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कब सीखेंगे जैसे को तैसा जवाब देना ?

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अन्ततः भारत के चीन के 'वर्ल्ड उइगर काँग्रेस' के नेता डोल्कुन ईसा का ई-वीजा रद्‌द किये जाने पर शायद ही किसी को हैरानी हुई होगी, क्यों कि जो देश और उसकी अब तक की सरकारें अपने से बहुत छोटे, कम ताकतवर और हर तरह से कम साधन सम्पन्न मुल्क पाकिस्तान को जैसे को तैसा जवाब देने में नाकाम रहा हो, उससे पूरी दुनिया को आँखें दिखाने वाले चीन को माकूल जवाब देने की उम्मीद करना ही फिजूल है। लेकिन चोट खाने के बाद तो कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी थोड़ा-बहुत प्रतिरोध, विरोध और प्रतिकार भी जरूर दिखाता है, किन्तु भारत ने इसमें से  कुछ नहीं किया, जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान के 'जैश-ए-मोहम्मद' के सरगना आतंकवादी अजहर मसूद के मामले में भारत के प्रस्ताव पर हाल में ही चीन वीटो लगा चुका है । भारत के लाख समझाये जाने के बाद भी ये बहुत बड़ा आतंकवादी है जिसने उसे बहुत नुकसान पहुँचाया है लेकिन अपने खास दोस्त पाकिस्तान की खातिर चीन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हुआ। उस यह सब कोई वक्त नहीं गुजरा कि जाने-अनजाने में भारत ने भी चीन के उइगर नेता डोल्कुन ईसा को पर्यटक ई-वीजा दे दिया, जो यहाँ धर्मशाला...

कब लगेगी रिश्वतखोरी पर लगाम?

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार हाल में  उच्चतम न्यायालय  ने अन्ना द्रमुक की महासचिव वी.के.शशिकला के आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में निर्णय देते समय देश में बढते भ्रष्ट्राचार को लेकर जो गम्भीर टिप्पणी की है वह अत्यन्त चिन्तनीय एवं विचारणीय है। न्यायालय का कहना है कि जिन्दगी के हर पहलू में भ्रष्ट्राचार बढ़ता जा रहा है। वह एक रोग के समान है, उसके आगे आम आदमी असहाय है। भष्टाचारियों को सजा नहीं मिलना राष्ट्र के तत्व को खत्म कर रहा है। भ्रष्ट्राचार को खत्म करने को व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर प्रयास करने होंगे। हालाँकि गत 8 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाँच सौ और एक हजार रुपए के नोटबन्दी के माध्यम से भ्रष्ट्राचार, कालाधन, नकली मुद्रा, आतंकवादी, नक्सलवादी गतिविधियों पर रोक लगाने का दावा कर पूरे देश के लोगों को बैंकों की कतारों में लगा दिया, इससे बैंकों में पाँच सौ तथा एक हजार रुपए के नोटों के ढेर जरूर लग गए, लेकिन यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि देशभर में रिश्वतखोरी पर रोक तो कतई नहीं लगी है। भ्रष्टाचारी पहले की तरह बेखौफ होकर रिश्वत ले रहे हैं, इस तरह वे फिर कालाधन एकत्र कर...

अब क्यों खामोश हैं गद्दारों के हिमायती ?

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार जम्मू-कश्मीर में इसी 17 फरवरी को श्रीनगर के नौहट्‌टा स्थित ऐतिहासिक जामिया मस्जिद, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा तथा उत्तरी कश्मीर के सोपोर में 'नमाज -ए-जुमा' के बाद आतंकवादियों और अलगाववादियों के समर्थकों ने पाकिस्तान तथा इस्लामिक आतंकवादी संगठन 'आइ.एस.'के झण्डे लहराते  'जीवे-जीवे पाकिस्तान ', 'हम क्या चाहते आजादी', 'गिलानी का एक ही अरमान - कश्मीर बनेगा पाकिस्तान' नारे लगाते आगे बढ़ने पर सुरक्षा बलों के रोकने जाने पर जिस तरह वे पथराव, हिंसा और आगजनी की, उससे लगता है कि उन पर थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत की उस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ, जिसमें इन अलगावादियों तथा पाक परस्तों को ऐसी बेजा हरकतों से बाज आने का आग्रह किया था। आश्चर्य की बात यह है कि अब उनकी इस राष्ट्र विरोधी हरकतों पर काँग्रेस, नेशनल कान्फ्रेंस समेत अलगावादी संगठनों के नेता हमेशा की तरह चुप्पी साधे हुए हैं जबकि इन्हें थल सेनाध्यक्ष की सही, सामयिक और अपरिहार्य चेतावनी अनुचित, अनावश्चक तथा कश्मीरियों के लिए दमनकारी नजर आ रही थी। जिस तरह इन लोगों ने उस पर अनर्गल, भड़काऊ प्...

हाँ, हमारे बाप का है पी.ओ.के.

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार '' पाकिस्तान एक हिस्सेदार है। वह जो कहते हैं पार्लियामेण्ट में कि जम्मू - कश्मीर जो हिस्सा पाकिस्तान के अन्दर है वह हमारा है , अरे ! क्या तुम्हारे बाप का है ? तुम्हारे पास यह ताकत नहीं , जो तुम उसे हासिल कर सको । पाकिस्तान में भी वह ताकत नहीं जो यह ले सके। हिन्दुस्तान को पाकिस्तान से एक दिन उससे बात करनी ही पडेग़ी। '' यह  बयान किसी पाकिस्तान के हुक्मरान या फिर अलगाववाद हुर्रियत कान्फ्रेंस नेता का नहीं और न इस पाकिस्तान की धरती पर दिया है , यह चुनौती नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुखयमंत्री डॉ.फारूक अब्दुल्ला ने हिन्दुस्तान की जमीन पर है , जो कई बार यहाँ के मुखयमंत्री और केन्द्र में मंत्री में रहे चुके हैं। यही नहीं , उनके मरहूम वालिद शेख मुहम्मद अब्दुल्ला और बेटा उमर अब्दुल्ला भी इसी सूबे के मुख्यमंत्री रहे हैं। इन सभी भारतीय संविधान समेत जम्मू-कश्मीर के संविधान की भी शपथ ली है इन दोनों में पूरे जम्मू-कश्मीर को भारत का अविभाज्य अंग माना है। इनमें जहाँ भारतीय संविधान की मूल प्रति पर उनके वालिद द्रोख अब्दुल्ला के हस्ताक्षर है ...

फिर इस देश में कौन सुरक्षित है?

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के  पाँच सौ और हजार रुपए के नोटबन्दी के निर्णय को लेकर पूरे देश में इसके समर्थन और विरोध में जुलूस- प्रदर्शन , बहस-मुबाहिसों का दौर अब तक जारी है लेकिन इसी मामले में  तृणमूल काँग्रेस के बेहद करीबी तथा पश्चिम बंगाल  की मुखयमंत्री ममता बनर्जी के घोर समर्थक कोलकाता की टीपू सुल्तान के शाही इमाम मौलाना नूरूर रहमान बरकती द्वारा गत 7 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ फतवा दिया है कि कि जो शखस प्रधानमंत्री के सिर के बाल और दाड़ी का मुण्डन करेगा , उसे ' ऑल इण्डिया माइनोरिटी फोरम ' तथा ' ऑल इण्डिया मजलिस -ए-शूरा ' की ओर से 25 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा।  उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबन्दी का ऐलान का पाप किया है , यह फतवा उसका दण्ड है। निःसन्देह उनका फतवा यह अत्यन्त अलोकतांत्रिक ही नहीं , बेहद भद्‌दा , खतरनाक धमकीभरा , दुस्साहसपूर्ण और मुल्क की कानून-व्यवस्था को खुली चुनौती देने वाला है।  इस पर हैरानी की बात यह है कि इतने पर भी उस मौलाना के इस विवादित फतवे की ममता बनर्जी समेत देश के किसी भी राजनी...

क्या इस हकीकत से वाकिफ नहीं हैं मोदी जी?

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार देशभर में हर रोज बड़ी संख्या में हजारों , लाखों , करोड़ों के नये  नोटों की गडि्‌डयों के साथ लोगों के पकड़े जा रहे हैं , जिनमें कुछ जगहों पर दो हजार रुपए के नकली नोट भी मिले हैं , यहाँ तक कि आतंकवादियों के पास भी कई हजार के नये नोट मिले हैं । इससे देश की केन्द्रीय बैंक ( रिजर्व बैंक) तथा बैंकिंग व्यवस्था की पोल खोल दी है। इनके अधिकारियों और कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोटी बन्दी के फैसले के नतीजों को ही पलीता लगा दिया है। अब तक बड़ी संख्या में नये नोटों के साथ पकड़े गए लोगों में से नौकरशाह , राजनीतिक दलों से जुड़े लोग , व्यापारी , ज्वैलर्स , ठेकेदार आदि शामिल हैं। अभी तक नोट बदलने के आरोप में एक्सिस बैंक और रिजर्व बैंक के कई अधिकारी गिरफ्तार किये जा चुके हैं। देशभर में बड़ी संख्या में बैंक अधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गईं और उनकी जाँच की जा रही हैं। आश्र्चर्य की बात यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह जानकारी नहीं थी कि देश की नौकरशाही और सरकारी कर्मचारी कितने ईमानदार हैं ? क्यों एक आम आदमी सरकारी तंत्र से यथा सम्भव बचना चाहत...

अब इस बेइन्साफी पर चुप क्यों ?

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डॉ.बचन सिंह सिकरवार                                                    जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों को केन्द्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकार द्वारा पश्चिमी पाकिस्तान से आकर यहाँ बसे लोगों को ' अधिवास प्रमाणपत्र ' दिये जाने के फैसले और ' सरफेसी अधिनियम ' को लेकर बेहद नाराजगी है। इनकी मुखालफत में अब ये हर तरह के हथकण्डे अपना रहे हैं । यहाँ तक कि ये लोग इन्हें पाकिस्तान भेजने की बात कर रहे हैं और उनकी तुलना बांग्लादेशियों से करते हैं। इस  मामले में नेशनल कान्फ्रेंस खुलकर उनके साथ है और काँग्रेस दबे स्वर में। लेकिन इस मुद्‌दे पर हमेशा की तरह देश के पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दल सपा , जदयू , बसपा , राकांपा , तृणमूल काँग्रेस , वामप न्थी पार्टियाँ , मानवाधिकारों के समर्थक और सहिषुणता के पक्षधर पूर्णतः शान्त बने हुए हैं , क्या इनकी यह उन ...