अमेरिका का चीन को सही जवाब

  डॉ.बचन सिंह सिकरवार 

अन्ततः अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर चीन के घोर विरोध के बाद भी तिब्बत से सम्बन्धित विधेयक पर हस्ताक्षर करके उसे जता दिया, वह उसका पड़ोसी देश भारत और दुनिया कोई दूसरा मुल्क नहीं है, जो अपनी कुछ मजबूरियों की वजह से उसकी मनमानी को बर्दाश्त करते-रहते हैं। अमेरिका उसकी मनमानी  का जवाब उसके ही तौर-तरीकों से देने की सामर्थ्य रखता है, भले ही उसका कोई परिणाम निकले। इससे पहले अमेरिका और चीन के बीच कोरोबारी जंग जारी है जिसका इन दोनों देशों के कोरोबारी  ही नहीं, राजनयिक रिश्तों में भी खटास आयी है। अमेरिका चीन बहुत बड़ा आयातक देश है, इससे उसके निर्यात में बहुत कमी आयी है। अब तिब्बत से सम्बन्धित इस कानून के बनने के बाद अमेरिका  चीन के उन अधिकारियों को अपने यहाँ आने के लिए वीजा देने पर रोक लगा सकता है, जो उसके नागरिकों, सरकारी अधिकारियों, पत्रकारों को बौद्धों के निर्वासित आध्यात्मिक धर्म गुरु दलाई लामा के गृह प्रान्त तिब्बत जाने की अनुमति नहीं देते हैं। तिब्बत से जुड़े इस विधेयक पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हस्ताक्षर किये जाने पर इस विधेयक को प्रतिनिधि सभा में प्रस्तुत करने वाले सांसद जिम मैकगोवर्न ने कहा कि उन्हें खुशी है कि राष्ट्रपति ने हमारे बिल पर दस्तखत कर दिए। चीन ने आवाजाही पर प्रतिबन्ध लगाकर लम्बे समय से तिब्बत में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को छुपा रहा है। लेकिन आज हम इन प्रतिबन्धों को लागू करने वाले चीनी अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के और करीब पहुँच गए है। वैसे भी चीन की शुरू से हर मामले में यह मानसिकता रही है कि कोई भी देश चाहे कारोबार हो या कोई दूसरा क्षेत्र उसे कोई रोके-टोके नहीं, पर वह उसके यहाँ उसकी मर्जी के बगैर एक कदम भी न उठाये। कमोबेश, यही हालत चीन की भारत के साथ है जिसके कारण चीन और भारत के बीच व्यापार घाटा हर साल बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह उसकी आर्थिक और व्यापारिक नीतियाँ हैं। ऐसे ही चीन अरुणाचल और लद्दाख के नागरिकों को नत्थी वीजा देने की नीति यह दर्शाने को अपनाए हुए है कि वह इन क्षेत्रों को भारत का नहीं, अपना मानता है, लेकिन खेद की बात यह है कि भारत ने इसका उसे उसकी शैली में प्रत्युत्तर देना तो दूर रहा ,उसके इस अनुचित रवैये पर सही तरीके से अपनी आपत्ति तक नहीं जतायी है। 

यहाँ तक कि भारत ने लद्दाख के अक्साईचित(अक्षयचीन)पर अपना दावा जताना भी छोड़ दिया है जिसकी हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन सन् 1862 से अवैध कब्जा जमाये बैठा है और अब वह पूरे अरुणाचल, उत्तराखण्ड तथा सिक्किम के कुछ इलाको पर अपना दावा जताता रहा है। कायदे से तो भारत को भी  तिब्बत और शिनजियांग के लोगों को भी नत्थी वीजा देना चाहिए,जो स्वयं को चीन का नागरिक नहीं मानते। चीन के संविधान में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता है, लेकिन असल में यहाँ इसका उलटा हो रहा है। चीन में तिब्बत के बौद्धों, शिनजियांग के उइगर मुसलमानों, ईसाइयों पर अपने धार्मिक रीति-रिवाज,परम्पराओं के पालन, त्योहार आदि मानने पर तरह-तरह के प्रतिबन्ध लगाये हुए हैं।यहाँ तक कि उइगर मुसलमानों को दाढ़ी,नमाज पढ़ाने, रोजा आदि रखने पर भी पाबन्दी लगा रखी है। आश्चर्य की बात यह है कि फिर भी पाकिस्तान, सऊदी अरब,इराक,ईरान, तुर्की आदि में से किसी इस्लामिक मुल्क ने  उनकी हमदर्दी में आजतक चीन के खिलाफ आवाज उठाना तो दूर रहा, एतराज तक जताने की हिम्मत तक नहीं दिखायी। इसके बावजूद वर्तमान में अपने को इस्लाम का सबसे बड़ा मुजाहिद मुल्क बताने-जताने वाला पाकिस्तान चीन का सबसे बड़ा समर्थक बना हुआ है।    

