कोई आजम खाँ से यह सवाल क्यों नहीं करता ?

                    डॉ.बचन सिंह सिकरवार
आजकल  समाजवादी पार्टी के सांसद और इसी पार्टी की उ.प्र. सरकार के नगर विकास मंत्री रहे  मुहम्मद आजम खाँ  द्वारा  रामपुर में बनायी मुहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी से सम्बन्धित  खबरें समाचार पत्रों और टी.वी.चैनलों में आती ही रहती हैं। इसका कारण मुहम्मद आजम खाँ द्वारा अपने राजनीतिक प्रभाव का बेजां इस्तेमाल कर गैरकानूनी तरीकों से इस यूनिवर्सिटी के लिए सरकारी और गैर सरकारी भूमि हथियाना है। सत्ता बदलने के बाद पीड़ितों द्वारा उनके खिलाफ अब तक 29 मुकदमें दर्ज हो चुके हैं,जिनकी शिकायतें सपा सरकार में उनके दबदबे के चलते कहीं क्या,मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक सुनने को तैयार नहीं थे। इस कारण अब राज्य सरकार ने उन्हें ‘भू माफिया’ घोषित किया हुआ है। अब अपने को मजलूम बताते हुए मुहम्मद आजम खाँ यह कहते फिर रहे हैं कि तालीम की रोशनी फैलाने के पाक और नेक मकसद से तामीर करायी उनकी यूनिवर्सिटी को  राज्य सरकार बन्द और बर्बाद कराने पर आमादा है और उन्हें बेवजह सताया जा रहा है।

    हैरानी की बात यह है कि आज तक भाजपा समेत किसी भी राजनीतिक दल और उनके नेता तो दूर,  किसी और शख्स ने भी मुहम्मद आजम खाँ से इस यूनिवर्सिटी का नाम ‘मुहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी’ रखने पर सवाल क्यों नहीं उठाया? इसकी वजह यह है कि जिस शख्स का ख्वाब/मकसद  हिन्दुस्तान को ‘दारुल इस्लाम’ बनाना, उसके एक बड़े हिस्सा को अफगानिस्तान में मिलाना, वन्देमातरम् को इस्लाम विरोधी ठहराया, हिन्दुओं का धर्मान्तरण करना/ कराना, मुल्क की आजादी के स्थान पर ‘खिलाफत आन्दोलन‘ में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना और उसे  हिन्दुस्तान की जमीन में दफन होना तक गंवारा नहीं था, उसके नाम पर आजम खाँ को यूनिवर्सिटी के नामकरण की जरूरत क्यों पड़ गई ? इसका जवाब मुहम्मद आजम खाँ की फितरत, सियासत और अब तक उनके कार्यकलापों में छिपा है। हकीकत कहें,तो कमोबेश रूप में वह भी मौलाना मोहम्मद अली जौहर सरीखे  हैं। 

  वैसे मौलाना मुहम्मद अली जौहर और उनके छोटे भाई शौकत अली की हकीकत को छुपाते हुए मुहम्मद आजम खाँ उन्हें वतनपरस्त साबित करने की कोशिश करते आए हैं, पर हिन्दुस्तान की जंगे आजादी की तवारीख मौलाना मुहम्मद अली जौहर और शौकत अली के बारे में क्या कहती है, उसे पढ़ने के बाद उनके बारे में आप जो फैसला करेंगे, उसके लिए आप आजाद हैं। काँग्रेस के इतिहास में जिन अली भाइयों का जिक्र आता है। उन्हीं में से एक यही मौलाना मुहम्मद अली जौहर हैं। रोहिला पठानों के यूसुफजई कबीले से जुड़े मुहम्मद अली जौहर का जन्म 10 दिसम्बर, सन् 1878 को रामपुर में हुआ था। ये देवबन्द ,अलीगढ़ में शुरुआती तालीम हासिल  करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी गए। इनकी ख्वाहिश  आई.सी.एस.की परीक्षा पास कर ब्रिटिश सरकार की सिविल सर्विस  का हिस्सा बनकर अँग्रेजों की नौकरी करना था, पर इसमें वे नाकाम रहे। इसके पश्चात् मुहम्मद अली नवाब रामपुर तथा बडोदरा के दरबार की सेवा में रहे। फिर उन्होंने कोलकाता से ‘कामरेड’ ,दिल्ली से ‘हमदर्द’, इंग्लैण्ड से ‘मुस्लिम आउटलुक’ तथा पेरिस से ‘एकोडील इस्लाम’ नामक पत्रिकाएँ निकालीं। इसके बाद ये हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर उन्हें मुसलमान बनाकर इस्लाम   के विस्तार  में जुट गए।यह सब कर उन्होंने  ‘मौलाना’ की उपाधि हासिल की।
 प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की ने ब्रिटेन के खिलाफ जर्मनी का साथ दिया। इस कारण ब्रिटेन ने युद्ध जीतने के बाद तुर्की साम्राज्य को विभाजित कर दिया। तुर्की के शासक को मुस्लिम जगत् में ‘खलीफा’ कहा/माना जाता था। उनकी सल्तनत टूट ने से दुनियाभर के मुसलमान  ब्रिटेन के खिलाफ हो गए। हिन्दुस्तान के ये अली भाई तुर्की के शासक को फिर से ‘खलीफा’ बनाना चाहते थे। उस समय महात्मा गाँधी चाहते थे कि किसी तरह से मुसलमानों को हिन्दुस्तान की आजादी के आन्दोलन से जोडा जाए। इसी वजह से मौलाना मोहम्मद अली जौहर और काँग्रेस में एक-दूसरे के आन्दोलन में साथ देने को समझौता हुआ। मुहम्मद अली जौहर ने सन् 1921 में ‘खिलाफत आन्दोलन’ का ऐलान कर दिया। तब महात्मा गाँधी के आदेश पर काँग्रेसी भी इस आन्दोलन मंे गिरफ्तार होकर जेल गए। हालाँकि ‘खिलाफत आन्दोलन’ की पहली माँग ‘खलीफा’ पद की पुनर्स्थापना  और दूसरी हिन्दुस्तान की आजादी थी। इस आन्दोलन के समय मुहम्मद अली जौहर ने अफगानिस्तान के शाह को तार भेजकर हिन्दुस्तान को ‘दारुल इस्लाम’ बनाने को अपनी फौज भेजने की अपील की। तभी तुर्की के खलीफा सुल्तान अब्दुल माजिद ब्रिटेन की पनाह में आकर माल्टा चले गए। इस बीच आधुनिक विचारों के कमाल अतातुर्क तुर्की के नए शासक बने। वहाँ के वतनपरस्त बाशिन्दों ने उनका साथ दिया। इस कारण ‘खिलाफत आन्दोलन’ अप्रासंगिक होकर समाप्त हो गया। लेकिन इस बीच अली भाइयों ने खिलाफत आन्दोलन के जरिए अपनी सियासत खूब चमका ली। तदोपरान्त अली भाई एक शिष्टमण्डल के साथ सऊदी अरब के शाह अब्दुल अजीज से खलीफा बनने की प्रार्थना करने करने गए, पर शाह ने उन्हें तीन दिन तक मुलाकात करने का वक्त भी नहीं दिया। चौथे दिन दरबार में शाह अब्दुल अजीज ने इन्हें दुत्कार कर बाहर निकलवा दिया। 
हिन्दुस्तान आकर मुहम्मद अली जौहर ने हिन्दुस्तान को ही ‘दारुल हरब’(जंग की जमीन)कहकर मौलाना अब्दुल बारी से हिजरत का फतवा जारी कराया। इस वजह से हजारों मुसलमान अपनी जमीन-जायदाद बेचकर अफगानिस्तान चले गए। इनमें उत्तर भारत के बाशिन्दे मुसलमान सबसे ज्यादा थे, किन्तु वहाँ के हममजहबियों ने उन्हें बहुत मारा-पीटा और उनकी  धन-दौलत लूट ली। फिर लौटते में इन लोगों ने  देशभर में दंगे-फसाद करते हुए लूटपाट की। उसी वक्त केरल में 20,000 हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया गया। इस घटना को ‘मोपला काण्ड’ कहा जाता है। उस समय काँग्रेस के अधिवेशनों की शुरुआत ‘वन्देमातरम्’ के गायन से होती थी। सन् 1923 में आन्ध्र प्रदेश के काकीनाड़ा में काँग्रेस का अधिवेशन हुआ। उस वक्त काँग्रेस के अध्यक्ष मुहम्मद अली जौहर थे। जैसे ही प्रख्यात गायक विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने वन्देमातरम् का गायन प्रारम्भ किया, वैसे ही मुहम्मद अली जौहर ने उसे इस्लाम विरोधी बताकर रोकने की कोशिश की। तब पलुस्कर जी ने कहा,‘‘ यह काँग्रेस का मंच है, कोई मस्जिद नहीं। इसके बाद पूरे मनोयोग से उन्होंने ‘वन्देमातरम्’ का गायन किया। इसके पश्चात् उसकी मुखालफत करते हुए मुहम्मद अली जौहर मंच से उतर गए। उस वक्त भी काँग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए ‘वन्देमातरम्‘  के कई पदों का गायन बन्द कर दिया। अब भी इन्हीं मौलाना मुहम्मद अली जौहर के विचारों को मानने वाले देश की आजादी की जंग के इस तराने को राष्ट्रगीत वन्देमातरम्  को इस्लाम के खिलाफ बताकर उसका विरोध करते आ रहे हैं,पर इससे आजम खाँ और उन जैसों को क्या फर्क पड़ता है?
