यह कैसी देशघाती राजनीति ?
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
'लश्कर की आत्मघाती महिला हमलावर इशरतजहा और उसके साथियों के
मुठभेड़ मामले में सर्वोच्च न्यायालय में दूसरा झूठा हलफनामा लगवाने के लिए पूर्व
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केन्द्र में सत्तारूढ़ 'संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन';संप्रगद्ध सरकार ने सी.बी.आई.से उन्हें
प्रताड़ित कराया था,ताकि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री
नरेन्द्र मोदी और उनके गृहमंत्री अमितशाह को बदनाम किया जा सके।'
यह
सनसनीखेज खुलासा किसी विपक्षी नेता का नहीं,
बल्कि गृह
मंत्रालय के पूर्व अवर सचिव आर.वी.एस.मणि ने किया है। हालाँकि
इनसे पहले पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के.नारायणन,खुफिया ब्यूरो ;आई.बी.द्ध के पूर्व निदेशक
राजेन्द्र कुमार तथा पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव जी.के.पिल्लई भी यह सब कह चुके हैं।
लेकिन इन सभी खुलासों से देश के लोगों के सामने वर्तमान राजनीति और उसे करने वाले
नेताओं के काले कारनामों को एक बार फिर सामने ला दिया, जिन्हें अपने सियासी फायदों और कुर्सी के लिए अपन मुल्क और उसके बाशिन्दों की हिफाजत की कतई
परवाह नहीं। जो अधिकारी अपनी जान पर खेल कर देश के दुश्मनों के खिलाफ गोपनीय
सूचनाएँ तथा सुबूत जुटाते हैं। फिर सभी तरह के जोखिम उठा कर
उन्हें सजा दिलाने के लिए हर सम्भव कोशिश करते हैं,ये
उन्हें भी परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। सत्ता के भूखे इन नेताओं को दहशतगर्दों
और मुल्क के दुश्मनों को बेकसूर और देश के हितैषियों को राष्ट्रद्रोही साबित करने
से भी कोई परहेज नहीं है।
अगर ऐसा न होता,तो क्या मुम्बई बम काण्ड के गुनाहगार याकूब मेनन ,संसद पर आतंकवादी हमले की साजिश करने वाले अफजल गुरु तथा कश्मीर
देश अलग करने खवाब देखने वाले 'जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रण्ट' के संस्थापक मकबूल बट्ट
के हिमायतियों की हिमायत में ये काँग्रेसी, वामपंन्थी, जदयू, राजद आदि के नेता ऐसे हा-हा कर मचाते ? इनके इस बेजा रवैये को देखकर लगता है जैसे आतंकवादियों और
अलगाववादियों के हिमायतियों के खिलाफ
कार्रवाई कर पुलिस ने भारी गुनाह कर दिया है?
जब इनसे
याकूब मेनन के लिए 'नमाज ए जनाज' पढ़ने ,'महिषासुर दिवस','बीफ पार्टी' करने वाले हैदराबाद के केन्द्रीय विश्वविद्यालय के 'अम्बेडकर छात्र यूनियन' के छात्र नेता रोहित वेमुला से लेकर जे.एन.यू. में अफजल गुरु तथा मकबूल बट्ट
की याद में 'सांस्कृतिक संध्या' का आयोजन करने तथा भारत विरोधी नारे लगाने वाले से उनकी हमदर्दी की वजह पूछी जाती
है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का राग छेड़ देते हैं। जैसे संविधान में प्रदत्त
अभिव्यक्ति स्वतंत्रता में देश के खिलाफ कुछ भी बोलने और करने के साथ-साथ उसकी
स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता को खण्डित करने की भी खुली छूट दी गयी हो।
उत्तर प्रदेश में दादरी
के पास के बिसहेड़ा गाँव में गाय का मांस खाने के कथित विवाद में अखलाक को मारे
जाने पर बड़ी संख्या में सेक्यूलर नेताओं और साहित्यकारों ने अपने मुल्क में असहिष्णुता
बढ़ने को लेकर देश और दुनियाभर में जमकर ढिंढोरा पीटा और इनमें से कुछ ने अपना
विरोध जताने को पदक भी लौटाये, लेकिन इनमें से किसी ने
भी पहले कर्नाटक में गौ सेवक दो हिन्दू युवकों, फिर बरेली में एक दरोगा तथा हाल में आगरा में गाय बचाने वाले हिन्दू दलित की
समुदाय की विशेष युवकों द्वारा सारेआम गोली मार कर हत्या किये जाने पर कुछ गलत
दिखायी नहीं दिया। उसके घर वालों के आँसू पोंछने न राहुल गाँधी पहुँचे,न अरविन्द केजरीवाल। यहाँ तक
दलितों की एकमात्र मसीहा होने का दावा करने वाली मायावती ही।
अब सत्ता में बैठे और
उसे चलाने वालों की साजिशें भी जान लें, जिन्हें रस्सी को साँप और साँप को रस्सी साबित करने
में भारी महारत हासिल हैं। इसी एक नमूना है गृह मंत्रालय के अवर सचिव आर.वी.एस मणि
की आपबीती, जो एक टी.वी.चैनल पर बतायी। उनके
अनुसार इशरतजहाँ की सूचना देने वाले वाले आइ.बी.के विशेष निदेशक और
अन्य अधिकारियों को फँसाने के लिए सन् 2013 में सी.बी.आई.ने उनसे पूछताछ की। वह अपने राजनीतिक आकाओं के इशारों पर इशरतजहाँ मामले में झूठे सुबूत बना रही थी। उन्हें इस मामले की जाँच कर रहे सी.बी.आई.के वरिष्ठ अधिकारी सतीश वर्मा ने आई.बी.
