अब इस बेइन्साफी पर चुप क्यों ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

इसी 30 दिसम्बर को जुम्मे की नमाज के बाद अलगाववादियों ने सूबे
में बन्द के ऐलान के साथ पाकिस्तान और आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आई.एस.) के
झण्डे लहराते हुए देश विरोधी नारों के साथ उग्र प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर
पेट्रोल बम फेंके। इनकी हिंसक वारदातों से एक दर्जन से अधिक लोग घायल हुए हैं।
घाटी में दुकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठान, शिक्षण संस्थान तो सुबह से ही बन्द थे। इस बीच जम्मू-कश्मीर
लिबरेश्न फ्रण्ट (जे.के.एल.एफ.) के चेयरमैन मोहम्मद यासीन मलिक को गिरफ्तार किया
गया, जो प्रदर्शन के दौरान जखमी हो गए
हैं। उदारवादी हुर्रियत प्रमुख मीरवाईज मौलवी उमर फारूक और कट्टरपन्थी सईद अली
गिलानी समेत कई दूसरे प्रमुख अलगाववादियों को उनके ही घरों पर नजरबन्द किया गया, जो ये अलगाववादी गुट बाहरी लोगों को भले ही अलग - अलग
दिखायी देते है, लेकिन ये जहाँ हिन्दू और
हिन्दुस्तान की मुखालफत लेकर एक हैं, वहीं ये वतनफरोशों, मजहबी कट्टरपन्थियों, पाकिस्तान की हिमायत में
एक साथ। ये लोग जम्मू-कश्मीर को हर चालबाजी से पाकिस्तान के हवाले करने, हिन्दुस्तान से अलग होने
और देश को तबाह करने के मुद्दे पर एक साथ
हैं। इनके विरोध से पहले निर्दलीय विधायक
इंजीनियर रशीद ने मुखयमंत्री महबूबा मुफ्ती के आवास पर कई दिनों तक धरना दिया हैं
जिसकी अलगाववादी मानसिकता, कार्यकलाप, मजहब परस्ती और फिरकापरस्ती जगजाहिर है।
अब जहाँ तक इन
पाकिस्तानी शरणार्थियों का प्रश्न है तो ये लोग पश्चिमी पाकिस्तान देश के बँटवारे
के समय से यहाँ अपना घर-द्वार छोड़ कर मजबूरी में आये हैं, जहाँ इस्लामिक कट्टरपन्थियों के जुल्मों, उनके मजहबी भेदभाव,
अपना मजहब
बचाना ही नहीं, अपनी और अपनों की जान बचना भी
मुश्किल हो गया था। यहाँ आकर ये कोई सुकून से नहीं रहे हैं। उन्हें अपने ही मूल देश
में परायों की तरह रहना और हर तरह के अपमान झेलने पड़े, क्योंकि वे हिन्दू थे। अपना सब कुछ गवां कर यहाँ आकर बसने
की कीमत पर उन्होंने सिर्फ अपना मजहब ही बच पाया है। ये लोग पिछले सत्तर साल से
जम्मू-कश्मीर में खानाबदोच्च तरह रहते हुए नर्क सरीखी जिन्दगी बसर की है। इस दौरान राज्य सरकार ने उन्हें न तो नागरिकता दी गई और न ही राज्य सरकार की
तरफ से पहचान पत्र ही दिया। इसके बिना ये लोग नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं और न ही किसी
तरह के हक - हकूक की माँग ही। यह सब ये इस सूबे की उन सरकारों की मजहबपरस्ती, फिरकापरस्ती और नाइन्साफी की वजह से भुगतते आये हैं जो कश्मीरियत, जम्हूरियत, इन्सानियत का राग अलापती
रही हैं।
विडम्बना यह है कि उनकी इस बेइन्साफी
में काँग्रेस भी भागीदार रही है जो अपने को देश की सबसे पंथनिरपेक्ष पार्टी साबित
करती आयी है। अब आकर जैसे - तैसे उनके हित में केन्द्र और राज्य सरकार ने यह कदम
उठाया है, ताकि ये लोग बेहतर तरीके और
सम्मान से जिन्दगी जी सकें। वैसे अब जहाँ तक इस मुद्दे पर जनांकिकी में बदलाव के
बहाने बवाल मचाने वाले इन कश्मीरियत के
फर्जी रखवाले अलगाववादियों, नेशनल कान्फ्रेंस, दूसरे स्थानीय सियासी दलों के नेताओं की, तो उन्हें इस सूबे में केवल हिन्दुओं की जनसंख्या बढ़ने की
फिक्र है, मुसलमानों की आबादी की नहीं।
यही कारण है कि मुल्क के बँटवारे के वक्त
यहाँ से पाकिस्तान या गुलाम कश्मीर में जा कर बसने वालों के फिर से इस सूबे में
आने पर कोई पाबन्दी नहीं है, उन्हें नागरिकता ही नहीं, जमीन - जायदाद भी वापस मिल जाती है। लेकिन हिन्दुओं को सात
दशक के बाद पहचान पत्र दिये जाने पर भी ऐतराज है। नब्बे के दशक में कश्मीर घाटी से
इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने कोई पाँच लाख कश्मीरी पण्डितों को बन्दूक के जोर पर
निकाल दिया था, उसे लेकर किसी भी सियासतदां को
फिक्र नहीं, जो ढाई दशक से ज्यादा समय से
आज अपने ही वतन में बेवतनों जैसी हालात में जीने को मजबूर हैं, किन्तु उनके साथ हो रही इस बेइन्साफी पर अलगाववादी, कश्मीर के सियासतदां ही नहीं, पूरे मुल्क के मानवाधिकारवादी, पंथनिरपेक्ष, इन्सानियत, जम्हूरियत पसन्द लोग
खामोश बने हुए हैं । जब भी कश्मीर घाटी
में उनकी किसी भी रूप में वापसी की चर्चा होते ही ये लोग कोहराम मचाते आये हैं, ताकि उनका जम्मू - कश्मीर को हिन्दूविहीन कर 'दारूल इस्लाम' बनाने का मन्सूबा पूरा
हो सके । इसीलिए जम्मू - कश्मीर की सियासत करने वाले लद्दाख के बौद्धों, जम्मू के हिन्दू - सिखों के साथ-साथ शिया, बकरवाल गुर्जरों आदि के साथ हर तरह का भेदभाव करते आये
हैं। उनके द्वारा बौद्ध और हिन्दू लड़कियों का धर्मान्तरण कर निकाह करने वालों को
प्रोत्साहित किया जाता है। शियाओं को दशकों से ताजिये नहीं रखने दिये जाते और सूफी
दरगाहों को जलाया जाता रहा है फिर भी सबकी जुबान बन्द है।
अब कश्मीर की जनांकिकी
में बदलाव को लेकर हायतौबा मचा रहे अलगाववादियों और दूसरे सियासी नेताओं के दोहरे
चेहरों को बेनकाब करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह
ने कहा है कि इन्हें पश्चिमी पाकिस्तान से सात दशक पहले मजबूरी में आकर बसे हिन्दू
शरणार्थियों को पहचान पत्र दिये जाने से तो परेशानी हो रही है, लेकिन इन्होंने ही राज्य की सत्ता में रहते जम्मू की
जनांकिकी बदलने के लिए शहर के बाहरी इलाकों में हजारों की संख्या में बांग्लादेश
और म्यांमर (बर्मा) के मुसलमानों को बसा दिया है, ताकि
जम्मू हिन्दू बहुल इलाका न रहे। इस पर किसी को ऐतराज नहीं है, क्यों ? निश्चय ही इनका यह
इरादा हद खतरनाक है, पर एक खास समुदाय के
वोट के लालच के कारण देश के सभी राजनीतिक दल उनके हर रासविरोधी काम पर चुप्पी साधे
रखने में ही अपनी खैरियत और सियासती फायदा समझते हैं। ये ही वे सियासतदां हैं
जिन्हें कश्मीरी के अलगाववादियों पर जरा-सी सखती में कश्मीरियत, जम्हूरियत, इन्सानियत खतरे में पड़ती
नजर आने लगती है। क्या उनकी इस नीति और नीयत से देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता, सम्प्रम्भुता अक्षुण्ण रह पायेंगी ?
सम्पर्क - डॉ.बचन सिंह सिकरवार
63 ब, गाँधी नगर, आगरा - 2820003
मो. नम्बर - 9411684054
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