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सत्याग्रह: कांग्रेस को जिससे मिला राज उसी को दबा रही है आज

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विनीत सिंह सरकार कहती है कि शांति पूर्ण तरीके से आंदोलन करो हम सुनेंगे लेकिन क्या सरकार ने कभी महसूस की ईरोम शर्मिला की भूख, क्या सरकार ने कभी जहमत उठाई स्वामी निगमानंद की मौत से सबक लेने की, या फिर कभी सरकार ने समझा पुलिसिया कहर के चलते जिंदगी और मौत के बीच झूलती राजबाला का दर्द। नहीं कभी नहीं क्योंकि सबके सब गांधी जी के अहिंसा और सत्याग्रह का व्रत लिये हुए हैं। सरकार को तो बस चिंता होती है कि किस तरह कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस पर भी तिरंगा न फहर सके क्योंकि वहां हिंसा भड़क सकती है, सरकार तो बस समझती है रामदेव के समर्थकों पर आधीरात में कायराना हमला करने की वजह क्योंकि देश में काले धन के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ सकता है और सरकार समझती है बस अन्ना को जेल में ठूसना क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी झूठी सांत्वना की कलई खुल सकती है और सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानी मांग सकते हैं उससे हिसाब 2 जी स्पेक्ट्रम या कॉमन वेल्थ गेम्स में फंसे उसके नेताओं की तरफदारी का हिसाब। बात शुरू करते हैं ईरोम शर्मिला से., वह 04 नवम्बर 2000 से अनवरत भूख हड़ताल पर बैठी हैं और तभी से न खत्म होने वाली पुलिस हिरासत मे...