कौन हैं ये जिन्ना के पक्षधर ?

        
 डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय(ए.एम.यू.)के छात्र संघ के कार्यालय में लगे पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के चित्र को हटाये जाने की माँग और उसे न हटाने की  हठ ,इसके पक्ष और विरोध में कुछ राजनेताओं और मजहबी नेताओं की बयानबाजी से उत्पन्न विवाद अत्यन्त दुखद तथा राष्ट्रीयता की भावना के सर्वथा विपरीत है। वैसे जिन्ना के फोटो को हटाने की माँग को लेकर ‘हिन्दू जागरण मंच‘ ने जिस प्रकार पथराव, गोलीबारी करते हुए उग्र प्रदर्शन किया गया है जिसमें नगर  पुलिस अधीक्षक, उपजिलाधिकारी समेत कई  दो दर्जन से अधिक छात्र घायल हुए हैं, उसे अनुचित, अनावश्यक, असामयिक ही माना जाएगा। इस विवाद के कारण ही पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का छात्र संघ का आजीवन सदस्य बनाने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। 
           वैसे ही जिन्ना के चित्र को लगाये रखने के पक्षधरों की मंशा, विचारों,उसे लगाये रखने के औचित्य को लेकर दिये जा रहे तर्कों से सहमत नहीं हुआ जा सकता। इस सच्चाई की अनदेखी और उपेक्षा नहीं की जा सकती है कि मोहम्मद अली जिन्ना के कारण ही देश का विभाजन हुआ,क्यों कि उनका ही यह विचार था कि हिन्दू और मुसलमान दो अलग कौम हैं, जो किसी भी सूरत में साथ-साथ नहीं रह सकतीं। इसलिए मुल्क का बँटवारा जरूरी है। उनके इस ‘द्विराष्ट्र‘ के विचार से हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत और अविश्वास पैदा हुआ,जो सदियों से इस मुल्क में मिलजुल कर साथ-साथ रहते आ रहे थे। उनकी हठधर्मी के कारण न केवल भारत का विभाजन हुआ,बल्कि बड़े पैमाने पर हिंसक दंगे, बलात्कार, कत्ले आम  हुए। परिणामतः लाखों़ परिवार विस्थापित हुए तथा दस लाख से अधिक हिन्दू और मुसलमान मारे गए। फिर उन्होंने मजहबी नफरत के आधार पर भारत को खण्डित कर जिस इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान को  बनाया,वह अपने जन्म से अब तक  लगातार भारत पर हमलावर बना हुआ है। ऐसे में देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार शख्स हमारे मुल्क में सम्मान का पात्र कैसे हो सकता है?  
       जिन्ना के चित्र को लगाये रखने को लेकर इस विश्वविद्यालय के कुछ पदाधिकारियों का तर्क है कि वह देश की आजादी के लिए लड़े और वह इतिहास का हिस्सा है। हम उनका चित्र लगाये रखकर इतिहास को सहेजने का कार्य कर रहे हैं।लेकिन ऐसे  तर्क देने वाले बतायेंगे दुनिया में ऐसे कितने मुल्क हैं जो उसका विनाश करने वालों को आदर और सम्मान देते हों या ऐसी नजर से देखते हों? जिन्ना के फोटो लगाने को लेकर इसी विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर ने सही फरमाया है कि जिन्ना न तो ए.एम.यू. के छात्र रहे हैं और न ही शिक्षक,ऐसे में वहाँ उनका फोटो लगाना शर्मनाक है? छात्र और प्रशासन को इस तस्वीर को स्वेच्छा से हटाना ही बेहतर होता। इसी मामले में एक काँग्रेसी नेता का यह कहना है कि पाकिस्तान में भी तो शहीद-ए-आजम भगत सिंह को पाकिस्तान में सम्मान दिया जाता है तो इसके लिए जवाब यह है कि भगत सिंह का जन्म उसी इलाके में हुआ,जो अब पाकिस्तान में है। फिर वह अखण्ड भारत की आजादी के लड़ाई के योद्धा थे,जिसके कारण ये देश अँग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ।
