कब बदलेगा चिकित्सकों का यह रवैया?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान‘(एम्स)के राजेन्द्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केन्द्र (आरपीसी).के चीफ डॉक्टर के गत 26अप्रैल को मरीजों,तीमारदारों तथा नर्सिंग स्टॉफ के सामने एक रेजीडेट डॉक्टर को थप्पड़ मारने वाले डॉक्टर को निलम्बित किये जाने की माँग को लेकर यहाँ के कोई दो हजार रेजीडेण्ट डॉक्टरों द्वारा जो हड़ताल की गई,वह दो दिन बाद एम्स प्रशासन के उस थप्पड़ मारने वाले डॉक्टर को पद से हटाये जाने के बाद अब समाप्त हो गई,किन्तु इस तरह की घटनाओं पर चिकित्सकों द्वारा हड़ताल कर मरीजों के जीवन से खिलवाड़ करना अत्यन्त दुखद है। अपनी माँग मनवाने को लेकर इन डॉक्टरों की हठर्ध्मिता मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रही थी। इस क्षुद्र से विवाद को लेकर चिकित्सकों द्वारा इतना बड़ा और मरीजों के लिए प्राणघातक कदम उठाना अमानवीय है इससे जहाँ मरीज असहनीय दर्द से कराह रहे थी,वहीं कुछ गम्भीर मरीजों की जान पर बन आयी । इनकी इस हड़ताल के कारण एम्स में न तो आउटडोर में मरीज देखे जा रहे थे,,न गभ्भीर रूप से बीमार मरीज भर्ती किये जा रहे थे, यहाँ तक कि जिन मरीजों के ऑपरेशन होने थे, वह भी नहीं हो रहे थे। इस हड़ताल के दौरान जहाँ कुछ मरीज इलाज के अभाव में तड़फ रहे थे, वहीं कुछ उपचार के लिए न चाहते हुए महँगे निजी चिकित्सालयों में भर्ती होने को मजबूर थे। लेकिन चिकित्सक भाषणबाजी के साथ-साथ अपने मोबाइलों पर इण्टरनेट पर वीडियो देखकर समय बीता/मनोरंजन कर रहे थे, उन्हें मरीजों और उनके तीमारदारों की दर्दभरी आवाजें सुनायी नहीं दे रही थीं। वैसे चिकित्सकों का यह रवैया उनके द्वारा ली गई उस शपथ के सर्वथा विपरीत है जो उन्होंने इस पेशे में प्रवेश के समय ली थी। वैसे अब दुर्व्यवहार करने वाले डॉक्टर ने माफी माँग ली और अवकाश पर चला गया था, लेकिन अपने झूठे अभिमान के लिए इन चिकित्सकों को हजारों मरीजों के जीवन से खिलवाड़ करने में जरा भी संकोच नहीं हुआ। इतने गम्भीर मुद्दे पर केन्द्र सरकार का रवैया भी क्षोभजनक है जिसने इस विवाद को खत्म कराने में शीघ्र गम्भीर पहल नहीं की है।
वैसे भी चिकित्सकों को इन बातों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि उनकी गणना समाज के अत्यन्त शिक्षित, प्रशिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग में की जाती है। उन पर लोगों के जीवन की रक्षा जैसा अत्यन्त महŸवपूर्ण दायित्व है। लोग चिकित्सक को धरती का भगवान समझ कर अपना और अपने मरीज के जीवन की रक्षा का दायित्व उन्हें सौंपते हैं, क्या उनके लिए छोटे-छोटे विवादों को लेकर अपने दायित्व से विरत होकर मरीजों के प्राण संकट में डालना उचित है? वे जिस माँग को मनवाने को हड़ताल पर हैं, क्या वह मरीजों के प्राणों से अधिक महŸवपूर्ण हैं? जो मरीज उनके भरोसे एम्स में अपनी चिकित्सा कराने को भर्ती हैं या भर्ती होने आए हुए हैं, चिकित्सा के बगैर उनकी मौत होने पर क्या वे उनके प्राण वापस कर पाएँगे?क्या उनकी इस तरह की क्षतिपूर्ति सम्भव है?इस विवाद के लिए क्या वे जिम्मेदार हैं?अगर नहीं,तो फिर उन्हें किस बात की सजा दी जा रही है? आखिर उनका अपराध क्या है? क्या इन डॉक्टरों ने यह विचार किया कि आज जिस स्थिति में दूसरे मरीज हैं,उसमें कभी उनके स्वजन और प्रियजन भी हो सकते हैं। फिर वे देश के लोगों के धन और सुविधाओं से चिकित्सक बने हैं। ऐसे में उनका भी देश के लोगों के प्रति विशेष दायित्व है। क्या वे उसका ईमानदारी से निर्वहन कर रहे हैं?
