खतरनाक है सियासी पार्टियों का यह रवैया
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
एक लम्बे समय से विभिन्न
राजनीति दलों द्वारा अपने सियासी फायदों की खातिर देश में बढ़ रहे मजहबी और
जातिवादी अलगाववाद की न केवल अनदेखी की जा रही है, बल्कि उसे परोक्ष रूप से लगातार बढ़ावा भी दिया जा रहा है। पैगम्बर मोहम्मद
साहब पर हिन्दू महासभा के एक अनजाने से कथित नेता कमलेश तिवारी की विवादस्पद टिप्पणी
को लेकर मालदा के कालियाचक, पूर्णिया के समेत देश के
विभिन्न नगरों में हजारों-लाखों की संख्या में एकजुट होकर उग्र प्रदर्शन, पुलिस थानों, सरकारी-गैर सरकारी वाहनों, हिन्दुओं की सम्पतियों पर पथरावों तथा जलाने की वारदातें।
पाकिस्तान और आई.एस.के झण्डे फहराने और उनके समर्थन में नारेबाजी, उसे कमलेश तिवारी को फाँसी सजा देने की माँग, गोलीबारी किया जाना। उस पर ज्यादातर राजनीतिक दलों की
हैरान-परेशान करने वाली खामोशी या फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का
मालदा की हिंसक वारदात को उसे गैर साम्प्रदायिक बताना, या फिर पूर्णिया के मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार का चुप रहना, क्या दश्र्ााता है ? इससे भी ज्यादा ताजुब्ब देश के जनसंचार माध्यमों के एक वर्ग
के नये रवैये पर होता है जो राष्ट्रवादियों,
हिन्दुओं
या सवर्णों मामूली-गलती या उनकी देश हित
में कहीं बात को तिल का ताड़ बना कर मुल्क और अकलियतों को गम्भीर खतरा बताकर
छापता-दिखता है, वह भी ऐसी वारदातों पर खामोशी
बना हुआ है। पर ये माध्यम हाल में अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण हेतु तराश
जाने को पत्थर आने या सुब्रह्मण्यम स्वामी
के इस मन्दिर का दिसम्बर, 2016 तक शुरू किये जाने पर
इस खबर को पहले पन्ने पर छापने के साथ-साथ अपने-अपने चैनलों पर पूरे दिन दिखाते और
उस बहस कराते रहे।
दादरी के बिसाहड़ा में
गौमांस खाने पर अखलाक की हत्या पर पूरे देश पंथनिरपेक्षता के झण्डाबरदार सियासी
नेताओं, साहित्यकारों, लेखकों, शायरों, कवियों,पत्रकारों, फिल्मकारों, अभिनेताओं आदि ने असहिष्णुता का भारी रुदन मचाते हुए पुरस्कार लौटाने लगे, तो कुछ यू.एन.ओ. को चिट्ठी लिखने, तो कुछ देश छोड़ने की बात कहने लगे। तब ये सभी इसके केन्द्र
सरकार को दोषी ठहराते हुए उससे इस्तीफे की
माँग की गयी। लेकिन असहिष्णुता का यह मिथ्या रुदन बिहार के विधानसभा चुनाव होते ही
अचानक थम गया।
पिछले के वर्च्चों से देश भर में हिन्दुओं
के पर्व-त्योहारों के आयोजनों में समुदाय विशेष सुनियोजित योजना के तहत
विघ्न-बाधाएँ डालता आ रहा है,पर पुलिस-प्रशासन ही
नहीं,जनसंचार माध्यम भी उनकी अनदेखी
करते हैं। इसके विपरीत ऐसी घटनाओं पर हिन्दुओं की मामूली प्रतिक्रियाओं को असहिष्णुता
सिद्ध करने की होड़ लग जाती है।
देश में कथित अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के साथ ही
समाजवाद, सामाजिक न्याय नाम पर हर क्षेत्र
आरक्षण में आरक्षण बढ़ाते हुए लोगों को जातियों-उपजातियों में बाँट कर आपस में
लड़ाया जा रहा है, जबकि इसका फायदा चन्द जातियों
में भी चन्द परिवार ही उठा रहे हैं। कथित सिद्धान्तों के नाम पर सवर्णों को खुले
कोसा और गारिया जाता है। सवर्णों पर दलित-पिछढ़ी जातियों के लोग कितना ही जुल्म
करें,उनकी हिमायत में कोई नहीं आता।
इन कथित समाजवादी और सामाजिक न्याय वालों के सत्ता में आने पर खुलेआम कानून को ठेंगा दिखाते हुए रिश्वतखोरी
वाले उच्च महत्त्वपूर्ण पुलिस-प्रशासनिक सरकारी पदों एक जाति विशेष के अधिकारियों को बैठाने के साथ जाति और क्षेत्र के
अभ्यर्थियों की पुलिस और दूसरी सरकारी सेवाओं में भर्ती की जाती है। यहाँ तक इनके
अनुच्चांगिक संगठनों द्वारा हिन्दू धर्म और देवी-देवताओं के विषय में अपशब्द और
अनेक अनर्गल बातें लिखीं है, पर सत्ता के भूखे लोगों
को न इन घोर जातिवादियों की ये बेजा हरकतें दिखायी देती हैं और न मजहब के नाम पर
अपने मुल्क के साथ गद्दारी की हरकतें। अगर कोई उसका प्रतिवाद करें, तो उसका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आड़ में बचाव किया जाता
है। को दोषी ठहराया।
वस्तुतः किसी भी
राजनीतिक दल के पास सुशासन के माध्यम से समाज के कल्याण, आर्थिक उन्नयन के साथ-साथ सुदृढ़ सुरक्षा को लेकर न कोई दृष्टि
है और न सुस्पष्ट नीतियाँ हीं। ऐसे में अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण और जातिवाद के
माध्यम से सत्ता पाना चाहते हैं। ऐसे कथित नेता देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता से लगातार
खिलवाड़ उसे लगातार कमजोर करने में लगे हैं।
सम्पर्क -डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054
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