क्या सिर्फ हिन्दुओं के खिलाफ है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा ‘एस.दुर्गा‘ तथा ‘न्यूड‘ नामक दो फिल्मों को गोवा में होने जा रहे भारतीय अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आइएफएफआइ)में प्रदर्शन की अनुमति न देने को अभिव्यक्त का हनन का मामला बताते हुए उसे जिस तरह तूल दिया और उसका विरोध किया जा रहा है उससे तो यही लगता है कि इस फैसले की मुखालफत करने वालों को इस देश की बहुसंख्यक समुदाय की न तो धार्मिक आस्था -श्रद्धा, विश्वास और भावनाओं से कोई सरोकार है तथा न ही उनको इससे ठेस लगने की परवाह ही है। अगर ऐसा होता तो क्या इस फिल्म का नाम ‘सेक्सी दुर्गा‘ रखा जाता, जो हिन्दुओं की आराध्य देवी दुर्गा हैं। इन्हें हिन्दू शक्ति रूपा मानते हुए उनकी पूजा-उपासना करते हैं। देशभर में वर्ष में दो बार यानी कुवार और चैत्र मास में नवरात्र में नौ दिनों तक दुर्गा के नौ रूपों की बढ़े स्तर पर पूजा-अर्चना की जाती है। इस फिल्म को बनाने वालों को यह पता नहीं हो, ऐसा सम्भव नहीं है। अभी तक देश के किसी भी रचनाकार ने न तो इस फिल्म निर्माता से देवी दुर्गा के नाम पर उससे अपनी फिल्म का नाम रखने का औचित्य जानने का प्रयास किया है और न ही उसकी कुत्सित मानसिकता और कुकृत्य की निन्दा /आलोचना की है।
वास्तविकता यह अपने देश में कुछ लोग जिनमें लेखक, इतिहासकार, चित्रकार, फिल्मकार, राजनेताओं को स्वयं को चर्चा में लाने या फिर कमाई के इरादे से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता/रचनात्मकता की आड़/बहाने से हिन्दुओं की धार्मिक आस्था, श्रद्धा, विश्वास केन्द्रों को मिथ्या टहराने तथा उनका उपहास करने और उनकी सामाजिक परम्पराओं, रीति-रिवाजों की अनुचित तथा अनावश्यक आलोचना, यहाँ तक कि उनके धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक ग्रन्थों, स्थलों, नायकों तथा दूसरे पात्रों की प्रामाणिकता पर ही प्रश्नचिह्न लगाने के साथ ही उनके चरित्रों से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते। क्षोभ की बात है कि इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर वे अपने राजनीतिक हितों के लिए वे देश विरोधियों, अलगाववादियों, आतंकवादियों तक हिमायत करने से बाज नहीं आते। यही कारण है कि देश में कश्मीर घाटी में ही नहीं, दिल्ली के ‘जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय‘,हैदराबाद यूनिवर्सिटी, पश्चिम बंगाल के कुछ विश्वविद्यालयों, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, म.प्र आदि राज्यों के कई छोटे-बडे़ नगरों में भी खुले आम भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर माँगे आजादी, पाकिस्तान जिन्दाबाद, खालिस्तान जिन्दाबाद, जैसे नारों, पाकिस्तानी और आइ.एस.के झण्डे फहराने के साथ पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की जीत पर पटाखे फोड़े जाते देखे जाते हैं। फिर भी उनकी इन देशद्रोहपूर्ण हरकतों की बराबर अनदेखी ही नहीं, कुछ लोग उनकी हिमायत भी करते नजर आते हैं।
अब जहाँ तक ‘एस.दुर्गा‘ नामक फिल्म को लेकर उत्पन्न विवाद का प्रश्न है तो इस फिल्म के नाम को लेकर होने वाले सम्भावित विवाद को टालने के उद्देश्य से केन्द्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड ने इसके नाम पर अपनी आपत्ति पर जतायी थी। फिर इस फिल्म को ‘एस.दुर्गा‘ नाम और कुछ संशोधनों के साथ यूए प्रमाण पत्र देने का निर्णय लिया, जिस पर निर्माता सहमत भी हो गए। लेकिन बाद में इसके निर्देशक सनल कुमार शशिधरन ने इस महोत्सव की ज्यूरी को सेंसर बोर्ड से स्वीकृत ‘एस.दुर्गा‘ के स्थान पर मूल फिल्म ‘सेक्सी दुर्गा‘ दिखायी, जिसका फिल्म समारोह के लिए चयन कर लिया गया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का मानना है कि सिनेमाटोग्राफिक एक्ट के तहत सेंसर बोर्ड से प्रमाण पत्र प्राप्त फिल्म की जगह उसका दूसरा या उसे मूल रूप (ओरिजनल वर्जन) में नहीं दिखाया जा सकता। हकीकत यह है कि इस फिल्म का नाम ही नहीं, इसके कई दृश्य भी सामाजिक-धार्मिक संवेदनशीलता की दृष्टि से आपत्तिजनक हैं। इस कारण सेंसर बोर्ड मंजूर फिल्म की जगह दूसरी फिल्म को ‘सिनेमाटोग्राफिक एक्ट के तहत उसके प्रदर्शन की अनुमति नहीं दे सकता। ऐसे ही मराठी फिल्म ‘न्यूड‘(नग्न) को भी दृश्यों तथा निर्माण से जुड़े कुछ बिन्दुओं पर आपत्ति होने के और सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र न होने कारण फिल्म समारोह के भारतीय पेनोरमा खण्ड से हटाया गया है।
अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के इस निर्णय से ‘एस.दुर्गा‘ फिल्म के निर्माता-निर्देशक ही नहीं, समारोह में प्रदर्शन के लिए फिल्म चयन करने वाली तेरह सदस्यीय के अध्यक्ष तथा फिल्म सुजॉय घोष समेत सदस्य भी विरोध कर रहे हैं। इनमंे सुजॉय घोष ने जूरी की अध्यक्षता से त्यागपत्र भी दे दिया है। इस फैसलों को एस.दुर्गा फिल्म के निर्देशक सनल कुमार शशिधरन ने केरल उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुनौती दी है। यहाँ एक सवाल यह है कि क्या फिल्म सेंसर बोर्ड के बिना प्रमाण पत्र के किसी फिल्म का प्रदर्शन सम्भव है?अगर नहीं,तो फिर इस विवाद का औचित्य क्या है ?
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