अमरीका के भरोसे खुशफहमी पालना फिजूल


        डॉ.बचन सिंह सिकरवार
इस बार नये वर्ष के पहले दिन ही अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा पाकिस्तान को धोखेबाज बताते हुए आतंकवाद को खत्म करने को दी जाने वाली जिस सैन्य सहायता को बन्द करने की घोषणा की, उससे भारत को बहुत अधिक उत्साहित होने और इसे अपनी जीत जताने की आवश्यकता नहीं है। कारण यह है कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह निर्णय पाकिस्तान के भारत के विरुद्ध उसके आतंकवादी अभियान चलाने की वजह से नहीं, वरन् पड़ोसी अफगानिस्तान में सक्रिय कई दहशतगर्द गिरोहों को अपने यहाँ पालने-पोसने और पनाह देने को लेकर दी गई, जहाँ वह उनके सफाये को लेकर बड़ी संख्या में सैनिक रखे हुए हैं। फिर अमरीका बगैर स्वार्थ के कभी किसी मुल्क की न आर्थिक मदद करता और न ही सैनिक सहायता ही देता है। अपने हितों को देखते हुए उसे  निर्णय बदलने में देर भी नहीं लगती। पाकिस्तान अब तक अमरीका की बदौलत भारत को हर तरह से हैरान-परेशान करता आया है। अमरीका ने सन् 1965 और सन् 1971 के युद्धों में न केवल पाकिस्तान की खुलकर मदद की, बल्कि उसके रुख के कारण भारत अपनी इन जीतों के बाद भी पाकिस्तान के चुंगल से गुलाम कश्मीर को आजाद कराने में नाकाम रहा है। यहाँ तक कि  अमरीकी आर्थिक सहायता के बूते ही पाकिस्तान बेखौफ होकर  भारत के खिलाफ जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियाँ चलाता आया है। इस हकीकत से अमरीका अच्छी तरह से वाकिफ रहा है। हर रोज पाकिस्तान से घात पर घात खाने के बाद भी भारत उसे ‘आतंकवादी देश‘ घोषित नहीं करने सामर्थ्य नहीं जुटा पाया है, बल्कि अब भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.) के माध्यम से बातचीत जारी रखे हुए है। इसके विपरीत भारत अमरीका से यह अपेक्षा करता रहा है कि वह उसे ‘दहशतगर्द मुल्क‘ होने का ऐलान करे। 
 अब राष्ट्रपति ट्रम्प उसे धोखेबाज  भले ही कहें, जो उसकी दहशतगर्दों के खात्मे को दी गई रकम को उन्हें पालने-पोसने और पनाह देने पर खर्च करता रहा है, किन्तु अमरीका अब तक यह धोखा अनजाने में नहीं, बल्कि वह जानबूझकर और अपनी क्षेत्रीय कूटनीति एवं सामरिक फायदों को देखते हुए खाता आया है। इसका प्रमाण राष्ट्रपति ट्रम्प के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा पाकिस्तान की काली कारतूतों को भलीभाँति जानते थे। फिर भी उन्होंने पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देना बराबर जारी रखा। अमरीका  पिछले 15 सालों में पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर यानी दो लाख दस हजार करोड़ रुपए की भारी भरकम रकम दे चुका है। निश्चय ही अमरीका ने यह फैसला पानी सिर गुजर जाने के बाद लिया है जिससे पाकिस्तान को भी गहरा आघात लगा होगा। लेकिन उसके लिए यह निर्णय  पूर्णतः अप्रत्याशित नहीं है। इस तरह के निर्णय का संकेत उसे बहुत पहले से अमरीकी नेता देते आए थे, किन्तु उन्हें पाकिस्तानी नेताओं ने कभी गम्भीरता से नहीं लिया। वैसे भी अमरीका द्वारा पाकिस्तान को दी जानी उक्त राशि बहुत अधिक नहीं है जिससे उसे बहुत अधिक आर्थिक क्षति हो। वैसे भी जब-जब  पाकिस्तान पर भारत समेत दुनिया के दूसरे देशों द्वारा दहशतगर्द्र गिरोह को पनाह देने के आरोप लगाये गए, तब-तब उसने उन्हें गुमराह करते हुए खुद को उनसे पीड़ि़त साबित करते हुए हमदर्दी हासिल करने की कोशिश की है जिनसे लड़़ते हुए उसने भी अपने हजारों नागरिकों, पुलिस तथा सुरक्षाबलों की जान की कुर्बानी दी है। यह अलग बात है कि उसकी इस दलील पर शायद ही किसी मुल्क ने यकीन किया होगा, पर पाकिस्तान की सेहत पर भी  इससे कोई खास असर नहीं पड़ा। अब अमरीका की 22.5करोड़ डॉलर (1626 करोड़ रुपए) सैन्य सहायता बन्द किये जाने से पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में उसके द्वारा आतंकवादी गतिविधियों में किसी तरह की कमी आने या फिर बन्द होने की उम्मीद करना ही बेमानी होगा। लेकिन उसकी जर्जर अर्थव्यवस्था का अवश्य धक्का लगेगा। सम्भव है कि इसकी कुछ भरपाई चीन करे,जो अमरीका द्वारा खाली गए स्थान को भरने में लगा। यहाँ तक कि वह पाकिस्तान के आतंकवादी सरगना तथा मुम्बई हमले के षड्यंत्रकारी हाफिज सईद को अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी घोषित किये जाने में बाधक बना हुआ है।
       अमरीका अफगानिस्तान में अमन कायम कर उसका विकास करना चाहता, जो पिछले कई दशक के गृहयुद्ध सरीखे हालात के रहते पूरी बर्बाद हो चुका है। उसके इस लक्ष्य को पूर्ण करने में भारत उसका सहयोगी है, लेकिन पाकिस्तान की मंशा अफगानिस्तान को हर तरह से पिछड़ा और अपना पिछलग्गू बनाये रखने की है। उसे अफगानिस्तान में भारत का बढ़ता प्रभाव और दखल किसी भी सूरत में मंजूर नहीं है। इसलिए पाकिस्तान अमरीकी हितों की अनदेखी और उपेक्षा करते हुए अपने यहाँ विभिन्न दहशतगर्दों के गिरोह को पनाह दिये हुए है जो अफगानिस्तान में मौका मिलते ही न केवल दहशत फैलाते रहते हैं, बल्कि अमरीकी सुरक्षा बलों पर हमला करने से भी बाज नहीं आते।
 वैसे पाकिस्तान में ही नहीं, दुनिया के विभिन्न देशों विशेष रूप से इस्लामिक मुल्कों में सक्रिय आतंकवादी संगठनों जैसे अलकायदा, तालिबान, जैश-ए-मुहम्मद,लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जमात-उर-अहरार,नुसरा फ्रण्ट, लश्कर-ए-इस्लाम, जमात-उल-मुजाहिदीन, इस्लामिक स्टेट (आइ.एस.) आदि को पैदा करने, उन्हें पालने-पोसने मे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अमरीका का ही हाथ रहा है। सन् 1978 में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के दखल के बाद बड़ी संख्या में यहाँ के लोग पाकिस्तान में शरणार्थी बन कर आ गए। अमरीका ने अपने प्रतिद्वन्द्वी/शत्रु सोवियत संघ को अफगानिस्तान में लड़ने और उसे वहाँ खदड़ने के लिए मजहब का सहारा लिया। इसके लिए उसने पाकिस्तानी इस्लामिक कटटपन्थियों मुल्ला-मौलवियों की मदद ली और उन्हें भारी धन और एक से एक घातक हथियार उपलब्ध कराये, जिन्होंने साम्यवादियों (कम्युनिस्टों) से ‘इस्लाम को खतरा‘बताते हुए मुसलमान युवकों को संगठित कर दहशतगर्द तैयार किये। फिर उनके सहयोग और सहायता से सोवियत सेनाओं को अफगानिस्तान छोड़ने को मजबूर कर दिया।बाद में तालिबान अफगानिस्तान में साम्यवादी शासन का अन्त कर स्वयं सत्तारूढ़ हो गया,जिसे केवल पाकिस्तान और युनाइटेड अरब अमीरत (यू.ए.