क्या उन्हीं को है अभिव्यक्ति स्वतंत्रता
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, असहमति, विश्वविद्यालय के
वातावरण, राष्ट्रवाद, राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रभक्ति को लेकर
फिर से छिड़ी बहस में दखल देते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कोशि में आयोजित
कार्यक्रम में यह कहना सर्वथा उचित है कि जो लोग विश्वविद्यालय में हैं वे तार्किक
बहस को बढ़ावा दें, न कि अशान्ति फैलाने वाली
संस्कृति को। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को है, लेकिन असहिषणु भारतीयों के लिए देश में कोई स्थान नहीं हो सकता। तार्किक एवं
न्यायसंगत असहमति के लिए स्थान अवश्य होना चाहिए,पर
उनके लिए देश और उसके लोग सदैव पहली प्राथमिकता होने चाहिए। भले ही उन्होंने किसी
भी पक्ष का उल्लेख नहीं किया हो, लेकिन उनका कथन सभी
पक्षों के लिए था। अब प्रच्च्न यह है कि अपने-अपने आग्रह-दुराग्रह और मन्तव्यों को
लेकर अपनी राजनीति करने वाले क्या इनके इस उद्बोधन से कोई सीख लेंगे? शायद नहीं ?
इस सन्देह का कारण संविधान के अनुच्छेद 19(1) में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जो बढ़चढ़ कर चर्चा
करते हैं,वे कभी अनुच्छेद 19(2) के तार्किक प्रतिबन्धों
को भूल जाते हैं जिसमें ऐसी अभिव्यक्ति पर रोक है जो समाज और राष्ट्र के हित में
नहीं है। इनमें देश की एकता, अखण्डता का सम्मान बनाए
रखना भी सम्मिलित है। इसके बाद भी हाल में दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज के
अँग्रेजी विभाग के शिक्षकों एवं छात्रों की साहित्यिक समिति ने ' प्रतिरोध की संस्कृति'
पर आयोजित
सेमिनार में उमर खालिद को बुलाया,जिस पर कन्हैयाकुमार आदि
के साथ गत वर्द्गा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय(जे.एन.यू.)
में 'भारत तेरे टुकड़े होंगे', कश्मीर माँगे आजादी', 'मणिपुर माँगे आजादी',' अफजल गुरु हम शर्मिन्दा हैं,तुम्हारे
कातिल जिन्दा' आदि नारे लगाये जाने पर राष्ट्रद्रोह
का मुकदमा दर्ज है। इसका अखिल भारतीय विद्यार्थी (ए.बी.वी.पी.) ने विरोध किया।
हालाँकि इनके द्वारा यह प्रचारित कराया कि उमर खालिद का आमंत्रण निरस्त कर दिया
गया, पर उसे मंच उपलब्ध कराये जाने की
तैयारी जारी थी। इस कारण ए.बी.वी.पी.आक्रामक तेवर अपनाये हुई थी। इसी को लेकर इन दोनों पक्षों में हिंसक टकराव हुआ। इसे न
उचित माना जा सकता और न ही इसका समर्थन किया जा सकता,किन्तु इसके प्रत्युत्तर में वामपंथी छात्र संगठनों की ओर
से एक बार फिर 'कश्मीर माँगे आजादी, माँग के लेंगे आजादी,लड़कर लेंगे आजादी', 'बस्तर माँगे आजादी'
आदि नारे
लगाये गए।
![]() |
उमर खालिद |
क्षोभ
की बात यह है कि अपने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सबसे बड़े पैरोकर बताने-जताने
वाले इस प्रच्च्न का उत्तर देंगे कि इस सेमिनार में देशद्रोह के अपराध में आरोपित
उमर खालिद को आमंत्रित करना,उनके लिए क्यों
अपरिहार्य था? यह सच है कि उसके शोध का
विद्गाय आदिवासियों पर केन्द्रित है,पर उसकी पीएच.डी. अभी तक न तो पूरी हुई और न ही किसी ने उसे उत्कृद्गट होना बताया
है। इनमें से किसी ने भी देश के लिए इन
विभाजनकारी नारों की आलोचना/निन्दा तक नहीं की। इसी बीच वामपंथियों ने इस मुद्दे
को बड़़ी चालकी से बदल कर अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने दिल्ली विश्वविद्यालय की
छात्रा गुरुमेहर कौर को आगे कर दिया ,जिससे यह मामला गरमा गया। कारगिल के शहीद मनदीप सिंह की इस
बेटी का विचार है कि उसके पिता को पाकिस्तान ने नहीं, युद्ध ने मारा है। इस पर जहाँ कुछ ने उनके कथन पर अपनी-अपनी
तरह से असहमति जतायी,तो कुछ ने अशालीन शब्द
