सार्वजनिक छुट्टियाँ घोषित करने की राजनीति



डॉ.बचन सिह सिकरवार
 वर्तमान में अपने देश के विभिन्न राजनीतिक दलों और जातिवादी/धार्मिक-मजहबी नेताओं में  महापुरुषों के जन्म दिवस और पुण्य तिथि पर  सार्वजनिक/सरकारी अवकाश घोषित कराने की होड़ लगी  है वे हर जाति-वर्ग,सम्प्रदाय, मजहब के लोगों को खुश करने उनके ज्यादा से ज्यादा कथित महापुरुषों के नाम पर सरकारी छुट्टियाँ का ऐलान करना चाहते हैं, जबकि ये सभी अच्छी तरह से जानते है कि अपने देश में दुनिया के अधिकांश देशों से सबसे ज्यादा सरकारी छुट्टियाँ हैं। इससे आये दिन सरकारी कार्यालय तथा शिक्षण संस्थान बन्द रहते हैं। उनमें फाइलों के अम्बार लगे है। सालों-साल बाद  भी मुकद्दमों का फैसला तो दूरा रहा, सुनवायी तक शुरू नहीं हो पाती। शिक्षण संस्थानों में भी पाठ्यक्रम पूरे नहीं हो पाते हैं। सरकारी कार्यालयों में काम होने पर बगैर काम के सरकार को अपने कर्मचारियों को वेतन देना पड़ता। आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प होने से देश को करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि होती है। इस कारण जनसाधारण को कितनी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं यह भुगतभोगी ही जानता है लेकिन अपने  मजबूत करने के लालच में अन्धे इन नेताओं को इससे कोई सरोकार नहीं है। विडम्बना यह है कि ये ही नेता सबसे ज्यादा रात-दिन समाज और राष्ट्रहित का राग अलापते रहते हैं।
वस्तुतः ज्यादातर राजनीतिक दलों के नेताओं के पास देश की ज्वलन्त समस्याओं यथा-भय-भूख,गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, अन्याय, अत्याचार ,गैर बराबरी, आन्तरिक-बाह्य सुरक्षा  आदि को हल करने की कोई समझ या परिकल्पना है और ही इरादा है। यही नहंी ,अगर उनके  पास इन समस्याओं का हल होता भी है तो वे उन्हें हल नहीं करते, क्यों कि उस स्थिति में उनके पीछे कोई क्यों दौड़ेगा?  








