देशहित बड़ा है या पार्टी ?

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अपने देश में लोग सत्य, त्याग, बलिदान, नैतिकता, सिद्धान्तों, आदर्शो पर चलने की बातें तो बहुत करते हैं, लेकिन इस राह पर चलने वालों का साथ देना तो दूर रहा, बल्कि उल्टा उन्हें नासमझ और बेवकूफ कह कर दुत्कारते तथा कई तरह से बदनाम भी करते आये हैं। यही नहीं, ऐसे लोगों को तमाम तकलीफों के साथ उन्हें व्यंग्य बाणों के साथ-साथ प्रताड़ना और उपेक्षा भी सहनी-झेलनी पड़ती हैं । यह सब जानते-बूझते हुए भी कुछ लोग, राजनेता और नौकरशाह अपनी अन्तरात्मा की आवाज पर खुशी - खुशी समाज और देशहित में इसी दुर्गम मार्ग पर चलते आए हैं।
हाल में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सांसद कीर्ति आजाद ने चेतावनी के बाद भी 'दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ'( डी.डी.सी.ए.)में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी आवाज उठाना बन्द नहीं किया। परिणामतः उनकी जाँच की माँग मंजूर न कर उन्हें पार्टी ने निलम्बित कर दिया। जैसे आजाद ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बोल कर जैसे बहुत गम्भीर गुनाह किया है। इस पर ज्यादातर भाजपाइयों ने उनके विरुद्ध हुई इस कार्रवाई को सही बताया। वैसे उन जैसी मानसिकता के वालों का वश चले तो ऐसे लोगों को तो वे हमेशा-हमेशा के लिए पार्टियों से बाहर करा दें, क्यों कि उनके लिए सत्ता ही सब कुछ है। संयोग से अच्छी बात यह रही है कि कीर्ति आजाद को अपनी पार्टी के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी का समर्थन मिला है जो न केवल उनके साथ हुई कार्रवाई से असहमत हैं, बल्कि आजाद की मुहिम से सहमत भी हैं।
 कुछ ऐसा ही समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश में मनोरंजन विभाग में सलाहकार एवं दर्जा प्राप्त मंत्री ओमपाल नेहरा के साथ हुआ। उन्होंने बिजनौर में चौधरी चरण सिंह की जयन्ती पर आयोजित कार्यक्रम कह दिया कि अयोध्या में भगवान राम की और मथुरा कृष्ण की नगरी है । अयोध्या में राम का मन्दिर नहीं बनेगा, तो कैसे लगेगा ? मुस्लिम बुद्धिजीवियों को अयोध्या में मन्दिर बनवाने के लिए कारसेवा करनी चाहिए। विश्वहिन्दू परिषद्‌ का अभियान अपने आप खत्म हो जाएगा । उनकी इस सही और सच्ची सलाह पर दाद देने के बजाय मुसलमानों के नाराज होने के डर से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें तत्काल कुर्सी से बेदखल ही कर दिया । लेकिन दादरी प्रकरण पर जब उनके शहरी विकासमंत्री आजम खाँ ने संयुक्त राष्ट्र संघ(यू.एन.ओ.) को पत्र लिखा, तब देशभर में उनकी आलोचना होने पर चुप्पी साध ली।
इसी प्रकार पूर्व केन्द्रीय गृहसचिव एवं वर्तमान में बिहार के आरा से भाजपा के आर.के.सिंह ने जब श्रीनगर में कई माह से लगातार हर शुक्रवार को नमाज के बाद पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों द्वारा पाकिस्तानी एवं आई.एस.के झण्डे फहराने के साथ-साथ 'पाकिस्तान जिन्दाबाद', 'हिन्दुस्तान मुर्दाबाद' के नारे लगाये जाने पर राज्य सरकार के न रोके जाने पर केन्द्र सरकार से उनके खिलाफ कार्रवाई की माँग की, तो इसका समाचार इस तरह छापा कि जैसे नौकरशाह से राजनेता बने आर.के.सिंह को राजनीति की सही समझ नहीं है। उन्होंने देश की सुरक्षा को देखते हुए सही सलाह देकर अपनी सरकार को शर्मिन्दा करने का कार्य किया है। ऐसे ही जब बिहार के लोकसभा के चुनाव के समय पार्टी के नेताओं द्वारा धन लेकर पार्टी का टिकट दिये जाने का विरोध किया, तब भी भाजपा के नेताओं समेत जनसंचार माध्यमों ने उन्हें खलनायक साबित करने की कोशिश की। वैसे अगर भाजपा ने चरित्रवान और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को अपना प्रत्याशी बनाया होता, तो सम्भवतः उसकी इतनी बुरी हार न हुई होती।
