असल खतरा मुल्क के गद्दारों से हैं

डॉ.बचन सिंह सिकरवार 

गत दिनों जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के केन्द्रीय अरक्षित पुलिस बल (सी.आर.पी.एफ.) के काफिले पर आत्मघाती हमले में कोई 40 जवानों के मारे जाने तथा इतने घायल होने की  घटना से पूरा देश स्तब्ध और भारी गुस्से मे हैं और उसका तत्काल प्रतिकार भी लेना चाहता है।जनभावना को देखते हुए अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेना कोई भी कार्रवाई करने की छूट देने के साथ पाकिस्तान के साथ व्यापारिक सहूलियतों में कटौती कर दी है। वैसे इस घटना से एक बार फिर साबित हो गया,कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था उतनी चाक-चौबन्ध/अभेद्य नहीं है, जैसी इस दहशतगर्दों से भरे सूबे में होने चाहिए। कोई कुछ भी कहे यह दुर्भाग्य हमारी सुरक्षा व्यवस्था में  बड़ी चूक से घटी है। वैसे जब गुप्तचर एजेसिंयाँ ने दहशतगर्दों द्वारा इस वारदात करने की  आशंका जतायी थी, तब उसके मुताबिक  सतर्कता-सावधानी क्यों नहीं बरती गई? अगर ऐसा किया होता, तो दहशतगर्द न इतना विस्फोट इकट्ठा कर पाता और न काफिले के पास ही फटक पाता। उसके साथ ही दूसरे दहशतगर्द काफिले पर गोलीबारी करने ही पहुँच पाते। वैसे इस विफलता का सबसे बड़ा कारण घर के भेदिये होना है। तभी तो  इस दिल दहलाने वाली दुखद को वारदात को  खुद के मुल्क के दुश्मन  अन्जाम देने में आसानी से कामयाब हो गए। कार में विस्फोट भर कर जिस आदिल अहमद डार उर्फ वकास ने सी.आर.पी.एफ.की बस में टक्कर मारी थी,वह पाकिस्तानी नहीं था।  उसके साथ जिन आतंकवादियों ने काफिले की दूसरी बसों पर गोलियाँ बरसायीं, वे ही इसी मुल्क और जम्मू-कश्मीर के बाशिदें ही थे, जो जिस आसानी से काफिले पर हमला करने में कामयाब हुए,वैसे ही वारदात को अन्जाम देकर न केवल बच निकले और  गुम भी हो गए। फिर ऐसी मजहबी कट्टरपन्थी घुट्टी पीये सेना के जवान भी अपने हमजहबी को मरवाने में मददगार हो जाते हैं, ऐसे में सुरक्षा बलों के जवानों की सुरक्षा कैसे हो? इस सम्बन्ध में जून, 2018 को राइफलमैन औरंगजेब को दहशतगर्दों द्वारा उनका अपहरण किया जाने का उदाहरण ही काफी है जिनका कसूर बस इतना था कि दहशतगर्दों के सफाए में लगे दल के सदस्य थे। अब उनकी की साजिश में उनके साथी सैन्यकर्मी शामिल बताये जा रहे हैं। औरंगजेब की नृशंसा हत्या करने वालों की  मुल्क के ऐसे दुश्मनों की जम्मू-कश्मीर के नेताओं की बात तो दूर, देश के कथित गैर साम्प्रदायिक नेताओं ने आजतक खुलकर निन्दा नहीं की थी। अपने देश में सांसद पर हमले के गुनाहगार अफजल गुरु, बम्बई बमकाण्ड के अपराधी याकूब मेनन की फाँसी रोकने के लिए आधी रात को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवायी करायी गई। याकूब मेनन के जनाज में दस हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए। हर साल अफजल गुरु की बरसी मनायी जाती है और सरकार ऐसे मुल्क के गद्दारों का कुछ भी बिगड़ नहीं पाती। यहाँ तक कथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के नेताओं ने कभी कश्मीर घाटी की मस्जिदों से हर जुम्मे(शुक्रवार) को नमाज के बाद पाकिस्तानी और दुनिया के सबसे बड़े दहशतगर्द संगठन ‘इस्लामिक स्टेट‘(आइ.एस.)के झण्डे लहराते हुए ‘हिन्दुस्तान मुर्दाबाद‘,‘पाकिस्तान जिन्दाबाद‘ नारे लगाने वालों की भी मजम्मत करने की  जरूरत भी नहीं समझी है। 