               जहाँ तक इस मामले को लेकर उ.प्र.के श्रम और सेवायोजन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के मोहम्मद अली जिन्ना को महापुरुष बताये जाने का प्रश्न है तो उन्होंने जानबूझकर अपनी भावी राजनीति को देखते हुए दिया है। उनके इस बयान को लेकर भाजपा के राज्यसभा के सांसद हरनाथ सिंह यादव ने उन्हें पार्टी से निकालने जाने की जो माँग की है वह पूरी तरह सही है। दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य मूलतःबसपाई हैं जो अपने को हिन्दू  नहीं,बौद्ध बताते हैं। वह नफरत भरी जातिवादी राजनीति और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की उपज है। वह वोटों के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह भाजपा की सत्ता की बेशर्म भूख हैं जो ऐसे शख्सों के चाल-चरित्र को जानते हुए भी उन्हें न केवल पार्टी में जगह दी, बल्किं मंत्री भी बनाया हुआ है। इधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यकारिणी के सदस्य एवं  राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के  संस्थापक इन्द्रेश कुमार ने जिन्ना को देश के बँटवारे का जिम्मेदार बताते हुए उन्हें देशद्रोही बताया है। वैसे जिन्ना को महान बताने वालों में भाजपा के अध्यक्ष और उपप्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी और केन्द्रीय मंत्री जसवन्त सिंह भी रहे हैं। यह अलग बात है कि उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह सख्त बयान उचित है कि देश को बाँटने वाले जिन्ना का महिमा मण्डन स्वीकार नहीं। उन्होंने ए.एम.यू.मामले की जाँच के आदेश भी दिये हैं।
     वैसे  इस विवाद की शुरुआत अलीगढ़ के भाजपा सतीश गौतम द्वारा ए.एम.यू.के कुलपति को  मोहम्मद अली जिन्ना चित्र हटाने के लिए लिखे पत्र से हुई।इस मामले में कुलपति का कहना है कि जिन्ना का फोटो सन् 1938से यहाँ लगा हुआ है जो इस ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा है,किन्तु यहॉ प्रश्न यह है कि अगर किसी ऐसे शख्स ने अपने वतन से गद्दारी की हो या फिर किसी अन्य अनुचित कार्य में दण्डित हुआ है, तब क्या ऐसा ही बर्ताव किया जाएगा? कुछ लोगों के इस विचार से भले ही पूरी तरह से सहमत न हुआ जाए कि ए.एम.यू  पाकिस्तान के गठन का  विचार देने वाला और उसका  पोषक है, किन्तु यह तथ्य सौ फीसद सही है कि यहाँ से शिक्षितों ने ही न केवल पाकिस्तान की शासन-सत्ता की कमान सम्हाली है, बल्कि इनमें से बड़ी संख्या में अलगाववादी विचारों के रहे हैं और हैं। इसके साथ यह भी सच है कि यहीं के शिक्षित केवल राजनीति क्षेत्र में शीर्ष पदों पर रहे हैं, वरन् उच्च प्रशासनिक पदों को भी सुशोभित किया है। जहाँ तक जिन्ना को महान और अपना आदर्श बताने वालों का प्रश्न है तो अपने देश में ऐसे लोगों को एक बड़ा वर्ग है जो स्वयं को विदेशी आक्रान्ताओं को न केवल वंशज मानता है, बल्कि उन्हें अपने मजहब का मुजाहिद यानी मजहब का प्रचार-प्रसार करने वाला मानता है। यही कारण है कि जहाँ कुछ अपने को गजनी, गौरी, तैमूूर, बाबर, औरंगजेब, नादिरशाह,अहमदशाह अब्दाली आदि का वंशज बताते हुए गर्व का अनुभव करते हैं, तो कुछ नेता अपनी जाति के सिपाहियों के सन् 1857के‘प्लासी युद्ध‘ और 1जनवरी,1818के कोरेगाँव में अँग्रेजों की सेना में रहकर उनका साथ देने को  भारत को हराना बताते हुए खुद को गौरवान्वित अनुभव करते हैं और अब हर साल उसका जश्न मनाने कोरगाँव पहुँचते हैं। लेकिन एकमुश्त वोट की राजनीति के कारण सभी राजनीतिक दलों की सरकारें अब तक ऐसे ही नेताओं को महिमा मण्डित करने होड़ करती आयी हैं। ऐसे में केवल जिन्ना के पक्षधरों को ही देशद्रोही कहना कहाँ तक उचित है? 
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,  गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054 

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