व्यक्त किये ,कुछ ने बलात्कार तक की धमकी दी,जो किसी दशा में स्वीकार्य ही नहीं, बल्कि दण्ड के योग्य है। इस मुद्दे के जोर पकड़ने पर केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री रिजिजू ने
वामपंथियों पर शहीद की बेटी गुरुमेहर कौर के दिमाग को दूद्गिात करने का आरोप लगाया
और उन्हें धमकी देने वालों की आलोचना भी की। साथ ही उन्होंने कैम्पस में छात्रों
की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए इसे राष्ट्रवादी और गैर राष्ट्रवादी
विचारधारा के लोगों के बीच वैचारिक लड़ाई बताया। इस पर वामपंथी और भी बौखला गए।इसके
विरोध में वामपंथी छात्र संगठन आइसा, एस.एफ.आइ.समेत अन्य वामपंथी संगठनों ने जुलूस निकाला। इसमें
सी.पी.एम. नेता सीताराम येचुरी,सी.पी.आई.के नेता
डी.राजा, स्वराज्य इण्डिया के योगेन्द्र
यादव, विधायक पंकज पुद्गकर,जेएन.यू.के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष आच्चुतोद्गा,कन्हैया कुमार ,अकबर आदि भी शामिल हुए,इनमें कन्हैया कुमार देशद्रोह का आरोपी है। इन सभी ने अपने
वक्तव्यों से अपने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा पहरुआ सिद्ध करते हुए राष्ट्रवाद
को खतरनाक विचारधारा साबित करने की कोशिश की। इस सम्बन्ध में बांग्लादेश की
निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन की यह टिप्पणी प्रासंगिक है,''मैं उमर खालिद की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यकीन करती
हूँ।क्या उमर खालिद और उसके समर्थक भी मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास
करते हैं। बस यह जानने की उत्सुकता है।''
इसी बीच
जे.एन.यू. परिसर .में फिर कश्मीर की आजादी के पोस्टर लगाए गए,जिन्हें फिर से 'डेमोक्रेटिक स्टूडेण्ट
यूनियन' की ओर से लगाया है। इस देश को तोड़ने
वाली हरकतों पर अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के पहरुए सदैव के भाँति शान्त हैं।
अब आते
हैं इनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की प्राथमिकता पर वर्तमान में केरल में वामपंथी
सरकार के रहते राष्ट्र स्वयंसेवक संघ(आर.एस.एस.) और भाजपाइयों पर आये दिन जानलेवा
हमले होते रहते हैं इनमें बड़ी संखया में लोग मारे गए है।इसी 2मार्च को कोझिकोडे के नदपुरम स्थित आर.एस.एस. के कार्यालय
पर बम फेंका गया,जिसमें चार स्वयंसेवक गम्भीर रूप
से घायल हुए हैं,पर इसे लेकर देश में अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता के समर्थक और जनसंचार माध्यम मौन हैं। आखिर क्यों?क्या उन्हें असहमति की राजनीति का अधिकार नहीं हैं? हाल में भाजपा की नेता शाजिया इल्मी को जामिया मिलिया
यूनीवर्सिटी में आमंत्रित किया गया,पर उन्हें तीन तलाक पर
बोलने से रोका गया। वह वहाँ की पूर्व छात्रा,
अन्ना
हजारे के आन्दोलन और आदमी आदमी पार्टी की नेता रह चुकी हैं। उनकी अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता को लेकर किसी की न जुबान खुली और न किसी ने जुलूस ही निकाला। इससे पहले
पाकिस्तानी मूल के कनाडाई पत्रकार/लेखक तारिक फतेह गत दिनों इण्डिया गेट के पास
आयोजित तीन दिवसीय उर्दू साहित्य उत्सव '
जच्च्न
-ए-रेखता ' में कुछ पुस्तकें खरीदने गए थें, तब उन्हें घेर कर गाली-गलौज तथा पीछे से लात-घूसे मारे गए।
उन्हें बड़ी मुच्च्किल से पुलिस सुरक्षा में बाहर निकाला गया। तारिक फतेह का कहना
है कि अगर मेरे साथ ऐसा बर्ताव मुल्ला,मौलवियों ने किया होता,तो उनकी ऐसी हरकत समझ में आती है ं,पर वहाँ तो सब पढ़े लिखे,साहित्यकार,शायर आदि थे। लेकिन विदेशी साहित्यकार के साथ इतने
दुर्व्यवहार पर बोलने-लिखने की आजादी के अलम्बरदारों विच्चेद्गाकार वामपंथियों में
से और न ही राष्ट्रवादियों में कोई कुछ बोला। इस्लामिक कट्टरपंथी उनकी इस बात से
नाराज है कि वह अल्लाह का इस्लाम मानने की
बात करते है,मुल्लाओं का नहीं। इन्हीं तारिक
