मुखाफलत का यह कौन-सा तरीका?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में गुजरात के सूरत और झारखण्ड की राजधानी रांची में इससे पहले मेरठ, अलीगढ़, आगरा समेत कई दूसरी जगहों पर मुसलमानों द्वारा जून माह में झारखण्ड के सरायकेला- खरसवां जिले में मोटरसाइकिल चोरी के आरोपी तबरेज अंसारी की उन्मादी भीड़ (मॉब लिचिंग)में शामिल लोगों द्वारा बेरहमी से पिटाई तथा उससे जबरदस्ती ‘जय श्रीराम‘ और ‘ जय हनुमान ‘ बुलवाने, फिर कुछ दिन बाद उसकी जेल में मौत की मुखालफत में कथित मौन जुलूस निकाले गए जुलूसों में जिस तरह सोशल मीडिया के भड़काऊ संदेशों के जरिये हजारों की भीड़ जुटाई गई। फिर उसके सामने नफरतभरी तकरीरें कर लोगों को पत्थरबाजी, आगजनी ,तोड़फोड़ और हिंसा के भड़काने की कोशिशें की गईं, उसे किसी भी रूप में अपना विरोध जताने को उचित और वैध नहीं माना जा सकता। यह भी तब जब स्वय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी झारखण्ड की उन्मादी भीड़ की हिंसा की घटना की खुलकर निन्दा कर चुके हैं। झारखण्ड की उस उन्मादी भीड़ मेें सम्मिलित तबरेज अंसारी की पिटाई के पाँच दोषियों को गिरफ्तार कर जेल भेजे जाने के साथ-साथ उसके उपचार में लापरवाही बरतने वाले दो पुलिस अधिकारियों को भी निलम्बित किया जा चुका है। राज्य सरकार द्वारा तबरेज के परिजनों की आर्थिक सहायता भी दी जा चुकी है। ऐसे में कुछ मुस्लिम नेताओं द्वारा उस घटना को लेकर देशभर में विरोध जताने का औचित्य समझ से परे हैं। क्या उन्हें इस मुल्क की कानून व्यवस्था पर यकीन नहीं है? वैसे भी इनकी इस कथित मुखालफत के तरीकों से इनके असल इरादों पर शक होता है, क्यों कि इन मौन जुलूसों में अमन का मुखौटा लगा और कानून को ठेंगा दिखाते हुए उनके द्वारा की गई तकरीरों, नारों और उपद्रवों से जाहिर है । यह सब देखते हुए नहीं लगता कि हकीकत में इनका मकसद सिर्फ मुखालफत करना था या कुछ और ? इतने खतरनाक इरादों वालों को भी अपने देश की कथित सेक्यूलर राजनीतिक पार्टियों और जनसंचार माध्यमों का एक तबका द्वारा उनकी मजम्मत/निन्दा करना तो दूर रहा, उन्हें बेकसूर और मजलूम साबित करने में जुटा रहता है। इस वजह से ऐसे लोगों के हौसले बढ़े हुए हैं,जो इस मुल्क की बर्बादी के मंसूबे पाले हुए हैं।
वैसे यह भी सच है कि अतिवादी किसी भी धर्म/मजहब के अनुयायी हो सकते हैं,लेकिन किसी व्यक्ति की गलती पर कानून को अपने हाथ में लेकर उसे सजा देने का अधिकार न्यायालयों के सिवाय किसी को नहीं है। फिर भी सभी मजहबों के लोग मौका मिलते ही कानून को ताक पर रखकर खुद ही न्यायाधीश बनकर सजा देने लगते हैं,जो कानून के शासन के सर्वथा विरुद्ध है। ऐसा करने वाले को बगैर किसी भेदभाव के कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए। जहाँ तक अल्पसंख्यक वर्ग के एक कट्टरपन्थी वर्ग की नाराजगी की वजह केन्द्र और राज्यों में भाजपा का सत्ता में होना है,क्योंकि वे अब विदेशों से मिलने वाले धन और उनके अवांछित कार्यकलापों पर निगरानी होने से बेहद परेशान और उससे खफा हैं। इन्हें जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के सफाये को चलाये जा रहे अभियान तथा अलगाववादियों पर नकेल कसे जाने से इस सूबे को पाकिस्तान में मिलाने या इसमें दारूल इस्लाम कायम होने का उनका ख्वाब अब ख्वाब ही नजर आ रहा है।अपनी इस खीझ को ये लोग अमन और मुल्कपरस्त मुसलमानों को भड़काने का कोई मौका अब छोड़ना नहीं चाहते।