अधिकारियों के खिलाफ बयान ने देने पर बुरी तरह प्रताड़ित करते हुए जलती हुई सिगरेट
से दागा गया। इससे परेशान होकर उन्होंने स्वयं सेवानिवृत्ति लेने के लिए आवेदन भी
कर दिया था। राजेन्द्र कुमार के अनुसार इशरत मामले में उन उच्च स्तर दबाव बनाया
गया था। दबाव में न आने पर उनके खिलाफ आरोप पत्र भी तैयार कर लिया था। कुछ इसी तरह
एम.के.नारायणन हेडली की गवाही के पश्चात एक लेख में कहा कि खुफिया एजेंसियों का
अच्छी तरह पता था कि इशरतजहाँ लश्कर की सदस्य थी और
दुबई में रची गई उस साजिश में भागीदार थी जिसे
अंजाम देने को ही वह गुजरात आयी थी। लेकिन वह अपने तीन साथियों के साथ 15जून, 2004को अहमदाबाद में मारी गयी। उनमें दो पाकिस्तानी और एक
भारतीय था।
ऐसे ही पूर्व गृहसचिव
जी.के.पिल्लई ने गत 1 मार्च को खुलासा किया कि
उनकी अनदेखी करते हुए दूसरा हलफनामा खुद गृहमंत्री पी.चिदम्बरम ने लिखवाया
था।उन्होंने खुफिया ब्यूरों के कनिष्ठ अधिकारी का बुलया और हलफनामे का पूरी तरह
बदल दिया। चूँकि वह खुद हलफनामा लिखवा रहे थे,इसलिए कोई दूसरा अधिकारी कुछ कहने की स्थिति में नहीं था।
दरअसल, गृहमंत्रालय के तत्कालीन अवर गृहसचिव श्री मणि ने दो महीने से भी कम अवधि में
गुजरात उच्च न्यायालय में दो हलफनामे दाखिल किये। उन्होंने 6 अगस्त, 2009 को दाखिल हलफनामे में
जहाँ इशरतजहाँ और तीन दूसरों को
आतंकवादी बताया था, वहीं 30 सितम्बर, 2009 दाखिल हलफनामे में इसके
साक्ष्य नहीं होने की बात कही गयी थी। मणि ने कहा कि वे दूसरे हलफनामे से सहमत
नहीं थे। उन्हें राजनीतिक दबाव में इस हस्ताक्षर करने को मजबूर किया गया था। इसका
कारण यह था कि तत्कालीन काँग्रेस सरकार अल्पसंख्यक
समुदाय के एक मुश्त वोट पाने और गुजरात की भाजपा सरकार को हर हाल में बदनाम करना
चाहती थी। उसके नेता अब तक इशरत को बेकसूर बताते आए हैं,किन्तु 26 नवम्बर, 2008 के मुम्बई हमल में डेविड हेडली के बयान के बाद उसकी जुबान
थोड़ी बन्द हुई है, जिसने इशरतजहाँ आत्मघाती हमलावर तथा उसके साथियों आतंकवादी होने की बात
कही है जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई दूसरे महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की जान लेने के साथ दूसरे स्थानों को
तबाह करने गुजरात पहुँचे थे। उक्त तथ्यों के आलोक में यही लगता है कि
तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिद्म्बरम ने अपने राजनीतिक विरोधियों से बदला
लेने को आतंकवादियों को बेकसूर साबित करने का आपराधिक शड्यंत्र रचा था, निश्चय ही उनका यह कृत्य राष्ट्रद्रोह की श्रेणी का है। अब
देखना यह है कि देश के लोग चिद्म्बरम सरीखे नेताओं को देशघाती राजनीति करने की
कौन-सजा तजवीज करते हैं?
सम्पर्क -डॉ.बचन सिंह 63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054
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