कैराना पर खामोश क्यों?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

इस डरावनी
खबर के बाद भी जहाँ सूबे की सपा सरकार और उसी
जैसी सियासी राह पर चलने वाले दूसरे कथित सेक्यूलर सियासी दलों के साथ-साथ वे खबरिया
माध्यमों से जुड़े संस्थानों भी इस पर खोमाश बने हुए हैं या फिर इस खबर को झूठी साबित
करने को ऐड़ी-चोटी का पसीना बहा रहे हैं जो दादरी के इकलाख काण्ड, हैदराबाद के रोहित
वेमुला की आत्महत्या के मामले या जे.एन.यू.के कन्हैया कुमार की हिमायत में जमीन-असमान
एक किये हुए थे। इस मुद्दे पर न कोई साहित्यकार और न फिल्मी अभिनेता न पुरस्कार वापस
कर रहे हैं और न पदमश्री लौट रहे हैं। शायद उनकी निगाह में 'कैराना' जो कुछ हुआ उसमें
उन्हें भी कहीं असहिष्णुता दिखायी नहीं दे रही है,क्यों कि इस समय सूबे में उन्हीं
के ख्यालत वाली सियासी पार्टी सपा की सरकार जो है। वैसे भी देसी-विदेशी हमलावरों ने
हिन्दुओं की जान और उनकी औरतों की अस्मत की कब-कब परवाह की है?
या फिर केन्द्रीय गुप्तचर एजेन्सी 'आई.बी.'के अधिकारी जाँच को कैराना न पहुँचे होते, तो उस हालत में उत्तर प्रदेश के सपा सरकार और कथित सेक्यूलर सियासी पार्टियाँ भाजपा के सांसद हुकूम सिंह को अब तक कब का झूठा साबित कर चुकी होतीं। हालाँकि उनके द्वारा यह मुद्दा ऐसे समय पर उठाया है, जब सन् 2017 उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। वे दो साल से उस क्षेत्र के सांसद हैं और उससे वाले विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। उसके बाद भी पिछले चार साल से इन दहशतगर्दों की वजह से इस इलाके से बराबर हो रहे पलायन पर खामोश क्यों बने रहे? इस कारण अब यहाँ की हिन्दुओं की आबादी 30 प्रतिशत से घट कर 8फीसदी रह गयी है। उसके जवाब में वे अपनी सफाई भी दे रहे हैं कि उन्होंने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया था, किन्तु राज्य सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। वे इस मुद्दे को पार्टी के जरिये या स्वयं लोकसभा में भी उठा सकते थे। यदि उनके इस कहें को सच मान लें, तो यही समझा जाना चाहिए कि इन कथित जनप्रतिनिधियों की कोई हैसियत नहीं, जो पीड़ित / मजलूमों को इन्साफ दिया सकें या उनकी किसी तरह से जानमाल की हिफाजत कर सकें। वैसे हकीकत यही है कि कश्मीर घाटी में ही क्या बदला है ? आज भी वहाँ 'जे.के.लिबरेशन फ्रण्ट' जैसे अलगाववादी संगठन का नेता यासीन मलिक सरेआम पुलिस वालों की पिटाई करता है, पर भाजपा - पी.डी.पी.की साझा राज्य सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। यहाँ तक कि हन्दवाड़ा में अलगाववादियों द्वारा सुरक्षा बलों के जवानों पर एक युवती को छेड़ने का झूठा आरोप लगाते ही छप्पन इंच का सीना वालों की केन्द्र सरकार ने यहाँ से सेना के चार बंकर नष्ट कर दिये, जिन्हें हटाने की ये कट्टरपन्थी इस्लामी दहशतगर्दों सालों से रट लगाये हुए थे। क्या यही 'राष्ट्रवाद' है ? ऐसे में सिर्फ उ.प्र.की सपा सरकार पर तुष्टिकरण आरोप लगाना बेमानी है। वह तो पहले से इस मामले की चैम्पियन हैं।
पहले भी सपा सरकार
की इसी फितरत के चलते मुजफ्फरनगर में दंगे हुए, उसमें बड़ी संख्या में हिन्दू-मुसलमानों
की जानें गईं । हजारों की संख्या में मुसलमान और हिन्दू
बेघरबार हुए, जिनकी आज तक घर वापसी नहीं हो पायी है। ये सरकार उस बुरे वक्त में भी सैफई मेले में फिल्मी नर्तकियों के नृत्य
का लुत्फ उठा रही थी।
अब ऐसे में कुछ
लोग 'कैराना' की तुलना 'कश्मीर' से कर रहे हैं, तो ऐसा कर वे कुछ गलत नहीं कर रहे हैं,क्यों
कि इन दोनों ही मामलों में मकसद और उसे अंजाम देने के तौर तरीके एक जैसे हैं। केवल
जगह का फर्क है। नब्बे दशक में पाकिस्तान की शह पर इस्लामिक दहशतगर्दों ने सदियों से
कश्मीर घाटी में रह रहे कश्मीरी पण्डितों को बन्दूक और उनकी बहन-बेटियों की अस्मत लूटने
का डर दिखा और हकीकत में ऐसा कर उन्हें उनके ही घर से बेदखल कर दिया था। यह भी कोई
मामूली तादाद में नहीं। उस समय वहाँ डॉ.फारुक अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस और काँग्रेस
की मिलीजुली सरकार थी,जो कश्मीरियत(पंथ निरपेक्ष) का आलाप करते हुए अलगाववाद फैलाने
में लगे हुए है,पर कोई उन्हें आईना नहीं दिखा रहा है। ये कश्मीरी पण्डित दो दशक से
अधिक समय से जम्मू और दूसरी जगहों पर नारकीय जिन्दगी बसर कर रहे हैं।
अब आते हैं कैराना पर जहाँ बड़ी संख्या में लोग अपना घर छोड़ गये हैं उनके घर
और दुकानों पर 'यह बिकाऊ है'के बोर्ड लटके हुए हैं। इसके एक नहीं,कई कारण हैं। उदाहरण
के लिए अकबरपुर सुन्हेंटी गाँव उस वारदात पर जब एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करने
के बाद उसकी हत्या कर दी गयी। तब पुलिस ने उन बलात्कारी हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई
करने के बजाय उसके परिजनों को इसका अपराधी बना दिया। ऐसे ही शामली में एक युवती से
सामूहिक दुष्कर्म हुआ। उसका विरोध करने वाले जिले
के कई भाजपाइयों को तत्कालीन एस.पी.ने सड़क पर लिटा कर लाठियों से पिटवाया। कई व्यापारियों/व्यावसायियों
की चौथ न देने पर सरे आम हत्याएँ और तरह -तरह से उत्पीड़न पर पुलिस-प्रशासन लाचार बना
रहा है। क्या इसकी खबर राज्य सरकार को नहीं रही होगी ? अगर थी तो धिक्कार ऐसी सरकार और सियासत को, जो अपनी सत्ता के मोह में 'राजधर्म' को ही भुला दे। जो अपने ही लोगों से गद्दारी
पर उतर आए और देश की स्वतंत्रता, सम्प्रभुता के साथ ही उसकी एकता तथा अखण्डता को ही
दांव पर लगा दे।
अब कैराना की इस दर्दनाक हकीकत को छुपाने को सपा सरकार
भाजपा का झूठा बता रही है, वहीं पुलिस - प्रशासन अपनी खामियों पर पर्दा डालने को बेहतर रोजगार की
तलाश में पलायन साबित करने पर तुला है। सियासी पार्टियों से अपनी जान की हिफाजत न होते
देख सही बात कहने को न हिन्दू तैयार है और न मुसलमान ही। फिर सरकार में बैठे लोग ही
जब कैराना की हकीकत पर पर्दा डालने को सारे जतन कर रहे हैं, उस हालत में कैराना का
सच देश के लोगों के सामने आ पाएगा, इसकी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। लेकिन अब देश
के लोगों को ऐसी ओछी और विघटनकारी राजनीति करने वालों को सबक सिखाने को आगे आना चाहिए।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर ,आगरा-282003
व मो.नम्बर-9411684054
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