अभी आस्तीन में छिपे साँपों में सबक सिखाना बाकी

डॉ.बचन सिंह सिकरवार    
भारत ने कश्मीर के उड़ी के सैन्य क्षेत्र में आतंकवादी हमले के प्रतिकार में जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकवादियों के शिविरों पर उसकी अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था को भेद कर दुर्गम मार्ग के जरिये सफल सीमित सैन्य कार्रवाई की है उस बारे में पाकिस्तान के शासकों ने शायद ही कभी विचार भी किया होगा। इस नमूने की कार्रवाई के जरिए  भारत ने पाक को जता दिया कि अगर वह चाहे तो उससे लाख गुना बेहतर तरीके से वह उसे सबक सिखाने की हैसियत रखता है। निश्चय ही वे भारत के इस रुख से हैरान-परेशान होंगे। वस्तुतः यह कार्रवाई भारत की अब तक चली आ नीति में बढ़े बदलाव की परिचायक है, जो सामयिक कदम होने के साथ हर दृष्टि से उचित भी है। इससे पड़ोसी पाकिस्तान समेत दूसरे मुल्कों और अपने ही दे में जगह-जगह बिखरे राष्ट्रद्रोहियों को भी सही सबक मिलेगा, जो अब तक भारत को जरूरत से ज्यादा उदार मुल्क समझने का भ्रम पाले हुए हैं । इस कार्रवाई से पाकिस्तानी शासकों को कुछ सुझाई नहीं दे रहा है कि इसे लेकर वे भारत को क्या जवाब दें ? निश्चय ही इस सैन्य कार्रवाई से कश्मीरी अलगाववादियों के भी हौसलपस्त हुए होंगे। उन्हें अब लगने लगा होगा कि जब  उनके आका पाकिस्तान के आंचल में छिपे बैठे उनके साथी सुरक्षित नहीं है तो ऐसी हालत में वे कैसे और कब तक महफूज रह सकते हैं ? अपने दे में कितने आस्तीन
के साँप हैं और वे कहाँ - कहाँ छिपे हुए हैं ? ये कब और कैसे अपने ही लोगों का डसने और बर्बाद करने को निकल पड़ेंगे, यह सब बता पाना सम्भव नहीं है। दरअसल, जब बाड़ ही फसल उजाड़ने /खाने लगे, तब किसी के लिए सुरक्षित रह पाना कहाँ तक सुरक्षित है ? देश में छिपे भेदिये बाहरी दुश्मन से बहुत ज्यादा खतरनाक हैं इनके कारण ही देश के विभिन्न राज्यों में हुए बम विस्फोटों में अब तक जनधन की भारी तबाही हुई है।  ये देशद्रोही कब पाकिस्तानी या आई.एस.का झण्डा उठाकर कहाँ 'पाकिस्तान जिन्दाबाद', 'हिन्दुस्तान मुर्दाबाद' के नारे लगाने लगे कुछ पता नहीं, यह तथ्य केवल कश्मीर घाटी में ही नहीं, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत अन्य राज्यों में नजर आ चुका है। इतना ही नहीं, देश में दिल्ली के जे.एन.यू. से लेकर हैदराबाद के केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्चिम बंगाल की जाधवपुर विश्वविद्यालय समेत कई आई.आई.टी. में राष्ट्र विरोधी आवाजें गूँजने लगी हैं जहाँ देश को टुकड़े-टुकड़े होने के नारे लगाते हैं। क्षोभ की बात यह है कि जहाँ देश के कुछ जनसंचार माध्यम भी इन देशद्रोहियों की बढ़चढ़ कर तरफदारी करने  में र्म-संकोच महसूस नहीं करते, वहीं देश की सियासी पार्टियाँ भी कुछ परोक्ष तो कुछ मूक रह कर उनकी हिमायत करती आयी हैं।
अब एजेन्सियों को पता चला है कि आतंकवादी संगठन 'हिजबुल मुजाहिदीन' के कमाण्डर बुरहान वानी समेत तीन आतंकवादियों के गत 8 जुलाई को सुरक्षा बलों के साथ हुई मु
ठभेड़ में मारे जाने के बाद कश्मीर घाटी में कोई ढाई माह तक चली हिंसा और बन्द के पीछे अलगाववादियों के साथ-साथ मस्जिदों/मदरसों के मौलवियों, इमामों, मस्जिदों की कमेटियों के पदाधिकारियों की भी अहम भूमिका  रही है। इनके सिवाय सूबे के 150 से अधिक लगभग सभी महत्त्वपूर्ण सरकारी विभागों के कर्मचारी और अधिकारी भी इस में शामिल रहे हैं । इनमें से कुछ राजपत्रित अधिकारी, तो कुछ पुलिसकर्मी भी हैं। इनमें से सबसे अधिक शिक्षा विभाग के हैं। हद तो यह है कि इन बेजा हरकतों में कश्मीर विश्वविद्यालय का एक असिस्टेण्ट रजिस्ट्रार और एक कॉलेज का लेक्चरार भी है। इनके अलावा शिक्षा विभाग का डिप्टी चीफ एजूकेशन ऑफिसर तथा एक वित्त विभाग का लेखाधिकारी, एक बी.डी.