क्या केवल नौकरशाही जिम्मेदार ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
''जनता को मेट्रो
व एक्सप्रेस वे से कुछ लेना-देना नहीं है, बस उन्हें थाने और तहसील से न्याय मिलना
चाहिए।'' यह सही और सच्चे बोल किसी विपक्षी दल भाजपा, बसपा, काँग्रेस के नेता के नहीं,
बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हैं, जो उन्होंने आई.ए.एस.वीक के
दूसरे दिन तिलक हॉल में राज्य के अधिकारियों का सीख देते हुए कहे। इतना ही नहीं, उन्हें
अपनी सदाशयता जताते हुए कहने से भी नहीं चूके, ''जब आप पर कार्रवाई होती है, तब जनता
खुश होती है। वोट बढ़ता है। फिर भी हम प्यार
से काम ले रहे हैं, जबकि हमारा इम्तिहान जनता लेती है। समय भी करीब है। फेल हुआ तो
आप जिम्मेदार होंगे।'' लेकिन यह बयां करते
हुए अखिलेश यादव को शायद यह याद नहीं रहा कि इसके लिए केवल नौकरशाह जिम्मेदार नहीं हैं। प्रदेश की जिस जनता
ने 2012 में उन पर और उनकी समाजवादी पार्टी पर पूरा भरोसा करते हुए सत्ता सौंपी थी,
तब उसने सोचा था कि यह युवा नेता ने अपने नए विचारों से उनके लिए पहले के शासकों से
कुछ न कुछ जरूर बेहतर करके दिखायेगा। यदि अब वही उनकी सरकार के कामकाज से खुश नहीं
हैं तो इस विफलता के लिए वे स्वयं, उनके मंत्रीगण और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता
भी बराबर के दोषी होंगे।
वस्तुतः अखिलेश
यादव ने ये बातें अपनी सरकार कार्यकाल के चार साल पूरे होने पर कहीं है। हाल में चुनावी
सर्वेक्षण में उनकी पार्टी दूसरे दलों से पिछड़ती दिखायी दे रही है और अब उनकी सरकार
का भी केवल एक साल बचा है। इसलिए उन्हें अपनी पार्टी के सन् 2017 विधानसभा चुनाव में
फिर से सत्ता लौटने की चिन्ता सताने लगी है।
वैसे भी अखिलेश यादव को यह बात नहीं भूल नहीं चाहिए कि
उनकी सरकार की सबसे ज्यादा आलोचना किसी विपक्षी राजनीतिक दल ने नहीं, बल्कि समाजवादी
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उन्हीं पिता मुलायम सिंह यादव ने की है। वे कई बार
अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की बेजा हरकतों, तो कभी उनके मंत्रियों के भ्रष्टाचार
में लिप्त रहने के लिए फटकार चुके हैं। लेकिन अखिलेश यादव बताएँ कि उन्होंने पार्टी
के कार्यकर्ताओं को चौथ वसूली, नदियों, पहाड़ों, दूसरे खनिजों की खदानों से अवैध खनन,
वनों की गैर कानूनी कटाई, धमका कर चौथ वसूली, सरकारी-गैर सरकारी जमीनों पर कब्जे करने,
बसों का अवैध संचालन, डरा-धमका कर ठेके हासिल करने, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों
के कामकाज में गैर जरूरी दखलंदाजी, पुलिसकर्मियों और सरकारी कर्मचारियों के साथ मारपीट
आदि करने पर कब-कब उनके खिलाफ कठोर तो क्या ? कैसी भी कब कार्रवाई की है ? इसके विपरीत
उनकी सरकार ने इनकी शिकायतकर्ताओं और ईमानदार पुलिस अधिकारियों-नौकरशाहों को ही प्रताड़ित
तथा दण्डित कर उन्हें सही और विधि सम्मत कार्य करने से रोका-टोका है। यहाँ तक कि अज्ञात
कारणों से थोक में तबादले कर उन्हें अपना काम ढंग से नहीं करने दिया है। परिणामतः प्रदेश
में लूटपाट, चोरी, बलवा, गोकशी, बलात्कार, हत्या जैसे गम्भीर अपराधों बढ़ते ही जा रहे
हैं, उनके शासन में साम्प्रदायिक दंगों-फसादों के कीर्तिमान बने हैं; क्या जनता इससे
अनजान है ?
