अब उन्हें आम आदमी की फिक्र क्यों ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
देश में काली कमाई पर रोक लगाने को पाँच सौ और हजार रुपए
के नोटों को रद्द करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्णय सर्वथा उचित होते
हुए भी गलत समय और अधूरी तैयारी के साथ लिया गया है, जिससे आम आदमी को तमाम तकलीफें
झेलने के सा - साथ कारोबार से लेकर खेतीबाड़ी तक को भी भारी नुकसान हो रहा है। भाजपाई इसे
'सर्जीकल स्ट्राइक' (लक्षित तक सीमित) बताते हुए खुद ही
अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, जबकि यह बमबारी / युद्ध सरीखा है जिससे हर कोई प्रभावित है । क्या उन्हें नहीं मालूम है कि महँगाई के इस दौर में ये
नोट ही मुख्य रूप से चलन में हैं। इससे अवैध कमाई से इनके अम्बार लगाने वाले ही नहीं,
आम आदमी की जिन्दगी भी बुरी तरह प्रभावित होगी। ऐसे में केन्द्र सरकार के इस फैसले की आलोचना भी गलत नहीं है । लेकिन इस मामले में विपक्षी दल जनता के लिए जैसी हमदर्दी
दिखावा कर रहे हैं, वह हैरान करने वाला है ।

यह सब देखते हुए विपक्षी दलों की बांछे खूब खिल उठी हैं । उनकी फिर से सत्ता में लौटने की उम्मीदें कुलाचें भर
रही हैं। वे इस अपने लिए सुनहरा मौका मान रहे हैं । इसलिए ये लोग आम आदमी की तकलीफों की दुहाई देते हुए घड़ियाली आँसू बहाते उनकी सहानुभूति
लूटने
को बेताब नजर आ रहे हैं, जैसे उनकी पार्टी के केन्द्र और राज्यों में सत्ता में रहते
हुए कहीं भी आम जन को कतई तकलीफ नहीं हुई थी। उनके सारे काम बगैर कष्ट-कठिनाइयों के
पलक झपकते हो जाते थे और अब भी हो रहे हैं । काश ! यह अपने देश की राजनीतिक दलों के नेता इतने संवेदनशील और
रहमदिल होते हैं ?
हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है। केन्द्र या राज्य में भाजपा समेत किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रही हो या है
उसमें आम आदमी की कहीं कोई सुनवाई नहीं है । उसे हर जगह
न केवल लम्बी-लम्बी कतारों में खड़ा होना पड़ता, बल्कि लम्बे इन्तजार के बाद भी सरकारी कारिन्दों की डॉट-फटकार / उपेक्षा / अपमान बर्दाश्त करते
हुए चौथ भी देनी पड़ती है। उसे जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र से लेकर हर तरह काम का बगैर
सिफारिश और रिश्वत नहीं होता। रिश्वत के बिना थानों में रिपोर्ट दर्ज नहीं होती। न्यायालयों
में भी बगैर दाम के कोई काम नहीं होता। ऐसे में आम आदमी के लिए न्याय पाना दिवास्वप्न
से अधिक कुछ नही है, पर इस भयावह हालत पर आजतक किसी सियासी पार्टी ने विचार करने की
आवश्यकता अनुभव नहीं की । जहाँ अब भी न्याय
पाने की आस में लोग अपना सब कुछ दांव पर लगा अपनी पूरी जिन्दगी खफा देते हैं । आजादी पाने से अब तक किसी भी पार्टी का लक्ष्य आमआदमी
के दुःख-दर्द, उसकी मूलभूत समस्याएँ हल करना और न्याय दिलाना नहीं रहा है। आज तक किसी
ने सुशासन / भ्रष्टाचार मुक्त
शासन के बारे सोचा तक नहीं है। यही कारण है कि संवेदनशील, कर्त्तव्यनिष्टठ, ईमानदार
प्रशासनिक / पुलिस अधिकारी सदैव उपेक्षित रहे हैं जब कि बेईमान, चापलूस,
भ्रष्टट अधिकारी सभी राजनीतिक दलों के प्रिय रहते आये हैं।
अपने देश में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता को सत्ता के
लिए आम आदमी को भरमाने को खुद को निर्धन, दलित, दमित, आदिवासी, पिछड़े, अति पिछड़े, अल्पंसख्यकों
का मसीहा होने का दावा और दिखावा कैसा भी करते आये हों, लेकिन सत्ता हासिल करने के
बाद किसी ने भी उनकी बदहाली दूर करने को कुछ भी नहीं किया है। अधिकतर नेताओं का एक