ओ. भी है। ये लोग पत्थरबाजी और राष्ट्रविरोधी जुलूसों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने के साथ-साथ उनके आयोजनों में भी अहम भूमिका निभाते थे। अब राज्य सरकार ने ऐसे कर्मचारियों / अधिकारियों की शिनाख्त कर उनकी फेहरिस्त बनाकर इन सभी के खिलाफ सख्त कार्रवाई किये जाने के निर्देश दिये हैं। इससे यह अन्दाज लगाना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि ये सभी मजबूर नहीं, बल्कि मजहबी जुनून में अपना विवेक खोए हुए लोग हैं। इनके लिए इन्सानियत, कश्मीरियत, जम्हूरियत के कोई माने नहीं हैं। ये दूसरे बच्चों-युवकों की तरह बहला-फुसला कर या पाँच सौ, हजार रुपए के लालच में भी इन हरकतों में शामिल नहीं हुए हैं। ये  अपना भला-बुरा सोच सकते थे, पर कट्‌टरपन्थी विचारधारा ने इन्हें नहीं सोचने दिया।
ऐसे ही कश्मीर घाटी में हाल में भड़की हिंसा के सम्बन्ध में 9,000 मस्जिदों और मदरसों को चिन्हित किया गया है। इनमें से 156 मस्जिदें नियमित जिहादी गतिविधियों का केन्द्र बनी हुई हैं। यह बात बहुत पहले से कही जा रही थी कि मस्जिदों समेत धार्मिक स्थलों, मदरसों का इस्तेमाल आतंकवादी, अलगाववादी देशविरोधी गतिविधियों के लिए कर रहे हैं। इनमें युवाओं में इस्लामी कट्‌टरता भड़का कर उन्हें जेहाद के लिए उकसाया जाता है। इनमें सुबह और शाम जेहाद के तराने और भारत विरोधी नारे लगाये जाते हैं। अब इन मस्जिदों की गतिविधियों पर पुलिस में 19 एफ.आई.आर. दर्ज की गयी हैं। इसके साथ ही 17 मस्जिद कमेटियों को कारण बताओं नोटिस जारी किये हैं। यह स्थिति केवल जम्मू-कश्मीर विशेष रूप से सिर्फ कश्मीर घाटी की ही नहीं है,बल्कि कमोबेश रूप में देश के दूसरे हिस्सों की भी है। लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के थोक वोट बैंक के लालच में ज्यादातर सियासी पार्टियाँ इनकी न केवल अनदेखी करती हैं, बल्कि कहीं-कहीं समर्थन भी करती रहती हैं। पिछले कई दशकों से कश्मीर के विभिन्न इलाकों में अनजाने लोगों द्वारा भव्य मस्जिदें तमीर की जाती रही हैं, जिनमें स्थानीय लोगों की कतई भागीदारी नहीं होती। फिर भी राज्य सरकार ने यह जानने की कोशिश नहीं की, ये लोग किस मकसद से यह सब कर रहे हैं। ऐसा ही देश के विभिन्न इलाकों में हो रहा है और राज्य सरकारें मूकदर्शक बनी हुई हैं। कुछ के अनुसार उत्तर प्रदेश में भी एक कट्‌टरवादी विचारधारा के लोग उदार विचारवालों की मस्जिदों पर कब्जा कर रहे हैं। जहाँ जमातों के जरिए दूर-दराज के गाँवों में मजहबी कट्‌टरता फैलायी जा रही है, वहीं शहरों के पढ़े-लिखे नौजवान इण्टरनेण्ट के माध्यम से डॉ. जाकिर की तकरीरों या खूंखार आतंकवादी संगठन के तेजाबी प्रचार से प्रभावित होकर जेहादी बन रहे हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस भयावह स्थिति के रहते हुए भी देश के सियासी नेता और मजहबी रहनुमा खामोश बने हुए हैं।
अपने देश में कुछ गरीबी की वजह से तो कुछ मजहबी जज्बातों में बहकर अपनों के ही दुश्मन बनते आये है और कुछ बनने की फिराक में हैं। देश एक मजहबी कट्‌टता के ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है, यह कब और कहाँ फट जाए, इसका कोई निश्चित ठिकाना नहीं है। यहाँ तक कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने कश्मीर घाटी के अलगाववादियों समेत मुल्क दूसरे संदिग्ध संगठनों और लोगों के आर्थिक स्रोतों को पता कर उन्हें बन्द कराने का गम्भीर प्रयास नहीं किया है। इसके उल्ट उनकी हिफाजत और दूसरे देशों में जाने, होटलों में ठहरने, इलाज आदि की सुविधाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करती आयी हैं। अब राजग की केन्द्र सरकार को ढाई साल बाद अलगाववादियों की सुविधाओं पर रोक लगाने की सुध आयी है,अभी इस पर अमल करना बाकी है। ऐसे में अब सरकार को अपने आस्तीन के साँपों को ठिकाने लगाने की जरूरत है जो बाहरी दुश्मनों से कहीं ज्यादा नुकसान पहुँचाते आये हैं। ऐसा किये बगैर देश की पुखता सुरक्षा किया जाना सम्भव नहीं है।
सम्पर्क डॉ.बचन सिंह सिकरवार
63ब, गाँधी नगर, आगरा

282003 मोबाइल नम्बर-9411684054

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