ई.) ने मान्यता दी थी। तालिबान सरकार ने अफगानिस्तान को इस्लामिक मुल्क घोषित कर दिया, जिसे अमरीकी सैन्य सहायता से जैसे-तैस सत्ता से बाहर किया है, पर तालिबानी दहशतगर्द अब भी अफगानिस्तान पर अवसर मिलते ही तबाही मचाने से बाज नहीं आ रहे हैं। यह सब अब अमरीका को बर्दाश्त नहीं, क्योंकि एक ओर तो उसे अफगानिस्तान में अपने सैन्य बल रखने पर भारी धन खर्च करना पड़ रहा है,दूसरी ओर उसके किये धरे को ये आतंकवादी तहस-नहस कर रहे हैं। इससे अमरीकी सरकार की अपने ही देश मेें बदनामी हो रही है। लेकिन पाकिस्तान है कि अमरीकी नेताओं की चिन्ताओं और मुश्किलों को समझना नहीं चाहता। इस कारण अब अमरीका को पाकिस्तान के खिलाफ यह अत्यन्त कठोर उठाने को मजबूर होना पड़ा है।इसमें भारत को अपना बहुत ज्यादा फायदा तलाशना फिजूल ही है। उसे पाकिस्तान से निपटने के लिए स्वयं को ही हर तरह से तैयार करना होगा।

        भ्रष्टाचार की भयावहता को कब समझेंगे?
                डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में ‘केन्द्रीय वस्तु तथा सेवा कर‘(सी.जी.एस.टी.)एवं उत्पाद शुल्क (एक्साइज) आयुक्त संसार चन्द, दूसरे अधिकरियों तथा इनके  संगी-साथियों को ‘केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो‘(सी.बी.आई.)की भ्रष्टाचार विरोधी दल(ए.सी.टी.)द्वारा रिश्वत माँगने तथा हवाला से रुपए लेने के आरोप में गिरफ्तारी से स्पष्ट है कि भ्रष्ट नौकरशाह व्यापारियों और उद्यमियों को तथाकथित कानूनों का डर दिखाकर लूट मचाये हुए हैं। सी.बी.आई.के अनुसार संसार चन्द इन अधिकारियों के साथ मिलकर रिश्वतखोरी का संगठित गिरोह ही संचालित नहीं कर रहा था, वरन् हवाला कारोबार के जरिये वारा-न्यारा यानी उसे ठिकाने लगा रहा था। वैसे भी अपने देश में नौकरशाहों ने व्यापारियों तथा उद्यमियों से रिश्वत लेकर उन्हें गैर कानूनी तरीकों से तमाम तरह की अनुचित रियायतें देकर अथवा उन्हें कर (टैक्स)अपवंचन (चोरी) का मार्ग बताने को एक धन्धे में बदल दिया गया है। किस तरह ये बड़े पैमाने पर राजस्व का नुकसान  कर अपनी जेबें भर रहे थे।यहाँ तक कि अवैध कमाई के बल पर संसार चन्द ने अपनी पत्नी को राजनीति में उतारा हुआ है, ताकि राजनीतिक रुतबा भी हासिल किया जा सके। 
 इनमें से किसी को अपने विरुद्ध किसी प्रकार की कार्रवाई होने का कोई भय नहीं है। इसका कारण है कि देश के स्वतंत्र होने के बाद से जनसाधारण के कल्याण के बहाने सरकारों ने अब तक जितने भी कानून बनाये हैं, वे सभी सरकारी अधिकारियों के लिए आम आदमी को सताने-डराने और उन्हें लूटने के हथियार साबित हुए हैं। फिर भी सरकारें हर रोज कानून पर कानून बनाने से बाज नहीं आ रहीे हैं, लेकिन उन्होंने  भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों को नमूने की सजा दिलाने वाला एक भी एक भी कानून नहीं बनाया है। इसलिए संसार चन्द ,यादव सिंह जैसे इंजीनियर, अखण्ड प्रताप सिंह जैसे आइ.ए.एस. सरीखे हजारों-लाखों अधिकारी, कर्मचारी,नेता, इंजीनियर, चिकित्सक, ठेकेदार आदि बेखौफ होकर लूट मचाए हुए हैं। इनके द्वारा बनायी गईं सड़कें, पुल, इमारतें आदि घटिया और जान लेवा साबित हो रही है। भ्रष्ट और निकम्मे कुलपतियों तथा शिक्षकों ने शिक्षा को बर्बाद करके रख दिया है जिन्होंने अपने राजनीतिक रसूख या धनबल से ये पद हथियाये हुए हैं। यह भ्रष्टाचार का घुन देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहा है। यह अर्थव्यवस्था के लिए अत्यन्त घातक होने के साथ-साथ तमाम अन्यायों, अत्याचारों तथा अपराधों का सबसे कारण और आर्थिक विषमता का जनक है जिसकी भयावहता का समझना और उसका शीघ्र समूल उन्मूलन अपरिहार्य है।
           प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केन्द्र और उ.प्र.के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राज्य सरकार रिश्वतखोरों के रिश्वत लेने पर रोक लगाने में विफल साबित रही हैं। इनके तमाम दावों के बावजूद केन्द्र और राज्य सरकारों के सभी विभागों(न्याय विभाग  भी)में आम आदमी का कोई भी काम बगैर रिश्वत दिये नहीं हो रहा है। राज्य सरकार के समय-समय पर दिये जा रहे निर्देशों के बाद भी दाम और दबाव के बिना छोटे-बड़े अधिकारी से निर्णय कराना असम्भव है। आम आदमी हर पाँच साल बाद होने वाले चुनाव में इस आस-विश्वास से दल विशेष के पक्ष में अपना मतदान करता है कि उसके मत से बनने वाली सरकार उसकी समस्याओं को हल करेगी। उसके कार्य बगैर सिफारिश और रिश्वत के होने लगेंगे, पर आजादी के बाद से उसे हर बार निराशा ही मिली है। 
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कालेधन पर लगाम लगाने को पाँच सौ और एक हजार रुपए के नोट बन्द  किये थे। उससे यह लगा कि इसके बाद  भ्रष्टचारी भ्रष्टचार के माध्यम से अवैध धन अर्जित करने से डरेंगे, लेकिन इसके विपरीत बैंक अधिकारियों समेत पेट्रोल पम्प स्वामियों, रोडवेजकर्मियों, चिकित्सकों  समेत लोगों ने भ्रष्टाचारियों के कालेधन को सफेद करने में जमकर रिश्वत लेकर अवैध धन कमाया तथा बनाया, किन्तु अभी तक उन सबके खिलाफ सरकार ने कोई कठोर कार्रवाई की हो, ऐसा सुनने-देखने को नहीं मिला है।  वर्तमान भ्रष्ट व्यवस्था को कुछ लोगों ने भ्रष्टाचार को मजबूरी में जीवन का अभिन्न हिस्सा और उसे अपनी नियति मान लिया है। हकीकत यह है कि जिसने भी  इस भ्रष्ट व्यवस्था से सफलतापूर्वक सामजंस्य स्थापित कर लिया है, वही सबसे कामयाब, समृद्धशाली नेता, नौकरशाह,  व्यापारी, उद्यमी, इंजीनियर, चिकित्सक, ठेकदार बने हुए हैं। इनका एक ही गुरु मंत्र है कि जीभर कर दोनों हाथों से  हर काम की हर किसी से रिश्वत लो, पकड़े जाने पर रिश्वत देकर छूट जाओ। अपने देश में जहाँ  कुछ लोग रक्षा सौदों में दलाली लेते रहे  हैं, वहीं कुछ धन के लालच में मुल्क की सुरक्षा से जुड़ी सूचनाएँ दुश्मन देश को हवाले करते रहते हैं। इस भ्रष्टाचार  के कारण देश का युवा पथ भ्रष्ट हो रहा है।
  देश के ऐसे माहौल के कारण जहाँ  कुछ लोग राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव समेत भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में सजा भुगत रहे दूसरे राजनेताओं के प्रति दूसरे राजनीतिक दलों के नेताओं और उनकी बिरादरी के लोगों की सहानुभूति तो कम से यही दर्शा रही है। इसके विपरीत ईमानदार नेताओं और नौकरशाहों को कोई पसन्द नहीं करता। केन्द्र और राज्य सरकारें भी ऐसे ईमानदार नौकरशाहों को महŸवपूर्ण पद देने से बचती हैं।
