कौन हैं अनुच्छेद 370 को बरकरार रखने के हिमायती?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत 5 अगस्त को केन्द्र सरकार के जम्मू-कश्मीर की अनुच्छेद 370 तथा 35ए खत्म किये जाने और इस सूबे को विभाजित कर दो केन्द्र प्रशासित राज्य घोषित करने पर आए दिन भारत सरकार को चुनौती देने वाली घाटी आधारित सियासी पार्टियाँ नेशनल कान्फ्रेंस, पी.डी.पी., पीपुल्स कॉन्फ्रेंस समेत अलगाववादियों, पाकिस्तानपरस्तों को भारी धक्का और गहरा सदमा लगा है। उन्होंने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि कभी कोई सरकार उनके द्वारा मुल्क के बँटवारे से लेकर इस सूबे को अपनी जागीर की तरह राज करने ही नहीं,उसमें दारुल इस्लाम/निजाम-ए-मुस्तफा लाने के लिए तथाकथित विशेष पहचान(मुस्लिम बहुल/हिन्दूविहीन) बनाये रखने के कश्मीरियत, जम्हूरियत, इन्सानियत की ओट में भारतीय संविधान में पहले अनुच्छेद 370 और उसके बाद अनुच्छेद 35ए जोड़ने और बचा रखने की हर तिकडम के बाद भी उन्हें एक ही झटके में खत्म कर देगी। इससे भी ज्यादा हैरानी उन्हें यह देखकर हो रही है कि केन्द्र सरकार के इतने बड़े फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में कहीं कोई पत्ता तक क्यों नहीं खडका? जिन अलगाववादियों ,पाक समर्थकों, पत्थरबाजो, कट्टरपन्थियों को इतने यतन- जतन से पाला-पोसा था,अब वे कहाँ छिपे गए? उनका हिमायती पाकिस्तान अब तक भारत का क्यों कुछ नहीं कर पा रहा हैं? जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों की तरह पाकिस्तान को भी भारत के इस फेसले से बड़ा झटका लगा है। उसे ख्वाब में नहीं सोचा था कि उसके खिलाये-पिलाये ‘मुजाहिदों‘ के रहते हिन्दुस्तान सरकार अनुच्छेद 370 को हटाने की कभी जुर्रत करेगी?फिर इस मुद्दे पर मुस्लिम मुल्क और उसके संगठन समेत उसका मौजूदा सबसे बड़ा रहनुमा चीन भी उसे ऐसे हालात में पूरी तरह अकेला छोड़ देगा और उसकी हिमायत कुछ कहने-सुनने के बजाय यूँ खामोश ही बना रहेगा। इन सबसे मायूस पाकिस्तान को भारत को गीदड़ भभकी देने के सिवाय बचा ही क्या हैं? इसके उलट अब उसे न केवल अपने कब्जे वाले कश्मीर में हिन्दुस्तान के समर्थन में बगावत होने का डर सता रहा है।
इधर जो लोग केन्द्र सरकार पर जम्मू-कश्मीर की जनता की राय न लेने का या वहाँ की विधानसभा से प्रस्ताव पारित न कराने का रोना रो रहे हैं,उनसे सवाल यह है कि क्या तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू ने सबसे पूछ कर ही अनुच्छेद 370 और 35ए को संविधान में जोड़ा था? वैसे इस मसले पर पहले ही कई बार केन्द्र सरकार द्वारा नामित वार्ताकारों के साथ विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि अलगाववादी नेताओं से बातचीत कर चुके हैं,,लेकिन उनकी सारी कोशिशें बेनतीजा रहीं। वैसे वर्तमान में इसी सूबे से भाजपा के तीन सांसद है,जो उसी जनता के प्रतिनिधि हैं,क्या उनकी राय के कोई माने नहीं हैं?
विडम्बना यह है कि जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के हटाने पर अपनी छाती-माथा कूट रहे देश की सियासी पार्टियों, लेखकों, गीतकारों, कवियों, पत्रकारों,फिल्मी/गैर फिल्मी कलाकारों के गिरोह यह नहीं बता पा रहे हैं कि उक्त अनुच्छेदों की वजह से ही इस सूबे को अब तक कौन-से फायदे हुए हैं? इसके विपरीत नुकसान तमाम गिनाये जा सकते हैं। इन्हीं के रहते केन्द्र सरकार की कई जनहित की योजनाओं को लाभ से यहाँ के लोग वंचित रहे हैं और तमाम भेदभाव वे दशकों से बर्दाश्त करते आए हैं। इन अनुच्छेदों के कारण यह सूबा सही माने में अब तक भारत का अभिन्न भाग नहीं बन पाया। इसकी वजह से ही पाकिस्तान ही नहीं,यहाँ की कट्टरपंथी सियासती पार्टियाँ भी भारत में विलय को विवादित बताकर जम्हूरियत, कश्मीरियत, इन्सानियत की आड़ में यहाँ ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ का मार्ग प्रशस्त करती आयी हैं। फिर भी देश के तथाकथित बुद्धिजीवी अपने फायदों के लिए यानी देश में रहकर विदेशी पगार लेकर या फिर बाहरी मुल्कों से अॅवार्ड पाने को उसकी जड़े खोखली करने में लगे हुए हैं।
ऐसा करने के लिए ये लोग बगैर कश्मीर का इतिहास को जाने या उसके मनमाने अर्थ गढ़ कर इसकी पहचान को ‘इस्लामिक’साबित में करने में जुटे रहे,जबकि यह आदिकाल से भारतीय सनातन धर्म,संस्कृति, अध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य,पूजा-पद्धति का केन्द्र रहा है। शैव दर्शन की एक लम्बी परम्परा का श्रीगणेश कश्मीर से ही हुआ है। संस्कृत साहित्य के सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों( ‘अष्टांग योग‘, ‘चरक संहिता‘, कल्हण की ‘राजतंरगिणी‘,‘शिवपुराण‘ आदि) की रचना यहीं हुई है। शारदापीठ यहीं हैं,जहाँ, हिन्दू धर्म की पताका फहराने वाले आदिशंकराचार्य ने माँ वाग्देवी के दर्शन किये थे। इसी पीठ में विश्वभर के विद्यार्थी ज्ञानार्जन हेतु आते थे। यही कश्मीर की असली पहचान है। वैसे कश्मीर का नामकरण ही कश्यप ऋषि के नाम पर हुआ है। कश्मीरी भाषा का पहला ग्रन्थ‘ महानय प्रकाश’ शितिकण्ठ नामक कवि का लिखा है,जो जयरथ के शिष्य थे। इसके बाद शैव दर्शन पर आधारित ग्रन्थ ‘महाअर्थ मंजरी’ महेश्वरानन्द रचित है।
वैसे अब कहाँ हैं? ‘पी.डी.पी.‘की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जो यह धमकियाँ देते नहीं थकती थीं कि अनुच्छेद 370 को छूने वाले का हाथ ही,उसका पूरा शरीर जल जाएगा,तो कभी यह कहती फिरती थीं कि अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद घाटी में कोई तिरंगा उठाने वाला नहीं बचेगा। अब इनसे ही मिलती-जुलती धमकियाँ देने वाले खानदानी सियासती ‘नेशनल कान्फ्रेंस‘ के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री/केन्द्रीयमंत्री डॉ.फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी जम्हूरियत की दुहाई देते हुए खुद पर हो रहे जुल्मों की झूठी दस्तानें सुना कर रहम की भीख माँगते फिर रहे हैं और सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर केन्द्र सरकार के फैसले को बदलवाने में जुगत भिड़ा रहे हैं । यही डॉ.फारूक अब्दुल्ला अलगाववादियों और पत्थरबाजों को आजादी के लड़ाके बताकर उनका हौसला अफजाई करने में अपनी शान समझते थे, तो महबूबा मुफ्ती सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाने वालों से हमदर्दी जताते हुए मासूम साबित करते नहीं थकती थीं। डॉ.फारूक अब्दुल्ला को तो भारतीय सेना को भी चुनौती देने में संकोच नहीं हुआ। उनका कहना था,‘‘ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर(पी.ओ.के.)क्या तुम्हारे बाप का है?जो उसे लोगे।उसे भारतीय सेना भी नहीं हासिल कर सकती।’’ इस बीच अलगाववादियों और पत्थरबाजों को को धन उपलब्ध कराने में ‘नेशनल इन्वेस्टीगेटिंग एजेन्सी’(एन.आइ.ए.) के आरोप में कई अलगाववादी नेता कानून के फँन्दे में फँस गए हैं,जो विदेशी धन से ऐशों-आराम की जिन्दगी बसर करते हुए अपने बाल-बच्चों को दूसरे देशों में पढ़ा-लिखा कर वहीं पर अधिक वेतन नौकरियाँ करा रहे हैं। ऐसे यह कहना गलत न होगा कि जो अब तक दूसरों को डराते आ रहे थे,वे अब न सिर्फ खुद डर रहे हैं, बल्कि रहम की गुहार/पुकार भी लगा रहे हैं। ये तो रही पाकिस्तान और इस्लाम परस्त सियासी पार्टियों की दास्तान,अब आते हैं इसी मुद्दे पर देश की काँग्रेस, सपा, जदयू, राजद, तृणमूल काँग्रेस, एन.सी.पी., वामपंथी दल भाकपा,माकपा, द्रमुक समेत दूसरी राजनीतिक पार्टियों के विचित्र रवैये पर है जो केन्द्र सरकार के राष्ट्रहित में लिए बहुप्रतीक्षित इस निर्णय को असंवैधानिक और कश्मीरियों के हितों के खिलाफ बताते उग्र विरोध जता रहें हैं,क्योंकि इन सभी की सियासत ही मुस्लिम वोट बैंक पर चल रही है। फिर भी देश के कुछ लोगों को अब इन सभी के इस रवैये को देखकर हैरानी-परेशानी हो रही है, क्योंकि इन राजनीतिक दलों और जम्मू-कश्मीर आधारित सियासी पार्टियों को केन्द्र सरकार के जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को लेकर सुरक्षा बलों के तैनात करने पर तो ऐतराज था,पर इनमें से किसी ने पाकिस्तान से उसके नाजायज कब्जे वाले कश्मीर पर से कब्जा छोड़ने ,पाकिस्तानी सेना द्वारा भारतीय सीमा पर आए दिन अकारण गोलीबारी करने, उसकी आड़ में लगातार आतंकवादियों की घुुसपैठ कराने, अलगाववादियों का घाटी में अशान्ति और उपद्रव कराने को धन भेजने के खिलाफ अपना मुँह खोलने की कभी जरूरत महसूस नहीं हुई। इन्होंने पाकिस्तानी और दुनिया के सबसे खूंखार इस्लामिक संगठन ’आइ.एस’.(इस्लामिक स्टेट) के झण्डे लिए हर जुम्मे की नमाज के बाद मस्जिदों से ‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद’, ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’ नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने में कुछ भी गलत नजर नहीं आया, पर सुरक्षा बलों द्वारा अपने बचाव में आँसू गैस के गोले, लाठी चलाने, पैलेटगन दगाना उनका पर जुल्म तथा मानवाधिकारों का हनन दिखायी देता रहा है। इन लोगों द्वारा पाकिस्तानी सेना या आतंकवादियों से मुठभेड़ में भारतीय सुरक्षा बलों और सेना के जवानों के शहीद होने पर कभी दुःख नहीं जताया, पर इन महबूबा मुफ्ती ने आतंकवादियों के सरगना बुरहान वानी और ऐसे ही दूसरों की मौत पर आँसू बहाने और हमदर्दी जताने में कभी कोताई नहीं की । इन सभी को आतंकवादियों के जनाजे में भारी भीड़ जुटने में कभी कुछ बेजा नजर नहीं आया,पर इसी सूबे के सेना के मुसलमान सैनिकों/अधिकारियों और पुलिस के जवानों को आतंकवादियों द्वारा मारे जाने पर कभी अफसोस जताने की जरूरत महसूस नहीं हुई,क्यों कि उन्हें वे आतंकवादियों/अलगाववादियों की तरह मुजाहिद जो नहीं मानते थे। इनमें से किसी ने भी इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा नब्बे के दशक में बन्दूक के जोर पर घाटी से निकाले गए चार लाख से अधिक कश्मीरी पण्डितों की चिन्ता आज तक नहीं की है। इन सभी की तरह ही कश्मीर के इस्लामिक कट्टरपन्थियों के हमदर्द लेखकों/पत्रकारों ,कलाकारों का दोहरा रवैया रहा है। अब भी ये लोग जम्मू-कश्मीर में अफवाहें फैलाने से रोकने के लिए टेलीफोन, इटरनेट सेवा बन्द करने, कर्फ्यू, धारा 144 लगाने और अनुच्छेद 370 हटाने पर फैसला लेने से, इस सूबे में दंगा भड़काने में जुटी महबूबा और उमर अब्दुल्ला की नजरबन्दी/हिरासत रखने को इस इलाके को कैदखाना बनाने के गम्भीर इल्जाम लगा रहे हैं।लेकिन इन्होंने कभी कश्मीरियत,जम्हूरियत, इन्सानियत की ओट में हिन्दुओं,बौद्धों, सिखों को ही नहीं,शिया, गुज्जर बकरवालों समेत दूसरे फिरके के मुसलमानों के साथ हर तरह की गैरबराबरी करने में कोई नाइन्साफी नजर नहीं आयी।
अब अनुच्छेद 370 और 35ए भारतीय संविधान से सदैव के लिए समाप्त हो गए हैं, जो विलय के मार्ग अवरोधक बने हुए थे,इनके न रहने से उन कट्टरपन्थियों के इस ‘धरती के स्वर्ग’ को पाकिस्तान में शामिल करने या ‘दारुल इस्लाम’ बनाने के अरमान जरूर खत्म हो गए हैं,लेकिन बाकी बाशिन्दों के लिए उनकी तरक्की, अमन-चैन और सुकून की जिन्दगी बसर करने का रास्ता खुल गया है। इसलिए भारत के दूसरे लोगों की तरह अब कश्मीरियों को भी केन्द्र सरकार के उक्त अनुच्छेदों हटाने के फैसले का खैरमकदम करना चाहिए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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