काकीनाड़ा  अधिवेशन के  अपने अध्यक्षीय भाषण में मुहम्मद अली जौहर ने कहा कि  सन् 1911 में ‘बंगभंग’ को खत्म कर अँग्रेजों ने मुसलमानों के साथ वादा खिलाफी की है। उन्होंने देश को कई इलाकों में बाँटकर इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए गुटों को देने  और भारत के सात करोड़ दलित हिन्दुओं को मुसलमान बनाने पर जोर दिया। मुहम्मद अली जौहर की देशघाती नीतियों को देखते हुए काँग्रेस में उनका विरोध शुरू हो गया। इस पर वह काँग्रेस को छोड़ कर अपनी पुरानी पार्टी ‘मुस्लिम लीग’ में शामिल हो गए। सन् 1906 में ढाका में आयोजित  ‘मुस्लिम लीग‘ के प्रथम अधिवेशन में  उन्होंने भाग लिया। सन् 1918 में वह मुस्लिम लीग के अध्यक्ष भी रहे। मुहम्मद अली जौहर सन् 1920 में दिल्ली में शुरू हुए ‘जामिया इस्लामिया’ के भी सहसंस्थापक थे, इस संस्थान की 19सितम्बर, 2008 को ‘बटला हाउस’ मुठभेड़ में संदिग्ध भूमिका रही है। सन् 1924 के ‘मुस्लिम लीग’के अधिवेशन में उन्होंने सिन्ध से पश्चिम का सारे इलाके के अफगानिस्तान में विलय की माँग की।  सन् 1930 के ‘दाण्डी मार्च’ के दौरान महात्मा गाँधी की जनता में बढ़ते प्रभाव को देखकर मोहम्मद अली जौहर ने कहा,‘‘ व्याभिचारी मुसलमान भी गाँधी से अच्छा है।
सन् 1931में मुहम्मद अली जौहर ‘मुस्लिम लीग’ की तरफ से लन्दन गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने गए। वहीं, 4 जनवरी, सन् 1931 को उनका इन्तकाल हो गया। अपनी मौत से पहले मुहम्मद अली जौहर ने ‘दारुल हरब’ हिन्दुस्तान के बजाए ‘दारुल इस्लाम’ मक्का में दफन होने की ख्वाहिश जाहिर की थी, पर मक्का ने इसकी इजाजत नहीं दी, तब मजबूरी उन्हें येरुशलम में दफनाया गया।
अब जहाँ तक मुहम्मद आजम खाँ द्वारा अपनी मुहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के लिए जमीन जुगाड़ करने का प्रश्न है तो इसके लिए उन्होंने बकायदा किसानों को पुलिस-प्रशासन तथा अपने लोगों से उन्हें डरा-धमका कर उनसे उनकी जमीन छीनी, जिनमें ज्यादातर गरीब मुसलमान हैं।  कुछ अनुसूचित जाति के किसानों की जमीन बगैर जिलाधिकारी की अनुमति लिए खरीदी, कोसी नदी की साढ़े सात एकड़ जमीन नव परती भूमि दर्शाकर सरकार से पट्टा कराया, जबकि वह सार्वजानिक उपयोग की भूमि थी। यहाँ तक कि यतीम खाने और पी.डब्ल्यू.डी.की जमीन भी नहीं बख्शी। लाइब्रेरी के लिए पुस्तकें भी एक दूसरी मशहूर लाइब्रेरी मदरसा आलिया से चुरा कर इकट्ठा की हैं, इस बारे में मुकदमा दायर किया गया और पुलिस ने जौहर यूनिवर्सिटी की सेण्ट्रल लाइब्रेरी से 2,000 चोरी की पुस्तकें और रामपुर का गजेटियर बरामद भी कर ली  हैं। अपनी इस यूनिवर्सिटी के आजम खाँ ही सबकुछ खुद यानी कुलाधिपति हैं, वह भी आजीवन। उक्त विवरण पढ़ने के बाद अब आप ही तय करें, क्यों मुहम्मद आजम खाँ ने मौलाना मुहम्मद अली जौहर के नाम पर अपनी यूनिवर्सिटी तामीर की है? मुहम्मद अली जौहर हिन्दुस्तान, हिन्दुओं का कट्टर विरोधी और इस मुल्क को इस्लामिक मुल्क बनाना चाहता था। उसे महात्मा गाँधी से व्याभिचारी मुसलमान बेहतर बताने में भी कोई गुरेज नहीं था। उसे अपने मुल्क को अँग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के बजाय तुर्की के शासक को फिर से ‘खलीफा’ बनवाने की फिक्र थी।  उसे ’दारुल हरब’हिन्दुस्तान की जगह ‘दारुल इस्लाम’ मुल्क में दफन होना पसन्द था। मुहम्मद आजम खाँ का भारत माता को कई बार ‘डायन’ कहना अनायस चूक नहीं, बल्कि उनकी विभाजनकारी, हिन्दुस्तान, हिन्दू विरोधी/नफरत की सोच है। उनकी यह भड़ास वक्त-बेवक्त बयानों से भी जाहिर होती रहती है। वे अपनी खुन्नस के लिए क्या नहीं कर सकते?इसकी दरियाफ्त रामपुर के नवाब खानदान से की जा सकती है। उनकी सियासत की हकीकत से भी रामपुर के लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं?  फिर जब मुहम्मद आजम खाँ अपनी यूनिवर्सिटी की कथित बर्बादी को रोना लेकर बैठते हैं, तो कोई उनसे यूनिवर्सिटी के नामकरण को लेकर सवाल क्यों नहीं करता? 
सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054 


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