फिर इस देश में कौन सुरक्षित है?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पाँच सौ और हजार रुपए के नोटबन्दी के निर्णय को
लेकर पूरे देश में इसके समर्थन और विरोध में जुलूस- प्रदर्शन, बहस-मुबाहिसों का दौर अब तक जारी है लेकिन इसी मामले
में तृणमूल काँग्रेस के बेहद करीबी तथा पश्चिम
बंगाल की मुखयमंत्री ममता बनर्जी के घोर
समर्थक कोलकाता की टीपू सुल्तान के शाही इमाम मौलाना नूरूर रहमान बरकती द्वारा गत 7 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ फतवा दिया है
कि कि जो शखस प्रधानमंत्री के सिर के बाल और दाड़ी का मुण्डन करेगा, उसे 'ऑल इण्डिया माइनोरिटी
फोरम'तथा 'ऑल इण्डिया मजलिस -ए-शूरा' की ओर से 25 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा।
उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबन्दी का ऐलान का पाप किया है, यह फतवा उसका दण्ड है। निःसन्देह उनका फतवा यह अत्यन्त
अलोकतांत्रिक ही नहीं, बेहद भद्दा, खतरनाक धमकीभरा, दुस्साहसपूर्ण और मुल्क
की कानून-व्यवस्था को खुली चुनौती देने वाला है।
इस पर हैरानी की बात यह है कि इतने पर भी उस मौलाना के इस विवादित फतवे की
ममता बनर्जी समेत देश के किसी भी राजनीतिक दल के नेता ने निन्दा-भर्त्सना / आलोचना
नहीं की है । उसके खिलाफ राज्य सरकार ने अब तक किसी तरह की कार्रवाई भी नहीं की
है। वह कैसे करेगी, क्यों कि जिस आयोजना
में इस फतवे का ऐलान हुआ किया गया था, उसका आयोजन तृणमूल काँग्रेस के ने किया था।

आश्चर्य की बात यह है कि इस फतवे पर देश के तथाकथित
पंथनिरपेक्ष, सहिद्गणु, मानवतावादी, अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता के पक्षधर, राजनीतिक नेता, साहित्यकार, पत्रकार, लेखक, कवि, कार्यकर्ता पूरी तरह शान्त हैं। इस मुद्दे पर उनकी मुखरता
अब न जाने कहाँ गायब हो गयी है ? यदि ऐसी को घोषणा समुदाय
विशेष के नेता के विरुद्ध हिन्दू संत/महन्त ने की होती, तो ये ही लोग पूरे देश में अब तक ये लोग संसद-विधानसभाओं से
लेकर हर जगह असहिद्गणुता का राग अलापते हुए कोहराम मचा चुके होते। जनसंचार माध्यम
भी उनके विरुद्ध खबरों, लेखों, टीका-टिप्पणियों से भरे
पड़े होते, पर अब उनकी भी जुबान बन्द है।
ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। मौलाना नूरूर रहमान बरकती ने ही ऐसा दुस्साहस पहली
बार नहीं दिखाया है, बल्कि वह इसका आदी
है। इससे पहले वह ममता बनर्जी के खिलाफ
टिप्पणी को लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के विरुद्ध फतवा जारी कर चुका
है जिसमें उन्हें पत्थर मार कर राज्य से बाहर करने का फतवा जारी किया था। इससे
पहले वह बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ ऐसी ही हरकत कर चुका है। उस
समय उसने अपने फतवे में लेखिका के चेहरे
पर कालिख पोतने वाले को 50 हजार रुपए का इनाम देने
का ऐलान किया था, जिनका कसूर बस इतना है कि
उन्होंने अपने 'लज्जा' उपन्यास में
मुस्लिम कट्टरपन्थियों के हिन्दुओं पर किये जुल्मों और बड़ी संख्या में
मन्दिरों को तोड़े जाने का खुलकर जिक्र किया है। इतना ही नहीं, ये मौलाना खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की आत्मा की शान्ति
का कार्यक्रम भी आयोजित कर चुका है, उसमें भी सांसद इदरीस
अली मौजूद थे। इस मौलाना को ऐसी बेजा हरकतें करने की छूट ममता बनर्जी यों ही नहीं
