कब तक मजबूरी में करते रहेंगे पलायन ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेरठ के कई मुहल्लों से हिन्दुओं के पलायन के समाचारों से भले ही इन्कार कर रहे हों, लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसा केवल मेरठ और शामली के कस्बा कैराना में ही नहीं और न ही सिर्फ उत्तर प्रदेश और योगी आदित्यनाथ के राज में हो रहा है। हकीकत यह है कि ऐसा देशभर में हो रहा है और होता आया है। इसके लिए केवल एक खास मजहब के मानने वाले ही जिम्मेदार/दोषी नहीं हैं, बल्कि मजहब विशेष के साथ-साथ कुछ दबंग जातियों के लोग भी अपने धन बल, बाहुबल, संख्या बल, राजनीतिक बल से मजबूत अपने से कमजोर लोगों को अपना घर-द्वार छोड़ने को मजबूर होते आए हैं। इसके लिए केवल राज्य और केन्द्र सरकारें ही उत्तरदायी नहीं हैं,वरन् वहाँ के रहने वाले भी बराबर के जिम्मेदार हैं, जो किसी खास मजहब और जातियों के ज्यादातियों की शिकायत पुलिस-प्रशासन से शिकायत करने के स्थान पर चुपचाप अपना गाँव, बस्ती, शहर छोड़ कर किसी सुरक्षित जगह और नगर बस जाने में अपनी खैरियत समझते हैं।
वैसे भी हकीकत यह है कि पुलिस भी राज्य और केन्द्र सरकार के रुख को देखकर ही ऐसे मामलों में कार्रवाई करती है। उत्तर प्रदेश में जाति आधारित सियासी पार्टियों की सरकारें बनने पर सरकारी-गैर सरकारी जमीनों पर कब्जा करने, अन्य जातियों के लोगों के उत्पीड़न ,झूठे मुकदमे लगाये जाने की घटना बढ़ जाती हैं। इन सरकारों के दौरान उन जातियों से इतर जातियों के लोगों को शासन-प्रशासन और पुलिस से न्याय मिलना असम्भव- सा दिखायी देता है। इस हकीकत को जानते-बूझते हुए ही खास मजहब और विशेष जातियों के लोगों को दूसरों को परेशान करते ,डराते और सताते शासन-प्रशासन और कानून को कोई भय नहीं होता है। सपा सरकार के समय मुजफ्फर नगर के साम्प्रदायिक के दंगे के बाद कई लाख हिन्दू -मुसलमान विस्थापित होकर शिविरों और नाते-रिस्तेदारों के घरों पर शरण लेने को विवश हुए थे,किन्तु राज्य सरकार ने उन्हें अपने घर सुरक्षित वापस लौटाने का हौसला नहीं दिखाया। इनमें से बहुत से लोगों केे बच्चों को ठण्ड के कारण निमोनिया होने पर जान भी गंवानी पड़ी थी। फिर भी राज्य सरकार नहीं चेती।
अब जहाँ तक मेरठ प्रहलाद नगर के लोगों का प्रश्न है तो यदि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नमो एप पर ऑनलाइन शिकायत नहीं की होती,तो देश के दूसरे शहरों की तरह यहाँ पलायन का सिलसिला यथावत बना रहता। फिर कभी लोगों को यही दबा-छिपा आक्रोश, गुस्सा, नफरत का विस्फोट किसी भी मामूली-सी बात पर साम्प्रदायिक दंगे के रूप में होता। फिलहाल, मेरठ के लोगों ने हिम्मत दिखायी और प्रधानमंत्री कार्यालय से उत्तर प्रदेश सरकार को चेताया गया, तो वह जागी और पुलिस-प्रशासन को सक्रिय किया। मेरठ में प्रहलाद नगर के लोगों ने शिकायत जरूर की है,पर उन जैसी हालत मेरठ के कई दूसरे मुहल्लों जैसे भवानी नगर, थापर नगर, बैंक कॉलोनी आदि की भी है जहाँ खास मजहब के युवाओं ने हिन्दू युवतियों और महिलाओं की आजादी पर डाका डाला हुआ है। वे उन पर अश्लील फब्तियाँ कसते हैैं। हिन्दुओं के घरों के सामने अपने पालतू पशु बाँध जाते हैं। मोटरसाइकिलों पर स्टण्ट करते हुए गोलियाँ चलाते हैं। हिन्दुओं को डरा कर उन्हें दहशत के माहौल में जीने को मजबूर करते है,ताकि वे अपना मकान सस्ते में उन्हें बेचने को विवश हो जाएँ। इन अराजक तत्त्वों के दबंगाई से परेशान लोगों में से कोई 200 लोग अपने घर बेचकर दूसरी जगहों पर बस भी गए हैं । इनके अलावा बड़ी संख्या में लोगों ने अपने घरों पर ‘मकान बिकाऊ है’ के साथ-साथ अपना मोबाइल नम्बर दीवारों पर लिखवा दिया है। आश्चर्य की बात यह है कि इसके बाद भी मेरठ का खुफिया विभाग,पुलिस-प्रशासन सोता ही रहा है।
अब पुलिस-प्रशासन लाख सफाई दे। हकीकत यह है कि पुलिस ज्यादातर मामले में सुनवाई ही नहीं करती है और खास मजहब या कुछ जाति विशेष से सम्बन्धित जातियों से जुड़े लोगों पर कार्रवाई करने से जहाँ तक सम्भव हो बचने का प्रयास करती है। खास मजहब के लोगों के डर से पलायन के मामले को उठाने में भाजपा के तत्कालीन सांसद हुकुम सिंह का विशेष योगदान है ,जिन्होंने ऐसे दहशतगर्दो के कारण 2016 की गर्मियों में शामली कस्बे कैराना के छोड़कर जा चुके 346 परिवारों की सूची पुलिस-प्रशासन और विभिन्न जनसंचार माध्मयों के लोगों को सौंप कर इस भयावह समस्या से अवगत कराया। वैसे तो ये दहशतगत चौथे/रंगदारी वसूलने के लिए दोनों मजहब के लोगों को परेशान करते थे,पर कुछ मामलों हिन्दू उनके विशेष निशाने पर रहते थे। इस कारण अपनी इज्जत-आबरू बचाने को वे कैराना छोड़कर अन्यत्र बसने को विवश हुए थे।
