अब लोकतंत्र बन गया है उनके लिए भ्रष्टाचार तंत्र

   डॉ.बचन सिंह सिकरवार 

  पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सारधा चिटफण्ड घोटाले की जाँच को सी.बी.आई. के अधिकारियों के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के आवास पर पूछताछ को पहुँचने पर जैसा उग्र विरोध जताते हुए केन्द्र सरकार पर संविधान, लोकतंत्र, संघीय ढाँचे को आघात पहुँचाने के जो अगम्भीर आरोप लगाये हैं और जिनका देश के एक-दूसरे के धुर विरोधी राजनीतिक दलों ने खुलकर अन्ध समर्थन किया, उससे देश के लोग हतप्रभ ही नहीं, उन्हें ममता बनर्जी समेत सियासी दलों की अपने  भ्रष्टाचार के बचाव में गढ़ी संविधान, लोकतंत्र, संघीय ढाँचे से छेड़ने की उनकी नयी परिभाषा पर भी बहुत आश्चर्य हो रहा है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि जहाँ एक अदने से सिपाही, लेखपाल(पटवारी), पतरोल,चपरासी के सौ-दो सौ से लेकर हजार-पाँच सौ रुपए की रिश्वत लेने पर पकड़े जाने पर जेल, वहीं करोड़ों -अरबों की लूट की सिर्फ जाँच संविधान, लोकतंत्र की हत्या तथा संघीय ढाँचे से छेड़छाड़ कैसे हो गई? अगर आप सचमुच  संविधान, लोकतंत्र, संघीय ढाँचे के विपरीत आचरण करने के आरोप से जुड़ी परिभाषा समझना चाहते हैं,तो आपको देश के स्वतंत्र होने के बाद से सियासी दलों और उनके नेताओं तथा कार्यकर्ताओं के आचरण को भली भाँति से समझना होगा, अब कोई समाज और देश सेवा के लिए राजनीति में नहीं आता, बल्कि अपनी और अपनों के लिए लूट का रास्ता खोलने के लिए आता है। ऐसे लोगों को संविधान, लोकतंत्र और संघीय ढाँचे से कोई लेना-देना नहीं, इनके लिए लूट में आड़े आने वाला हर कानून और अधिकारी  संविधान, लोकतंत्र, संघीय ढाँचे को तोड़ने वाला है। सारधा चिटफण्ड मामले में  ममता बनर्जी भी ऐसा ही कुछ दिखा रही हैं। अब सर्वोच्च न्यायालय ने कोलकाता के पुलिस आयुक्त,पुलिस महानिदेशक(डी.जी.पी.) राज्य के प्रमुख सचिव को न्यायालय की अवमानना का नोटिस भेजने तथा उस जवाब देने को कहा है। इस पर जहाँ ममता बनर्जी अपनी, संविधान, लोकतंत्र,आम जनता की जीत बता रही हैं,वहीं केन्द्र सरकार इसे सी.बी.आई.की। ममता बनर्जी के लिए विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट,उनकी हत्या, उनके कार्यालयों में तोड़फोड,जलाना,पंचायत के चुनावों में दूसरे दलों के प्रत्याशियों को नामांकन न करने देना, विपक्षी दलों के नेताओं जैसे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तथा उ.प्र.के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सभा और अपना हैलीकोप्टर उतारने के लिए अनुमति न देना संविधान, लोकतंत्र, संघीय व्यवस्था का उल्लंघन नहीं है। इस अहम मुद्दे पर भाजपा और मोदी विरोधी सियासी दलों तथा उनके नेताओं की खामोशी हैरान करने वाली है, लेकिन भ्रष्टाचारी नेताओं के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई लोकतंत्र पर हमला हो जाता है।
 यही कारण है कि अब सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा उ.प्र.के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को खनन घोटाले, बसपा की मुखिया तथा उ.प्र. की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती  स्मारक घोटाले की जाँच के घेरे में हैं,तो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद चारा घोटाले में जेल में सजा काट रहे हैं ,इसी तरह उनकी पत्नी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, पुत्र पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव,उनकी बहन मीसा भारती आइ.आर.टी.सी.होटले घोटाले में जमानत पर हैं। द्रमुक की सांसद कानीमोरी घोटाले की आरोपी हैं। काँग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी तथा राहुल गाँधी नेशनल हैराल्ड की सम्पत्तियों के घोटाले में जमानत पर हैं।उनके दामाद रोबर्ट वाड्रा के खिलाफ जमीन घोटालों की जाँच चल रही है।  काँग्रेस की केन्द्र में सत्तारूढ़ सप्रंग सरकार तो घोटालों की सरकार ही बन गई थी। लेकिन इन सभी पार्टियों के नेताओं को अपने भ्रष्टाचार की जाँच से लोकतंत्र पर संकट नजर आ रहा है,क्या इन नेताओं ने देश की जनता को बेवकूफ समझा रखा है,जो यह नहीं जानते कि संविधान, लोकतंत्र का अपमान करने का असली गुनाहगार कौन है? इन सभी नेताओं के इस विचार से अब लगता है कि उन्होंने लोकतंत्र को भ्रष्टाचार तंत्र समझ लिया है,जिसमें उन्हें हर तरह का भ्रष्टाचार करने की स्वयं और अपनों को लूट की पूरी आजादी चाहिए।