एम्स अपने देश का सबसे प्रमुख चिकित्सा संस्थान है जहाँ देश भर से गम्भीर और असाध्य(लाइलाज)रोगों से पीड़ित मरीज इस आस-विश्वास के साथ आते हैं कि उन्हें कम धन खर्च किये बेहतर और भरोसेमन्द विशेषज्ञ चिकित्सकों का उपचार मिलेगा। यहाँ भी इलाज लिए उनका प्रवेश महीनों की प्रतीक्षा के बाद हुआ होता है। एम्स में भी उपचार के लिए ज्यादातर वे लोग आते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती, जो नामीगिरामी निजी अस्पतालों में वह अपना और अपने परिजन के गम्भीर रोग का इलाज करा सकें, लेकिन इससे इन हड़ताली चिकित्सकों को कोई सरोकार नहीं था।
अपने देश में जनसंख्या की दृष्टि से चिकित्सकों की संख्या बहुत कम है। ये चिकित्सक भी अधिकतर महानगरों, बड़े शहरों में अपनी चिकित्सा सेवा देते हैं, जबकि देश के ज्यादातर लोग अब भी गाँवों और कस्बों में रहते हैं, जहाँ अच्छी चिकित्सा सेवाओं का नितान्त अभाव है। इसलिए गाँवों में रहने वाले लोग अब भी अशिक्षित, अप्रशिक्षित, अर्द्ध प्रशिक्षित चिकित्सकों से अपना उपचार कराने को मजबूर हैं,जहाँ जाने -अनजाने उन्हें अपनी जान गंवाने को मजबूर होना पड़ता है। देश के कुछ गाँवों तथा कस्बों में जहाँ सरकारी प्राथमिक या सामुदायिक चिकित्सालय हैं, वहाँ भी चिकित्सक मुश्किल से जाते हैं। ऐसे में ये चिकित्सा केन्द्र अन्य कर्मचारियों के भरोसे चल रहे हैं, वह भी रिश्वत लेकर कभी -कभी मरीजों को मौत के मुँह धकेलते रहते हैं। शहरों में सरकारी चिकित्सक अपने कार्य पर न जाकर निजी क्लीनिक/नर्सिंग होम में सेवा देते है या फिर कुछ सरकारी चिकित्सालय में बैठकर वहाँ से मरीजों को भयभीत कर अपने नर्सिंग या किसी दूसरे नर्सिंग को भेजने को मजबूर करते हैं, ताकि उनसे अपनी दलाली वसूल सके। ये सरकारी चिकित्सक बगैर कार्य के सरकार से वेतन के साथ नान प्रेक्टिसिंग एलाउन्स भी लेते हैं, लेकिन इन भ्रष्ट चिकित्सकों के विरुद्ध सरकारों द्वारा कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है इससे इनके हौसले बड़े हुए हैं। निजी प्रेक्टिस करने वाले चिकित्सक भी मरीजों को देखने की मोटी फीस लेने के बाद उन्हें तरह-तरह की अनावश्यक जाँचें और परीक्षण कराने को विवश करते हैं। साथ ही उन दवा कम्पनियों की महँगी और गैरजरूरी दवाएँ लिखते हैं, जिनसे अधिक कमीशन मिलता है। अपने देश में फर्जी चिकित्सकों की तरह की फर्जी दवा कम्पनियाँ भी हैं,जो दाम वसूल करने के बाद मरीजों की जान ले लेती हैं। सरकारी -गैर सरकारी चिकित्सक मरीजों और उनके तीमारदारों के साथ उचित व्यवहार करने के साथ उपचार पर अपेक्षित ध्यान, सतर्कता,सावधानी नहीं बरतते। इस कारण अक्सर अस्पतालों में चिकित्सक या उसके स्टाफ के साथ मरीज एवं तीमारदार के बीच मारपीट/विवाद पैदा हो जाता है। इसके बाद हड़ताल की नौबत आ जाती है।ऐसे में चिकित्सकों और चिकित्सा से सम्बन्धित कर्मचारियों के संगठन भी अपने सदस्यों के उचित/अनुचित व्यवहार पर ध्यान न रखकर हड़ताल पर आमादा हो जाते है,इससे मरीजों को कितना कष्ट होता है,उसका उल्लेख कर पाना आसान नहीं है। जिस तरह से अपने देश में बडे़ पैमाने पर मौत का व्यापार किया जा रहा है, उस स्तर पर इसकी रोकथाम के इन्तजाम नहीं किये गए है। इस कारण कोई हड़ताल करके ,तो कोई फर्जी उपचार या नकली दवा खिलाकर मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहा है, पर देश का कानून ऐसे अपराधियों को सजा देने में नाकाम साबित हो रहा है। कायदे से अब देश में ऐसे कानून और तंत्र की सख्त जरूरत है जो चिकित्सकों के हड़ताल जैसे कदम पर कठोरता से रोक लगा सके।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054
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