अपने देश में अधिकांश राजनीतिक दलों ने जनता को लूटने के लिए दुरभि सन्धि की हुई। वे दिखाने को एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते दिखायी देते हैं ,पर वे राजकोष को लूटने  में साथ-साथ हैं। यही कारण है कि यादव सिंह जैसे नौकरशाह हर सियासी दल को अपने से लगते है। ऐसे लोग हर दल की आँखों के तारे और दुलारे बन जाते है। इसके विपरीत उनके और उत्तर प्रदेश में खनन मंत्री गायत्री प्रजापति अपरमित भ्रष्टाचार खिलाफ  जाँच की माँग करने वाला सरकार का क्यों और कैसे जानी दुश्मन बन जाता है ? इसे आई.जी. अमिताभ ठाकुर से बेहतर भला कौन जान सकता है ? जिन्हें धमकाने को स्वयं सपा मुखिया को आगे आना पड़ा। यहाँ तक कि उन्हें पहले बलात्कार के फर्जी मामले में फँसाने की कोशिश की गयी। जब उसमें कामयाबी नहीं मिली, तो दूसरे मामले में निलम्बित कर उन्हें परिवार सहित तरह-तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। यह सब इसलिए कोई दूसरा बन्दा भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना मुँह खोलने की जुर्रत न करे। ऐसे ही केन्द्र की वर्तमान राजग सरकार ने एम्स में तमाम अनियमितताएँ उजागर करने वाले संजीव चतुर्वेदी को पुरस्कृत करने बजाय उनका स्थानान्तरण करने को ही प्राथमिकता दी, जैसे वह कोई विदेशी भेदिया हों।
 देश में जहाँ भी आई.ए.एस., आई.पी.एस. आदि प्रशासनिक सेवा के किसी भी अधिकारी ने सच्चाई से काम करने की कोशिश की, उसे पहले तो महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचने ही नहीं दिया जाता। अगर गलती से पहुँच गया, तो उसका तबादला करने में देर नहीं लगायी। हरियाणा में आई.ए.एस. अधिकारी अशोक खेमका और उत्तर प्रदेश में सूर्य प्रताप सिंह से ऐसे ही उदाहरण हैं, जिन्हें न केवल तबादले पर तबादले की सजा दी गयी, बल्कि फर्जी मुकदमों तथा तरह-तरह की जाँचें करा कर परेशान किया जाता रहा है। पूर्व में भी काँग्रेस की प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की सरकार के वित्तमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को बोफोर्स तोपों के सौदों में दलाली की जाँच की माँग की, तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इससे पहले इसी पार्टी की युवा तुर्क नेता चन्द्रशेखर, मोहन धारिया, अमृत नाहटा, रामधन को आपात काल का विरोध किया, तो उन्हें जेल में डाल दिया। लेकिन उसके बाद भी कुछ लोग सत्ता सुख की परवाह न कर हर तरह का जोखिम उठाकर देश और समाज हित में सत्य का रास्ता अपनाते आये हैं। यह समाज का कर्तव्य है कि हमें अपने और पार्टी से ऊपर उठकर राष्ट्र और समाज हित में कार्य करने वालों को ही मान-सम्मान देने के साथ-साथ उनकी हर तरह से मदद करनी चाहिए, तभी देश और समाज के कल्याण  होगा। राजनीति में भी शुचिता आएगी।

 डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63,गाँधी नगर, आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

संघर्ष, उत्सर्ग,वीरता की शौर्यगाथा क्षत्रिय राजवंश बड़गूजर-सिकरवार-मढाड़

अफगानिस्तान में संकट बढ़ने के आसार

कोई आजम खाँ से यह सवाल क्यों नहीं करता ?