अखिलेश यादव की
सरकार में सभी तरह के मंत्रियों की संख्या
तो पाँच दर्जन से अधिक जरूर हैं, किन्तु ज्यादातर महत्त्वपूर्ण विभाग मुख्यमंत्री स्वयं
ही सम्हाले हुए हैं। उनके अधिकांश मंत्री बस नाम के मंत्री हैं, किन्तु अपने असल धन्धे
में पूरी तरह माहिर हैं, जिसके लिए उन्होंने राजनीति का रास्ता पकड़ा है। इसलिए वे अपनी
सरकार की असफलता का ठीकरा नौकरशाहों पर कैसे फोड़ सकते हैं? क्या अखिलेश यादव बतायेंगे
कि अवैध खनन के आरोपी काबीना खनन मंत्री गायत्री
प्रजापति के खिलाफ कार्रवाई के बजाय उसका बचाव क्यों किया ? क्या अखिलेश यादव लोगों
के बतायेंगे कि 'उ.प्र.लोकसेवा आयोग' से लेकर 'उ.प्र.उच्च शिक्षा आयोग, 'उ.प्र.माध्यमिक
शिक्षा आयोग' आदि के अध्यक्षों, यहाँ तक लोकायुक्त के पद पर भी सजातीय यादव ही क्यों
चाहिए ? लोकायुक्त के चयन के मामले में तो उनकी सरकार को उच्चतम न्यायालय की फटकार
भी झेलनी पड़ी । इन आयोग में आरक्षणों की मनमानी परिभाषा करते हुए तमाम धांधलियाँ किये
जाने से क्या अभ्यर्थी बेखबर हैं ? प्रदेश के ज्यादातर थाने-चौकियों के प्रभारी सजातीय
ही क्यों दिखायी दे रहे हैं ?
क्या अखिलेश यादव को किसी ने बताया नहीं कि उनकी सरकार
द्वारा जितनी कथित जनहितकारी योजनाएँ चलायी जा रही हैं, उनसे प्रदेश की जनता कितना
लाभान्वित हो रही है ? थाने और तहसीलों में होने वाले तहसील और थाना दिवस महज दिखावे
के होते हैं, किसी भी सरकार कार्यालय में बगैर दाम और दबाव किसी भी व्यक्ति का काम
नहीं होता। लोगों को अपने राशन कार्ड,पहचान पत्र, निवास प्रमाण पत्र, आय प्रमाण जैसे
छोटे-छोटे कार्यों के लिए जगह-जगह भटकने और
जमा पँूजी या उधार रकम लेकर रिश्वत देने को मजबूर होना पड़ता है। उनकी सरकार
द्वारा किसानों की भूमि छीन कर एक्सप्रेस वे, फिल्म सिटी, मेट्रो और दूसरे उपक्रमों का असल मकसद भी आम जनता से कहीं
ज्यादा तरह-तरह के कारोबरियों, पूँजीपतियों आदि को फायदा पहुँचना है। यह कार्य के देश
में केवल अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार ही नहीं, कथित राष्ट्रवादी भाजपायी
और दलितों की एकमात्र मसीहा बसपा और पिछड़ों की हमदर्द राजद, जदयू सरकारें भी कर रही
हैं।
वे इस तथ्य से अपरिचित नहीं होंगे कि पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों
का राजनीतिकरण और जातिकरण किसने किया है? जिसके
चलते नौकरशाह अब जनसेवक न होकर किसी खास दल के हुकूमबरदार बन कर रह गए हैं इसका असर
उनके कामकाज पर भी साफ दिखायी देने लगा है। ऐसे में उनके एक संवेदनशील जनसेवक की तरह
करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? पिछले विधानसभा के चुनाव में तत्कालीन बसपा सरकार
के मंत्रियों के भ्रष्टाचार की जाँच कराने का वायदा करके आयी थी, लेकिन उनकी सरकार
ने तो लोकायुक्त जाँच में दोषी पाये गए बसपा के मंत्रियों के विरुद्ध मुकदमे चलाने
की अनुमति देना भी जरूरी नहीं समझा। यहाँ तक कि हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोपी
इंजीनियर यादव सिंह को बचाने में भी कोरकसर बाकी नहीं छोड़ी?
अखिलेश यादव यह बतायेंगे, उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह
यादव या मायावती से अलग अब तक क्या किया? उन्होंने नौकरशाही और पुलिस अधिकारियों को
सही ढंग से काम करने को अब तक कौन-कौन से कदम उठाये हैं ? दरअसल, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और अपनी पार्टी
के लोगों की खामियों की सारा ठीकरा नौकरशाही पर फोड़ कर खुद को बेचारा साबित करने की
नाकाम कोशिश करने में जुटे हैं,किन्तु अब जनता इतनी अज्ञानी नहीं, जितनी वे समझ रहे
हैं। इसका पता उन्हें आगामी चुनावों के नतीजों से पता चल जाएगा।
सम्पर्क
-डॉ.बचन सिंह सिकरवार
63 ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054
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