खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का विरोध क्यों?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार अपने देश में छह दशक से अधिक स्वतंत्रता के बाद भी हम लोगों में गुलामी और आजादी में भेद करना नहीं आया। अगर ऐसा नहीं होता तो क्या हम अपनी सभी समस्याओं का हल विदेशों , विदेशी ऋण , विदेशी धन , बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में तलाश कर रहे होते ? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार की हालत भी कुछ ऐसी है। हालाँकि इसके लिए वे ही नहीं , तथाकथित राष्ट्रवादियों की मानसिकता भी उनसे कतई भिन्न नहीं है। संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन ( संप्रग) सरकार के मंत्रिमण्डल ने मल्टी ब्राण्ड रिटेल ' क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश को मंजूरी देने में जल्दबाजी में फैसला ऐसे समय लिया , जब संसद का सत्र शुरू होने जा रहा था। उसके इस आचरण से लगता है कि वह किसी तरह के खास दबाव में थी , वरन जिस केन्द्र सरकार ने न कभी देश की जनता के दुःख-दर्दों की चिन्ता की और न उसकी भावनाओं की। यहाँ तक कि उसने अपने वादों को कभी नहीं निभाया। उसने यह कदम उठाने में उतावली आखिर क्यों दिखायी ? कमोबेश यही हालत उसकी पूर्ववर्ती राष...