अब बँटने के दर्द से परेशान है ब्रिटेन

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
कभी दुनिया भर  पर राज करने और उसे बरकरार रखने को अपने हिसाब से भारत समेत दूसरे देच्चों तथा उनके इलाकों को जोड़ने और बाँटने वाले ब्रिटेन को अब अपने देश के बँटने का दर्द समझ में आ रहा होगा। इसका कारण यह है कि  स्कॉटलैण्ड में ग्रेट ब्रिटेन के साथ रहने या उससे स्वतंत्र  होने के लिए आगामी 18 सितम्बर को जनमत संग्रह होने जा रहा है। इसी 8सितम्बर को यहाँ कराये गए एक सर्वेक्षण में 51 प्रतिशत निवासियों के स्वतंत्रता के पक्ष में अपने विचार व्यक्त किये है इससे ब्रिटेन के नेता बहुत  परेशान हैं और यहाँ के लोग बहुत चिन्तित हैं। उन्हें यह भय है कि अगर स्कॉटलैण्ड ग्रेट ब्रिटेन अलग हुआ, उस दशा में इससे वेल्स और उत्तरी आयरलैण्ड में भी पृथकतावाद की भावना बढ़ेगी। इतना ही नहीं, इससे यूरोप के दूसरे देच्चों  में भी अलगाववादी द्राक्तियों को प्रोत्साहन मिलेगा। इस विभाजन से ब्रिटेन को गम्भीर आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ेगी।

 इस जनमत संग्रह से ब्रिटेन के बिखराव को बचाने के लिए पहले सांसदों ने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से स्कॉटलैण्ड से अलग न होने का आग्रह करने का अनुरोध किया। लेकिन अपनी मर्यादाओं का हवाले देते हुए जब उन्होंने अपनी असमर्थता जता दी, तो प्रधानमंत्री डेविड कैमरून समेत विपक्षी राजनीतिक दल लेबर पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता भी स्कॉटलैण्डवासियों को ब्रिटेन से अलग न होने को समझाने को निकल पडे हैं। देश को एक रखने के अभियान में पूर्व प्रधानमंत्री और स्कॉटिश नेता गॉर्डन ब्राउन भी शामिल हो गए हैं। उन्होंने स्कॉटलैण्ड की संसद को दी जाने वाली नई द्राक्तियों की समय सीमा की घोद्गाणा की है। प्रधानमंत्री कैमरून ने कहा कि वे 307 साल पुराने इस गठजोड़ को तोड़ने से सभी को नुकसान होगा। वे स्कॉटिशों से यह वादा भी कर रहे हैं कि ब्रिटेन को एक साथ रखने के लिए उनकी सरकार जो भी बन पड़ेगा, वह करेंगे। उनके इस बयान का जवाब देते हुए स्कॉटलैण्ड की आजादी के कट्‌टर समर्थक एलेक्स सेलमण्ड ने कैमरन सरकार की घोद्गाणाओं को नाकाफी बताया है। अब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कैमरून समेत सभी राजनीतिक दलों के नेता स्कॉटलैण्ड की आजादी के समर्थकों को यह अलग न होने के फायदे समझाने की कोशिश कर रहे हैं। अब जहाँ स्कॉटलैण्ड के ब्रिटेन से अलग होने से उसके क्षेत्रफल का 32 प्रतिशत भू-भाग और 8 प्रतिशत जनसंखया में कमी तो आएगी ही, इसके साथ वह उत्तरी सागर में स्थित वह तेल के कुओं से वंचित हो जाएगा, क्योंकि इसके 90 प्रति हिस्से पर स्कॉटलैण्ड की दावेदारी है, वहीं स्कॉटलैण्ड के लोगों के वर्तमान रूतबे में कमी आएगी, जो उन्हें ग्रेट ब्रिटेन का नागरिक होने के कारण दुनियाभर में मिलता है। उन्हें बहुत छोटे से देश का नागरिक कहलाने से क्या हासिल होगा? वैसे भी ब्रिटेन का क्षेत्रफल उसके कभी प्रतिद्वन्द्वी राद्गट्र फ्रान्स और जर्मनी के क्षेत्रफल से आधे से भी कम है। उसका क्षेत्रफल संयुक्त राज्य अमरीका  का चालीसवें हिस्से के बराबर है। अब जहाँ तक स्कॉटलैण्ड की जानकारी का सवाल है तो इसका  क्षेत्रफल - 78387 वर्ग किलोमीटर और जनसंखया 53 लाख है इसकी राजधानी - एडिनबर्ग तथा सबसे बड़ा  द्राहर-ग्लासगो है। यहाँ के लोग की आय 44378 डॉलर प्रति व्यक्ति आय है। स्कॉटलैण्ड तेल सम्पदा से धनी है। सन्‌ 1608 में स्कॉटलैण्ड के राजा जेम्स द्याद्गठम को इंग्लैण्ड और आयरलैण्ड की राजगद्‌दी विरासत में प्राप्त हुई थी। इस कारण तब उन्होंने इन सभी को एक ही साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। लेकिन जेम्स इन्हें मिलाकर ग्रेट ब्रिटेन का गठन करने पर भी अपनी तमाम कोच्चिच्चों के बाद वे इनकी आपसी प्रतिद्वन्द्विता खत्म नहीं कर पाये। ये दोनों पृथक सम्प्रभु राज्य बने रहे। इनकी संसद न्यायपालिका और कानून  अलग-अलग बने रहे। 
फिर सन्‌ 1698 में स्कॉटलैण्ड के करीब-करीब सभी बड़े जमींदारों ने महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत इस्थमस ऑफ पनामा को व्यापारिक उपनिवेश  बनाने के लिए उसमें भारी धन लगाया, किन्तु इसमें विफल रहे। परिणामतः वहाँ का कुलीन तंत्र दिवालिया हो गया। उन्हें इंग्लैण्ड के हमले का खतरा नजर आने  लगा। इससे बचने के लिए इन सभी ने इंग्लैण्ड के साथ संघ (यूनियन) बनाने का निर्णय किया। इस कारण 22 जुलाई, 1706 की स्कॉटलैण्ड राज्य तथा इंग्लैण्ड राज्य (वेल्स सहित)की संसद के प्रतिनिधियों के मध्य समझौता हुआ। दोनों देच्चों की संसद में इस समझौते के अनुमोदन के पच्च्चात एक मई, 1707 को इनका राजनीतिक एकीकरण प्रभावी हुआ। इस यूनियन के गठन से 'युनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन' अस्तित्व में आया। अब कहा यह  जा रहा है कि ब्रिटिश राजशाही के हाशिये पर जाने तथा प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के शासन के दौरान स्कॉटलैण्ड के लोगों में यह भावना उभरने लगी कि वे ब्रिटेन से अलग हों। जुलाई 1997 में लेबर पार्टी की सरकार ने स्कॉटलैण्ड को आंशिक स्वायत्ता देने की योजना को पूरा किया। इसकी परिणति सन्‌ 1998 के स्कॉटलैण्ड एक्ट के रूप में हुई। इसके अन्तर्गत स्कॉटलैण्ड के लोगों को अधिक अधिकार देते हुए उनको अपने लिए कुछ कानून बनाने की अनुमति ब्र्रिटिश संसद ने प्रदान की। परिणामतः मई, 1999 पहली स्कॉटलैण्ड की संसद तीन सदी के बांद बनी और सरकार अस्तित्व में आयी। मई, 2011 में स्कॉटलैण्ड में स्वतंत्र जनमत संग्रह का वादा करने वाली राद्गट्रवादी स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी)बहुमत के साथ स्कॉटलैण्ड की संसद में जीती। अक्टूबर, 2012 में ब्रिटेन और स्कॉटलैण्ड की सरकारें जनमत संग्रह कराने पर सहमत हुईं।
अगर स्कॉटलैण्ड ब्रिटेन से अलग होकर स्वतंत्र देश बना जाता है उस स्थिति में उसे 28 सदस्यीय यूरोपीय संघ (ई.यू. )की सदस्यता पाने के लिए इससे बातचीत करनी होगी। यह एक महत्त्वपूर्ण मुद्‌दा है यूरोपीय संघ की सदस्यता मिलने का अर्थ कई किस्म के आर्थिक लाभों को प्राप्त करना है। फिलहाल, प्रच्च्न यह  है कि वे सब कैसे और कब तक होगा?
अब स्कॉटलैण्ड में रहने वाले 16साल या उससे अधिक आयु के नागरिक 18सितम्बर को होने वाले जनमत संग्रह में भाग ले सकेंगे। इसमें वहाँ रहने वाले इंग्लैण्ड और वेल्स के नागरिक भी मतदान करेंगे, किन्तु यहाँ से बाहर रहने वाले स्कॉटिश नागरिक मतदान में हिस्सा नहीं ले पाएँगे।

