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कोई तो हद होगी, अभिव्यक्ति की

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 डॉ.बचन सिंह सिकरवार हाल में फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली और उनके दल के सदस्यों के साथ जयपुर के जयगढ़ दुर्ग में  फिल्म 'पद्मावती' को लेकर करणी सेना के लोगों द्वारा की अभद्रता, मारपीट और फिल्म के सेट को तोड़े तथा फिल्मांकन रोके जाने की घटना सर्वथा अनुचित और अत्यन्त निंदनीय है, उसके लिए दोषी लोगों को विधि सम्मत जो भी दण्ड हो, उससे दण्डित भी किया जाना चाहिए। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को लेकर फिल्मी दुनिया समेत देश के कथित बुद्धिजीवियों ने जिस तरह विरोध जताया वह तो स्वीकार्य है, लेकिन इस बात पर क्षोभ और आश्चर्य भी है कि इनमें से किसी ने भी संजय लीला भंसाली से यह जानने का प्रयास नहीं किया कि आखिर देश के लोग विशेष रूप से राजपूत समाज उनकी इस फिल्म की कथा को लेकर इतना उग्र विरोध, असन्तोष, आक्रोश क्यों जता रहा है ? क्या संजय लीला भंसाली  ने उन लोगों की शं का समाधान करने का प्रयास किया, जो उनकी इस फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़मरोड़ कर,या उसे विकृत रूप में प्रस्तुत किये जाने की आशंका जता रहा है ? यहाँ एक प्रश्न अपने  देश के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधरों से...