चिकित्सकों के अवैध कृत्यों पर अंकुश
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी चिकित्सकों के निजी स्तर पर चिकित्सा करने पर उनका पंजीकरण ‘मेडिकल कौंसिल ऑफ इण्डिया‘(एम.सी.आई) से निरस्त कराने तथा उस सम्बन्धित नर्सिंग होम के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसका लाइसेन्स रद्द किये जाने का जो सख्त आदेश पारित किया है, वह सर्वथा उचित, अत्यन्त सामयिक और स्वागतयोग्य है, क्यों कि ऐसे चिकित्सक समाज और राष्ट्र के प्रति घोर कृतघ्नता प्रदर्शित कर रहे है। इन्हें ये स्मरण नहीं कि वे समाज और राष्ट्र के धन से ही शिक्षित-प्रशिक्षित हुए हैं। उसी के अंशदान से उन्हें अब वेतन-भत्ता मिलता है, किन्तु वे उनकी चिकित्सा करने के दायित्व से विमुख होकर उसी समाज को पीड़ा पहुँचाने और लूटने में लगे हैं। राज्य के लोग एक लम्बे अर्से से सरकार से इन चिकित्सकों के खिलाफ ऐसे ही कठोर कदम की अपेक्षा किये हुए थे। इस साहसिक निर्णय के लिए राज्य सरकार की जितनी सराहना की जाए,वह कम ही होगी,क्यों कि चिकित्सकों और निजी अस्पतालों के संगठन ऐसे निर्णय लेने में सदैव से बाधक रहे हैं। वे अब तक अपने धन बल से सरकारों को अपने इशारों पर चलाते आए हैं। राज्य सरकार के इस निर्णय से निश्चय ही राजकीय चिकित्सालयों की स्थिति बदलेगी। शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के उन लोगों को बहुत राहत मिलेगी, जो पूरी तरह अपनी चिकित्सा के लिए सरकारी चिकित्सालयों पर ही आश्रित हैं। लेकिन यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि राज्य सरकार द्वारा निजी प्रैक्टिस करने वाले सरकारी चिकित्सकों को दण्डित करने की घोषणा पहले भी की जाती रही हैं, पर उन पर अब तक सही माने में अमल कभी नहीं हुआ। इस कारण प्रदेश भर में अधिकांश चिकित्सक सरकारी खजाने से वेतन ही नहीं, नॉन प्रैक्टिस एलाउन्स(एन.पी.ए.) लेकर भी खुले आम निजी स्तर पर चिकित्सा कर अपना घर भरते आए हैं। दोनों ओर से लूट मचाने वाले ये सरकारी चिकित्सक आयकर विभाग को चूना या उसके अधिकारियों की जेब भर कर काले धन के ढेर लगाते आये हैं। अब ऐसे चिकित्सकों की आय की जाँच करायी जाएगी और यह भी देखा जाएगा कि उन्होंने निजी प्रैक्टिस से कितनी अतिरिक्त आय अर्जित की है? उस पर आयकर चुकाया है या नहीं?
अब राज्य सरकार ने सरकारी चिकित्सकों के निजी स्तर पर प्रैक्टिस करते पकड़े जाने और उसकी पुष्टि होने पर उससे वेतन के साथ-साथ एन.पी.ए.की राशि वसूले जाने का प्रावधान किया है। सरकारी चिकित्सकों को निजी प्रैक्टिस करने पकड़ने का अधिकार महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के अलावा सभी मण्डलायुक्तों तथा जिलाधिकारियों को दिया गया है। इन चिकित्सकों पर नियमित निगरानी रखने के लिए हर जिले में सतर्कता समिति गठित की जाएँगीं, ऐसा किया जाना बहुत जरूरी है। अभी तक किसी उच्च अधिकारी के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र (पीएम.सी.),सामुदायिक चिकित्सा केन्द्र(सी.एम.सी.) या किसी दूसरे सरकारी चिकित्सा केन्द्र पर वहाँ तैनात चिकित्सक के अनुपस्थित मिलने पर कार्रवाई के नाम पर उसका एक दिन का वेतन काटने तक सीमित रहती थी, जबकि ऐसे चिकित्सक हफ्ता, पन्द्रह या महीने मंे बस उपस्थिति दर्ज कराने पहुँचते हैं। यही कारण है कि इन रस्मी कदमों से चिकित्सकों की कार्य पद्धति में कोई बदलाव नहीं आया और सरकारी स्वास्थ्य सेवा बद से बदतर होती चली गई। वस्तु स्थिति अब यह है कि सरकारी चिकित्सालयों में केवल वही मरीज पहुँचते हैं जिनके पास किसी भी तरह से निजी चिकित्सकों और निजी अस्पतालों में अपना इलाज कराने को धन नहीं है। इस हकीकत से ये चिकित्सक अनजान नहीं हैं फिर भी धरती के