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कहीं ‘सूचना के अधिकार' को बेमानी न बना दें ये लोग

डॉ.बचन सिंह सिकरवार देश के विभिन्न सरकारी - गैर सरकारी संस्थानों/ कार्यालयों के कामकाज में पारदर्शिता लाने और उस पर निगरानी रखने के महती उद्देश्य से अनेकानेक लोगों के भारी   प्रयासों के बाद संसद में जन सूचना अधिकार अधिनियम-२००५ ' पारित किया गया , तब   आमजन ने इस अधिनियम से जितनी उम्मीदें पाली   थीं , वैसा अब तक कुछ नहीं हो पाया है। केन्द्र और राज्य सरकारें और उनके विभागों के मुखिया लगातार इस अधिनियम को भौंथरा और निरर्थक बनाने में जुटे हैं , ताकि उनकी हर तरह की मनमानी   चलती रहे और उन्हें   कोई रोकने-टोकने की हिम्मत न करें। इसलिए   कभी गोपनीयता का बहाने , तो कभी भारी शुल्क का डर दिखाकर आवेदक को उसकी माँगी गयी सूचनाएँ उपलब्ध नहीं करायी जा रही हैं। कुछ राजनेता , गुण्डा-माफिया , नौकरशाह आदि तो आर.टी.आई.कार्यकर्त्ताओं की जान के दुश्मन बने हुए हैं। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ लोग तो सूचना पाने की कीमत अपनी जान देकर चुका   चुके हैं। फिर उनके हौसलों में कमी नहीं आयी है। इस अधिनियम की बदौलत भ्रष्टाचार के कई बड़...