2 प्रतिशत, 2011 में 8.5 फीसदी रह गयी है।
यह हकीकत है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद खुद कट्टरपन्थियों
की सतायी हुई हैं इन्हीं हैवानों उनके पिता बंगबन्धु शेख मुजीर्बुरहमान समेत पूरे खानदान
को मार डाला था। अब वे अपने मुल्क में बढ़ते कट्टरवाद
की असल वजह को खत्म करने पर गौर क्यों नहीं फरमा रही है ? बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरवादियों और दहशतगद संगठनों को सऊदी अरब और दूसरे
इस्लामिक मुल्कों से बड़े पैमाने पर इमदाद मिल रही है। इससे वे मदरसों और दूसरे स्कूलों
चला रहे हैं, ये ही मदरसे और स्कूलकट्टरपन्थियों
के पनाहगाह बने होने के साथ-साथ कट्टरपन्थ पनपाने और फैलाने के अड्डे बने हुए हैं।
इन दहशतगर्दों का असल मकसद बांग्लादेश को हिन्दू विहीन कर इसे 'दारुल इस्लाम' में तब्दील
करना है। इसके साथ-साथ नेपाल और भारत के ओसोम, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में अशान्ति फैला रहे हैं। यहाँ इन दहशतगर्दों ने
अपना जाल भी बिछा लिया है। अगर अब सचमुच प्रधानमंत्री वाजेद 'इस्लामिक स्टेट' (आई.एस.) समेत दूसरे
दहशतगर्दों की दहशतगर्दी से अपने मुल्क को बचाना चाहती हैं तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त
कार्रवाई करने को उन्हें तत्काल कमर कसनी होगी।
सम्पर्क-डॉ.बचन
सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर ,आगरा-282003
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें