क्या अब रुक पाएगी इलाज के नाम होने वाली लूट

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
सलाम वीरेन्द सांगवान को करिये मोदी जी को नहीं …॥
 हाल में केन्द्र सरकार के निर्णय के बाद 'राष्टीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण'(एन.पी.पी.ए.) ने स्पष्ट आदेश जारी किया कि यदि दिल की एन्जियोप्लास्टी ऑपरेशन में काम आने वाले स्टेण्ट को निर्धारत मूल्य से अधिक पर बेचा गया, तो सिर्फ बेचने वाले अस्पताल को, बल्कि साथ उसकी निर्माता कम्पनी को भी दण्डित किया जाएगा। उसने अपने आदेश इस तथ्य का भी उल्लेख किया है कि वह अपने हर विक्रेता को नर्ई संशोधित सूची उपलब्ध करायें। ऐसा सखत आदेश एन.पी.पी.ए.को अपनी हेल्पलाइन पर देश के विभिन्न जगहों से इस तरह की शिकायतें मिलने पर दिया,जहाँ कि केन्द्र सरकार के आदेश के बाद बडे़ और नामी-गिरामी  अस्पताल भी स्टेण्ट पर पहले जैसी ही मुनाफाखोरी कर रहे थे।उनकी इस मुनाफाखोरी के कारण आम आदमी के लिए एंन्जियोप्लास्टी ऑपरेशन सम्भव नहीं था। इस ऑपरेशन को कराने के लिए उसे अपना सबकुछ दांव पर लगाने को मजबूर होना पड़ता है,पर इससे मुनाफाखोरों का क्या मतलब?

       वस्तुतः आदमी के लालच की कोई सीमा नहीं, उसके लिए इलाज के नाम पर वह दूसरे आदमी का सब कुछ लूटने या फिर उसे असमय मरने का छोड़ देने पर आमादा हो जाता है। यही कारण है कि दिल के इलाज(एन्जियोप्लास्टी ऑपरेशन) में काम आने स्टेण्ट की कीमत गरजमन्द मरीजों से बीस प्रतिशत से लेकर एक सौ छह सौ प्रतिशत ही नहीं,दो हजार फीसदी तक मुनाफा वसूला जा रहा था ,पर इस भारी लूट के बारे में सबकुछ जानते हुए जहाँ कुछ लोग खामोश थे तो कुछ उसमें भागीदार बने हुए थे। यहाँ तक कि अपनी जेबें भरने को मरीजों को जरूरत न होने पर भी हजारों और एक लाख रुपए से अधिक कीमत वसूल कर स्टेण्ट डलवाने को मजबूर किया गया, अपने देश में ऐसे रोगियों की संखया भी  कुल दिल के रोगियों की 25से  तीस फीसद है जो सामान्य दिल के दवाओं से ठीक हो सकते थे। चिकित्सा के नाम निजी और सरकारी अस्पतालों में हो रही लूट को सरकारें मूकदर्शक बन कर देख रही थीं। लेकिन एक अधिवक्ता वीरेन्द्र सांगवान ने दिल के रोगियों के साथ हो रहे इस अन्याय को देखा नहीं गया। वैसे  अपने एक रोगी के  उपचार के दौरान उन्होंने अलग-अलग चिकित्सकों/अस्पतालों में जाकर स्टेण्ट की कीमतों में बहुत ज्यादा अन्तर देखा तो वह हैरान रह गए। श्री सांगवान देखा कि स्टेण्ट को बनाने वाली कम्पनियों ने कहीं भी उसकी कीमत का उल्लेख नहीं किया। इसका दवा वितरक,चिकित्सक,अस्पताल भरपूर फायदा उठाकर मरीज को लूट रहे थे। दिल्ली के गोविन्द बल्लभ पंत(जी.बी.पन्त) अस्पताल में हर माह करीब एक हजार मरीजों के स्टेण्ट लगाये जा रहे थे जिनमें  से ज्यादातर से प्राइवेट दवाओं के दुकानों से  खरीदने को कहा जाता था,जहाँ यह स्टेण्ट 42,000हजार से लेकर 68,000रुपए में बेचा जा रहा था,जबकि सरकारी मूल्य 23.625रुपए था।इस अस्पताल में अगस्त,2014तक 12,000स्टेण्ट लगाए।इनमें से 7,200 स्टेण्ट बाहर से खरीदे गए।