अपने दम पर फैलाया ‘अमर उजाला’
डोरीलाल अग्रवाल
जन्म तिथि- 8 अक्टूबर सन् 1927 देहावसान- 10 सितम्बर, 1988।
देष के स्वतंत्र होने के बाद हिन्दी और प्रादेषिक/आंचलिक पत्रकारिता में ऐसे अनेक लोगों का पदापर्ण हुआ, जिनका न तो अपने पूर्ववर्तियों की भाँति देष के स्वाधीनता संघर्श से सीधा सम्बन्ध था और न ही वे समाज सुधारक या पत्रकार, कवि, लेखक, साहित्यकार ही थे। यहाँँ तक कि वे उनकी तरह किसी विषेश ध्येय/लक्ष्य के साथ इस पेषे में नहीं आये थे, किन्तु उन्होंने एकलव्य की तरह अपनी प्रतिभा, लगन, लक्ष्य के प्रति असीम समर्पण से पत्रकारिता के सभी गुर सीखे और इसके लिए अपनी व्यावसायिक कुषलता से आवष्यक आर्थिक संसाधन जुटाने में भी सफलता प्राप्त की। इसी दक्षता के माध्यम से उन्होंने पत्रकारिता की मषाल को न केवल जलाये रखा, बल्कि उसे अँग्रेजी पत्रकारिता के समकक्ष खड़ा करके दिखाया। हिन्दी दैनिक अमर उजाला के संस्थापक/सम्पादक डोरीलाल अग्रवाल भी इसी श्रेणी के पत्रकारों में आते हैं। जिन्होंने पत्रकारिता में प्रवेष करते समय इस क्षेत्र में पहले से सक्रिय लोगों की षिक्षा-दीक्षा, उनके विपुल संसाधन और उनके आभा मण्डल की तनिक भी चिन्ता नहीं की और इस जोखिम भरी राह पर चल पड़े। डोरीलाल अग्रवाल जी के इस निर्णय से उनका अपनी क्षमताओं पर अटल विष्वास से ही प्रकट होता है। वह भी उसी स्थिति में जब पूरे परिवार सदस्यों के भरण पोशण और उनके सभी प्रकार के दायित्वों को पूर्ण करने की पूरी जिम्मेदारी उसी पर हो। ऐसा करना किसी भी व्यक्ति के आसान नहीं होता,किन्तु श्री अग्रवाल ने अपने दृढ़ निष्चय से यह सब कर दिखाया।
(दाऊ जी) में हुआ। उनके पिता नाम देवकीनन्दन गोइन और माता का नाम श्रीमती चिरौंजीदेवी था। सन् 1940 में इनके पिता आगरा आगरा आ गए। फिर सन् 1941 उनके द्वारा मोतीगंज में गुड़ ,चावल का कारोबार षुरू किया। इसके पष्चात् सन् 1943 में पिता जी कलकत्ता को प्रस्थान किया।
सन्1943 डोरीलाल अग्रवाल ने 6रुपए मासिक पर कार्य किया।
इसी वर्श दैनिक ‘सन्देष’ कार्य करना आरम्भ किया।
फिर सन् 1945 में दैनिक ‘उजाला’ में डिस्पेचर पद पर रहे। सन् 1946 में दैनिक उजाला में उन्नति करते हुए सह सम्पादक और प्रबन्धक पद प्राप्त किया। फिर दिसम्बर,सन् 1946में आगरा जनपद की किरावली तहसील के चाहरवाटी क्षेत्र के गाँव जैंगारा के मंगलसेन की पुत्री प्रागदेवी के साथ उनका विवाह हुआ।
सन् 1947 में समाज सेवा मण्डल की स्थापना की।
सन् 1948 में डोरीलाल अग्रवाल ने दैनिक ‘उजाला’ से त्याग पत्र दे दिया। 18अप्रैल, सन्1948 को मुरारीलाल माहेष्वरी के साथ दैनिक ‘अमर उजाला’ का प्रकाषन आरम्भ किया। जिसे अत्यन्त अल्प आर्थिक संसाधन तथा चन्द कर्मचारियों और परिवारीजनों के सहयोग से षुरू किया। उस समय अपनी प्रेस भी नहीं थी। सन् 1949 में इनकी माता श्रीमती चिरौंजी देवी का निधन हो गया।
सन् 1949 में डोरीलाल जी को पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त के मुख्यमंत्री काल में प्रथम सरकार द्वारा गठित उत्तर प्रदेषीय प्रेस परामर्ष समिति के सदस्य मनोनीत क
ज्यों-ज्यों दैनिक ‘अमर उजाला’ की आगरा और आसपास के जनपदों के पाठकों में लोकप्रियता और विष्वसनीयता बढ़ती गयी, वैसे-वैसे डोरीलाल जी की सामजिक प्रतिश्ठा में अभिवृद्धि होती गयी। उनके प्रारम्मिक पत्रकार सहयोगियों में केषवदेव पालीवाल, ओमप्रकाष लवानियां, राजेन्द्र रघुवंषी आदि रहे।
सीमित आर्थिक संसाधनों के कारण डोरीलाल जी को एक साथ कई दायित्वों का निर्वाहन करना पड़ता था। फिर भी वे सब के लिए सहज उपलब्ध रहे। ज्यादातर लोगों का सम्बन्ध अपने परिवार और अधिक से अधिक संस्थान जुड़े व्यक्ति तक रहता है, किन्तु डोरीलाल अग्रवाल जी के लिए पूरा षहर ही अपना परिवार था। किसी की भी कोई निजी या सामूहिक समस्या हो, वह परामर्ष के लिए उनके पास जरूर जाता है। विभिन्न समस्याओं और विवादों के समाधान के लिए षहर दल के नेता उनके पास जाना जरूरी समझते हैं।
एक तरह से डोरीलाल जी कोरे सम्पादक ही नहीं , वह जन नेता की भाँति नगर की सभी गतिविधियों के केन्द्र में बने रहे। हर षख्स उन्हें अपना मानता था। वह भी हर जाने-अनजाने से आत्मीयता से मिलते और उसे यही अहसास कराते थे कि वह उसके अपने हैं। इस तरह मिलने वाले के दिल में वह अपनी जगह बना लेते थे। इतना होने पर भी उन्हें अपने आप पर अभिमान या अहंकार कभी नहीं रहा। अपने लेखन और अमर उजाला की भाशा षैली के मामले में भी वह सरल,सुबोध, सामान्य बोलचाल की भाशा के सदैव पक्षधर रहे। हालाँकि डोरीलाल जी के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से हार्दिक सम्बन्ध रहे, लेकिन राजनीतिक की दृश्टि से भी उनके लेखन से कभी किसी राजनीतिक दल को लेकर पक्षधरता नजर नहीं आयी। कमोबेष रूप में यही तटस्थता समाचारों में बनी रही। इस कारण उन्होंने कभी प्रतिस्पर्द्धा समाचार पत्रों की राह नहीं पकड़ी।
सन् 1956 में ये ‘अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन’ की स्थायी समिति का सदस्य बने। इसी साल श्री अग्रवाल ‘उत्तर प्रदेषीय समाचार पत्र सम्मेलन’ के अध्यक्ष भी चुने गए। इसके बाद सन् 1969 में ‘वृद्धजन सम्मान समिति’, आगरा के अध्यक्ष चुने गए।
इसी वर्श बरेली से दैनिक ‘अमर उजाला’ का संस्करण षुरू किया। फिर सन् 1971 में हिन्दी साप्ताहिक‘दिषा भारती’ का प्रकाषन आरम्भ किया।
सन् 1975 में डोरीलाल अग्रवाल ने मॉरिषस और नेपाल की यात्राएँ कीं। इसी वर्श उन्हें दिल की बीमारी का हल्का प्रकोप हुआ। डॉक्टर के सद् परामर्ष से उन्होंने उसी समय से अपनी जीवन संयमित कर लिया था। सन् 1977 में श्री अग्रवाल ने ‘नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा के ‘मानस भवन’ निर्माण में धन संग्रह में विषेश योगदान किया। सन् 1978 में डोरीलाल अग्रवाल ‘उत्तर प्रदेष जर्नलिस्ट्स एसोसियेषन’ के पत्रकार प्रषिक्षण षिविर आगरा के स्वागताध्यक्ष बने। सन् 1979 में इनको ‘उत्तर प्रदेष हिन्दी साहित्य सम्मेलन’द्वारा ‘अम्बिकाचरण वाजपेयी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सन् 1980 में श्री अग्रवाल को आगरा नगर महापलिका की विकास समिति के सदस्य और रेल मंत्रालय को हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य मनोनीत किये गए।
