अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के एकतरफा पैरोकार

                      डॉ.बचन सिंह सिकरवार
 हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आपत्तिजनक पोस्ट करने मामले में  कथित पत्रकार प्रशान्त जगदीश कन्नौजिया की गिरफ्तारी को प्रथम दृष्टया अनुचित मानते हुए उच्चतम न्यायालय ने उन्हें जमानत पर तत्काल रिहा करने का आदेश अवश्य दिया, किन्तु उसने  सोशल मीडिया पर  उनके पोस्ट या ट्वीट का समर्थन नहीं किया है। इस बारे में उच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट कर किया है कि जो मामला कन्नौजिया के विरुद्ध न्यायालय में चल रहा है, वह चलता रहेगा। हालाँकि प्रशान्त कन्नौजिया जमानत पर रिहा होकर बाहर आ गए हैं,लेकिन उनकी गिरफ्तारी को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तथाकथित पैरोकारों ने बगैर उनकी हकीकत जाने ऐसा हाहाकार/कोहराम मचाया, जैसे देश में अभिव्यक्ति स्वतंत्रता का गलाघोंट दिया गया हो। लेकिन देश में कोई भी ऐसा संगठन आगे नहीं आया,  जिसने  उनसे यह  प्रश्न किया हो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कहने-बोलने पर पाबन्दी क्यों नहीं होनी चाहिए, जिससे जातिगत, धार्मिक विद्वेष, नफरत, अविश्वास पनपता और फैलता हो तथा सोशल मीडिया पर झूठी खबरें,फर्जी ,पुराने, गढ़े गए वीडियों अपलोड कर सामाजिक सौहार्द बिगड़ कर दंगा-फसाद का माहौल पैदा किया जाता है। यहाँ तक कि देश को तोड़ने, बर्बाद करने की अभिलाषा पाले टुकड़े-टुकड़े गिरोह का समर्थन भी किया जाता है। इस सच्चाई को प्रशान्त कन्नौजिया के सोशल मीडिया पर की कथित टिप्पणियों को पढ़कर आसानी से समझा जा सकता है। उन्हें हिन्दू धर्म शोषणकारी, भगवान राम में कोई विशेषता दिखाई नहीं देती,जिसके कारण उन्हें भगवान, जय श्रीराम कहा जाए, महाराणा प्रताप युद्ध छोड़कर चले गए थे,इसलिए महान वीर योद्धा कहना गलत  है, विनायक दामोदार सावरकर देशभक्त नहीं, अँग्रेज भक्त, हिन्दू देवताओं को पूजने वाले दलित बेअक्ल। क्या इससे इन सभी की भावनाएँ आहत नहीं होतीं?क्या ये ही प्रशान्त कन्नौजिया और उनकी विचारधारा वाले किसी और मजहब के बारे में कुछ भी कहने की हिमाकत कर सकते हैं?जबाव है,नहीं।इस वर्ग के लोगों को केवल कुछ जातियों, मजहबों, आतंकवादियों, पत्थरबाजों, नक्सलियों के तो मानवाधिकार दिखाई देते है,लेकिन देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले सैनिकों समेत हिन्दुओं के नहीं।  
  प्रशान्त कन्नौजिया को 8जून को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 500, 505 तथा आई.टी. एक्ट 67 की धारा के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार किया गया था।इसमें कुछ भी गलत नहीं है।प्रशान्त कन्नौजिया  स्वयं और उनके हिमायती उन्हें किसी भी श्रेणी का पत्रकार मानते-समझते हों,पर उनका योगी आदित्यनाथ के सम्बन्ध किया गया उनका ट्वीट अत्यन्त् शर्मनाक और बेहूदा है।उनके ज्यादातर ट्वीट भी बहुत आपत्तिजनक,गाली-गलौज,अभद्र,भड़काऊ हैं,उनके इस कार्य को पत्रकारिता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।जो लोग कन्नौजिया को पत्रकार मानकर समर्थन कर रहे हैं,वे वास्तव पत्रकारिता की साख को कम कर रहे हैं।अगर ऐसे गैरजिम्मेदार लोगों को पत्रकार मान लिया गया,तो इससे पत्रकारिता का ही अहित होगा।
 कन्नौजिया और उनसे जैसे कुछ कथित व्यंग्यकार, कार्टूनिस्टों, कवियों, सोशल मीडिया पर जातिगत, धार्मिक विद्वेष, राष्ट्रीय एकता, अखण्डता के खिलाफ अफवाहें, धार्मिक/राष्ट्रीय प्रतीकों, महापुरुषों, देशभक्तों को लेकर बेखौफ होकर अभद्र टिप्पणी करते हैं, जब इनके खिलाफ कोई कोई आपत्ति करता या कानून का सहारा लेते हैं,तो स्वयं को पत्रकार बताते हुए पत्रकारिता पर हमले का शोर मचाते हैं। क्षोभ की बात यह है कि प्रशान्त कन्नौजिया और उनकी तथाकथित पत्रकारिता के बारे में जाने बिना एडिटर्स गिल्ड जैसी सम्मानित संस्थाएँ भी उनके पक्ष मंें आ गयीं,क्या कन्नौजिया ने कोई जनहित या राष्ट्र हित या फिर किसी सरकारी भ्रष्टाचार/घोटाले का खुलासा किया या कुछ ऐसा लिखा था,जिसके कारण उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कराया हो।क्या कन्नौजिया ने जो कुछ पोस्ट या ट्वीट किया था,वह सत्य तथ्यों पर आधारित था?क्या वह ऐसा कर पत्रकारिता के धर्म का निर्वहन कर रहे थे?