 सादा जीवन जीने वाली ममता बनर्जी की छवि एक सादगी पसन्द, ईमानदार जुझारू नेता की है, लेकिन अब मुख्यमंत्री के पद की गरिमा को ताक पर रखकर उन्होंने कोलाकाता के पुलिस आयुक्त के बचाव में जो कुछ किया, उससे यह नहीं लगता कि वे देश के बाकी राजनेताओं से किसी माने में अलग हैं। कोई 22लाख लोगों के 40 हजार करोड़ रुपए हड़पने वाली सारधा चिडफण्ड कम्पनी की जाँच से परेशान क्यों हैं ? इस घोटाले की जाँच हेतु गठित विशेष जाँच दल(एस.आई.टी.) के मुखिया रहे वर्तमान पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से सी.बी.आई.की पूछताछ उन्हें इतना ऐतराज क्यों हैं, जिनके पास सारधा चिटफण्ड के प्रमुख सुदीप्त सेन और उनकी सहयोगी देवजानी मुखर्जी से मिली लाल डायरी, पेन ड्राइव समेत कुछ दस्तावेज हैं, जिन्हें उन्होंने सी.बी.आई.को अभी तक नहीं सौंपा है। इसके सिवाय उन पर इस घोटाले से जुड़े लोगों को कॉल डाटा रिकॉर्ड(सी.डी.आर.)से कुछ डाटा गायब करने का भी आरोप है। पिछले तीन साल से सी.बी.आई.द्वारा पूछताछ के लिए बार-बार समन भेजने पर भी नहीं गए। इस कारण सी.बी.आई.अधिकारियों को उनके निवास पर जाना पड़ा,पर ममता दीदी को सी.बी.आई की यह कार्रवाई अपने चहेते इस पुलिस अधिकारी के साथ भारी ज्यादाती नजर आयी और बदले की कार्रवाई कर अपनी पुलिस से उनके साथ हाथापायी करायी। फिर उनके हुकुम पर पुलिस ने न केवल सी.बी.आई अधिकारियों को हिरासत में लेकर थाने में बैठा लिया , बल्कि कोलकाता स्थिति सी.बी.आई.के कार्यालयों को भी घिरवा लिया। इसके बाद  खुद अपने मंत्रियों और पुलिस के आला अधिकारियों के साथ  संविधान, लोकतंत्र की हत्या का राग आलापते हुए धरने पर  बैठ गईं। उनके इस कदम पर लोगों को अचम्भा यह है कि  इसी मामले में वह अपनी पार्टी तृणमूल काँग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसदों की गिरफ्तारी पर शान्त क्यों बनी रही थीं? वैसे सन् 2008 में स्थापित सारधा चिटफण्ड कम्पनी का ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के कई महŸवपूर्ण साथियों तथा मीडिया के कुछ लोगों से गहरा नाता रहा है जिनकी बदौलत यह और रोज वैली कम्पनी देखते-देखते पश्चिम बंगाल, ओडिसा, असम  हर जगह फैल गईं। इनमें से सारधा में 22लाख लोग इस कम्पनी के जमा धन के बदले में 34गुना वापस देने के लालच में अपने जीवन की गाढ़ी मेहनत की जीवन भर की कमाई गंवा बैठे हैं। रोज वैली को घोटाला इससे भी बड़ा बताया जा रहा है। सन् 2013में जब सारधा घोटाला उजागर हुआ, तब ममता बनर्जी की सरकार ने इसकी जाँच हेतु एस.आई.टी.का गठन किया। उस समय जब एस.आई.टी.द्वारा सही तरीके से जाँच न करने पर इसे सी.बी.आई. को सौंपे जाने की माँग हुई, तब ममता बनर्जी से इसका विरोध किया। बाद में 9 मई, 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने इस घोटाले की सी.बी.आई.से जाँच कराने की आदेश दिये थे, जिसे उठाने में बंगाल काँग्रेस, वामपंथी दलों के साथ जागरूक लोगों ने विशेष भूमिका निभायी थी। उसी आदेश पर सी.बी.आई इस महाघोटाले की जाँच कर रही है। अब इस मामले में पुलिस आयुक्त राजीव कुमार मेघालय की राजधानी शिलांग में सी.बी.आई.को अपना बयाना दर्जा  कराये हैं। 
अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के विरोध में  एकजुट विपक्षी राजनीतिक दल विशेष रूप से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, राजद के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, तदेपा के अध्यक्ष और आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्राबाबू नायडू, बसपा, नेक्रा.के डॉ.फारूक अब्दुल्ला ही नहीं, काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी भी ममता बनर्जी के बचाव में आ गए,जबकि उन्हीं के पार्टी के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन ममता बनर्जी की सरकार को बर्खास्त कर राज्य राष्ट्रपति शासन की माँग कर रहे थे। वैसे पश्चिम बंगाल की इस घटना नेे देश की सियासत के जिस कलुष चेहरे को बेनकाब हुआ, उससे  देश के लोग को गहरा आघात जरूर लगा है लेकिन वह वक्त आने पर उन्हें सबक सिखाने में भी पीछे नहीं रही है। ये सियासी नेताओं को याद रखना चाहिए। 
 सम्पर्क- डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब, गाँधी नगर, आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054 

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