अद्भुत अपूर्व अनुभूति है कुम्भ स्नान

                                       


 राधेबाबू
अपने देश के अलग-अलग क्षेत्रों में हरिद्वार, प्रयागराज(इलाहाबाद) में गंगा,उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में कावेरी पर हर छह वर्ष पश्चात् बारी-बारी से अर्द्ध कुम्भ तथा 12साल बाद पूर्ण कुम्भ लगता है, जिसमें स्नान कर पुण्य प्राप्त करने की अभिलाषा हर हिन्दू की होती है।कुम्भ के बारे में एक अत्यन्त महवपूर्ण पौराणिक कथा जुड़ी है जिसके अनुसार एक बार समुन्द्र मन्थन हुआ। इसमें सुर और असुर सम्मिलित थे।इस मन्थन में अनेक रत्न निकले। इसमें अमृत कलश भी निकला। इस पाने के लिए सुर और असुर में संघर्ष छिड़ गया। इस कलश से जहाँ-जहाँ अमृत छलक कर गिरा वहाँ-वहाँ वर्तमान में कुम्भ का आयोजन किया जाता है।
   हिन्दू होने के नाते मेरे मन में कुम्भ स्नान करने की सदैव से इच्छा रही है,लेकिन इसे पूरा करने का अवसर गत 15फरवरी, 2019 को आया। उस दिन प्रातः 6बजे मैं अपने कमला नगर, आगरा स्थित आवास से अपनी पत्नी सुमनदेवी, पुत्र हिमांशु उसकी पत्नी संचेता, नातिन सानवी,मानवी के साथ कार से प्रयागराज के लिए निकला। आगरा से मैंने लखनऊ एक्सप्रेस वे का मार्ग पकड़ा। यह एक्सप्रेस वे अत्यन्त सुविधाजनक लगा। हम लोग इटावा से उतर कर कानपुर पहुँच गए। यहाँ कुछ देर विश्राम करने के पश्चात् फिर प्रयागराज के लिए निकल पड़े और करीब 7घण्टे का सफर तय कर सायं 5बजे प्रयागराज पहुँच गए। कानपुर से प्रयागराज के मार्ग में उत्तर प्रदेश सरकार ने मार्गदर्शन की काफी सुविधा की हुई थी।  
  प्रयागराज पहुँचने के बाद प्रेस राष्ट्रीय उ.प्र.सूचना विभाग द्वारा बनाये मीडिया केन्द्र से सम्पर्क किया, जहाँ वरिष्ठ पत्रकार विनोद पाण्डेय से भेंट हुई। उनसे मेरा परिचय पहले से दैनिक जागरण,आगरा से था। उन्होंने मुझे मीडियाकर्मी  का पास बनवाने के साथ-साथ मीडिया सेण्टर में आवास भी उपलब्ध कर दिया।  चूँकि मैं पहली बार कुम्भ स्नान के लिए गया था, जबकि मैं भीड़ और उससे होनी परेशानी की सोच चाह कर  आने से कतराता रहता। 
  15फरवरी को सायं 7.30बजे हम लोगों ने कुम्भ स्नान किया। उस समय बारिश हो रही थी और हमारे कपड़े भी भींग गए थे। कुम्भ में वर्षा से बचने की कोई व्यवस्था नहीं थी। पूरे तीन किलोमीटर लम्बे मार्ग में तीर्थयात्रियों को विश्राम/ठहरने का को प्रबन्ध  नहीं था। इस कारण बूढ़े, बच्चे, महिलाएँ ठण्ड से काँप रहे थे। जिन साधु-सन्तों के वहाँ आश्रम बने हुए थे। वे अपने आश्रमों में भींगे हुए लोगों को घुसने नहीं दे रहे थे, उनके इस व्यवहार से मुझे गहरा आघात लगा। ये कैसे ईश्वर के भक्त और धर्म के ठेकेदार हैं? कुम्भ मेला लगभग 20किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था। तीर्थ यात्रियों को अपने गन्तव्य तक पहुँचाने की उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वाहनों की निःशुल्क व्यवस्था की गई थी। 