फतेह का सिर कलाम करने वालों को दस लाख रुपए का ऐलान करने वाले कोलाकाता की टीपू
मस्जिद के शाही इमाम मौलाना नूरूर रहमान बुरकती के खिलाफ भी अपनी जुबान बन्द रखी
है,जो पंथनिरपेक्षा और अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता की पैरोकार पच्च्चिम बंगाल की मुखयमंत्री ममता बनर्जी का खासमखास
है। वह पहले भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिर और दाढ़ी का मुण्डन करने वाले को
पचास लाख रुपए,इसी सूबे के भाजपा प्रदेश
अध्यक्ष दिलीप घोद्गा को पत्थर मार कर राज्य से बाहर करने तथा बांग्लादेश की
लेखिका तस्लीमा नसरीन के मुँह पर कालिख पोतने वाले को पचास हजार रुपए देने का फतवा
जारी कर चुका है। कुछ समय पहले जयपुर में आयोजित लिटरेचर फेस्टिवल में तारिक फतेह
के आने पर इस्लामिक कट्टरपंथियों के विरोध प्रदर्शन पर आयोजकों को यह लिख कर देना
पड़ा कि भविद्गय में वे सलमान रूच्च्दी,तारिक फतेह ,तस्लीमा नसरीन को नहीं बुलाएंगे, पर तब कहीं से कोई आवाज नहीं उठी। गत 5जनवरी को पच्च्चिम बंगाल में बलूचिस्तान पर आयोजित सेमिनार
जिसमें पत्रकार तारिक फतेह को आमंत्रित किया गया,उसे
राज्य सरकार ने नहीं होने दिया। इसी राज्य में कोलाकाता से महज 20किलोमीटर दूर धौलागढ़ में साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान
इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हिन्दुओं के मकानों-दुकानों में आग दी,जो तीन दिन तक जलती रहीं,जब
उसके समाचार संकलन को पत्रकार पहुँचे तो उनके साथ मारपीट कर कैमरे भी तोड़ दिये।
वामपंथी शासन के दौरान अपने विरोधियों के साथ उनके कार्यकर्ता कैसा बर्ताव करते थे
इसे ममता बनर्जी से बेहतर कौन जानता है?
अब इसी 26फरवरी को उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के पहासू कस्बे, इससे पहले बाराबंकी तथा 2मार्च
को लखीमपुर खीरी में साम्प्रदाय विच्चेद्गा के युवकों द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं,हिन्दुओं के विरुद्ध सोशल मीडिया पर गाली-गलौज,अच्च्लील बातें कहीं गयी हैं,इससे
वहाँ कर्फ्यू लगाना पड़ा, किन्तु किसी वामपंथी और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थकों में से कोई भी निन्दा करने को आगे नहीं आया
है। इनमें से किसी को असहिद्गणुता भी नहीं दिखायी दी। वस्तुतः वामपंथियों
/पंथनिरपेक्षतावादियों/मानवाधिकारवादियों /अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पहरुओं के
अपने ही पैमाने हैं-उन्हें कश्मीर में
पाकिस्तान और इस्लामिक आतंकवादी संगठन आइ.एस.के झण्डे लहराते हुए हिन्दुस्तान
मुर्दाबाद,महिषासुर दिवस मानने,हिन्दुओं के देवी-देवताओं,उनके
आस्था,विश्वास,परम्पराओं का उपहास करने में प्रगतिशीलता और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता और इनका विरोध करने पर संकीर्णता,असहिद्गणुता राष्ट्रवाद
दिखायी देता है।ये बताये दुनिया का ऐसा कौन-सा देश है जो अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के
नाम पर अपने देश को तोड़ने की बात स्वीकार करता है? वामपंथी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ,हैदराबाद के केन्द्रीय
विश्वविद्यालय में महिषासुर दिवस,याकूब मेमन,कोलाकाता विश्वविद्यालय आदि को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम
पर देशद्रोही गतिविधियाँ चला रहे हैं। इनका विरोध करने वालों को राष्ट्रवादी बताकर
खलनायक सिद्ध करने की कोशिश करते आये हैं। क्या देश की स्वतंत्रता, अखण्डता, सार्वभौमिकता के विरुद्ध
काम करने वालों को राष्ट्रद्रोही कहने / बताने के लिए किसी न्यायालय या संविधान के
किसी अनुच्छेद की दरकार है?यह बात उनकी समझ में
जितनी जल्दी आ जाए,उतना उनके लिए बेहतर होगा।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें