फिर गर्व है उत्तर प्रदेश को प्रधानमंत्रियों पर
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
उत्तर प्रदेश अपने पर इस बात के लिए गर्व कर सकता है कि
उसने देश को अब तक आधा दर्जन से अधिक प्रधानमंत्री दिये हैं, लेकिन उनके कारण उसे कितना फायदा हुआ, यह बताना पाना उसके लिए हमेशा एक मुश्किल
सवाल रहा है। इन प्रधानमंत्रियों ने अपने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के विकास
के लिए भले ही विशेष ध्यान न दिया हो, पर इनमें से
कुछ ने देश के लिए जो कुछ किया है,
वह अतुलनीय है। अगर
यह कहा जाए कि देश के स्वतंत्र होने के बाद की उसकी जितनी भी उपलब्धियाँ दिखायी देती
हैं उनमें इसी राज्य के बने प्रधानमंत्रियों का ही योगदान रहा है तो अतिशयोक्ति नहीं
होगी। यह उनके सोच की कमी नहीं, बल्कि उनका दृष्टिकोण व्यापक यानी अखिल भारतीय स्तर
का होना रहा है। उनकी सोच का कारण इस क्षेत्र का भारत के इतिहास में समाहित है जो प्रारम्भ
से अखिल भारतीय रहा है।
वैसे भी भगवान राम और कृष्ण की जन्म
भूमि अयोध्या, मथुरा, भगवान शिव की नगरी काशी, गंगा-यमुना, सरयू सरीखी पवित्र नदियों,
देवभूमि केदारनाथ, बद्रीनाथ का यह इलाका देश के धार्मिक तथा सांस्कृतिक रूप से अत्यधिक
महत्त्वपूर्ण रहा है। रामायण के भगवान राम और महाभारत भगवान कृष्ण उसके दूसरे पात्रों
की विचारधारा और उनके कार्य क्षे
त्र विशेष के कल्याण तक सीमित नहीं थे। ऐतिहासिक और
राजनीतिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र प्रारम्भ से
देश की राजनीति के केन्द्र में रहा है।
इस क्षेत्र के शासकों ने भारत के बहुत बड़े भू-भाग पर शासन किया है। देश के प्रथम स्वतंत्रता
संग्राम से लेकर आजादी पाने की जंग तक इस प्रदेश के लोगों की अग्रणीय भूमिका रही है।
देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में तत्कालीन संयुक्त प्रान्त
आगरा और अवध-( उत्तर प्रदेश)) के महत्त्वपूर्ण योगदान के कारण पण्डित जवाहर लाल नेहरू
को स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनाये जाने के साथ-साथ यहां के कई दूसरे काँग्रेसी
नेताओं को मंत्री बनाया गया। इनके अलावा अनेक लोगों दूसरे महत्त्वपूर्ण पदों पर बिठाया
गया।
फिर अपने क्षेत्रफल और आबादी के चलते उसके यहां लोकसभा
की 85 सीटें थीं जो उत्तराखण्ड बनने के बाद भी अब इसकी 80 सीटें हैं जो देश के दूसरे राज्यों की लोकसभा सीटों की
तुलना में दुगुने से अधिक हैं। इसी कारण अक्सर कहा जाता है कि देश का प्रधानमंत्री
बनाने की चाबी उत्तर प्रदेश के पास है । यह सच भी
है। यही कारण देश के स्वतंत्र होने के बाद से उत्तर प्रदेश भारत की राजनीति का केन्द्र
रहा है। रामायण के भगवान राम और महाभारत भ
गवान कृष्ण, उसके दूसरे पात्रों की विचारधारा
और उनके कार्य क्षेत्र विशेष के कल्याण तक सीमित नहीं थे। रामायण के भगवान राम और महाभारत
भगवान कृष्ण उसके दूसरे पात्रों की विचारधारा और उनके कार्य क्षेत्र विशेष के कल्याण
तक सीमित नहीं थे।
प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू ने देश में राजनीतिक व्यवस्था
के रूप में लोकतांत्रिक प्रणाली तथा इसके औद्योगिक एवं आर्थिक विकास के लिए मिश्रित
अर्थव्यवस्था को अपनाया। इसके तहत आर्थिक नियोजन
की नीति को अपनाया गया। इसमें पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के आधारभूत
कारखानों के साथ छोटे कारखाने, बिजली घरों, रक्षा उत्पादन के कारखाने, अनुसंधान संस्थान,
परमाणु शोध केन्द्र आदि स्थापित किये जाने के साथ-साथ बहुउद्देशीय योजना के लिए अनेक
नदियों पर बाँधों का निर्माण कराया। उन्होंने देश को आत्मनिर्भर बनाने के दिशा अनेक
कदम उठाने के उद्देश्य से 'आराम हराम है' का नारा दिया। विश्व शान्ति के लिए पचशील
का नारा तथा निगुर्ट राष्ट्र आन्दोलन की स्थापना की। लेकिन सन् 1962 के चीन के भारत
पर आकस्मिक हमले का उन्हें गहरा आघात लगा।
तदोपरान्त 27 मई, सन् 1964 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु
के बाद उनके मंत्रिमण्डल के अचर्चित सदस्य लालबहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया
गया,जिनकी कद-काठी और पारिवारिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए उनकी क्षमता पर अविश्वास
किया गया, किन्तु उन्होंने अल्पकार्यकाल में अपने कार्यों से क्षमताओं का लोहा मनवा दिया। देश
में अन्न संकट के चलते श्री शास्त्री ने दूसरे देशों से अन्न मँगवाने के स्थान पर सप्ताह
में एक दिन उपवास करने का आह्वान किया।फिर जय जवान, जय किसान का नारा देते हुए सन् 1965 में पाकिस्तान के हमले का डटकर सामना
किया। उसमें उल्लेखनीय विजय प्राप्त की। उसके
सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। ऐसा कर उन्होंने दिखाया
दिया कि हिम्मत, धैर्य, त्याग, वीरत्व से अपने से ताकतवार
दुश्मन को भी आसानी से जीता जा सकता है। लेकिन
सोवियत संघ के आग्रह पर भारत को पाकिस्तान के साथ जनवरी, 1966 को 'ताशकन्द समझौता' करना पड़ा, जिसमें उसके विजित क्षेत्र को लौटाना पड़ा। सम्भवतः शास्त्री
जी दिल से इस समझौते के पक्ष में नहीं थे। परिणामतः उनका ताशकन्द में ही निधन हो गया।
इसके पश्चात् पण्डित जवाहर लाल नेहरू की पुत्री श्रीमती
इन्द्रा गाँधी देश की तीसरी प्रधानमंत्री बनीं। उन्होंने गरीबी हटाओं का नारा दिया
। इसके साथ ही निजी बैंकों और बीमा कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण करने के साथ-साथ राजा-महाराजाओं को प्रीवीपर्स समाप्त
करने का साहसिक कदम उठाया। किया। उसी दौरान सन् 1971 में पाकिस्तान को तीसरे युद्ध
में हरा कर उसके दो फाड़ कर बांग्लादेश बनाया और उसके 93 हजार सैनिकों से आत्मसमर्पण कराया। यह विश्व के इतिहास में किसी युद्ध का कीर्तिमान
था। लेकिन उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लगाया, जिससे कुपित होकर जनता ने उनकी पार्टी को सत्ता से बेदखल
कर दिया। इसके बाद सन् 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार
बनी, किन्तु उनके ही गृहमंत्री चौ. चरणसिंह ने विद्रोह
कर उनकी सरकार का पतन कर दिया। वे अपनी धुर विरोधी काँग्रेस के बाहर से समर्थन लेकर
प्रधानमंत्री बने, जो कुछ माह ही अपने पद पर रहे और कोई
उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाये। इसके उपरान्त श्रीमती इन्द्रा गाँधी फिर से सत्ता में
आयीं। उनके समय सिख अलगाववादियों ने 'खालिस्तान'के गठन के लिए उग्र संघर्ष छेड़ा, जिसका
समापन 'ऑपरेशन ब्लू स्टॉर' से हुआ।
बाद में 31 अक्टूबर, सन् 1984
को श्रीमती इन्द्रा गाँधी की उनके ही अंगरक्षकों द्वारा हत्या किये जाने के बाद उनके
पुत्र राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने। बाद में आम चुनाव अपार सफलता प्राप्त कर पुनः
प्रधानमंत्री चुने गए। उनके समय संचार क्रान्ति की शुरुआत की। उनके समय खरीदी गयी बोफोर्स
तोपों के सौदे में दलाली के आरोप लगे। उनके मंत्रिमण्डल के मंत्री विश्वनाथ प्रताप
सिंह ने मंत्री से त्यागपत्र देकर उनके खिलाफ जनमोर्चा गठित कर आन्दोलन छेड़ दिया। प्रधानमंत्री
राजीव गाँधी ने श्रीलंका में पृथक तमिल लैण्ड के लड़ रहे लिट्टे को सहायता दी। फिर
उन्हीं के दमन का शान्ति सेना भेजने की भूल की। इसमें तमिल लड़ाकों के हाथों हजारों
भारतीय सैनिक मारे और घायल हुए। इसी से नाराज तमिल उग्रवादियों ने उनकी श्रीपेरम्बदूर
में बम विस्फोट कर हत्या कर दी। बाद में इलाहाबाद
की ही माण्डा रियासत के पूर्व राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने, जिनकी बेहद ईमानदार राजनेता की छवि थी। उन्होंने पिछछ़े
वर्ग के आकर्षण हेतु
गठित मण्डल आयोग की सिफारिशों लागू करने की घोषणा कर दी। इससे युवा वर्ग भड़क उठा। उसी
समय श्रीराम जन्म भूमि मुद्दे पर भाजपा के समर्थन वापस लेने पर उनकी सरकार गिर गयी। तदोपरान्त
एक बार फिर काँग्रेस के बाहरी समर्थन से बलिया के सांसद चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री बने, उनकी अल्पकालीन सरकार भी कोई विशेष निर्णय लेने में असमर्थ
रही। इसके बाद आगरा के बटेश्वर के रहने वाले
भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में कई राजग सरकारें बनीं, उनके
कार्यकाल में पोकरण परमाणु बम का विस्फोट कर परीक्षण किया गया, जिससे कई देशों ने कुपित होकर भारत की आर्थिक और दूसरी
सहायताएँ देना बन्द कर दिया। वाजपेयी सरकार के समय भारतीय विमान का अपहरण कर कन्दहार
ले जाएगा।उसे वापस लाने को आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा। इसके बाद सन् 1999 में पाकिस्तान
से कारगिल युद्ध हुआ, जिसे भारत विजयी रहा। 2001 में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया।
प्रधानमंत्री वाजपेयी की राजग सरकार कुछ छोटी परियोजनाओं के सिवाय वह भी उत्तर प्रदेश
के लिए कुछ उल्लेखनीय करने में विफल रही। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही
उत्तर प्रदेश के मूल निवासी नहीं है, किन्तु वह
वाराणसी से सांसद हैं। इस नाते वह उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उनकी सरकार
को मजबूती दिलाने में इस राज्य ने 73 सीटों पर भाजपा
और उसके सहयोगी दलों के उम्मीदवारों को जिताया। वैसे प्रधानमंत्री मोदी के ढाई साल
के शासन में इस राज्य के लिए कोई विशेष योजना - परियोजना नहीं आयी है, लेकिन आशा की जानी चाहिए कि वे आगे ऐसा कुछ जरूर करेंगे,जिसे यहाँ के लोग याद
करें।
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
63ब, गाँधी नगर,
आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
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