दी है, बल्कि उन्होंने अपनी सियासी
फायदे के लिए दी हुई है। यह उनका सियासी
प्रचारक है, जो पिछले कई चुनावों
में उनकी पार्टी के लिए समुदाय विशेष के एकमुश्त वोट जुटाता आया है। खुद को
पंथनिरपेक्षता की सबसे बड़ी आलम्बरदार बताने-जताने वाली ममता बनर्जी एक समुदाय विशेष
थोक में वोटों की जुगाड़ के लिए फिरकापरस्ती की खुलकर सियासत कर रही हैं। इसका
सुबूत हाल में कोलाकाता से महज 20 किलो मीटर दूर स्थित
धौलागढ़ में साम्प्रदायिक एवं आगजनी घटना
हुई, जिसमें हिन्दुओं की सम्पत्ति कई
दिन तक जलायी गयी। फिर भी उन दंगाइयों के विरुद्ध पुलिस ने अपेक्षित कार्रवाई नहीं
की। इसके विपरीत इस घटना के समाचार संकलन को गए पत्रकारों के खिलाफ गम्भीर धाराओं
में मुकदमें दर्ज करा दिया गये। इससे पहले
मालदा में साम्प्रदायिक दंगा हुआ, तब भी ममता बनर्जी की
सरकार ने हिन्दुओं के मारे जाने और उनकी तबाही पर कुछ नहीं किया। इसी 5 जनवरी को कोलकाता में पाकिस्तान के बलूचिस्तान सूबे के मुद्दे
पर आयोजित सेमीनार को राज्य सरकार ने नहीं होने दिया, जिसमें पाक नीतियों के आलोचक कनाडा के पत्रकार, लेखक तारिक फतेह भाग लेने आ रहे थे। यह कदम ममता बनर्जी की
सरकार ने इस्लामिक कट्टरपन्थियों की नाराजगी को देखते हुए उठाया है। इस मुद्दे
पर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकारों की खामोच्ची खलने वाली और उनके दोहरे
चेहरों को बेनकाब करती है। ऐसा नहीं हैं कि ममता बनर्जी ही मुस्लिम कट्टरपन्थियों
की पक्षधर हैं उनसे पहले वामपन्थियों ने तस्लीमा नसरीन सूबा छोड़ने का मजबूर कर
दिया, ताकि कहीं मुस्लिम कट्टरपन्थी
उनकी सरकार से खफा न हो जाएँ।
कमोबेश यही स्थिति
उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के शासन में रही है। यहाँ भी एक मौलाना ने मुहम्मद साहब का व्यंग्य चित्र बनाने वाले
फ्रान्सीसी कार्टूनिस्ट का सिर कलम करने का फतवा जारी करते हुए एक करोड़ रुपए का
इनाम देने की घोषणा की थी। सपा नेता आजम खाँ के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं
सेवकों के खिलाफ अभद्र टिप्पणी के प्रत्युत्तर में फेसबुक पर हिन्दू महासभा के
नेता कमलेश तिवारी द्वारा मजहब विशेष पर टिप्पणी करने पर उन्हें रासुका में बन्द
कर दिया, पर उनका सिर काटने का फतवा देने
वाले मौलाना के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इसी तरह कई लोगों को इण्टरनेट पर
हिन्दू धर्म ही नहीं, इसके देवी-देवताओं का
अपमान करने वालों को खुल कर छूट और मजहब विशेष के विरुद्ध कैसी भी टिप्पणी करने पर
जेल की हवा खानी पड़ी है। काँग्रेस के उम्मीद इकबाल मसूद मोदी की बोटी-बोटी काट
डालने की बात कह चुके हैं। वैसे ममता बनर्जी सरीखा रवैया ही देश के ज्यादातर पंथ
निरपेक्ष राजनीतिक दलों की सरकारों का रहा है। इसलिए ऐसे लोगों के हौसले इतने बड़े
हुए है कि वे अपने मुल्क के खिलाफ गम्भीर से गम्भीर टिप्पणी करने से भी बाज नहीं
आते हैं।अब विचारणीय प्रश्न यह है कि ऐसे सत्ता लोभियों से देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता, सम्प्रम्भुता की रक्षा और उसके अक्षुण्ण रख पाने की आशा
कैसे की जा सकती है?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा-2820003मो.नम्बर -9411684054
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