सही नहीं है वैचारिक असहमति के लिए हिंसा

डॉ.बचन सिंह सिकरवार गत दिनों कर्नाटक के बंगलूरु में वरिष्ठ कन्नड़ महिला पत्रकार और सामाजिक कार्यकता 55वर्षीय गौरी लंकेश की वैचारिक मतभेदों को लेकर गोलियाँ बरसा कर हत्या के विरोध में देश के विभिन्न नगरों में पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों द्वारा आक्रोश, असन्तोष, विरोध प्रदर्शन करते हुए कैडल मार्च कर श्रद्धांजलि दी जा रही हैं, जो सर्वथा उचित है। लोकतंत्र एवं सभ्य समाज में वैचारिक असहमति/मतभेदों/ मतभिन्नता को हिंसा का सहारा लेना पूरी तरह त्याज है , लेकिन इस हत्या को लेकर कुछ वामपंथी विचारधारा वाले लेखक, पत्रकारों, या वामपंथी नेताओं द्वारा बगैर किसी मान्य जाँच एजेंसी की पड़ताल और पुख्ता सुबूतों के हिन्दूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.), भाजपा या फिर केन्द्र की मोदी सरकार आदि पर आरोप जाना पूरी तरह गलत और विद्वेषपूर्ण है। इस तरह के अनुचित लांछन और ओछी बयानबाजी की जितनी निन्दा की जाए, वह कम होगी। क्या गौरी लंकेश के हिन्दू संगठनों के विरुद्ध लिखने के कारण ही उनकी हत्या के लिए हिन्दूवादी संगठनों पर आरोप लगाना सही है? वैसे अपने देश में कुछ ...