स्कॉटलैण्ड की स्वतंत्रता के पक्ष में जनमत संग्रह होने की स्थिति में 2016 तक यह  पृथक होकर अलग एक नये देश के रूप में अस्तित्व में आ जाएगा । स्कॉटलैण्ड स्वतंत्र होने के बाद पौण्ड को ही अपनी मुद्रा के रूप में अपनाने की सोच रहा है पर ब्रिटेन इसके लिए राजी नहीं है । उसने असहमति भी व्यक्त कर दी है। इस दौरान ब्रिटेन की वित्तीय नियामक ने स्कॉटलैण्ड के अलग होने की आशंकाओं के बीच आपात योजना तैयार करना शुरु कर दी है। स्वतंत्रता का विरोध करने वालों ने स्कॉटलैण्ड की सड़कों पर उतरना शुरु कर दिया है। तेल सम्पदा से भरपूर अबरदीन द्राहर में एकता के समर्थक प्रदर्शनकारियों ने जुलूस निकाला। उनके नेता रॉब वॉकर ने कहा, '' मैं एक छोटे देश का स्कॉटिश नहीं कहलाना चाहता। मैं ताकतवर ब्रिटेन का स्कॉटिश रहना चाहता हूँ। '' स्वतंत्रता के पक्ष में अभियान चला रहे लोग इसी तेल सम्पदा के दम पर जनता को आगे बढ़ने का सपना दिखा रहे हैं। अब ब्रिटेन के शासकों और लोगों को भारत के तीन टुकड़े करने का दर्द भी समझ में आना चाहिए, जिसके कारण हुए कत्ल-ए-आम में अपनों की लाखों जानें गंवाने के साथ-साथ मिले विछोह का दर्द-पीड़ा अब तक सह रहे हैं। अब देखना यह है कि  स्कॉटलैण्ड की स्वतंत्रता की मुहिम चला रहे इसके नेता अपने लोगों को ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें दिये जा रहे विभिन्न प्रलोभनों से कैसे बचा कर रख पाते हैं जो ब्रिटेन के साथ रहने के ढेरों फायदे गिना रहे हैं। इसके बावजूद ब्रिटिश नेता और स्कॉटिश नेताओं में से कौन अपने मकसद में कामयाब होता है इसके लिए इस विश्वभर के लोगों की निगाहें स्कॉटलैण्ड में आगामी 18 सितम्बर को होने जा रहे जनमत संग्रह के परिणाम आने तक लगी रहेंगीं।
सम्पर्क - 63ब, गाँधी नगर, आगरा - 282003 मो. नम्बर - 9411684054






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