संघर्ष, उत्सर्ग,वीरता की शौर्यगाथा क्षत्रिय राजवंश बड़गूजर-सिकरवार-मढाड़


पुस्तक समीक्षा
लेखक-कँुवर अमित सिंह ,डॉ.खेमराज राघव, पवन बख्शी
समीक्षक- राघेवन्द्र सिंह सिकरवार पूर्व प्रधानचार्य
अपने देश में विभिन्न जातियों, वंशों पर अनेकानेक पुस्तिका लिखी गई हैं इनमें से कुछ क्षत्रिय वंशों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री से परिपूर्ण भी हैं। क्षत्रियों में प्रमुख वंश बड़गूूजर, सिकरवार, सिकरवार, मढाड़ पर कई पुस्तकें पूर्व में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल में प्रकाशित  कुँवर अमित सिंह, डॉ.खेमराज राघव, पवन बख्शी द्वारा लिखितबड़गूजर-सिकरवार-मढाड़ पुस्तक उन समस्त पुस्तकों में ऐतिहासिक दृष्टिकोण  बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें बड़गूजर क्षत्रियों के पूर्वज भगवान राम के पुत्र लव के वंशज लवपुर या लवकोट(लाहौर)के अन्तिम राजा कनकसेन का उल्लेख है जो लवकोट से वर्तमान गुजरात के बड़नगर में बस गए और वल्लभी साम्राज्य की स्थापना की।  इनके वंश की  एक शाखा मेवाड़ तथा दूसरी शाखा ढूंढाड़ प्रदेश में बस गईं, जो क्रमशःगुहिलोतऔरबड़गूजरकहलाए। भारत का इतिहास इन सभी के देश, धर्म,संस्कृति की रक्षा हेतु संघर्ष, उत्सर्ग, वीरता, शौर्यगाथाओं से भरा हुआ है। का इतिहास केवल इस जाति का इतिहास नहीं है, वरन् इस देश की राजनीति, इस देश की संस्कृति तथा इस देश की विशिष्टताओं का इतिहास है। बड़गूजर क्षत्रिय बहुत श्रेष्ठ शासक-प्रशासक के साथ-साथ दुर्ग,गढ़ी, भवन, मन्दिर,मठ,तालाब निर्माता भी थे। उनके बनाए हुए गढ़ और मन्दिर पूरे ढूंढाड़, सिकरवार और पश्चिम उत्तर प्रदेश में जगह-जगह पर मिलते हैं। बड़गूजर को स्थापत्य कला की परम्परा अपने महान वंशजों से विरासत में मिली है। वल्लभी  साम्राज्य अपनी अनूठी स्थापत्य और कला के लिए विख्यात था। इन बड़गूजरों ने आगरा के निकट स्थित वर्तमान फतेहपुर सीकरी में सन् 815 में अपना राज्य स्थापित किया था,जो राणा संग्राम के नेतृत्व राजपूतों के मुगल आक्रान्ता बाबर के साथ सन् 1527में खानवा के युद्ध में पराजित होने के साथ खत्म हो गया,जोसिकरवारकहलाए,जो खानवा युद्ध के पश्चात् .प्र.,उत्तर प्रदेश, बिहार के कई जिलों में बस गए हैं। इनमें गाजीपुर जिले का गहमर गाँव सबसे बड़ा है।बड़गूजरों की तीसरी  शाखा हरियाणा के नरदक क्षेत्र में  बस गई,जोमढाड़कहलाते हैं,जो इस समय करनाल जिले के घरौंदा,असंध और बल्ला तहसील ,कैथल जिले की कैथल, कालायत,सीवन तहसील,जींद जिले और सफीदों तहसील में हैं।
क्षत्रियों

                यद्यपि इस पुस्तक लेखकों  में से कोई भी पेशेवर इतिहासकार नहीं है, तथापि इन्होंने इतिहास लेखन के सभी मानदण्डों को यथासम्भव अपनाते हुए इसे लिखा है। यह सब देखते-परखते हुए ही भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व निदेशक डॉ.धर्मवीर शर्मा ने इस पुस्तक के बारे में लिखा है,‘‘ यह प्रमाणित दस्तावेज मध्यकाल के राजपूत इतिहास पर एक शास्त्र है। इनके अलावा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ.मानेवन्द्र सिंह पुण्डीर ने भी इस पुस्तक की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए लिखा है,‘ यह पुस्तक बड़गूजर राजपूतों का वर्तमान जनसांख्यिकीय स्थिति के साथ एक व्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीके से अध्ययन करने का एक अग्रणी प्रयास है जो निश्चित रूप से राजपूतों के इतिहास की कुछ रिक्तियों को भरेगी, और आगे के शोधों के मार्गदर्शन के लिए एक प्रकाश स्तम्भ सिद्ध होगी।इस पुस्तक के माध्यम से  बड़गूजर-सिकरवार,मढाड़ राजपूतों की भारतीय इतिहास में अभिनीत अहम भूमिका ज्ञात होती है। इस पुस्तक में इस वंश का आदि से लेकर आद्य इतिहास समाहित करने का अनूठा प्रयास किया गया है। यदि यह कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी कि यह  पुस्तक  केवल बड़गूजरों का सम्पूर्ण  इतिहास है,वरन इसमें उसके विभिन्न पक्षों का भी विस्तार से उल्लेख भी है। इसमें बड़गूजर, सिकरवार, मढाड़ के  देश के विभिन्न प्रदेशों और जिलों में बसावट का भी वर्णन हैं। निश्चय ही  इससे सजातीय बन्धुओं का एक-दूसरे के विषय में जानने-समझने में सुगमता होगी। यह पुस्तक चार खण्डों यथा- प्रथम में क्षत्रिय बड़गूजरः एक सिंहावलोकन,  उत्पत्ति और आद्य-इतिहास, बड़गूजर वंशावली,  द्वितीय में बड़गूजर इतिहास-दौसा, राजौरगढ़, सीकरगढ़, कामा, देवती, माचाड़ी, कोलासार, तीतरवाड़ा और कांकवाड़ी, घासेरा, कलायत,,चौंडेरा, अनूपशहर, मझौला, लेसामढ़-सिहोंडा, सरसैनी,तृतीय- क्षेत्रावार बसावट, गद्दियाँ और गाँव,1. राजस्थान के बड़गूजर,2. हरियाणा के बड़गूजर, 3.उत्तर प्रदेश के बड़गूजर, 4.मध्य प्रदेश के बड़गूजर, 5. मध्य प्रदेश के सिकरवार, 6. उत्तर प्रदेश के सिकरवार, 7. बिहार के सिकरवार 8.राजस्थान के सिकरवार 9.हरियाणा के मढाड़ 10. बिहार के लौतमिया, 11. मुस्लिम बड़गूजर, 12 बड़गूजर राजपूतों से पृथक जातियों, चतुर्थ-सांस्कृतिक वैभव-1.बड़गूजर पहचान चिह्न, 2.रीति-रिवाज और परम्पराएँ, 3.वेश-भूषा और खान-पान 4.स्थापत्य और कला, 5 बड़गूजरों का आर्थिक आधार 6. वंशावली-लेखनः एक राजपूत परम्परा। साथ ही परिशिष्ट-बड़गूजरों की उत्पत्ति का विवाद
मूल्य-499 रुपए, पृष्ठ - 320 प्रकाशक-   ब्लूस्मबरिनई दिल्ली, लखनऊ, न्यूयार्क, सिडनी
मिलने का पता मॉर्डन बुक डिपो, सदर बाजार,  आगरा - 282001

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