अब जन्नत के फिरकापरस्त रहनुमा कहाँ हैं?
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डॉ.बचन सिंह सिकरवार
'धरती
के स्वर्ग'कश्मीर में जल प्रलय आयी हुई है जिसके कारण वहाँ हर जगह विनाश के दृश्यों
के साथ हजारों-लाखों लोगों के समूह अपनी जान बचाने और भूख-प्यास मिटाने को सहयोग तथा
सहायता की गुहार लगाते दिखायी दे रहे हैं। ऐसे में अपनी जान जोखिम में डालते हुए भारतीय सेना के तीनों
अंगों के जवान स्वयं भूखे-प्यासे रह कर आकाश, जल, थल से रात-दिन उनकी जान बचाने में
जुटे हैं। जहाँ देश के लोग उन्हें 'देवदूत' या 'खुदा के फरिश्ते' बता रहे हैं, वहीं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के घोर कटु आलोचक
भी उनकी सरकार के सहायता कार्यों की बार-बार प्रशंसा कर हैं। कश्मीर की सहायता
के लिए विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने करोड़ रुपए की सहायता भेजने की घोद्गाणा
की हुई है। इसके साथ ही देशभर में लोग भी अपने स्तर से धन और सामग्री एकत्र करने में
जुट गए हैं। लेकिन इतने सब पर भी घाटी में कुछ लोग इन मददगारों पर पत्थरबाजी कर यह
साबित करने पर आमादा हैं कि संकट में एक-दूसरे के विरोधी वन्यजीव भले ही एक साथ खड़े
हो सकते,पर वे अपनी मानसिकता बदलने को तैयार नहीं हैं। पता नहीं क्यों?अब इन्हें अपने
मुखयमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनसे पहले सालों-साल मुखयमंत्री रहे डॉ.फारुक अब्दुल्ला,शेर-ए-कश्मीर
के नाम से पुकारे जाने वाले उनके मरहूम वालिद द्रोख अब्दुल्ला पर गुस्सा क्यों नहीं
आता? जिन्होंने अपने राज में ऐसे कुदरत के कहर या खतरनाक हालात से निबटने के पुखता
तो क्या, कैसे भी इन्तजाम करने के बारे में सोचा तक नहीं हैं। इस समय भी जम्मू-कश्मीर
का स्थानीय प्रशासन पूरी तरह पंगु बना हुआ है, वह सेना और केन्द्रीय एजेन्सियों को
सूचनाओं आदि देकर मदद करने में भी पूरी तरह नाकाम बना हुआ। सबसे ज्यादा अफसोस यह देखकर
होता है कि मुसीबत की इस घड़ी में जम्मू-कश्मीर विशेष रूप से घाटी में सक्रिय अलगवादियों
की 22 तन्जीमों में से किसी का एक नेता भी
अपने लोगों की कैसी भी मदद करता नजर नहीं आ रहा है जिनमें इनके सबसे बड़े खैरखवाह बनने
की हमेशा होड़ लगी रहती है। छह पार्टियों वाली 'ऑल पार्टी हुर्रियत कान्फ्रेंस' के दो
धड़े हैं। इसके गरम धड़े की अगुवाई सैयद अलीशाह गिलानी करते हैं तो दूसरे नरमपन्थियों के धड़े की कमान मीर वाइज उमर फारुक
सम्हाले हुए हैं। कश्मीर की आजादी और यहाँ के लोगों के अधिकारों की कथित आवाज उठाने
का कोई मौका दोनों में से कोई भी धड़ा नहीं चूकता। ये जनाब अब किस खोह में छिपे बैठे
पता नहीं है। इन्हीं की तरह कश्मीर की आजादी की माँग को 'जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रण्ट'के
नेता यासीन मालिक भी हर वक्त उठाते ही रहते हैं इसके लिए कभी पाकिस्तान जाते हैं और
उसके नेताओं से कश्मीर को आजाद कराने को मदद माँगते हैं तो कभी उसके दिल्ली स्थित उपायुक्त
से मुलाकात कर अपनी नेतागीरी को चमकाते हैं।