 ऐसे में इन नेताओं को अपना जनाधार बढ़ाने का सबसे आसान तरीका लोगों को जाति , मजहब, सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्रवाद आदि के बहाने एकजुट किया जाए। इसलिए ये लोग इन जातियों को अति पिछड़े, अति दलित ,के बहाने उपजातियों में बँटाने के साथ-साथ उनके नये-नये महापुरुषों की खोजने तथ गढ़ने में लगे रहते हैं ताकि उनके नाम पर भी कोई सरकारी छुट्टी का नारा उछाला जा सके। अपनी इस कोशिश में उन्होंने कई जातियों-उपजातियों कर्ई ऐसे महापुरुषों को तलाशने और गढ़ने में कामयाबी भी हासिल की है जिनके नाम  भी उनकी जाति के लोगों ने  पहले कभी नहीं सुने थे। ऐसे में उनकी विचारों और कार्यों की जानकारी होने का तो सवाल भी नहीं उठता।
इन नेताओं का एकमात्र उद्देश्य अपनी समर्थक जातियों और मजहब के लोगों को यह जता-बता सकें कि उन्होंने उनके महापुरुष के नाम पर सरकारी छुट्टी करा कर उनकी जाति/मजहब का कितना मान-सम्मान बढ़ाया है।  यह सब करने में कुछ राजनीतिक दलों को काफी कामयाबी भी मिल चुकी है। यह अलग बात है कि  किसी एक राजनीतिक दल की सरकार किसी नेता की जन्म/पुण्य तिथि पर अवकाश घोषित कर देती है तो दूसरे दल की सरकार  उसे खत्म कर अपने दल के नेता या अपनी पार्टी के समर्थकों की जाति के किसी महापुरुष के नाम पर अवकाश घोषित कर देती है। जातिवादी वोट बैंक की राजनीति के चलते कोई भी राजनीतिक दल इसका विरोध करने का जोखिम उठाना नहीं चाहता। इसका कारण यह है कि सत्ता में आने पर उसे भी तो अपनी पाटी के नेता या अपने समर्थकों की जाति के महापुरुष की जन्म/पुण्य तिथि पर छुट्टी घोषित करने की छूट जो मिल जाती है। अपने देश में विभिन्न जाति, मजहब, सम्प्रदाय के लोग रहते हैं जिनके अपने-अपने पर्व-त्योहार  और  महापुरुष हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय पर्व १५ अगस्त स्वतंत्रता दिवस' ,२अक्टूबर महात्मा गाँधी की जयन्ती, तथा २६ जनवरी गणतंत्र दिवस' हैं। हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में होली, दीपावली, विजयदशमी(दशहरा), रक्षाबन्धन हैं। इनके सिवाय दूसरे धर्म-सम्प्रदायों के तमाम पर्व-त्योहार हैं। ऐसे में कौन मुखालफत करेगा?
   क्षोभ की बात यह है कि इन नेताओं ने देश के महापुरुषों को अपने-अपने स्वार्थों के लिए केवल उन्हें जातियों और मजहबों के घेरे में बाँट दिया है, बल्कि इन्हें अपनी राजनीति का औजार भी बना लिया है। इनमें से जहाँ अधिकांश महापुरुष जीवनपर्यन्त पूरी मानवता की एकता , शान्ति,प्रेम ,भाईचारा , सन्मार्ग के पथप्रदर्शन के साथ, उसके कल्याण के लिए प्रयासरत रहे, वहीं कुछ ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया। इनमें से कुछ ने सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में अपना जीवन खपा दिया, तो कुछ दलित, दमित, शोषित, पीड़ितों को सामजिक और आर्थिक बराबरी के साथ राजनीतिक अधिकार दिलाने में जी-जान से जुटे रहे। इस तरह इन सभी महापुरुषों ने किसी किसी रूप देश के लोगों को स्वतंत्र , खुशहाल ,सम्मान पूर्वक का जीवन जीने का अधिकार दिलाने में योगदान रहा है लेकिन देश के स्वतंत्र होने के बाद से विभिन्न स्वार्थी नेताओं ने पारिवारिक जायदाद के विभाजन की तरह ही इनं पुरुषों का बड़ी बेदर्दी से बँटवारा कर डाला है इससे समाज का बिखराब हो रहा है ,बल्कि जाति विद्वेष में भी बढ़ोत्तरी हुई है। यही कारण है कि आये दिन समाचार पत्रों में किसी किसी महापुरुष की प्रतिमा को क्षति पहुँचाने और उससे उद्वेलित लोगों द्वारा दंगा-फसाद की खबरें भी छपती रहती हैं।
ये नेता  जिन महापुरुषों के जन्म दिवस या पुण्य तिथि पर सरकारी छुट्टी घोषित कराते हैं वे ही सत्ता में रहने पर सरकारी खर्चे पर समाचार पत्रों और टी.वी.चैनलों को करोड़ों रुपए के विज्ञापन जारी करते हैं। इनके आयोजनों पर भी सरकारी धन  पानी की तरह बहाया जाता है। वहाँ भी फिल्मी गानों पर भौड़े नाच-कूद से लेकर क्या-क्या नहीं किया जाता है? फिर भी बहुत बड़ी संख्या में लोग इन आयोजनों से दूर ही रहते हैं, क्यों कि उन्हें अपनी रोजमर्रा की समस्याओं के हल करने से ही फुर्सत नहीं है ऐसे कुछ आयोजनों में श्रोता से कहीं अधिक वक्ता रहे होते हैं। कभी-कभी इन नेताओं को ऐसे आयोजनों को  कामयाब दिखाने की गरज  से लोगों को वाहन सुविधा के साथ-साथ खाने-पीने और जेब खर्च भी देना पड़ता है। वैसे  इन नेताओं का अपने इन महापुरुषों के सिद्धान्तों, आदर्शों या कार्यों से प्रेरणा लेना तो दूर रहा, वे रोजमर्रा के जीवन में भी उनसे ठीक विपरीत आचरण करते हैं। ऐसे में इन नेताओं के समर्थक इन महापुरुषों क्या प्रेरणा लेते होंगे, समझना मुश्किल नहीं राजनीतिक दलों द्वारा अपने राजनीतिक हित साधने के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की प्रवृत्ति रोक लगाने के लिए कोई सख्त बनाये जाने की जरूरत है।
अगर सचमुच में लोग अपने महापुरुषों से प्रेरणा लेना चाहते हैं तो उन्हें जापान के लोगों की तरह अपने महापुरुषों के जन्म दिवस/पुण्य तिथि पर छुट्टी मानने के स्थान पर उस दिन कुछ घण्टे अधिक काम करना चाहिए, ताकि देश के लोगों की समस्याएँ हल हों और उनकी खुशहाली बढ़े। इसके सिवाय ये लोग अपने कार्यालय/कारखाने में कार्य पूरा करने के बाद या फिर आगे-पीछे अवकाश के दिन अपने महापुरुष का स्मरण कर सकते। यदि वे ऐसा करते हैं तो सही माने में अपने महापुरुषों के लिए  इनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
 सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार ६३ ,गाँधी नगर, आगरा-२८२००३ उत्तर प्रदेश

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