अफगानिस्तान में संकट बढ़ने के आसार
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अब अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने चुनावी वादे को पूरा करने की गरज से किसी भी तरह अफगानिस्तान से अमेरिकी और ‘उत्तर अटलाण्टिक सन्धि संगठन’(नाटो)की सेनाओं की किसी भी तरह सुरक्षित वापसी के लिए बेताब हैं ,इसके लिए उन्हें अपने ही पैदा किये भस्मासुर ‘तालिबान’ से न केवल उसकी शर्तों पर समझौता करने से गुरेज है और न शर्मिन्दगी ही। यहाँ तक कि उसे अब अफगानिस्तान के भविष्य की भी परवाह नहीं है। इस मुल्क में सन् 2001से तैनात अपने सैनिकों में से 2,400 को गंवाने के बाद भी वह खाली हाथ लौटने को मजबूर है। अमेरिका जिस आतंकवाद को दुनिया से मिटा देने की अब तक दम भरता आया है, अब उसके ही एक इस्लामी दहशतगर्द संगठन ‘तालिबान’से हाथ मिलाकर अफगानिस्तान को अपने रहमोकरम पर छोड़ने जा रहा है,लेकिन इस बीच तालिबान के हमले जारी हैं। इसी 28अगस्त को ही पश्चिमी हेरात प्रान्त में सुरक्षा चौकियों पर उसके हमलों में अफगान सरकार समर्थित मिलिशिया के 14 सदस्य मारे गए हैं। इनके अलावा उसके दहशतगर्दों ने कन्धार प्रान्त में ड्यूटी पर जा रही दो महिला पुलिस अधिकारियों की गोली मार कर हत्या कर दी।
आजकल अमेरिका और कट्टरपन्थी इस्लामिक संगठन ‘ तालिबान’ से अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो की सेनाओं की वापसी को लेकर कतर की राजधानी दोहा में एक साल से चल रही वार्ता अपने अन्तिम दौर में हैं। बताया जा रहा है कि ये दोनों अफगानिस्तान से विदेशी सुरक्षा बलों की सुरक्षित वापसी के लिए रूपरेखा को अन्तिम रूप देने के करीब है, वह भी तालिबान से अफगानिस्तान सरकार और उसकी सेना की सुरक्षा का वादा लिए बगैर। अगर ऐसा होता है तो इससे अमेरिका का एक बार फिर उसका अवसरवादी चेहरे के साथ-साथ उसका अपराजेय होने के ढोंग की सच्चाई भी दुनिया के सामने आ जाएगी। इस समझौते से निश्चय ही जहाँ अफगानिस्तान सरकार को गहरा आघात ही नहीं, बल्कि इस मुल्क के साथ-साथ भारत विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को गम्भीर संकट उत्पन्न हो जाएगा, वहीं तालिबान और उसके मददगार पाकिस्तान के हौसले बुलन्द होंगे। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 तथा 35ए हटाये जाने से पाकिस्तान और उसके इस्लामिक दहशतगर्द गिरोह भारत से बेहद नाराज हैं, क्योंकि इन अनुच्छेदों के सहारे हममजहबी कट्टरपन्थियों की मदद से स्वायत्ता और सेल्फ रूल ,जम्हूरियत, कश्मीरियत,इन्सानियत की आड़ लेकर अपनी दहशतगर्दी के जरिए इस इलाके को पाकिस्तान में मिलाने या फिर एक नया इस्लामिक मुल्क बनाने में जुटे थे। ऐसे में पाकिस्तान को तालिबान समेत दूसरे इस्लामिक दहशतगर्द संगठनों को उकसा कर जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दी और अराजकता फैलाने में मदद मिलेगी।
वैसे अमेरिका की अगुआई वाली नाटो की सेनाओं के अफगानिस्तान से वापस जाने की तालिबान शुरू से माँग करता रहा है। अमेरिका की ओर शामिल हो रहे वार्ताकार जालमे खलीलजाद अफगानिस्तान की सरकार को भी वार्ता प्रक्रिया में शामिल करने के लिए तालिबान को मनाते रहे हैं, लेकिन उसने उनकी इस माँग को कभी कबूल नहीं किया। अमेरिकी वार्ताकार भी यह कहते आए हैं कि हम सिर्फ सेना की वापसी के लिए नहीं, वरन् शान्ति के लिए समझौता करेंगे। यहाँ परिस्थितिवश अमेरिकी सैनिकों की तैनाती की गई थी। अब उसकी वापसी भी अमेरिका ठोस आधार पर करेंगा। लेकिन अब तालिबान ने स्पष्ट कर दिया कि अफगान सरकार के खिलाफ उसकी जंग जारी रहेगी और लड़कर उससे अपना हक हासिल करके रहेगा। अफगान अधिकारियों तथा अमेरिकी सुरक्षा विशेषज्ञों को अफगानिस्तान में फिर से गृहयुद्ध जैसी स्थितियाँ लौटने की आशंका सताने लगी हैं। न्यूयार्क स्थित ‘ वर्ल्ड टेªड सेण्टर ‘ पर इस्लामिक आतंकवादी संगठन ‘अलकायदा’ पर हमले के बाद अमेरिका ने सन् 2001 में अफगानिस्तान पर हमला किया था और यहाँ की तालिबान की सत्ता को उखाड़ फेंका । इसके पश्चात् अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकार है। अफगानिस्तान में 14000अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, जिन्हें अमेरिका कम कर 8,000करने की बात करता आया है। अब तालिबान से समझौते के बाद यहाँ कितने अमेरिकी सैनिक रहेंगे,यह अमेरिका ने स्पष्ट नहीं किया है,पर तालिबान का कहना है कि अब अमेरिका सेना अफगानिस्तान की सरकारी सेना की कार्रवाई में मदद बन्द कर देगी। जाहिर है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो सैनिकों की वापसी के बाद जंग खत्म होने वाली नहीं है,बल्कि एक नई जंग की शुरुआत होने की पूरी आशंका बनी हुई है, इसमें कितना खूनखराबा होगा, अन्दाजा लगाना मुश्किल नही ।
अफगानिस्तान में पिछले कई दशकों से गृहयुद्ध सरीखे हालात बने हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र माइन एक्शन सर्विस के मुताबिक पिछले साल बम धमाकों 1415 अफगान नागरिकों ने गंवाई थी। संयुक्त राष्ट्र की इसी 30जुलाई की रिपोर्ट में बताया कि आतंकवादी संगठनों के खिलाफ अफगान बलों के हमलों में जहाँ इस साल अब तक 403 नागरिक मारे जा चुके हैं, वहीं अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबन्धन सेना की हवाई हमलों में 314 नागरिकों ने जान गंवाई है। इसी दौरान तालिबान के हमलों में भी 531 नागरिक मारे गए हैं। इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि हमलावर कोई भी हो,जान आम आदमी को गंवानी पड़ रही है। इस समय अफगानिस्तान में तालिबान के अलावा पिछले कुछ समय से दुनिया का सबसे खूंखार दहशतगर्द संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’(आइ.ए स.)भी अफगान बलों, सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों के खिलाफ हमले तेज कर दिये हैं। इसके कारण अफगानिस्तान की स्थिति लगातर बद से बदतर होती जा रही है। गत 31जुलाई को पश्चिमी अफगानिस्तान के हाईवे पर बस में हुए बम धमाके में 35यात्री मारे गए तथा 27घायल हुए थे।इनमें ज्यादातर महिलाएँ और बच्चे थे। इसकी जिम्मेदारी आइ.एस. ने ली। इसके बाद 18अगस्त को काबुल के बरातघर में शिया समुदाय के शादी समारोह में हुए पाकिस्तानी आत्मघाती हमलावर के हमले में 67लोगों की मारे गए और 200से अधिक आहत हुए थे। इस हमले की तालिबान ने निन्दा की थी। इससे जाहिर है कि इसके पीछे भी आइ.एस. का हाथ रहा है। इसके 12घण्टे बाद बल्ख प्रान्त के दौलत अब्द जिले में एक बम घमाके में 9 लोगों की मौत हो गई। हकीकत यह है कि अफगानिस्तान में सार्वजनिक स्थल ही नहीं, सैन्य शिविर और सैन्य अधिकारियों के कार्यालय भी सुरक्षित नहीं हैं। इस देश के विकास में भारत की बहुत बड़ी भागीदार है।इसलिए अफगानिस्तान की सुरक्षा में भारत का भी हित जुड़ा है।
अफगानिस्तान दक्षिण मध्य एशिया का एक गणराज्य है जो चारों ओर से जमीन से घिरा हुआ है। इसके पूर्व पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कजाकस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा पश्चिम ईरान है। आरम्भ में इसका नाम एरियाना था,उसके बाद ‘खुरासन’(उगते सूर्य का देश) नाम पर पड़ा। वैसे अफगानिस्तान का नाम दो शब्दों ‘अफगान’ तथा ‘स्तान’ से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘अफगानों की भूमि’ है। यह देश प्राचीन ‘रेशम मार्ग’ तथा मानव प्रवास का केन्द्र बिन्दु रहा है और यह क्षेत्र एक ऐसे भू-रणनीतिक स्थान पर अवस्थित है जो मध्य एशिया और पश्चिम एशिया को भारतीय उपमहाद्वीपीय की संस्कृति से जोड़ता है।
इसका क्षेत्रफल 647,497वर्गकिलोमीटर और इसकी राजधानी काबुल है। यहाँ की जनसंख्या- 29,117,000से अधिक है। यहाँ के लोग ‘इस्लाम’मजहब मानते हैं। इनमें पश्तून(पठान या अफगान),ताजिक,उज्बेक,तुर्कमेन, हजारा है,जो पख्तो(पश्तो), दारी, फारसी बोलते हैं। इस देश की मुद्रा ‘अफगानी’है।
ईसा के 700साल पहले इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था जिसके बारे में भारतीय स्रोत ‘महाभारत’ तथा अन्य ग्रन्थों में वर्णन मिलता है। ईसा पूर्व 500में फारस के हखामनी शासकों ने इसको जीत लिया। सिकन्दर के फारस विजय अभियान के तहत अफगानिस्तान भी यूनानी साम्राज्य का अंग बन गया। इसके बाद यह शकों के शासन में आया। शक स्कीथियों के भारतीय अंग था। ईसा पूर्व 230में मौर्य शासन के अन्तर्गत अफगानिस्तान का सम्पूर्ण इलाका आ चुका था, पर मौर्य शासन अधिक दिनों तक नहीं रहा। इसके पश्चात् पार्थियान और सासानी शासकों ने फारस में केन्द्रित अपने साम्राज्यों का हिस्सा इसे बना लिया। सासनी वंश इस्लाम के आगमन से पूर्व का आखिरी ईरानी वंश था।
इस भूमि पर कुषाण ,हफ्थलिट, समानी, गजनवी, गौरी, मुगल, दुर्रानी और अनेक दूसरे प्रमुख साम्राज्यों उत्थान हुआ है। प्राचीन काल में फारस और शक साम्राज्यों का अंग रहा, अफगानिस्तान कई सम्राटों आक्रमणकारियो तथ विजेताओं की कर्मभूमि रहा है। इनमें सिकन्दर, फारसी दारा प्रथम, तुर्क, मुहम्मद गौरी, मुगल शासक बाबर ,नादिरशाह इत्यादि के नाम प्रमुख हैं। ब्रिटिश सेनाओं ने कई बार अफगानिस्तान पर आक्रमण किये।वर्तमान में अमरीका द्वारा तालिबान पर आक्रमण किये जाने के बाद नाटो की सेनाएँ वहाँ बनी हुई हैं।
अहमद शाह दुर्रानी ने सन् 1747 में पृथक अफगानिस्तान राज्य की स्थापना की। सन् 1973 में राज्यतंत्र की समाप्ति हुई। सन् 1978 में नूर मोहम्मद तराकी की सेना ने विद्रोह कर मार्क्सवादी पीपुल्स रिपब्लिक की स्थापना की। सन् 1986 में ले.जनरल नजीबुल्ला राष्ट्रपति बने। अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं का मुजाहिदों ने निरन्तर विरोध किया। सन् 1988 के समझौते के अनुसार सन् 1989 में नजीबुल्ला के नेतृत्व सोवियत सेनाएँ वापस लौट गयीं। पहली फरवरी, सन् 1989 में नजीबुल्ला के नेतृत्व में सैन्य परिषद् का गठन किया गया। अफगान विद्रोहियों ने इस्लामाबाद में एक बैठक में सिग्बांतुल्ला मोजादिद को निर्वासित अन्तरिम सरकार का राष्ट्रपति चुना। उन्होंने मुजाहिदीन नेतृत्व परिषद् को सत्ता सौंप दी।
अप्रैल,सन् 1992 में सत्ता हस्तान्तरण भयानक लड़ाई के कारण असफल हो गया। गुटीय संघर्षों के कारण काबुल की आंधी से अधिक आबादी शहर से पलायन कर चुकी थी। सन् 1994 में राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन और प्रधानमंत्री गुलबुद्दीन हिकमतयार अलग हो गए। सन् 1994 के पूर्वार्द्ध में एक नया इस्लामिक आन्दोलन ‘तालिबान’ एक नयी शक्ति के रूप में उभरा। इसका एक तिहाई देश पर नियंत्रण था। जून, सन् 1996 को हिकमतयार एक बार फिर से रब्बानी के साथ हो गए और प्रधानमंत्री बने, लेकिन सितम्बर में तालिबान ने इन्हें अपदस्थ कर दिया। 26सितम्बर, सन्1996 को पाकिस्तान समर्थित तालिबान बल ने काबुल के पूर्वी भाग पर कब्जा कर लिया और 27 सितम्बर , 1996 को ही बिना किसी प्रतिरोध के तालिबान ने काबुल शहर पर कब्जा करके पूर्व राष्ट्रªªपति नजीबुल्ला को उनके भाई के साथ खुलेआम फाँसी पर लटका दिया, जो कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा में रहे थे । तालिबान ने अफगानिस्तान की मुस्लिम राज्य घोषित कर किया। देश में ‘सख्त मुस्लिम नियम’ लागू कर दिये गए। लड़कियों के स्कूल बन्द करा दिये गए थे। सरकारी कार्यालयों में महिलाओं के कार्य करने पर पाबन्दी लगा दी गई।
तालिबान को सन् 1997 मे झटका लगा। अल्पसंख्यक ताजिक काबुल में एक शक्ति बन कर उभरने लगे। उत्तरी गठबन्धन का एक तिहाई अफगानिस्तान पर नियंत्रण हो गया। संयुक्त राष्ट्र का शान्ति प्रयास 30 अप्रैल, सन् 1998 को विफल हो गया और लड़ाई फिर भड़क उठी। तालिबान ने दावा किया कि 85 प्रतिशत देश पर उसका नियंत्रण है और वहाँ पर पर कठोर इस्लामिक नियम लागू है। अगस्त, सन् 1998 में तालिबान ने मजारे -ए-शरीफ पर कब्जा कर लेने का दावा किया। केवल पाकिस्तान और युनाइटेड अरब अमीरात ने ही तालिबान सरकार को मान्यता दी थी।मार्च महीने में तालिबान ने बामियान में बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं को जो विश्व की धरोहर समझी जाती थीं को विस्फोट करके तोड़ डाला। नवम्बर, सन् 2001 में उत्तरी गठबन्धन ने अमरीका के सहयोग से तालिबान सरकार को उखाड़ फेंका। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अफगानिस्तान विश्व का सबसे अविकसित देश है, युद्ध की भयावहता के कारण यहाँ के निवासी अन्य पड़ोसी देशों में शरण लिए हुए हैं। अफगानिस्तान में एक करोड़ से अधिक बारूदी सुरंगें बिछीं हैं।पूर्व महाराजा मुहम्मद जहीर शाह 29वर्षों के निर्वासन के बाद 18अप्रैल, सन् 2002 को स्वदेश वापस लौटे,जून महीने में हमीद करजाई जोकि अन्तरिम प्रशासन के नेता थे, को अगले राष्ट्रपति पद के लिए भारी बहुमत प्राप्त हुआ। जुलाई में उपराष्ट्रपति हाजी अब्दुल कादिर की हत्या से शान्ति प्रयासों को धक्का लगा बामियान घाटी युनेस्को के अधीन कर दी गई।अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है। पशु पालन एक अन्य मुख्य धन्धा है। यहाँ की मुख्य निर्यात की वस्तुएँ हैं-पशु, फल, ऊन, चमड़ा। कोयला, नमक, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम, लोहा और तांबा प्रमुख खनिज है।
अब अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका और तालिबान के मध्य समझौता होता है तो निश्चय ही इस मुल्क के साथ भारत की सुरक्षा व्यवस्था के लिए भी घातक सिद्ध होगा।इसलिए इस विषम स्थिति से निपटने के लिए अफगानिस्तान के साथ-साथ भारत को भी विशेष सर्तकता-सावधानी बरतना अपेक्षित है,ताकि पाकिस्तान, तालिबान, आइ.एस. के दहशतगर्दों के मंसूबों को नाकाम किया जा सके।
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