मजे की बात यह है कि इन नेताओं में से किसी ने भी आज तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है। भारत
सरकार की ढुलमुल नीतियों के कारण देश की आजाद के समय से ही इस राज्य में इस्लामी कट्टरपन्थी
किसी ने किसी बहाने अपनी मनमानी करते आये हैं। उनका असल मकसद किसी भी तरह इस प्रान्त
को इस्लामिक मुल्क या पाकिस्तान में द्राामिल कराना रहा है। यह सब जानते हुए भी हमारे
रहनुमा तात्कालिक फायदों के लिए अपनी आँखें बन्द कर इस हकीकत से मुँह चुराते आये हैं।
यू तो कश्मीर के विलय के समय से ही कट्टरपन्थियों
की द्रोह पर पाकिस्तान इसके एक तिहाई हिस्से पर कब्जा करने में कामयाब हो गया। इसके
बाद भी वह घुसपैठिये भेज कर 1965,1971युद्धों के साथ 1999 में करगिल की जंग जरिए इस
रहे बचे हिस्से पर कब्जा करने में जुटा हुआ है। उसी के उकसावे पर सन् 1990 से
कश्मीर घाटी में आतंकवादियों ने अपना दबाव बढ़ना शुरु किया था। तब केन्द्र में
प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी। उस दौरान केन्द्रीय गृहमंत्री मुफ्ती
मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का पाकपरस्त आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था। तब उन्हें
छुड़वाने के लिए भारत को पाकिस्तान समर्थक तीन खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने का मजबूर
होना पड़ा था। अब मुफ्ती मोहम्मद सईद की ही 'पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.)
भी जब तब अलगाववादियों की आवाज में आवाज मिलाती रहती है। हालाकि पाकिस्तान में विदेशी,पाकिस्तानी,कश्मीरी
युवाओं को आतंकवादी बनने का प्रच्चिक्षण देने
के साथ-साथ उन्हें भारतीय सीमा में घुसपैठ कर भेजा जाता है लेकिल भारतीय राद्गट्रीयता
के खिलाफ घाटी के लोगों को भड़काने और उनमें नफरत पैदा करने में ऑल पार्टी हुर्रियत
कान्फ्रेस के नेताओं का भी बहुत बड़ा हाथ रहा
है। बेशक इन हुर्रियत कान्फ्रेन्स के नेताओं चुनाव में हिस्सा नहीं लिया दिया, फिर
भी वे खुद को ही कश्मीरियों को सबसे अहम प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं। प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार के समय
हुर्रियत के एक गुट ने कोई 12 साल पहले चुनाव लड़ने का मन बनाया था जिसकी रहनुमाई अब्दुल
गनी लोन करते थे, पर उनकी कट्टरपन्थियों ने हत्या कर दी। जो यह नहीं चाहते थे कि घाटी
में भारतीय राद्गट्र राज्य की मुखालफत में किसी तरह की कमी आए। इसके साथ ही घाटी में अमर-चैन
की बहाली की मुहिम को विराम लगा गया। इसी दौरान पाकपरस्त इन मजहबी अलगाववादियों ने
भारी कत्ले आम कर दहशतगर्दी के जरिए कश्मीर घाटी से लाखों कश्मीर पण्डितों को अपने
घर-द्वार छोड़ने पर मजबूर कर दिया। वर्तमान में कश्मीर घाटी एक तरह से हिन्दू विहीन
बनी हुई है। कोई डेढ़ दशक से ये कश्मीर पण्डित जम्मू में द्रारणार्थी च्चिविरों में
नारकीय जिन्दगी जी रहे हैं बाकी दिल्ली समेत देश के दूसरे नगरों में जहाँ-तहाँ जैसे-तैसे
जीवन गुजार रहे हैं। पाकिस्तान समर्थक ये लोग युवा पीढ़ी में मजहबी जुनून भर कर मामूली