ही लक्ष्य है किसी तरह सत्ता हासिल करना, उसे बनाये
रखना। उससे हर तरह की लूट कर ऐश - अय्याशी की जिन्दगी बसर करना। आज हर राजनीतिक दल 'विकास'का
नारा लगा रहा है लेकिन इस कथित विकास की आड़ में राजनेता, नौकरशाह, इंजीनियर, ठेकेदार
आदि जनधन की लूट कर अपनी तिजोरियाँ ही भरते आये हैं। भ्रष्टाचार को खत्म करने का नारा
कहीं गुम हो गया है। सभी सियासी दलों ने जनता को लूटने की दुरभि सन्धि की हुई है। इसलिए
वे आमजन को भरमाने को एक-दूसरे को भ्रष्ट, असंवेदनशील, निकम्मा आदि करार देते हैं, किन्तु हकीकत में इनमें विकट एकता है। सभी राजनीतिक दलों
के नेता / कार्यकर्ताओं में
से कोई सरकारी वनों को काट रहा है तो कोई नदियों / पहाड़ों से खनन कर
रहा है तो कुछ पुलों, सड़कों, फुटपथों, मेलों, हाट-पैठ में चौथ वसूल रहा है । कुछ पुलिस - प्रशासनिक अधिकारियों या मंत्रियों की दलाली में लगे हैं तो कुछ ठेकों नाम
पर लूट खसोट कर रहे हैं। कुछ सरकारी / गैरसरकारी जमीनों
को कब्जिया रहा है तो कुछ दूसरे घरों को घेर रहा है। इनके इन नाजायज काम - धन्धों को रोकने-टोकने
वाले ईमानदार अधिकारी सारे आम अपमानित ही नहीं, इनसे मार भी खा रहे हैं। फिर भी सरकार
के मुखिया को साफ - सुथरा, ईमानदार बताया जा रहा है। सरकारी-गैर
सरकारी विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, बोर्ड धन लेकर बिना दाखिला, पढ़ाई-लिखाई,
परीक्षा - प्रशिक्षण के उपाधि
बाँटने के कारोबार में लगे है, पर केन्द्र और राज्य सरकारों को कोई परवाह नहीं है, क्यों कि इस कारोबार से उनके ही लोग जो जुड़े हैं। देश के
भविष्य के साथ
हो रही इस खिलवाड़ से किसी भी राजनीतिक दल के नेता कोई तकलीफ नहीं । सालों-साल परीक्षा परिणाम लटके रहते है, अंकपत्र और उपाधि प्रमाण पत्रों के लिए राशन की सी छात्र - छात्राओं की कतारें
लगती हैं, अनशन और भूख हड़ताल तक करनी पड़ती है, पर किसी भी जनप्रतिनिधि पर कोई असर नहीं पड़ता। सरकारी अस्पतालों
में डॉक्टर नहीं आते। वहाँ न दवा मिलती है और कोई सुविधा । स्कूलों में शिक्षक नहीं आते। अगर आते हैं तो उन्हें दूसरे कामों लगा दिया
जाता है लेकिन इसकी किसे परवाह है ?
अब रही बात भ्रष्टाचार खत्म करने की, तो केन्द्र सरकार
को नोटों को रद्द करने के बजाय काली कमाई करने वाले उद्योगपतियों, व्यापारियों, नौकरशाहों,
राजनेताओं, डॉक्टरों, इंजीनियरों, जमीन और बिल्डिंगों के कारोबारियों, फिल्म निर्माताओं,
कलाकारों, ठेकेदारों, शराब माफियों, हवाला कारोबारियों, अलगाववादियों आदि के खिलाफ
कार्रवाई करनी थी, जिन्होंने काली कमाई कर नोटों के ढेर लगाने के साथ-साथ सोने, हीरे-जवाहरात
के साथ तमाम बेनामी सम्पत्ति खरीदी हुई हैं। हालाँकि प्रधानमंत्री अगला निशाना इन्हें
बनाने की बात जरूर कर रहे हैं। इसके साथ ही अभी केन्द्र या किसी राज्य सरकार ने किसी
भी भ्रष्ट राजनेता, नौकरशाह, सरकारी कर्मचारी के खिलाफ नमूने कार्रवाई नहीं की है जिससे दूसरों को सबक मिले।
इसके साथ राजनीतिक दलों के काली कमाई में हिस्सेदार बनने पर रोक लगाने की भी पहल नहीं
हुई। ऐसे में सिर्फ पाँच सौ और हजार रुपए के नोट निरस्त करने से हर तरह के भ्रष्टाचार
पर रोक लग जाने की बात सोचना ही बेमानी होगी। वैसे इससे कर चोरी से काली कमाई से ढेर
लगाने वालों को सबक के साथ-साथ नकली नोटों के जरिए आतंकवाद फैलाने वालों पर लगाम कसने
में मदद जरूर मिलेगी।
सम्पर्क डॉ.बचन
सिंह सिकरवार
63 ब,गाँधी नगर,
आगरा-282003
मोबाइल नम्बर - 9411684054
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