                   आमतौर पर कुछ लोगों का कहना होता है कि हम रिश्वत देते हैं इसलिए पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी/कर्मचारी रिश्वत लेते हैं, लेकिन उनका यह कथन आंशिक रूप से ही सच है। कुछ भ्रष्ट व्यापरियों तथा उद्यमियों आदि को छोड़कर शायद ही कोई अपनी मर्जी से अपनी मेहनत की कमाई रिश्वत में देना चाहेगा। सच्चाई यह है कि आज भी बगैर रिश्वत के थानों में रिपोर्ट दर्ज नहीं होती। उसके बाद मेडिकल कराने, विवेचक(जाँचकर्ता)को बिना चढ़ावा चढ़े सही तरह से काम नहीं करा सकते। कमोबेश यही हालत न्याय मन्दिर की है। भूमि विवाद,जाति/आय प्रमाण पत्र के मामले लेखपाल को बगैर समझे सही रिपोर्ट नहीं मिल सकती। नगर पालिका/नगर निगम में जन्म/मृत्यु प्रमाण पत्र पाने , गृहकर, जलकर आदि का सही आकलन कराने को हर हाल में मुट्ठी ढीली करनी होगी। उपनिबन्धक फर्म्स, चिट्स, सोसाइटी कार्यालय में हर काम की रिश्वत देनी पड़ती है ,अन्यथा आपकी संस्था किसी को भी दे दी जाएगी। किसी भी व्यक्ति को रिश्वत देने का शौक नहीं है। लोग अपनी जान-माल , इज्जत बचाने, ,बिना अपराध के जेल जाने के डर से रिश्वत देने, यहाँ तक अपना वेतन/पेंशन/भविष्य निधि/अपनी भूमि का मुआवजा पाने, मकान-जमीन की रजिस्ट्री, नक्शा पास कराने, नल-बिजली का कनैक्शन लेने को अधिकारियों/कर्मचारियों, अदालती समन पाने को चौथ देने को विवश हैं। देश में सड़क पर फेरी लगाने से लेकर कोई भी छोटा-बड़ा काम-धन्धा करने, कल-कारखाना  चलाने पर सम्बन्धित सरकारी कर्मचारियों और स्थानीय  नेताओं, पुलिस तथा गुण्डों को रिश्वत दिये बिना काम करना असम्भव है। भ्रष्टाचार से बने देश और प्रदेश के इस विषाक्त वातावरण प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी जी बतायें कि ऐसे में कोई ईमानदार युवा उद्यमी उद्योग लगाने और दूसरे कारोबार करने का दुस्साहस करेगा ?
    सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
 ककक
                       बाज नहीं आ रहे हैं आस्तीन के साँप 
                        डॉ.बचन सिंह सिकरवार      
हाल में जम्मू के  संुजवां बिग्रेड में घुसे पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन ‘‘जैश-ए-मोहम्मद‘ दहशतगर्द जब भारतीय सैनिकों का खून बहा रहे थे। उसी दौरान जम्मू-कश्मीर विधान सभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस का  विधायक मोहम्मद अकबर लोन ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद‘ के नारे लगाये जाने की घटना अत्यन्त शर्मनाक होने के साथ एक बार फिर देश में छिपे आस्तीन के साँपों के चेहरों से नकाब हटा दिया है, जो कभी खुलकर तो कभी छिपकर, तो कभी सत्ता में रह कर या विपक्ष में रहते हुए  अपने मुल्क से लगातार गद्दारी करते आ रहे हैं। वैसे भी समय-समय पर देश के विभिन्न क्षेत्रों  विशेष रूप से कश्मीर घाटी में तो आए दिन पाकिस्तानी झण्डा लहराते हुए ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद‘, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद समेत न केवल तमाम भारत विरोधी नारे लगाते ही रहते हैं, बल्कि दुनिया के सबसे खूंखार दहशतगर्द ‘इस्लामिक स्टेट‘(आइ.एस.)का झण्डे के साथ उसकी हिमायत करते नजर आते हैं। फिर भी समाज का एक वर्ग न केवल खामोश बन रहता है, बल्कि उनके साथ हमदर्दी जताने में भी संकोच नहीं दिखाता। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के  दिल में शोपियां में आतंकवादियों से मुठभेड़ के समय सेना के जवानों पर पत्थरों से जानलेवा हमले कर रहे उनके समर्थकों से इतनी  हमदर्दी पैदा हो गई कि उन्होंने  सैन्य अधिकारी मेजर आदित्य कुमार और उनके साथियों के खिलाफ पुलिस में प्राथमिक दर्ज कराने मंे देर नहीं की, जिन्हें अपनी आत्मरक्षा में गोलियाँ चलाने पर मजबूर होना पड़ा। महबूबा और उन जैसी मानसिकता वालों को सिर्फ  इन आतंकवादियों और उनके समर्थकों के ही मानवाधिकार दिखायी देते आए है, पर इनमें से शायद ही कभी सैनिकों के लिए हमदर्दी के दो बोल बोले हों या उनके इतनी अत्यन्त विषम स्थितियों में अपने कार्य को अंजाम देने की तारीफ की हो। 
         जम्मू-कश्मीर सरकार के सैनिकों के विरुद्ध रिपोर्ट कराने को लेकर  देशभर के लोगों में गहरा असन्तोष और आक्रोश व्याप्त है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस निर्णय से आहत होकर मेजर आदित्य के पिता लेफ्टिेनेण्ट कर्नल कर्मवीर सिंह द्वारा अपने पुत्र और उसके साथियों के खिलाफ रिपोर्ट को निरस्त कराने को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने को विवश होना पड़ा है। इस याचिका में उनका कहना है कि राज्य सरकार द्वारा  पुलिस कार्रवाई को अनुचित और मनमानी ढंग की गई बताया है। उनके पुत्र मेजर आदित्य को देश के प्रति अपने कर्Ÿाव्य निभाने के लिए हिंसक भीड़ पर गोली चलानी पड़ी थी, जो आत्मरक्षार्थ थी। फिर यह घटना सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून(अफस्पा) वाले क्षेत्र में हुई थी, जहाँ हिंसक भीड़ ने सेना के काफिले पर हमला कर दिया था। फिलहाल, अब सवोच्च न्यायालय ने इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है। वैसे सैन्य अधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने का यह फैसला मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने  किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं लिया है, बल्कि उन्होंने खूब सोचा-विचार कर अपने सियासती नफा-नुकसान देखते हुए लिया है। इस कारण ही मुख्यमंत्री  मुफ्ती ने अब तक पत्थरबाजी के 1745 मामलों में 9,750 युवाओं पर दर्ज मामले वापस लिए हैं। इनमें 2008 से 2017 के बीच पत्थरबाजी के मामले और पहली बार पत्थरबाजी करने वाले युवाओं पर केस हैं। अपनी सियासती फायदों के लिए उन्होंने इन पत्थरबाजों को सुधरने का मौका देने के नाम पर अपनी जमकर रहमत बरसायी है। 
                           वैसे भी हकीकत यह है कि कश्मीर घाटी के ये सियासी नेता भले ही किसी भी सियासती पार्टी से ताल्लुक रखते हों और कश्मीरियत(धार्मिक सहिष्णुता) का राग अलापते रहते हों, लेकिन इनमें से ज्यादातर कट्टरपन्थी मजहबी है जिनका एक ही मकसद है जम्मू-कश्मीर ही क्या? पूरे हिन्दुस्तान पर इस्लामिक हुकूमत कायम करना या फिर पाकिस्तान के हवाले करना है। यह सच्चाई नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक मो.अकबर लोन के इस बयान से साबित होती है जिसमें उनका कहना था, ‘‘मैं पहले मुसलमान हूँ। मेरे जज्बातों को ठेस पहुँची ,जब भाजपा विधायक ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद‘ के नारे लगा रहे थे। यानी उनके लिए मुल्क से बढ़कर ही मजहब है। ऐसा मानने वाले देश में मोहम्मद अकबर लोन अकेले नहीं हैं। कुछ दिनों पहले नेकॉ.के ही दूसरे विधायक ने एक स्कूली बच्चे के ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद‘ के नारे लगाने पर ताली बजाकर उसकी हौसला अफजाई की थी। इससे पहले पीडीपी विधायक भी देश विरोधी बाते करते देखे गए। इस सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री तथा केन्द्रीय मंत्री रहे डॉ.फारूक अब्दुल्ला भी इन अलगाववादियों और पत्थरबाजों की खुलकर हिमायत करने के साथ ही इन्हें आजादी के सिपाही बताते आए हैं। हालाँकि न जाने कैसे अब उन्होंने अपने विधायक मो.अकबर लोन के इस बयान को गैर जिम्मेदाराना बताते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की भी बात कही है। 
          जहाँ तक जम्मू-कश्मीर विशेष रूप से  कश्मीर घाटी के हालात की बात है तो पिछले दो वर्षों के दौरान पत्थरबाजी की मामूली घटनाओं में शमिल होने वाले चार हजार युवाओं को माफी देने की सिफारिश की है। सन् 2016  और 2017 में 3773 मामले दर्ज किये गए, जिसमें 11,290लोगों को गिरफ्तार किया।233कर अता-पता नही है। जुलाई, 2016 में कश्मीर हिजबुल कमाण्डर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हिंसा भड़क उठी। इसमें 85लोगों मारे गए। 2016में पत्थरबाजी के 2904 मामले दर्ज किये गए,जिनमें 8570लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इसके बावजूद भारतीय सुरक्षाबलों ने दो सौ से अधिक आतंकवादियों को मार गिराने में कामयाबी पायी है जिसमें देश के सैनिकों और पुलिसकर्मियों को जान गंवानी पड़ी है। इस बीच पाकितान ने 2016 में 228बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया तो 2017 में 860बार। इस वर्ष के वह बीते चन्द दिनों में ही 240बार से अधिक संघर्ष विराम का उल्लंघन कर चुका है। इस दौरान केन्द्र सरकार कश्मीर घाटी के अलगाववादी नेताओं को कमजोर करने को उनकी विदेशों से होने वाली आर्थिक सहायता पर रोक लगाने पर किसी हद कामयाब रही है, जिससे वे बौखलाये हुए हैं।  वैसे भी आस्तीन के ये साँप  देश के किसी एक सूबे में नहीं हैं कमोबेश रूप में देशभर में फैले हुए हैं जो किसी एक मजहब और जाति विशेष के नहीं है, बल्कि सभी जगह फैले हुए हैं। इनमें कुछ जातिगत विद्वेष तो कुछ मजहबी नफरत के जरिए मुल्क की स्वतंत्रता, एकता, अखण्डता को गम्भीर संकट का कारण बने हुए हैं। ऐसे देशद्रेहियों के हौसले इतने बड़े हुए हैं कि इनमें से कुछ को 26 जनवरी गणतंत्र दिवस को कासगंज में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लेकर चलने देना भी गंवारा नहीं हुआ है, तो कुछ  ने इस मौके पर मध्य प्रदेश के शाजापुर में तिरंगे की आड़ में ‘इस्लामिक झण्डा लेकर चलना दुस्साहस दिखाया। इससे पहले कुछ को राष्ट्रगीत ‘वन्देमातरम‘ गाने पर आपत्ति है तो कुछ को राष्ट्रगान गाने पर। देश के तथाकथित पंथनिरपेक्षतावदियों को केरल में आये दिन राष्ट्रवादियों/हिन्दुत्ववादियों हत्याओं में असहिष्णुता दिखायी नहीं देती, लेकिन ये लोग एक मजहब और जाति विशेष के किसी व्यक्ति की मौत पर जमीन-असमान एक कर देते हैं। इनमें से कुछ नक्सलवादियों की हिमायत करते है, तो कुछ देश के टुकड़े-टुकड़े करने की माँग करने वालों की। यहाँ तक इनमें से बड़ी संख्या में पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट तक के समर्थक हैं तो कुछ चीन और दूसरे मुल्कों के। आस्तीन के ये साँप देश को डसने की हमेशा फिराक में लगे रहते हैं। ऐसे में हम सभी का कर्Ÿाव्य हैं कि इन साँपों को जैसे भी हो, उनका समूल उन्मूलन करने का हर सम्भव प्रयास करें, ताकि अपने मुल्क की आजादी और उसकी सरहदें महफूज रहें।  
 सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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