अब मेरठ के बाद 28जून को अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं ने अलीगढ़ की मिश्रित आबादी वाली बस्तियों से हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि 2006 के दंगों में बाबरी मण्डी में दो हिन्दू व्यापारियों की हत्या के बाद यहाँ के लोग दशहत में रहते हैं। अमरपुर कोटला के हिन्दुओं को अपनी जमीन बेच कर सुरक्षित स्थानों पर भागना पड़ा है। भुजपुरा, दोदपुर, कानून गोयान, बीवी की सराय, काबा की सराय, महेश्वर इण्टर कॉलेज से मथुरा की ओर जाने वाले रास्तों पर अधिकांश हिन्दू आबादी सुरक्षित स्थानों की ओर भाग गई है। कमोबेश यही स्थिति मुरादाबाद, आगरा की मिश्रित बस्तियों की है।उदाहरण के लिए आगरा के मदिया कटरा के पास बिल्लोचपुरा मुहल्ले के एक निवासी का कहना है कि देश के विभाजन के बाद उनका परिवार यहाँ आकर बसा था,तब यहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओं के परिवार रहते थे,अब गिनती के ही बचे हैं। अब उन्हें अपने ही देश में ही फिर से घर छोड़कर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। आखिर हमें कब तक और कहाँ-कहाँ अपने को बचाने को पलायन करना होगा?ऐसा ही दर्द आगरा के शहर के कई मुहल्लों की एक जाति बहुल मुहल्लों का भी है। अगर कोई कहता है कि यहाँ के लोग परेशान करते हैं, तो उन्हें यही सलाह दी जाती है,शिकायत करने से कोई फायदा नहीं है। बेकार में किसी से दुश्मनी मत बढ़ाओं। अपना मकान बेच कर किस दूसरी जगह या मकान खरीद लो। इसका कारण अराजक तत्त्वों के हौसले बढ़े हुए हैं। इस स्थिति शासन , पुलिस-प्रशासन का भी पूरी तरह जिम्मेदार है। आए दिन दैनिक समाचार पत्रों में ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि अमुक मुहल्ले में खास मजहब या जाति के युवकों ने युवती से छेड़छाड़ की है,जब उस युवती के परिवारीजन शिकायत करने उस युवक के घर जाते हैं,तो उसके परिजन अपने बेटे को डाँटने के स्थान पर युवती के परिजनों पर ही हमलावर हो जाते हैं। इसलिए ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोक पाना सम्भव नहीं होता।ऐसी घटनाओं के कारण कई बार जातिगत और साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठते हैं।
यही कारण है कि नब्बे के दशक में जम्मू-कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस और काँग्रेस की साझा सरकार के दौरान इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने बन्दूक बल पर कोई ढाई लाख से अधिक कश्मीर पण्डितों की स्त्रियों के हत्या ,बलात्कार करने के साथ-साथ उन्हें घाटी छोड़ने को मजबूर कर दिया। राज्य और केन्द्र सरकारें मूक दर्शक बनी रहीं। इतना ही नहीं, इस राज्य के मुख्यधारा के राजनीतिक भाजपा को छोड़कर काँग्रेस, नेशनल कान्फ्रेंस, पी.डी.पी.,पीपुल्स कान्फ्रेंस आदि कोई भी इनकी आलोचना करने की स्थिति में तक में नहीं है। इस कारण अब तक उनकी घर वापसी नहीं हो पायी है।अब पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मजहबी भेदभाव की सियासत कर रही है जिसके कारण वहाँ स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर रहे हैं। कुछ लोगों की दूसरों को डराने, हराने, परेशान, उत्पीड़न करने की इस मनोवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए हमें अपनी प्रतिरोध और संकटों से जूझने की क्षमता तथा सामर्थ्य बढ़ानी होगी। इसके साथ ही शासन और प्रशासन को भी जनता की समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनना होगा। देश के राजनीतिक दलों के नेताओं को भी समय रहते चेत जाना चाहिए कि ये अराजक तत्त्व किसी के सगे नहीं होते। अगर उन्होंने इन जाति और मजहब आधारित भस्मासुरों बढ़ावा देना बन्द नहीं किया,तो एक दिन ये उनके लिए भी घातक साबित होंगे। उनके इस अनुचित रवैये से देश और समाज का कितना अहित हो रहा है इसका इन जाति और मजहब की सियासत करने वालों कोई अन्दाज नहीं है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
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