लेकिन जिन तीर्थ यात्रियों को शासन की इस सुविधा का पता नहीं था, उनसे निजी वाहन चालक मनमाना किराया वसूल रहे थे। कुम्भ मेले में कुछ पुलिसकर्मियों की भूमिका भी सही नहीं थी।  वे तीर्थयात्रियों को सही जानकारी नहीं दे रहे थे । उन्होंने हमें भी सही मार्ग नहीं बताया। इस कारण मुझे सपरिवार तीन किलोमीटर से अधिक इधर-उधर भटकना पड़ा। रिक्शांे, नाव, खाद्य पदार्थों के मूल्य निर्धारित न होने के कारण तीर्थयात्रियों से अनाप-शनाप कीमत वसूल की जा रही थीं। इसी तरह शिविरों में रहने का किराया भी नियत न होने के कारण मनचाहा किराया वसूल  रहे थे। यहाँ तीस रुपए की चाय, साधारण भोजन की थाली 200रुपए से अधिक ता 100रुपए का पराठा। इस तरह तीर्थयात्रियों से खाद्यपदार्थों की थ्री स्टार के बराबर कीमत वसूली जा रही थी,जबकि खाद्य पदार्थों की उस स्तर की गुणवत्ता भी नहीं थी। कुम्भ मेले में पवित्र धार्मिक स्थल पर तीर्थयात्रियों के साथ ऐसी लूट देखकर बहुत दुःख हुआ। आशा करनी चाहिए कि जिस राज्य में भी कुम्भ का आयोजन हो,तीर्थयात्रियों के साथ ऐसी लूट न हो,इसका राज्य सरकार का ध्यान रखना चाहिए।
 कुम्भ में घाटों पर महिलाओं के कपड़े बदलने की व्यवस्था की गई थी,लेकिन पुरुषों के लिए यह व्यवस्था नहीं थी। इस कारण उन्हें कपड़े बदलने में शर्मिन्दगी अनुभव होती थी। कुम्भ मेले में प्रकाश तथा सफाई व्यवस्था बहुत अच्छी थी।  रात्रि में भी दिन का आभास होता था। कुछ विदेशियों से भी मेरी मुलाकात हुई,तो जिज्ञासवश उनसे कुम्भ में आने का कारण  पूछा,तो उन्होंने बताया कि आगरा का ताजमहल देखने आए थे। टूरिस्ट गाइड ने हमें प्रयागराज में कुम्भ के आयोजन के विषय में जानकरी दी ,तो मुझे लगा कि ऐसे आयोजन को देखना चाहिए। हमें यह आकर बहुत अच्छा लगा और बड़ी संख्या में भारत के  लोगों से मिलने तथा उनके विचार जानने का अवसर मिला। वैसे भी कुम्भ में देश के अलग-अलग राज्यों के तीर्थयात्रियों को एक साथ गंगा माता के पवित्र जल में स्नान करते हुए भारत की धार्मिक तथा सांस्कृतिक एकता के दर्शन होते हैं। ये तीर्थयात्री भले ही अलग-अलग भाषा बोलते हैं,किन्तु धार्मिक स्तर पर एक अटूट बन्धन में बँधे हुए दिखायी दिये। इस अवसर पर विदेशों में बसे हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मावलम्बियों स्नान करते देखना मेरे और मेरे पारिवारिजनों के लिए कौतूहल का विषय था। कुम्भ स्नान से धार्मिक रूप से क्या फल प्राप्ति होगी,कोई नहीं जानता।लेकिन मेरे लिए कुम्भ स्नान कर जो एक अद्भुत अपूर्व अनुभूति हुई,वह अवर्णनीय रही। उसका  उल्लेख कर पाना मेरे लिए इससे अधिक सम्भव नहीं है।

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