इन भगवानों को ही नहीं, जनप्रतिनिधियों को इससे कोई सरोकार नहीं रहा है। तभी तो आगरा में ही तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री के आवास के पास तमाम सरकारी चिकित्सक खुलेआम निजी प्रेक्टिस करते रहे,जब कि उस समय भी ऐसा करने पर रोक लगी थी। अपने राज्य में अब तक विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें रहीं,लेकिन सरकारी अस्पतालों की दशा और चिकित्सकों के रवैये में कोई खास बदलाव नहीं आया। ये सरकारी चिकित्सालय मरीजों का उपचार करने से कहीं ज्यादा चिकित्सकों, विभिन्न प्रकार के रोगों की जाँच केन्द्रों, दवा कम्पनियों से दलाली लेकर महँगी दवाएँ लिखने ,कई तरह के दलालों की जेबें भरने में मददगार रहे हैं। यहाँ मरीज चिकित्सकों के बजाए रामभरोसे ही अपने इलाज को भर्ती होता है, जहाँ उसे हर तरह की दवा से लेकर ज्यादातर चिकित्सा सामग्री बाजार से स्वयं खरीदनी पड़ती है। सरकारी में अस्पतालों में एक्स रे ,रक्त परीक्षण,सी.टी.स्केन,अल्ट्रा साउण्ड आदि के सुविधा होने के बावजूद ये सभी सुविधाएँ केन्द्र अक्सर विभिन्न कारणों से बन्द मिलेंगे , क्यों कि इनके सही होने पर चिकित्सकों का कमीशन जो बन्द हो जाता है। ज्यादातर सरकारी अस्पतालों की इमारतें जर्जर स्थिति में हैं उनमें जहाँ-तहाँ गन्दगी फैली मिलेगी। इनमें सुरक्षा का नितान्त अभाव है जहाँ नवजातों की चोरी के साथ मरीजों के साथ आयीं महिलाओं की इज्जत भी सुरक्षित नहीं है। हाल में लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनीवर्सिटी में रात में सोती हुईं दो महिलाओं के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया गया तथा शिकायत करने पर उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई।
राजकीय चिकित्सालयों में ज्यादातर छोटे-बड़े कर्मचारी घूस लिए बिना मरीजों से सीधे मुँह बात नहीं करते। प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों पर तैनात नर्से घूस लेकर ग्रामीण महिलाओं के प्रसव कराती हैं। चिकित्सकों या अन्य कर्मचारियों की शिकायत करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती।
वैसे तो पूरे देश में विशेष रूप से अपने प्रदेश में सरकारी चिकित्सक शासकीय चिकित्सलयों में तो सिर्फ लोगों के बीच अपना दबदबा बढ़ाने और वहाँ से अपने क्लीनिक या किसी और के या फिर अपने निजी नर्सिंग होम के लिए मरीजों को प्रेरित करने को आते हैं। सरकारी अस्पताल में वे मरीजों से उपेक्षापूर्ण व्यवहार करते हैं, इससे वह मरीज या उसके परिजन घबरा कर अपनी जान बचाने को उस चिकित्सक के बताये या उसके निजी नर्सिंग होम में इलाज कराने को मजबूर हो जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में मरीजों और उनके परिजनों के साथ अभद्र व्यवहार को लेकर या उपचार में शिथिलता बरतने को लेकर आगरा समेत तमाम जगहों से कनिष्ठ एवं वरिष्ठ चिकित्सकों के साथ गाली-गलौज,मारपीट के समाचार आयेदिन पढने को मिलते हैं। ़जिला अस्पतालों में चिकित्सकों को घूस दिये बिना स्वास्थ्य प्रमाण पत्र नहीं मिलता। आपराधिक मामलों में उन्हें रिश्वत देकर मेडिकल रिपोर्ट में मनचाही चोट लिखा सकते हैं। अब इन राजकीय चिकित्सालयों को सचमुच चिकित्सालय बनाने के लिए चिकित्सकों की नियमित उपस्थिति के साथ-साथ सही अर्थों में उनका दायित्व निभाना भी जरूरी है। साथ ही यह भी देखना जरूरी है कि चिकित्सा कार्यों और साधनों के लिए आवण्टित धन का किसी भी स्तर पर दुरुपयोग न हो। अगर उत्तर प्रदेश सरकार अपने इस महती लक्ष्य में सफल होती है तो यह देश के अन्य राज्यों के लिए भी नजीर बनेगी।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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