फिर भी हैं ईमानदार, पाक-साफ और काबिल

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बज चुका है। इस समय सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने को तरह - तरह के यतन-जतन कर रहे हैं इसके लिए ये अपने-अपने नेताओं और अपने दलों की कथित नीति - सि़द्धान्तों को बेहतर बताने में जुटे हैं। इसके साथ ही अपने-अपने दल की सरकारों के समय किये विभिन्न कामों का बखान करते हुए अपने को  उनका सबसे बड़ा हितैषी साबित कर रहे हैं। ऐसा करते हुए ये अपने प्रतिद्वन्द्वी दलों की खामियाँ बताते हुए अपनी खूबियों का ढिंढोरा भी पीट रहे हैं। हालाँकि अब मतदाता जागरूक और काफी समझदार हो गए हैं, वे अपने जनप्रतिनिधियों और सत्तारूढ़ दल की सरकार के कामों को अपनी कसौटी पर मूल्यांकन करते हैं फिर उसे वोट देते हैं।  लोकतंत्र में मतदान करने की यही सही कसौटी है, इसके बावजूद ऐसे लोगों की भी कमी नहीं, जो अपने मजहबी, जातिवादी, क्षेत्रवादी आग्रहों के कारण तो कुछ दल विशेष और नेता के प्रति अन्ध श्रद्धा, भक्ति, विश्वास के चलते उन्हें वोट देते आए हैं। इस कारण ही उन्हें न उस राजनीतिक दल की नीतियों - सिद्धान्तों में खोट दिखायी देते हैं और नेता की सरकार के कामों में ही। ऐसे लोगों से सम्यक्‌ विचार कर मूल्यांकन की अपेक्षा करना ही निरर्थक है। यही कारण है कि कुछ लोग उत्तर प्रदेश के वर्तमान अखिलेश यादव के,तो कुछ बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के गुणों का बखान करते नहीं थकते हैं। उन्हें हर्जे का ईमानदार, पाक - साफ, काबिल प्रशासक मान रहे हैं, वहीं कुछ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को इस सूबे का तारनहार समझ रहे हैं, तो कुछ उ.प्र.की बदहाली की वजह काँग्रेसी शासन का न होना बता रहे हैं। यद्यपि केन्द्र और राज्य में इनकी सरकारों ने भी अब ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे उनकी काबलियत का सुबूत माना जाए।
 अब कुछ लोगों को वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव से कई माने में बेहतर नजर आ रहे हैं। उनकी द्दष्टि में अखिलेश यादव स्वच्छ छवि के अत्यन्त ईमानदार और बहुत ही कुशल प्रशासक हैं। वे युवा, आधुनिक, रचनात्मक और सकारात्मक सोच वाले हैं। उन्हें अपराधियों, माफियों, दबंगों से सख्त नफरत हैं। उनकी यह धारणा डी.पी. यादव से लेकर मुख्तार असांरी, अतीक अहमद जैसे कुख्यातों के समाजवादी पार्टी में शामिल करने के विरोध से बनी है। छात्रों को लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ता बाँटने जैसे कार्यों से युवाओं के मन उनके हितैषी होने का विश्वास बना है। आगरा -लखनऊ एक्सप्रेस वे और लखनऊ में मेट्रो टे्न चलाने जैसे कुछ कामों की बदौलत वह खुद को विकास पुरुष सिद्ध कर रहे हैं, जबकि इस कारण कितने किसान भूमिहीन होकर बेरोजगार हुए हैं और इस कथित विकास से कितने जमीन के कारोबारी लाभाविन्त हुए, इसकी कहीं चर्चा नहीं। उन्होंने समय - समय अपने मंत्रिमण्डल के कुछ मंत्रियों को हटाया है जिनके कामकाज सही ढंग से न करने का आरोप थे, यह अलग बात है कि इनमें से ज्यादातर को देर - सवेर फिर से शामिल भी कर लिया । अब आते हैं उनकी करने दूसरे पक्ष पर। अपनी कथित स्वच्छ छवि के विपरीत अखिलेश यादव के मंत्रिमण्डल में 26 मंत्री ऐसे थे जिनका आपराधिक रिकॉर्ड है इनमें से कई पर गम्भीर धाराओं में मुकदमें तक दर्ज हैं, लेकिन इन्हें अपने साथ रखने में उन्हें कभी परेशानी नहीं हुई। इनके एक प्रवक्ता पर 17 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। जब उन्हें न्यायालय ने अभी भगोडा किया है,तब से वह टी.वी. चैनलों से लापता हैं। शाहजहाँपुर के पत्रकार जागेन्द्र सिंह को मरवाने वाले पिछड़ावर्ग मंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा के खिलाफ इन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की एक ओर यादव सिंह जैसे परम भ्रद्गट लोगों के खिलाफ सी.बी.आई जाँच रुकवाने के लिए उनकी सर्वाश न्यायालय तक पहुँच गई दूसरी ओर दुर्गाशक्ति नागपाल जैसी ईमानदार आई. ए. एस. अधिकारी को गौतमबुद्ध नगर में सपा संरक्षित खनन माफिया के विरुद्ध कार्रवाई करने पर निलम्बित किया। इनके शासन में हर तरह के खनन माफियों को खुल कर लूटने की छूट दी गयी, यहाँ तक एक नदी पर बाँधा बनाकर का बहाव रोक देने पर उच्च न्यायालय को राज्य सरकार को फटकार लगानी पड़ी। जहाँ भी अधिकारियों ने खनन रोकने की कोशिश की, उन्हें अपमानित ही नहीं, उनसे मार भी खानी पड़ी। इनके कुशल शासन में मुजफ्फर नगर समेत सैकड़ों साम्प्रदायिक दंगे हुए । मुजफ्फर नगर के दंगे में एक लाख से अधिक लोगों का अपना घर-द्वार छोड़ का सर्दियों में तम्बुओं में रहना पड़ा, तब उन्हें देखने की फुर्सत न अखिलेश यादव को हुई और न उनके थोक में वोट लूटने को तत्पर दलितों की मसीहा मायावती को ही। वैसे इन्हें सैफई महोत्सव में फिल्मी नर्तकियों के नाच देखने का पूरा समय था। इनके समय में एक ओर ईमानदार आई. ए. एस. अधिकारी वी. के. आनन्द का हर दूसरे - तीसरे माह स्थानान्तरण कराते रहे। सपाइयों ने सरकारी और निजी जमीन-जायदादों पर कितने कब्जे किये हैं,इसकी गणना असम्भव है। हालाँकि ऐसे ही कुछ आरोप चाचा शिवपाल सिंह यादव या दूसरे चाचा प्रो. रामगोपाल यादव एक - दूसरे के समर्थकों पर भी लगाते आए हैं। प्रदेश के लोकायुक्त एन. के. मेहरोत्रा ने मायावती के मंत्रिमण्डल के जिन 12 मंत्रियों के खिलाफ जाँच कर भ्रष्ट पाने पर कार्रवाई के लिए फाइलें भेजी थीं, वे दबा दी गईं, जबकि सत्ता सम्हालने से पहले इसके नेता बसपा के भ्रष्ट मंत्रियों को जेल भेजने का वायदा हर भाषण में किया करते थे। प्रदेश में नकल और भर्ती में फर्जी वाड़े को छूट देकर शिक्षा को गर्त में डाल दिया है। मुखयमंत्री ने अपने चहेते अनिल यादव को उ.प्र. लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया, जिसे उश न्यायालय ने आदेश देकर हटाया गया है। उनके अध्यक्ष रहते एक ही जाति के अस्सी प्रतिशत तक अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए। उश शिक्षा आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बार्ड के दो सदस्यों को  भी उश न्यायालय ने चलता किया गया। यू.पी. पी.ए सचिव को इसी वजह से हटना पड़ा। लोकायुक्त भी यादव ही बनाने की बेजा कोशिशों पर उच्च न्यायालय को राज्य सरकार को फटकार लगानी पड़ी। मुस्लिम बहुल जिलों और इलाकों में हिन्दू कोई भी त्योहार शान्ति से नहीं मना पाए। एक ही मामले में दयाशकर सिंह को जेल भेजा गया पर उन्हीं धाराओं में बसपा नेता नसीमउद्‌दीन सिद्‌दकी और दूसरों को छुआ तक नहीं गया । इनके ही शासन में छिनैती, लूट, फिरौती, हत्या, बलात्कार के रिकॉर्ड बने हैं, जिससे आमजन भयाक्रान्त है।
  दलितों की रक्षक तथा अल्पसंखयकों से एक मुश्त वोट अपने पक्ष डालने को डोरे डाल रहीं बसपा अध्यक्ष मायावती ने अपने पाँच वर्ष के शासन काल में शायद ही किसी से मिलने की जहमत उठायी हो। उनके सुशासन में अरबों रुपये के स्मारक घोटाला, एनआरएचएम घोटाला, लैकफेड आदि कई घोटाले हुए, जिनमें उनके लगभग एक दर्जन मंत्री और आई.ए.एस.अधिकारी, चिकित्सक आरोपी हैं। इनमें से कई जेल काट चुके हैं और कुछ अभी तक जेल में ही हैं। कुछ की जेल में ही हत्या या मौत हो गयी। बसपा सरकार ने भी अपने पूर्ववर्ती सपा सरकार के किसी भ्रष्ट मंत्री के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की।
भाजपा की केन्द्र सरकार ने भी अब तक ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसका उसने वायदा किया था। भाजपा ने अपने शासित राज्यों में से भी किसी में भी अब तक सुशासन करके नहीं दिखाया है, जिसके आधार पर वह उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने के खवाब देख रही हैं और लोगों को कथित विकास का भरोसा दिला रही है। उसकी नीतियाँ और काम करने के तौर - तरीके किसी माने में दूसरे राजनीतिक दलों से किसी भी माने में अलग नहीं हैं। यही कारण है कि भाजपा पूरे पाँच साल सपा और उससे पहले पाँच साल बसपा की राज्य में लूट की मूक दर्शक बन कर देखती रही है।
 काँग्रेस ने अभी तक अपनी उन गलतियों को न मंजूर किया और न उन्हें सुधारने की कोशिश ही की, जिनकी वजह से आम जनता ने उसे केन्द्र और राज्य की सत्ता से बेदखल किया है। सच्चाई यह है कि आजादी के बाद से ही सभी राजनीतिक दल जनता से झूठे वायदे कर उसके भरोसे को तोड़ते आए हैं। वे गरीबों की भलाई की कोरी बातें कर असली फायदा खुद और पूँजीपतियों को पहुँचाते हैं। रहा बचा नौकरशाही, इंजीनियर, ठेकेदार, नेताओं के पिछलग्गू उठाते रहे हैं। इसलिए अब जनता को जातिवाद, मजहब, क्षेत्रीयता, नाते-रिश्ते जान - पहचान की अनदेखी कर इस चुनाव में देशहित में अपना अमूल्य मत उसे देना चाहिए, जिस पर सुशासन देने का भरोसा हो, उस दशा में लोग अपना विकास स्वयं कर लेंगे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा 2820003 मो.नम्बर - 9411684054



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