वैसे झारखण्ड में मोटरसाइकिल चोरी के आरोपी तबरेज अंसारी की उन्मादी भीड़ द्वारा कानून हाथ में लेकर पिटाई करना और उससे मार-मार कर ‘जय श्रीराम‘ और ‘जय हनुमान‘ कहलवाना पूरी तरह गलत है,ऐसे लोगों को जो भी सजा दी जाए, वह कम ही होगी। लेकिन उस उन्मादी भीड़ में शामिल सभी लोगों ने तबरेज अंसारी को सिर्फ मुसलमान होने की वजह से ऐसे जुल्म नहीं ढहाए थे।हाँ, उनमें से ‘जय श्रीराम‘ कहलवाने वालों की मानसिकता में कुछ मजहबी खोट हो सकता है। क्या इन मुखालफत करने वालों का यह पता नहीं है कि उन्मादी भीड़ की केवल मजहबी कारणों से पत्थरबाजी, आगजनी, हिंसा नहीं करती। वह विभिन्न कारणों से यह सब करती आयी है। झारखण्ड के खरसवां की घटना के बाद ही इस प्रान्त के लातेहार में भीड़ ने एक युवक को पीट-पीट कर मार डाला।इसी जिले केे मानिका थाना के तहत रांकीकला गाँव के एक वृद्ध आलियार मोची की ओझा गुनी का आरोप लगाते हुए उसकी जान ले ली। इसके तुरन्त बाद यदि ऐसा नहीं होता,तो क्या 2जुलाई को बिहार के वैशाली जिले में भीड़ ने एक शख्स को पीट-पीट कर मार डाला,वह तो मुसलमान नहीं था। फिर मुसलमानों के कथित रहनुमाओं की समझ में नहीं आया,क्यों कि वे समझना ही नहीं चाहते। वे इस मुल्क की फिजा में मजहबी कट्टरता का जहर घोल कर हिन्दू-मुसलमानों को लड़वाना चाहते है,ताकि किसी भी सूरत में इसकी तरक्की न हो सके। जहाँ तक की उन्मादी भीड़ की हिंसा का प्रश्न है तो रांची उच्च न्यायालय में उन्मादी भीड़ की हिंसा को लेकर दाखिल याचिका में कहा गया है कि 18मार्च,सन् 2016 के बाद से अब तक उन्मादी भीड़ हिंसा में 18लोगों की जानें जा चुकी हैं।रामगढ़ में हुई घटना के बाद से इस तरह के मामलों को रोकने के लिए राज्य सरकार ने अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की है।राज्य सरकार उच्चतम न्यायालय की गाइड लाइन्स का भी पालन नहीं कर रही है,इससे ऐसे मामलों के अपराधी बच निकलते हैं।
अल्पसंख्यकों के तथाकथित रहनुमाओं ने पहले मेरठ में उसके बाद कथित मुहब्बत नगरी आगरा में भी झारखण्ड की उन्मादी भीड़ की हिंसा के विरोध में मौन जुलूस निकालने की कोशिश की,जबकि प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी थी और उनका ज्ञापन भी ले लिया। इसके बाद भी उपद्रवियों ने जबरदस्ती बाजार बन्द कराने के साथ-साथ पत्थरबाजी कर दंगा भड़काने की भरसक कोशिश की। अब उपद्रवियों पर मुकदमा दर्ज होने पर अपने को बेकसूर होने का राग अलाप रहे हैं। इस बीच अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों ने दिल्ली के हौज काजी में वाहन पार्किंग को लेकर हुए विवाद में मकान के मालिक उसकी पत्नी, बेटी की निर्दयता से पिटाई की और बाजार में कहर बरपाया। फिर इन मजहबी उन्मादियों की भीड़ ‘अल्लाह हो अकबर’ आदि नारों के साथ उस बाजार में स्थित देवी मन्दिर पर पत्थर बरसा कर उसके शीशों के साथ-साथ कई मूर्तियों को तोड़ डाला। अफसोस की बात यह है इसके बाद भी देश की सभी कथित सेक्यूलर सियासी पार्टियाँ और जनसंचार माध्यमों का एक तबका शान्त बना रहा है जो इनके दोहरे चरित्र को दर्शाते हैं। तब देश में असहिष्णुता देखने वालों को इस तबके की असहिष्णुता दिखायी नहीं दी। इन्हें सिर्फ हिन्दुओं की धार्मिक कट्टरता दिखाई देती है और वे उसे भगवा आतंकवाद कहकर सभी हिन्दुओं को बदनाम करने में जुट जाते है। इसके साथ ही केन्द्र और कई राज्यों सत्तारूढ़ भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरे हिन्दू संगठनों को दोषी ठहराते हैं। दूसरे वर्ग के लोग चाहे वे मन्दिर पर हमला करें या बम विस्फोट करें, हाथ में पाकिस्तानी झण्डा लहराते हुए सुरक्षा बलों के जवानों अल्लाह हो अकबर, पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लाए,तब ये ही लोग कहते हैं कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता।
अब झारखण्ड की उन्मादी भीड़ की हिंसा की मुखालफत के नाम पर इसी 5जुलाई, शुक्रवार(जुम्मे) की नमाज के बाद गुजरात के सूरत को जलाने की पूरी कोशिश की गई। इसके लिए इश्यिताक पठान उर्फ बाबू पठान एडवोकेट ने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को कथित मौन जुलूस में शामिल होने के लिए इकट्ठा होने को कहा,जबकि प्रशासन इसके लिए मंजूरी नहीं दी। इस जुलूस होने के लिए लोगों से कहा गय कि हिन्दुस्तान के लोग ईरान, इराक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, सीरिया, यमन, लीबिया , इण्डोनेशिया, मलेशिया आदि मुस्लिम देशों में रहते हैं,पर उनमें किसी के साथ मजहब के नाम पर हिंसा नहीं होती,तो यहाँ क्यों? मॉब लिचिंग, या मजहब के खिलाफ गुनाह करने वालों को बर्दाश्त न करने और अपनी जान देने को भड़काया गया। इस मौके पर कोई 20हजार मुसलमान एकत्र हुए। इन्होंने प्रतिबन्ध के बावजूद जुलूस निकालने का प्रयास किया और रोके जाने पर पुलिसकर्मियों, उनके और निजी वाहनों पर पत्थर बरसाए,तब पुलिस ने हवाई फायर करने के साथ-साथ अश्रू गैस के गोले चलाने को मजबूर होना पड़ा। इसमें चार पुलिस अधिकारी तथा सिपाही घायल हुए हैं और इश्यिताक पठान और उसके साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है। इसी तरह झारखण्ड के रांची में कुछ मुस्लिम युवकों का विवाद हुआ। इसके बाद कुछ मुस्लिम युवकों ने दीपक और विवके नामक युवकों के चाकू मार कर घायल कर दिया। फिर जुम्मे को रांची में मौन जुलूस निकालने की आड़ में दंगा करने की कोशिश की। इसी ईद को दिल्ली में नमाज के बाद निकले लोगों ने एक तेज रफ्तार कार को तंग गली में कुछ लोगों को टकराने को लेकर डी.टी.सी.की कई बसों में तोड़फोड़ कर जलाने की कोशिश की। बाद में पता चला कि वह चोरी गई कार थी,जिसे चुराने वाला मुस्लिम अपनी महिला मित्र को लेकर चला रहा था। अब सपा के सांसद शफीकुर्रहमान ने शपथ लेने के बाद वन्देमातरम को इस्लाम के खिलाफ बताना। कुछ मुल्ला-मौलवियों द्वारा तृणमूल काँग्रेस की सांसद नुसरत जहाँ के बिन्दी, सिन्दूर लगाने पर ऐतराज,तो अलीगढ़ के रामायण,गीता गाने वाले दिलशेर की पिटाई और उनका हारमोनियम तोड़ने के साथ जान से मारने की धमकी देना यही दर्शाता है कि वे जिस गंगा-जमुनी तहजीब के राग अलापते हैं,वह उनका कोरा दिखावा भर है। उन्हें हिन्दुओं और मुसलमानों का मेलमिलाप और एक-दूसरे के मजहब का सम्मान सुहा नहीं रहा है।
इसके साथ ही मॉब लिचिंग की मुखालफत करने वालों से एक सवाल यह है कि कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों की आतंकवादियों से मुठभेड़ के वक्त वहाँ के मुस्लिम युवा जिस तरह से सुरक्षा बलों के जवानों पर पत्थर बरसा कर उन्हें भागने का मौका देने की कोशिश करते हैं,क्या वह मॉब लिचिंग नहीं है?क्या देश के किसी कोने से सुरक्षा बलों के साथ उनके हममजहबियों द्वारा की जाने वाली मॉब लिचिंग की मुखालफत में मौन जुलूस निकालने की जरूरत उन्होंने अब तक क्यों जरूरत महसूस नहीं की? वैसे ये इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव करें,जब कोई उनसे ऐसे प्रश्न करता ही नहीं है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें