गद्‌दारों के हिमायती

डॉ.बचनसिंह सिकरवार
हाल मे दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय  के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र इकाई के सदस्य एवं छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और दूसरे छात्रों की पर गिरफ्तारी पर वामपंथी दलों ,काँग्रेस समेत दूसरे दलों के नेताओं समेत देश के 40 केन्द्रीय विश्व्वविद्यालयों विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के जाधवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों और उनके शिक्षकों द्वारा बड़ी संख्या में उसका समर्थन करते हुए जैसा उग्र विरोध जताया और रुदन मचाया हुआ है, निश्चय है कि उससे भारत के दुश्मन देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठनों को बेहद खुशी हुई होगी, जो रात-दिन इसके टुकड़े-टुकड़े करने के ख्याली पुलाव पकाते रहते है। इसके लिए उन्हें बड़ी मुश्किल से तमाम तरह के लालच और मजहब के वास्ता देने के बाद तभी कहीं जाकर चन्द नौजवानों का साथ मिल  पाता हैं। यहाँ तो बगैर कुछ करे- धरे, उनका ही काम कुछ लोग वैसे ही करने पर उतारू हैं। इनके इस खतरनाक रवैये से अपने देश के लोग बहुत ज्यादा हैरान और परेशान हैं। उन्हें अब तक समझ नहीं आ रहा है कि आखिर कन्हैया कुमार और उनके संगी-साथी  बेकसूर कैसे हैं जिन्होंने इरादतन संसद भवन पर हमले के दोषी और अलगाववादी संगठन' जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रण्ट' के संस्थापक मकबूल बट्‌ट के याद में 9 फरवरी को न केवल 'सांस्कृतिक संध्या' के आयोजन कर उनकी तारीफ में कविताओं, गजल, नारों के जरिये कशीदे काढ़े, बल्कि बाकायदा 'कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी, भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी-जंग रहेगी','हमें क्या चाहिए आजादी','हक हमारा आजादी','कहकर लेंगे आजादी','अफजल गुरु हम शर्मिंदा हैं,तुम्हारे कातिल जिन्दा हैं,' 'पाकिस्तान जिंदाबाद', 'कश्मीर जनता क्या चाहे आजादी - आजादी', 'मणिपुर माँगे आजादी', बंगाल माँगे आजादी, 'भारत तेरे टुकड़े होंगे-टुकडे होंगे' जैसे तमाम राष्ट्र विरोधी नारे भी लगाये। यहाँ तक कि इस कार्यक्रम की पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी सरगना हाफिज सईद ने भी तारीफ की। फिर भी हमारे कथित सेक्यूलर नेताओं को इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आया। इसके बाद गत 16 फरवरी जादवपुर विश्वविद्यालय में भी छात्रों ने 'अफजल बोले आजादी','गिलानी बोले आजादी'समेत इशरत जहाँ तक के समर्थन में नारों के साथ-साथ जब कश्मीर ने माँगी आजादी','मणिपुर भी बोली आजादी','जब तुम न दोगो आजादी,हम छीन के लेंगे आजादी' को लेकर नारे लगाये। इस मामले में जनसंचार माध्यम विशेष रूप से कुछ टी.वी.चैनलों की भूमिका भी समझ के बाहर रही,जो इन छात्रों के दोशों पर पर्दा डालने में जुटे रहे।
अब सेक्यूलरों से सवाल यह है कि अगर यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, तो फिर 'राष्ट्रद्रोह' किसे कहें? सच्चाई यह है कि कोई मूढ़ से मूढ़ व्यक्ति भी जानता है कि उनका यह कृत्य  सीधे-सीधे देश की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता ही नहीं, उसकी सार्वभौमिक सम्प्रमुता पर भी हमला है। देशद्रोहियों के ये हिमायती शायद यह समझने की भूल कर रहे हैं कि देश की जनता भी उनकी इस करतूत  को उनकी मजहबी और जातिवादी राजनीति के चलते अनदेखी कर माफ कर देगी। तभी तो राजद के नेता लालू प्रसाद यादव ने कहा कि 'राष्ट्र विरोध से मुकाबला हमारी रगों में है, लेकिन निर्दोश छात्रों का दमन फाँसीवाद का चेहरा हो सकता है,हमारे हिन्दुस्तानी राष्ट्रवाद का नहीं।' सत्ता तक पहुँचने के लिए मुसलमान-यादव(एमवाई) के गठजोड़ की राजनीति करते आ रहे लालू प्रसाद यादव के कथित 'सेक्यूलरवाद' के बारे में सभी को  पता है, उन्हें भ्रष्टाचार में भी राष्ट्रवाद दिखायी देता हो,तो उसमें किसी को आश्चर्र्य नहीं होना चाहिए।
 ऐसे में भला कभी 'भारत माता को डायन'कहने वाले उ.प्र.के शहरी विकास मंत्री आजम खाँ कैसे चुप रहते? उन्होंने फरमाया कि जे.एन.यू.में कोई राष्ट्रद्रोही नहीं हो सकता। जे.एन.यू.के छात्र कोई ऐसी बात कह नहीं सकते,जो राष्ट्र के खिलाफ हो। भाजपा देश में केसरिया शिक्षा लागू करना चाहती है। इसलिए भाजपा ने अपने एजेण्ट घुसाकर देश विरोधी नारे लगवाए। जो बात बीजेपी कह रही है वह सच नहीं है,उसकी जाँच होनी चाहिए।' हमें भय है कि कहीं इसके लिए वे यू.एन.ओ.ने खत लिखने बैठ जाएँ? सेक्यूलरवाद के नये अलम्बरदार अरविन्द केजरीवाल को हर हाल में भाजपा का विरोध करना,सो वे उसके विरोध के लिए हर समय तैयार है। तभी तो उन्होंने कहा कि कोई भी राष्ट्र विरोधी ताकतों का समर्थन नहीं करता, लेकिन इस बहाने निर्दोष छात्रों को निशान बनाना मोदी सरकार को महँगा पड़ेगा।' हकीकत यह है कि देशद्रोहियों की  पैरोकारी केजरीवाल को ही नहीं,पूरे देश को भी बहुत महँगी पड़ेगी।
दिल्ली में कोई 2000 छात्रों और शिक्षकों के प्रदर्शन में राहुल गाँधी ने मोदी सरकार को हिटलर  बताते हुए  विरोध दर्ज करने की अधिकार साबित करने में जुटे हैं। उनकी कहना था कि वह लोग ज्यादा राष्ट्र विरोधी हैं, जो जे.एन.यू. में छात्रों की आवाज दबा रहे हैं। क्या राहुल गाँधी किसी देश का नाम बतायेंगे,जहाँ देश को बर्बाद करने की आजादी हो।
देश के लोगों का  काँग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी, माकपा नेता सीताराम येचुरी, भाकपा सचिव डी.राजा,जदयू प्रवक्ता के.सी.त्यागी आदि से एक ही सवाल है कि ठीक है कन्हैया कुमार निर्दोष है? तो उसने देश के दुश्मन अफजल गुरु और मकबूल बट्‌ट के याद में कार्यक्रम आयोजन ही क्यों किया? उसकी इन दोनों से हमदर्दी की वजह क्या है? सेक्यूलर नेताओं को यह कैसे मालूम है कि ये आयोजन अखिल भारतीय विशर्थी परिषद्‌ ने ही किया है? इनमें से किसी ने अब तक  कश्मीर में हर शुक्रवार को अलगाववादियों द्वारा नमाज के बाद भारत विरोधी नारों के साथ पाकिस्तानी और आतंकवादी संगठन 'इस्लामिक स्टेट'(आई.एस.)के झण्डे फहराने का विरोध कभी क्यों नहीं किया? क्या वे इसे उनकी अभिव्यक्ति स्वतंत्रता मानते हैं ? उन्होंने कश्मीर घाटी से बन्दूक के जोर विस्थापित लाखों कश्मीरी पण्डितों के हक कब-कब आवाज उठायी है? रोहित वेमुला का मुम्बई बम काण्ड में फाँसी सजा पाये याकूब मेनन से कौन-सा रिच्च्ता था? क्या राहुल गाँधी समेत कथित सेक्यूलर दलों के नेता याकूब मेनन को फाँसी दिये जाने के खिलाफ हैं? क्या किसी के दलित होने के कारण उसकी राश्ट्र विरोधी गतिविधियाँ क्षम्य हैं ?गत 16 फरवरी को केरल के कन्नूर जिले के पप्पीनीसेरी में रा.स्वं.संघ के एक स्वयंसेवक सुजीत की वामपंथियों द्वारा हत्या और  इसके अगले दिन एक भाजपा कार्यकर्ता और संघ के सेवा केन्द्र पर बमों से हमला किये जाने पर कथित सेक्यूलर चुप्प क्यों रहे?
 पिछले एक साल में उत्तर प्रदेष में सोशल मीडिया पर एक मजहब विषेश के बारे में जाने-अनजाने या भड़काने पर टिप्पणी करने पर कई हिन्दू युवक न केवल जेल में बन्द हैं,बल्कि उन 'राषट्रीय सुरक्षा अधिनियम' (रासुका) भी लगायी गयी है। यहाँ तक कि इनमें से एक सिर का काट कर लाने पर कुछ मजहबी गुरुओं ने पचास लाख और डेढ़ करोड़ रुपए का इनाम भी घोशित किया। तब किसी को न उनकी अभिव्यक्ति स्वतंत्रता याद आयी  और न देश का कानून ही दिखायी दिया,जिसमें बाकायदा सिर काटकर लाने को उकसाना गम्भीर अपराध है तथा उसके खिलाफ कठोर सजा का भी प्रावधान है। लेकिन वोट की राजनीति के चलते भाजपा समेत सभी की जुबान बन्द रहती हैं। यह कैसी राजनीति है? जहाँ एक खास मजहब या किसी खास जाति के व्यक्ति या उसके नेता के खिलाफ कुछ भी बोलने पर तुरन्त गिरफ्तारी और सख्त से सख्त से सजा मिलती है, लेकिन देश को तोड़ने और उसकी बर्बादी के लिए जंग लड़ने की बात करना महज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है?  इन कथित सेक्यूलरवादियों द्वारा देशद्रोहियों की हिमायत किये जाने की यह कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले इन्होंने मुम्बई पर 26 नवम्बर, 2008 के हमलों के लिए 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' को जिम्मेदार ठहराया था। यहाँ तक कि उर्दू अखबार के पत्रकार अजीज बर्नी द्वारा लिखी '26/11-आर.एस.एस. की साजिश' नामक पुस्तक का मुम्बई में विमोचन काँग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने किया था। इसी तरह ये लोग मुम्बई की आत्मघाती हमलावर इशरत जहाँ को भी निर्दोश ठहराते आये हैं,अब डेविड हेडली की गवाही के बाद भी इस  सच्चाई स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
 निश्चय ही देश के लोगों को यह देखकर और सोचकर बेहद तकलीफ हो रही होगी कि बाहरी दुच्च्मनों से निपटना तो आसान है,  लेकिन देश में बैठे इन देशद्रोहियों के हिमायतियों से कैसे पार पायें,जो अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए तरह-तरह के कुतर्कों से देश के  दुच्च्मनों के बचाव में बार-बार उतर आते हैं।     

सम्पर्क -डॉ.बचन सिंह  63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054 

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