क्या बना-बिगाड़ रहा है इण्टरनेट ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
''युवा पीढ़ी को इण्टरनेट से सूचनाएँ प्राप्त करने की जगह किताबें पढ़ने पर ज्यादा जोर देने को कहा है। उन्होंने कहा कि  युवा पीढ़ी यदि अपने  लैपटॉप में उलझी रही तो तो कई बातें सीखने का अवसर खो देगीं। हर समय किताबें प्रासंगिक बनी रहेंगी।'' उक्त उशर देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तीरथसिंह ठाकुर के है जो उन्होंने गत माह एक कार्यक्रम में व्यक्त किये। हालाँकि उन्होंने उक्त विचार युवा पीढ़ी को लक्ष्य कर  कहे थे, लेकिन यह अब हर वर्ग और हर उम्र के उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो जनसंचार के नये माध्यम के इण्टरनेट के मोहपाश में बुरी तरह फँँसी हुई है। इसमें फँसने की भी अलग-अलग वजहें हैं। कुछ तो सचमुच में इसे 'ज्ञान का अपरिमित भण्डार' मानते है और इसका सदुपयोग ज्ञानार्जन या कार-व्यापार या फिर अपने विचारों प्रचार-प्रसार ,या ज्वलन्त प्रश्नों पर गहन विमर्द्गा के लिए कर रहे हैं। निश्चय ही कोई भी समझदार व्यक्ति इण्टरनेट के इन उद्‌श्यों के उपयोग को गलत नहीं बतायेगा। इस माध्यम की इन क्षेत्रों में महत्त्व और उपयोगिता को सभी समझते-जानते और मानते हैं, लेकिन बगैर सम्पादक और प्रस्तोत (एंकर) के इस नये जनसंचार माध्यम के खतरे और नकारात्मक पक्ष भी अनेक और अत्यन्त भयावह हैं। विश्वभर के असंख्य संगणकों (कम्प्यूटरों) के उपग्रह के माध्यम से परस्पर जुड़े संजाल का नाम ही 'इण्टरनेट' है। इसके जरिये दुनिया के कौने-कौने में एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्यूटर को कोई भी सूचना पलक झपकते ही प्रेषित की जा सकती है। विभिन्न खोजी इंजनों(सर्च इंजनों)से किसी भी जानकारी को पाया जा सकता है।
 इण्टरनेट ने दुनियाभर में बहुत कुछ बदल डाला है। जहाँ इसने विगत वर्च्चों में वैचारिक क्रान्ति से कुछ देशों के सालों से साल से सत्ता पर काबिज शासकों की सत्ताएँ बदल दीं, वहीं इसने अपने देश समेत कई देशों में गैर जरूरी मुद्‌दे पर नफरत और  अफवाहें फैलाकर दंगे-फसाद कराये हैं। अब यही माध्यम मानवता के शत्रु आतंकवादी संगठनों की विचारधारों और दुनियाभर में दहशत फैलाने का जरिया बन गया है। वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा दहशतगर्द संगठन'इस्लामिक स्टेट'(आई.एस.) इण्टरनेट के जरिये विश्वभर  के देशों के मुसलमान युवों को भड़का कर अपने संगठन में भर्ती करने के साथ-साथ गैर मुसलमानों को खूनबहाने का उकसा रहा है।
कुछ लोगों के लिए इण्टरनेट का इस्तेमाल सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक ((स्टेट्‌स सिम्बल) बन गया है वह सारे दिन फेसबुक,ह्नाट्‌स,टि्‌वटर आदि पर फिजूली की बातों में वक्त और धन बर्बाद करते रहते हैं तो कुछ किशोर-किशोरियाँ ही नहीं, दूसरे आयु वर्ग के पुरुष-महिलाएँ अश्लील साइटें देखने में न केवल अपना बहुमूल्य समय और धन नष्ट करते हैं, बल्कि इनसे गलत सीख लेकर अपना और दूसरों का जीवन ही बर्बाद कर देते हैं। जिस युवा पीढ़ी पर देश का भविश्य निर्भर होता है। उससे परिजनों और देश को यह उम्मीद होती है कि वे पढ़-लिख और कला-कौशल सीख कर समाज के उपयोगी बनेंगे। लेकिन ये युवा अपना अधिकतर समय इण्टरनेट गन्दी फिल्में देखने और दूसरे फिजूल कामों में बर्बाद कर रहे हैं। ऐसे में इनके पास पढ़ाई-लिखायी के लिए ही वक्त ही कहाँ
इण्टरनेट पर लाखों अश्लील साइटें हैं। पिछले दिनों इन्हें प्रतिबन्धित करने को  केन्द्र सरकार ने कुछ कदम उठाये,तो कथित प्रबुद्ध लोगों ने उसके इस कदम की तारीख करने के बजाय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बहाने उस पर ही हमला बोल दिया। तब बहुत डरते-डरते केन्द्र सरकार बच्चों की पहुँच से दूर करने को कुछ अश्लील साइटें बन्द कर पायी। कुछ आपराधिक मानसिकता के महिलाएँ और पुरुष अपनी फर्जी पहचान और फोटो लगाकर दूसरे युवक-युवतियों को गुमराह करते हैं।
इण्टरनेट पर चैटिंग से बने रिश्तों के जाल में फँस कर अनेक युवक-युवतियाँ गलत  सोहबत और गलत हाथ में पड़ गयीं। यहाँ तक वे अपनी जान तक गंवा बैठी हैं। अब स्मार्ट मोबाइल फोन वालों को ज्यादातर वक्त इसे देखने में ही गुजरता है। चाहे वे कक्षा में बैठे हों या कार्यालय/मन्दिर,शोक सभा में या फिर रेल-बस-कार में सफर कर रहे हों,लेकिन उनका इण्टरनेण्ट के जरिए देखना-सुनना जारी रहता है। देश के जनप्रतिनिधि विधायक/सांसद तक विधानसभा/संसद में जनहित के महत्त्वपूर्ण विचार-विमर्द्गा के समय गन्दी फिल्में देखते पाये गये हैं। 
 निश्चय ही वर्तमान में 'इण्टरनेट' बहुपयोगी है, क्यों कि अधिकांश सरकारी योजनाएँ, सुविधाएँ, नौकरियों की रिक्तियों के विज्ञापन, टेण्डर, उच्च-उच्चतम न्यायालयों के निर्णय , वादों की स्थिति देखने, सरकारी कार्यालयों में जन्म-मृत्यु के प्रमाण पत्र , विश्व्वविद्यालयों/शासकीय/गैर शासकीय सेवाओं  के लिए आवेदन, शिकायत  आदि करने का माध्यम अब इण्टरनेट बन गया है। लेकिन कुछ लोगों के कथित मनोरंजन नाम पर अश्लील साइटों को खुला छोड़ना देश के लिए बहुत घातक है जिसके दुच्च्परिणाम देश में कम आयु वर्ग के किशोरों द्वारा दुच्च्कमों की बढ़ती वारदातों के रूप में सामने आ रहे हैं। अभिभावकों को भी अपने बच्चों के मोबाइलों और कम्प्यूटरों में इण्टरनेट से होने वाले दुरुपयोग पर नजर रखनी होगी। उन्हें यह भी  बताना-समझाना होगा कि यह माध्यम उपयोगी अवश्य है,किन्तु यह पुस्तकों और पुस्तकालयों की जगह कभी नहीं ले सकता।

 सम्पर्क -डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63,गाँधी नगर, आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054 

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