सन् 1980 में डोरीलाल अग्रवाल ने सोवितय संघ और कुछ यूरोपीय देषों की यात्राएँ कीं
सन् 1981 में इन्हें पुनः दिल का तीव्र आघात लगा। इस बार दौरा दौरा ही न था वरन् बायें अंग में पक्षाघात पड़ा। साथ ही ब्रांको निमोनिया का प्रकोप हुआ। अच्छे उपचार, अच्छी सेवासुश्रूशा और नियमित जीवन से इतना अवष्य हुआ था कि बेंत की सहायता रहता था, किन्तु षरीर कमजोर होता चला जा रहा था। इसके बाद भी वे अपने अखबार की समीक्षा के साथ-साथ प्रतिस्पर्द्धी पत्रों पर भी दृश्टि रखते थे। इस बीच डोरीलाल जी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के अध्ययन के माध्यम से देष-दुनिया की घटनाओं की पूरी जानकारी रखने में जुटे रहते थे और विषेश अवसरों पर अमर उजाला के लेख भी लिखते रहे। उस समय दैनिक अमर उजाला में इन्द्रजीत, कुलदीप नैय्यर, पी.डी. टण्डन,परिपूर्णानन्द वर्मा, खुषवन्त सिंह, निगम, मणि मधुकर के साथ -साथ कई राजनीतिक दलों के राजनेताओं के समसामयिक विशयों पर लेख प्रकाषित होते थे।
सन् 1981में नेषनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स् के चतुर्थ द्विवार्शिक अधिवेषन,आगरा के अवसर पर डोरीलाल अग्रवाल को चेयरमैन चुना गया।इसके सफल आयोजन का बहुत कुछ उन्हें ही था।
सन्1981 में षहीद अर्द्धषताब्दी समारोह के आगरा में स्वागताध्यक्ष बनाये गये, जिसमें देष के विभिन्न हिस्सों से तमाम क्रान्तिकारी नेता पधारे थे।
सन् 1981 में रामलीला कमेटी के अध्यक्ष चुने गए और जीवन पर्यन्त रहे।
सन् 1986 में मीडिया इण्डिया के देष के सामाजिक, आर्थिक प्रगति पर प्रभाव डालने वाले मुद्दो पर अग्रवाल को मीडिया इण्डिया पुरस्कार से सम्मानित किया।
सन्््1986 में दैनिक अमर उजाल के मेरठ संस्करण का षुभारम्भ हुआ।
सन् 1987 में राश्ट्रªीय सीता पुरस्कार से सम्मानित।
सन्1988 में दैनिक अमर उजाला के मुरादाबाद संस्करण का प्रकाषन। एक दिन 15या 22सितम्बर को बाथरूम में गिर पड़े,तो गिरकर फिर उठ नही सके। ंइस तरह उनका 61 वर्श की आयु में देहावसान हो गया। उनके न रहने पर पत्रकारिता जगत् में नहीं, अमर उजाला जहाँ-जहाँ जाता था ,वहाँ-वहाँ षोक छा गया। उनकी षवयात्रा को देखकर लगता था जैसे सारा आगरा ही उमड़ आया है। इसमें षामिल लोगों की संख्या से ही उनकी लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन में क्या कमाया था?
सम्पर्क -डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर, आगरा-282003 मोबाइल नम्बर-9411684054
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