क्या उन्हें पता नहीं है कि भारतीय संविधान के मूल अधिकारों में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम/निर्बाध नहीं है,बल्कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) में युक्ति-युक्त प्रतिबन्ध भी लगाए गए हैं। फिर संविधान में पत्रकार को बोलनेे-लिखने की स्वतंत्रता की जनसाधारण से अलग नहीं दी गई है। वर्तमान में देश में समाचार चैनलों में ब्रेकिंग न्यूज के लिए अधकचरे,अपुष्ट समाचारों को प्रसारित करने की होड़ लगी।इसी 8जून को नोएडा के सेक्टर 65के बी ब्लाक में संचालित नेशन लाइव न्यूज चैनल ने तथ्य की सही जाँच-पड़ताल किये बगैर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर कानपुर की एक महिला द्वारा लगाए अनुचित आरोप पर परिचर्चा आयोजित कर दी।इस पर पुलिस ने इसकी मालिक,सम्पादक को गिरफ्तार कर लिया गया। क्या ऐसे तथ्यहीन मामलों से प्रदेश सरकार के मुखिया की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करना उचित है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार के मामलों में इन पैरोकारों के अपने-अपने मापदण्ड हैं यही कारण है कि उन्हें कठुआ में 8वर्षीय बालिका के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या तथा अलीगढ़ में ढाई साल की बालिका के साथ ऐसा ही होने में फर्क दिखायी देता है,क्यों कि बलात्कार और हत्या करने वालों के मजहब अलग-अलग जो हैं। 
 वैसे भी अपने देश में जब से केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने सत्ता सम्हाली है,तब से वामपंथियों, सेक्युलर, कथित दलित चिन्तकों, विचारकों, अल्पसंख्यकों की तुष्टीकरण के बल पर राजनीतिक करने वाले, फिल्मी अभिनेता, अभिनेत्रियों, लेखकों,गीतकारों, कथित उदारवादियों ,मानवाधिकारवादियों को देश में हर जगह असहिष्णुता  और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबन्दी दिखायी दे रही है । यहाँ तक कि ये लोग  देश की सुरक्षा की चिन्ता करने और बहुसंख्यक हिन्दुओं के हितों की अनदेखी का विरोधी करने वालों को भाजपायी,  संघी बताकर  खलनायक सिद्ध करने में जुटे हैं।  इन्हें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित,स्वामी असीमानन्द ओसामा बिन लादेन से बड़े हिन्दू आतंकवादी और उनके कारण  ‘भगवा’ या ‘हिन्दू आतंकवाद’ नजर आता है,पर जब देश में जगह-जगह बम फोड़ कर सैकड़ों की जान लेने वाले ही नहीं, संसद,जम्मू-कश्मीर विधानसभा, उड़ी ,पठानकोट हवाई अड्डे पर हमले करने वाले, कश्मीर घाटी में आए-दिन दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक आतंकवादी संगठन ‘आइ.एस.या पाकिस्तान के झण्डे लहराते हुए पत्थरबाजी,गोलीबारी, बम फोड़ने वालों या अल कायदा,लश्कर-ए-तैयबा आदि के दहशतगर्दों की  जब बारी आती है,  तो उन्हें यह सफाई देने में देर नहीं लगती कि दहशतगर्दों का कोई मजहब नहीं होता। इन्हें बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सन् 2012में जाधवपुर विश्वविद्यालय,कोलकाता के प्रो.अम्बिकेश महापात्रा के कार्टून ,अब मई,2019में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की कार्यकर्ता प्रियंका शर्मा के ममता बनर्जी के मीम शेयर पर गिरफ्तारी में कुछ गलत नजर नहीं आता। ऐसे ही कर्नाटक की जद(एस)और काँग्रेस सरकार द्वारा विश्ववाणी के सम्पादक विश्वेसर भट्ट तथा सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी टिप्पणियाँ करने वाले 126 अन्य लोगों  के खिलाफ  मुकदमा दर्ज कराया गया,पर कहीं कोई विरोध का स्वर सुनायी नहीं दिया। कुछ साल पहले कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को सिंह स्तम्भ पर बने सिंहों को भेड़ियों के रूप में दर्शाया गया,तब उन्हें गिरफ्तार किया। क्या राष्ट्रीय प्रतीकों से ऐसी बेहूदा खिलवाड़ कला या पत्रकारिता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस श्रेणी में आती है?इससे पहले मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन द्वारा भारत माता,सरस्वती,पार्वती,नन्दी आदि का नग्न चित्रण का बचाव भी  ऐसे ही एकतरफा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकारों द्वारा किया। पहले केन्द्र में सत्तारूढ़ काँग्रेस की सरकारें भी अपने हिसाब से अभिव्यक्ति स्वतंत्रता को परिभाषित करते आयी थी।क्या ये कथित व्यंग्यकार, चित्रकार, पत्रकार अपने आस्था के केन्द्रों ,माता-पिता या अपने प्रति यही व्यवहार सहन करेंगे? अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के एकतरफा पैरोकारों के साथ -साथ इन मामलों न्यायालयों का रवैया भी समझ से बाहर है। वह भी कुछ मामलों में एक जैसे मामलों में भिन्न-भिन्न राय देती आयी है जिससे अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग करने वालों के हौसले बढ़े हुए हैं। वर्तमान में सामाजिक जनसंचार (सोशल मीडिया)का लगातार बढ़ता दायरा/इस्तेमाल अपने चरम पर है।  इसका सदुपयोग से कहीं अधिक दुरुपयोग अधिक हो रहा है,इसे सभी मानते-जानते भी हैं,ऐसे में इसके गलत इस्तेमाल पर पाबन्दी लगाने को प्रभावी कानून जरूरी है,ताकि इसका दुरुपयोग करने वालों पर लगाम लगे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054


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