यहाँ तक कि दिल्ली की जे.एन.यू. में भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर माँगे आजादी,अफजल हम शर्मिन्दा हैं,तेरे कातिल जिन्दा हैं और अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी समेत  मुल्क की अलग-अलग जगहों पर पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाने वालों के खिलाफ अपनी जुबान नहीं खोली है,ऐसे में मुल्क के दुश्मनों के खुलकर अपने खेलने की आजादी किसी गैर नहीं,सत्ता के लोभियों ने दी है। कश्मीर के स्कूलों, विधानसभा समेत देश की संसद और अन्य स्थानों पर  कुछ समुदाय विशेष के सांसद/विधायक वन्देमातरम तो,दूर राष्ट्रगान और तिरंगे के फहराये जाने के समय उसके  सम्मान में खड़े भी नहीं होते। इनमें कई लोग मजहब पर भारत की माता की जय बोलने पर भारी ऐतराज है,पर वोट के लालचियों ने कभी ऐसे लोगों को खिलाफ अपनी जुबान नहीं खोली। काँग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद खुले आम सेना पर कश्मीरियों की हत्या कर आरोप लगाते हैं, तो उसके सांसद सैफुद्दीन सोज भी अक्सर इस अन्दाज में सेना पर लगातार  तोहमत लगाते आये हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.फारुक अब्दुल्ला तथा उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती अपने-अपने ढंग से सेना को कसूरवार और पाक समर्थक पत्थरबाजों की हिमायत लेते आए हैं। इनमें से किसी ने दहशतगर्दो द्वारा मारे गए कश्मीर निवासी पुलिस और सेना की जवान की बेरहमी से की हत्या पर भी गम नहीं जताया है। काँग्रेस के सांसद रहे दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र  संदीप दीक्षित थल सेनाध्यक्ष को गली का गुण्डा जैसी उपाधि दे चुके हैं, पर उन्होंने कश्मीर के पत्थरबाजों के खिलाफ कभी कुछ नहीं कहा है,देश के लोगों को आस्तीन इन साँपों से सवाल करना चाहिए। सियासी नेताओं को चोला ओढ़े ये अलगाववादी सिर्फ कश्मीर घाटी में नहीं हैं,बल्कि गैर साम्प्रदायिक पार्टियों के नेताओं और वामपन्थी दलों की सियासत करने वाले भी हैं,जो हर देशभक्त को फासिस्ट और हिन्दू कट्टरपन्थी कहकर गरियाते रहते हैं। वैसे सी.आर.पी.एफ. के काफिले पर यह हमला कर दहशतगर्दो  की खीझ का नतीजा है जो सुरक्षा बलों द्वारा उनके सफाये से पैदा हुई है,पर उन्हें यह पता नहीं कि इससे वे अपने कदम पीछे करने के बजाय दुगुने जोश-खरोश से उनका नामोनिशां मिटाने में जुट जाएँगें। वैसे अपने देश की हकीकत यह है कि उसे पाकिस्तान से कहीं ज्यादा खतरा अपने मुल्क के गद्दारों से है, जिन्हें सत्ता के लोभ में न मुल्क के दुश्मन नजर आते हैं और न उसकी सम्प्रभुता,अखण्डता को खतरा ही।
  वैसे सुरक्षा बलों पर हमला  पहली बार नहीं हुआ है। इस सूबे में जितने देसी-विदेशी दहशतगर्द मौजूद हैं,उससे कई गुना ज्यादा उनके हमदर्द हैं। इनमें से कुछ अलगाववादी बनकर जम्मू-कश्मीर को हिन्दुस्तान से अलग होने की माँग करते रहते हैं और बदले में दुश्मन देश से मिली रकम से गुलछर्रे उड़ाते हैं। ये अलगाववादी विदेशों से मिले धन में से कुछ धन युवाओं देकर उनसे कभी स्कूल, कॉलेजों को जलवाते हैं,तो कभी सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसवाते हैं,जबकि अपने बच्चों को दिल्ली और विदेशों की बेहतर कॉलेजों/यूनीवर्सिटियों में पढ़ने भेजते हैं। तो कुछ मजहबी रहनुमा  मजहबी स्थलों को मजहब का असल तालीम देने और उस  पर चलने की सीख न देकर अपनी जहरीली तकरीरों के जरिए अपने ही मुल्क और दूसरे धर्म के मानने वालों के लिए नफरत फैलाने में जुटे हैं। इसी मानसिकता के कुछ लोगों ने सियासत का चोला पहनकर अलग-अलग सियासी  पार्टियाँ बना ली हैं, या फिर कथित राष्ट्रीय पार्टियों में घुसपैठ कर न केवल विधायक तथा सांसद बनते आए है, बल्कि केन्द्र और राज्य सरकार में मंत्री तथा मुख्यमंत्री बनकर सारे सत्ता भोगते हुए इस सूबे में दूसरे मजहब के लोगों को पलायन को राजी-कुराजी पलायन को मजबूर करने में लगे हैं, ताकि इस सूबे को अलग देश या फिर इसे पाकिस्तान को सौंपना चाहते हैं,ताकि इसे दारूल इस्लाम में तब्दील किया जा सके। बाकी में बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो विभिन्न सरकार नौकरियों में रहते हुए उन्हीं की तरह अपनी-अपनी तरह से उसी मकसद पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि जब भी सुरक्षा बल किसी दहशतगर्द /दहशतर्दों को घेरते हैं, तो उसके बचाव में पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगते हुए उन पर पत्थरबाजी करने को जुट जाते हैं। यहाँ तक कि उनके साथ गाली-गलौच करते हुए उनसे हाथापाई और लात-घूसे चलाते हैं। जब कभी अपने बचाव सुरक्षा बल के जवान जब आंसू गैस, लाठी या पैलेट गन चलाते है,तो उनके नेता और फर्जी मानवाधिकारवादी उनके घायल या मारे जाने पर उन्हें बेकसूर साबित करते हैं और सुरक्षा बलों पर मानवाधिकार हनन के आरोप लगाते हैं। जम्मू- कश्मीर के नेता अक्सर जिसे कश्मीर समस्या बताते हैं और उसे हल करने की बात करते हैं, वह इस सूबे को दारूल इस्लाम बनाने के सिवाय कुछ और नहीं है। हमारा उनसे प्रश्न है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा या अधिकार क्यों चाहिए। सिर्फ इसलिए यह मुस्लिम बहुल राज्य है?ऐसा है तो हिन्दू बहुल या ईसाई बहुल राज्यों को ऐसा विशेषाधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए। जहाँ तक इस सूबे का भारत से सम्बन्ध की बात है तो यह उनके मजहब से हजारों साल पहले से उसका अभिन्न हिस्सा रहा है।  उससे भारत का हर तरह का रिश्ता है,जो किसी और से अधिक अटूट है, जिसे दुनिया की कोई ताकत नहीं तोड़ सकती, यह इस मुल्क के दुश्मनों को जितनी जल्दी समझ में आ जाए, उतनी उनके और उनकी जन्नत पाकिस्तान की समझ में आ जाए उसके अस्तित्व के लिए बेहतर होगी। देश के लोग भी अपने मुल्क के गद्दरों की असलियत समझ गए,जो सत्ता के लालच में आस्तीन के साँपों की बचाव और मदद करते आए हैं।

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