इस राजनीति से कैसी उम्मीद ?
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
हाल ही में मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में काबीना मंत्री
रहे बाबू सिंह कुशवाहा और अवधपाल सिंह यादव भ्रष्टाचार के आरोपों में एक लम्बे अर्से
से जेल में रहने के बाद जमानत पर रिहा हुए हैं। उनके जेल से बाहर आने पर उनके समर्थकों विशेष रूप से बिरादरी वालों द्वारा
गगनभेदी नारों के साथ फूल मालाओं से लाद कर जिस जोश-खरोश से बड़ी संख्या में उपस्थित होकर कई
जगहों पर स्वागत किया गया, निश्चय ही इससे भविष्य में देश में साफ-सुथरी राजनीति की उम्मीद कर रहे लोगों को जरूर गहरी निराशा हुई
होगी। लेकिन इससे उन लोगों को क्या फर्क पड़ता है? जो ऐसे नेताओं को अपनी जाति का 'नायक'
मानते हैं या फिर उनसे कुछ न कुछ फायदा उठाते आये हैं और आगे भी उठाना चाहते हैं। इनमें
से ज्यादातर को यही लगता है कि इन दोनों मंत्रियों ने कभी कोई गलती नहीं की है। अगर
कुछ गड़बड़ी की है तो उनके विरोधियों ने। जिन्होंने इन बेचारों पर भ्रष्टाचार के झूठे
आरोप लगा दिये, जिन्हें यहाँ की न्यायिक व्यवस्था ने भी सच मान लिया।
अपने समर्थकों की इस धारणा को और पुष्ट करने के लिए ये दोनों मंत्री भी जेल
से बाहर आते ही हुँकार भर रहे हैं कि अब अपने खिलाफ साजिश करने वालों को किसी हाल में
छोड़ेंगे नहीं। उनके इस यकीन का सुबूत उनके पूर्ववर्ती बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू
यादव, तमिलनाडु की वर्तमान मुख्यमंत्री जे. जयललिता हैं जो इनसे भी बड़े भ्रष्टाचार
के बाद डंके की चोट पर स्वयं और अपने परिजनों को ही नहीं, निष्ठावानों को भी चुनावी
जीत दिला कर कानून के शासन को ठेंगा दिखा चुके हैं।
कुछ समय पहले समाजवादी
पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि अखिलेश यादव के मंत्रिमण्डल के कुछ मंत्री
तो उनकी नसीहत मानकर सुधार गए हैं, पर कुछ अब भी पैसा बनाने में लगे हैं। अब सवाल यह है कि जब मुलायम सिंह यादव कुछ मंत्रियों को भ्रष्टाचार में लिप्त देख रहे
हैं, तो उन्होंने अपने बेटे से कह कर अब तक उन्हें दण्डित क्यों नहीं कराया? क्या जनता
उन्हें धन लूटने का जिताया था? वैसे अगर मुलायम सिंह ने स्वयं किसी को धमकाया और दण्डित
कराया है, तो आई.पी.एस.अधिकारी अमिताभ ठाकुर को।
जो लाजिमी था।
वह खामाखाँ उनकी समाजवादी व्यवस्था को चुनौती देते हुए अखिलेश यादव के खनन मंत्री गायत्री
प्रजापति के खिलाफ भ्रष्टाचार के सुबूत जुटाकर लोकायुत से सजा दिलाने और सभी सियासी
दलों के प्यारे-दुलारे अरब-खरबपति इंजीनियर यादव सिंह को जेल पहुँचाने के लिए उच्च
न्यायालय के दरवाजे खटखटने की जुर्रत जो कर
रहे थे।
इधर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी पाँच साल का अपने कार्यकाल पूरा होने से पहले सारे
वादे पूरा कर देने का दावा कर रहे हैं, किन्तु अपनी पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री मायावती
सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर कर सजा दिलाने का उन्होंने जो भरोसा दिलाया था। लगता
उसे वह भूल गए है? यही कारण है कि न्यायाधीश
एन.के.मेहरोत्रा के लोकायुक्त रहते हुए भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों की हुई जाँचों
पर वंछित कार्रवाई करने का उन्हें ध्यान तक नहीं है।
उधर भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में सत्ता में तो
आना चाहती है लेकिन वह केन्द्र सरकार के जरिए कुछ कर दिखाकर या फिर इस राज्य में अपने
प्रतिस्पर्द्धी राजनीतिक सपा और बसपा हमलावर बनकर नहीं। वह इन दोनों सियासी दलों की
सरकारों के गलत कार्यों को उजागर करने से बच रही है। उसे डर है कि उसके इस कदम से कहीं
इन जातिवादी दलों से जुड़ी जातियों के मतदाता उससे कहीं दूर न हो जाएँ। वह भी और सियासी
दलों की तरह गठजोड़ के जरिए चुनावी वैतरणी पार
करने की जुगत लगा रही है। उसकी इस कमजोरी से जातिवादी-भ्रष्टचारी,अवसरवादी राजनीति
से मुक्ति पाने की चाहत रखने वालों में नाउम्मीद बढ़ रही है।
हाल में ब्लॉक
प्रमुख के चुनाव और इसके बाद जीत के नशे में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों ने जिस
तरह की घटनाओं को अंजाम दिया, वह भी सबके सामने
है। इसके कारण मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कुछ कदम उठाए हैं, फिर भी प्रदेश के विभिन्न
हिस्सों की घटनाएँ उनकी नजरों नहीं आ सकीं। कैराना के ब्लॉक प्रमुख नफीसा को पार्टी
से निकला दिया गया,वहीं एक पत्रकार को बन्धक बनाने के आरोप में कैराना के सपा विधायक
को भी पार्टी से निलम्बित कर दिया गया तथा उसके खिलाफ केस दर्ज किया गया है। नफीसा
के पति पर भी हर्ष फायरिंग में मारे गए किशोर की मौत का मामला दर्ज करा दिया गया है।
मुख्यमंत्री ने किशोर परिजनों को पाँच लाख रुपए का मुआवजा देकर उनके दुःख को कम करने
की कोशिश की है। लेकिन धरातल पर पार्टी को लेकर जो छवि बन रही है,वह उत्सावर्द्धक नहीं
है।ऐसे में मुख्यमंत्री को अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को यह समझाना चाहिए कि जोर-जबर्दस्ती
से चुनाव जीतना और शक्ति का खुला प्रदर्शन करना न तो लोकतंत्र के हित में हैं और न
ही जनहित में है। इसका पार्टी की छवि पर भी
बुरा असर पड़ता है।
उत्तर प्रदेश में दलितों और पिछड़ों की घोर जातिवादी राजनीति
के कारण काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी भी बसपा तथा सपा के नक्द्गोकदम पर चलने की असफल कोशिश कर रही हैं।
यह इधर अरबों रुपए के घोटाले में कोई दर्जन मंत्रियों के जेल जाने की बाद भी बसपा प्रमुख
मायावती को इसका कतई अफसोस नहीं और वे खुद सबसे योग्य मुख्यमंत्री साबित करती आयी हैं
,बल्कि पूरी शानोशौकत की जिन्दगी बसर करने वाली मायावती डंके चोट पर भाजपा और काँग्रेस
को ही दलितों की दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराते नहीं थकतीं। उधर दुर्भाग्य की
बात की बात यह बसपा शासन से परेशान से होकर सपा का पूर्ण बहुमत देने वाली जनता सपा
के सिपाहियों की लूट-खसोट से दुःखी होकर विकल्पहीनता में फिर उसी को अपना त्राणदाता
समझने की भूल करने जा रही है।
अपने देश में जातिवादी और
मजहबी अन्ध निष्ठा के कारण आज ग्राम
प्रधानी से लेकर सर्वोच्च पदों तक ऐसे लोग चुनकर पहुँचते आये हैं जिनकी सही जगह जेल
में है, किन्तु इनमें कुछ से विधायक और सांसद बनाकर कानून बना रहे हैं तो ,कुछ मंत्री
बनकर बड़े-बड़े विद्वान आई.ए.एस.और आई.पी.एस.को अपने इशारों पर नचा रहे हैं। लोग ऐसे ही व्यवस्था से बहुत त्रस्त हैं और इसके सही ढंग न चल पाने का दुखड़ा
भी रोते रहते हैं। लेकिन वे इस जातिवादी, मजहबी, अवसरवादी और भ्रष्टाचारी राजनीति से
छुटकारा पाने के लिए कुछ ठोस उपाय करने को आगे नहीं आते।
उत्तर प्रदेश की स्थिति भी कम बदतर नहीं है। जातिवाद, मजहब
उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी मुख्य भूमिका निभाते हैं। गाहे-बगाहे इस तरह के बयान
सुनने-पढ़ने को मिलते रहते हैं। साम्प्रदायिकता का माहौल बनाने की कोशिश की जाती है
और जाति विशेष को लोगों को भी एकजुट करने का प्रयास किया जाता है,ताकि थोक में वोट
मिल सकें और चुनाव जीता जा सके। आने वाले चुनाव में यह और देखने को मिलेगा।
सम्पर्क -डॉ.बचन सिंह
63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054
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