बातों पर सुरक्षा बलों तथा सेना पर पत्थरबाजी से लेकर बम तक फिकवाते आये हैं। आज भी
सीमापार से आए आतंकवादी के सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में मारे जाने पर कश्मीर घाटी में
लोग सेना के खिलाफ उग्र प्रदर्च्चनों करते हुए 'पाकिस्तान जिन्दाबाद', 'हिन्दुस्तान
मुर्दाबाद' के नारों के साथ तिरंगा जलाने तथा पाकिस्तानी झण्डा फहराने से बाज नहीं
आते हैं। यह सब देखते भी सुरक्षा बल और सेना के जवान ज्यादातर मौकों पर बहुत अधिक संयम बरतते है।ं इस पर भी ये अलगाववादी और देशद्रोह
पर उतारू ये नेता हर बात के लिए उन्हें ही कसूरवार ठहराते आए हैं।
अब जब जम्मू-कश्मीर पिछले 109साल में सबसे बड़ी त्रासदी
झेल रहा है। यहाँ भारी वद्गर्ाा से तवी, झेलम समेत दूसरी नदियों में बाढ़ से जम्मू,श्रीनगर
समेत अनेक नगरों,कस्बों के साथ छह सौ से अधिक गाँव डूब गए है जिसकी वजह से चार लाख
से भी ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। बाढ़ के इस कहर ने बड़ी संखया पुल, सैकड़ों
किलो मीटर सड़कें बरबाद कर दी हैं। लोग अपनी
जान बचाने को अपने मकानों की छतों पर चढ़े हुए हैं। सेना के जवान हैलीकोप्टरों और नावों
के जरिए उन्हें बचा कर सुरक्षित जगहों पर पहुँचा रहे हैं जबकि सरहद से लगीं कई निगरानी
चौकियों तथा सैन्य छावनियों में भी पानी भर गया है जहाँ उनके परिवार भी इस मुसीबत का
झेल रहे हैं। इनकी चिन्ता छोड़ सैन्यकर्मी आम जनता को बचाने में जुटे हुए हैं। बाढ़ ने
दो सौ से ज्यादा लोगों की जानें ले ली हैं। हर तरफ तबाही का मंजर नजर आ रहा है। ऐसे
में प्रधानमंत्री मोदी को लोकसभा के चुनाव के दौरान डॉ.फारुक अब्दुल्ला समुद्र डूब
मरने की सलाह दे रहे थे अब वे कश्मीरियों की हिफाजत करते कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
अब उन्हीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे राज्य का हवाई दौरा कर इसे 'राद्गट्रीय
आपदा' घोद्गिात करते हुए 1000करोड़ रुपए की सहायता मंजूर की है। इसके साथ ही पूरी सेना
को कश्मीरी जनता की मदद में लगा दिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान के पंजाब
प्रान्त की बाढ़ में सहायता देने का प्रस्ताव भी दे दिया, किन्तु अभी तक जम्मू-कश्मीरी
को उन इस्लामिक मुल्कों की ओर से किसी तरह की इमदाद की पेशकश नहीं आयी, जो पाकिस्तानी
आतंकवादियों और यहाँ के अलगावादियों के लिए सालों से खर्चा पानी का बन्दोबस्त करते
आये हैं। खुशी की बात यह है कि मुसीबत की इस घड़ी में पूरा देश कश्मीरियों की परेशानी
में हर तरह से उनके साथ खड़ा है। जिन अलगावादियों और आतंकवादियों के बहकावे में आकर
वे अपने ही देश के लोगों और सुरक्षा बलों के साथ दुच्च्मनों सरीखा बर्ताव करते आये
थे अब उनके वे फिरकापरस्त रहनुमा मुसीबत में
कहाँ जा छिपे हैं? अब कश्मीरियों यह तय करने में कठिनाई नहीं आनी की चाहिए है कि उनका
असली हमदर्द कौन है? सम्पर्क-63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003
मो.नम्बर-9411684054
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