बाद में हंगामा होने पर बाहर से स्टेण्ट खरीदने पर रोक लगा दी गयी। अपने देश में हर लगभग पाँच लाख लोगों दिल के रोगियों के स्टेण्ट लगाए जाते हैं। इस तरह अनुमानतः कोई साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए का घोटाला किया जाता था। इस बीच उन्हें एक समाचार पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट पढ़ने को मिली,जिसमें पत्रकार रेमा नारायण ने विस्तार से स्टेण्ट के विक्रय में हो रही मुनाफाखोरी की चर्चा की थी। उन्हीं ने जी.बी.पन्त अस्पताल के आँकड़े प्रकाशित किये थे।  इसके बाद भी अधिवक्ता ने दिल के रोगियों को इस मुनाफोखोरी से राहत दिलाने  के उद्‌देश्य से दिल्ली उच्च न्यायालय में सन्‌ 2014में एक जनहित  याचिका दायर की। उस पर न्यायालय द्वारा फरवरी, 2015 में अपना निर्णय दिये जाने पर उसकी प्रति केन्द्र सरकार को भेजी गई।
      क्षोभ की बात यह उसने इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मुद्‌दे पर कोई फैसला नहीं लिया।तब उन्होंने जुलाई, 2016 में एक अवमानना याचिका दायर की,लेकिन निराशा ही हाथ लगी। फिर उन्होंने दिसम्बर, 2016 में याचिका दायर की। अब उसके बाद अदालती कोप से बचने के लिए केन्द्र सरकार को गत 13फरवरी को स्टेण्ट को 'नेशनल लिस्ट ऑफ इन्सेशियल मेडिसिन(एन.एल.ई.एम.) में सम्मिलित करने को बाध्य होना पड़ा। अब इस संस्था ने स्टेण्ट की कीमत नियत कर दीं हैं उसके बाद भी वह इसका श्रेय लेने से बाज नहीं आयी और यह भी जता रही है उसे आम आदमी कितनी फिक्र है।हम चर्चा कर रहे हैं केन्द्र सरकार ने इस नये फैसले की।
मनुद्गय के रक्त में कोलस्ट्रोल बढ़ने और धमनियों में जमने पर उनमें रक्त प्रवाह में बाधा आती है इस कारण हृदय (दिल) अपना काम सही ढंग से काम नहीं कर सकता है और शरीर के विभिन्न अंगों को आवश्यकतानुसार रक्त नहीं पहुँचा पाता है। परिणामतः दिल बीमार हो जाता है।तब धमनियों को खोलने या  चौड़ा करने हेतु एक यंत्र की सहायता से हाथ या जाँघ की बड़ी धमनी में स्टेण्ट डाला जाता है।स्टेण्ट एक छोटा-सा छल्ला/स्पिं्रग या एक गुब्बारा(बैलून) जैसा होता है। ये तीन प्रकार के होत हैं - स्टेण्ट वेयर मेटल स्टेण्ट, ड्रग एल्यूटिंग स्टेण्ट।, बायोरिजोर्बेबल स्टेण्ट ।अब एन.पी.पी.ए.के मूल्य नियत करने बाद वेयर मेटल स्टेण्ट 7.623रुपए,ड्रग एल्यूटिंग स्टेण्ट और बायोरिजोर्बेबल स्टेण्ट 31.080 रुपए नियत कर दी है। इससे पहले ड्रग एल्यूटिंग स्टेण्ट 24,000रुपए से लेकर डेढ़ लाख रुपए, बायोरिजोर्बेबल स्टेण्ट 1.70हजार रुपए से लेकर 2.90हजार तक वसूले जा रहे थे। अस्पतालों की मुनाफाखोरी पर नजर रखने के लिए एन.पी.पी.ए. अब उनके एन्जियोंप्लास्टी के पूरे बिल को देखेगा-परखेगा। एन.पी.पी.ए.ने अस्पतालों की शिकायत भेजने के लिए अपना टोल फ्री नम्बर-1800111255 दिया हुआ है।
       अब जब स्टेण्ट की कीमत निर्धारित कर दी गयी हैं,ऐसे में मुनाफाखोर अस्पताल और चिकित्सक नये-नये बहाने से पहले वाली दर पर ऑपरेशन कर हैं।यहाँ तक कि जिन उपलब्ध स्टेण्ट की कीमत निर्धारित की गयी,उन्हें घटिया या कम गुणवत्ता का सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि किसी और तरह के स्टेण्ट के नाम मरीज को ठगा जा सके। वैसे एन.पी.पी.ए. उपलब्ध सभी स्टेण्ट या जो औद्गाधियाँ/उपकरण की भलीभाँति जाँच/परख कर ही मूल्य निर्धारित करता है।
     अपने देश में अस्पतालों और चिकित्सकों द्वारा अधिकाधिक धन के लालच में  अनावश्यक ऑपरेशन  विच्चेद्गा रूप से महिलाओं का  ऑपरेशन (सीजेरियन) से प्रसव कराया जाता है। देश में यह संखया भयावह रूप में बढ़ रही है। आगरा में यह संखया एक साल में निजी अस्पतालों में लगभग 70 हजार प्रसवों में 49हजार है  अगर देश के औसत से इस आँकड़े से तुलना की जाए, तो 55 प्रतिशत से अधिक है। चेंच डाट आरओजी नामक संस्था ने इसके विरुद्ध ऑनलाइन अभियान चलाया। इसके बाद सीजेरियन सिण्डीकेट के खिलाफ केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी ने  मोर्चा खोल दिया। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय के माध्यम से पत्र भेजकर आपात स्थिति में प्रसव के लिए ऑपरेशन करने का निर्देश दिया है। इसमें ऑपरेशन से प्रसव होने के आँकडें़ नियमित रूप से सार्वजनिक करने को कहा है। आगरा में विगत 11माह में ऑपरेश से प्रसव बहुत संखया में हुए हैं। मुखय चिकित्साधिकारी कार्यालय के अभिलेखों के अनुसार अप्रैल,2016 से फरवरी,2017 तक जनपद में 80हजार प्रसव हुए। इनमें 70हजार निजी अस्पतालों में तथा 10हजार सरकारी अस्पताल में ।जहाँ निजी अस्पतालों में 70प्रतिशत अधिक ऑपरेशन से,वहीं सरकारी में सिर्फ 10प्रतिशत ऑपरेशन से प्रसव हुए। इसका कारण  ऑपरेशन से प्रसव कराने में सामान्य प्रसव से कई गुना शुल्क लिया जाना है। अपने देश में चिकित्सक दवा कम्पनियों से दलाली खाकर  या स्वयं की दवा कम्पनी की दवा बेचने के लिए मरीजों को महँगी दवाएँ और अनावश्यक टॉनिक खरीदने को विवश करते हैं। इसके साथ ही तरह-तरह की गैरजरूरी पैथोलॉजी जाँचे और परीक्षण लिखते हैं और अनावश्यक रूप से गहन चिकित्सा कक्ष (आइसी.यू.) में रखते हैं ताकि अधिकाधिक शुल्क वसूली जा सके।
  अपने देश में मुनाफाखोरी की भावना के कारण चिकित्सालय और चिकित्सक मरीज की लाचारी/मजबूरी को भरपूर फायदा उठाते हैं। इनके इस अनुचित प्रवृत्ति पर प्रभावी अंकुश लगाया जाना जरूरी है, ताकि मरीज गैरजरूरी खर्चे और अनावश्यक ऑपरेशन से बच सके।

अपने देश में गैर जरूरी दवाएँ/जाँच यहाँ तक कि अनावश्यक ऑपरेशन किये जाने पर दण्डित किये जाने को कोई प्रभावी नियामक संस्था नहीं है जो ऐसी शिकायतों की त्वरित जाँच/ पड़ताल कर कठोर दण्ड दे सके। किसी मेडिकल गाइड लाइन्स के न होने के कारण चिकित्सक और अस्पताल मनमानी करते हैं। लेकिन दुनिया के दूसरे देच्चों में कई नियामक संस्था हैं और इस दिशा में तेजी से काम भी चल रहा है। वैसे क्लीनिकल स्टेबिशमेण्ट एक्ट,डॉक्टर ऑफ इथिकल हैल्थ केयर बने हुए हैं,पर इनसे वांछित लाभ नहीं मिल पा रहा है।  सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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