वस्तुतः चीन को भय है कि तिब्बत पर उसके कोई सात दशक के कब्जे के बाद भी वहाँ के मूल निवासी अब भी स्वयं को चीनी मानने को तैयार नहीं हैं और वे उससे आजादी चाहते हैं। उनकी इस चाहत के दमन के लिए चीन ने कई दमनकारी और भेदभावपूर्ण कानून बनाये हुए हैं, उनकी हर तरह की गतिविधियों पर निगरानी और उनमें सरकारी हस्तक्षेप किया जाता है। तिब्बत की जनांकिकी बदलने के लिए यहाँ पर लाखों की संख्या में चीन के दूसरे इलाकों के हान नस्ल के लोगों को बसाया गया है।   उनके विरोध में हर साल कई तिब्बती बौद्ध युवक आत्मदाह कर चीन का विरोध और उससे अपनी आजादी की माँग करते आए हैं। यही कारण है कि चीन अमेरिका समेत किसी भी दूसरे के नागरिकों को तिब्बत घूमने की इजाजत नहीं देता या फिर सरकारी निगरानी में कुछ जगह तक जाने देता है, ताकि वे तिब्बत की असलियत न जान सके कि वह तिब्बतियों पर कैसे जुल्म ढहा रहा है। इसके बावजूद अमेरिका और दुनिया के दूसरे मुल्क तिब्बत की सच्चाई से भलीभाँति परिचित हैं और वे चाहकर भी चीन के खिलाफ कोई कदम उठाने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में अमेरिका का  चीन के खिलाफ यह कदम निश्चय ही सराहनीय है।
अब जहाँ तक तिब्बत विषयक नए अमेरिका के कानून का प्रश्न है तो वह बहुत समय से चीन की इस मनमानी को देख और बर्दाश्त करता  रहा है, क्योंकि चीन के नागरिकों को अमेरिका में न केवल सभी जगह घूमने ,नौकरी और अपना कारोबार करने तक की छूट है, किन्तु वहीं अमेरिकी अधिकारियों, पत्रकारों और दूसरे नागरिकों को चीन के तिब्बत, शिंनजियांग समेत कई दूसरे जगहों पर घूमने-फिरने की स्वतंत्रता नहीं आयी है। यही सब देखते हुए इसी 12 दिसम्बर को अमेरिका संसद के ऊपरी सदन सीनेट ने  सर्वसम्मति से ‘द रेसिप्रोकल एक्सेस टू तिब्बत एक्ट‘ पारित कर दिया है। संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा ने इसे सितम्बर माह में अपनी स्वीकृति दे दी थी। तब चीन के विदेश विभाग के प्रवक्ता लू कांग  ने कहा कि चीन इसका पुरजोर विरोध करता है। तिब्बत का मामला   चीन का आन्तरिक मसला है और इसमें किसी विदेशी के दखल की इजाजत नहीं है। अमेरिका इस बिल को कानून का रूप ना दे। दरअसल, तिब्बत से जुड़े ‘द रेसिप्रोकल एक्सेस टू तिब्बत एक्ट‘बिल को लेकर चीन की आपत्ति का कारण यह है कि इसमें अमेरिकी नागरिको, पत्रकारों और अधिकारियोें को तिब्बत में निर्बाध आवागमन की  माँग की गई है।
कहने को तो चीन का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की पैरवी करता है, किन्तु  छह साल पहले राष्ट्रपति शी चिनंिफग ने सत्ता सम्हालने के बाद से सरकार ने धार्मिक आजादी पर प्रतिबन्ध सख्त कर दिये हैं। अधिकारी लोगों की धार्मिक मान्यता की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए चुनौती मानते हैं। कानून के तहत चीन में सभी धार्मिक स्थलों को सरकार के पा पंजीकरण कराना होता है। गत 10दिसम्बर को चीन में पुलिस ने प्रोटेस्टेण्ट ईसाई समुदाय के चेंगदू प्रान्त के  प्रतिष्ठित अर्ली रेन कोवनेण्ट चर्च से जुडे.100 से अधिक लोगों को उनके घरों पर छापा मार कर हिरासत में ले लिया। इससे पहले चीन ने तीन बार वर्ल्ड प्रेस फोटोग्राफर विजेता चीनी फोटोग्राफर लू गुआंग को  सुरक्षाकर्मियों ने हिरासत में ले लिया था, जो चीन के पश्चिमी प्रान्त शिनजियांग की राजधानी उरुमची में फोटोग्राफरों के कार्यक्रम में भाग लेने अमेरिका से स्वदेश आए हुए थे। लू गुआंग  पिछले 25 सालों से मुख्य रूप से चीन के संवेदनशील सामाजिक मामलों और पर्यावरण पर केन्द्रित रहा है। इससे चीन उनसे नाखुश है। वैसे भी  चीन अल्पसंख्यक उइगर मुस्लिम और ईसाई समुदाय पर सरकार लगातार दाबव बना रही है।  फिलहाल ,अमेरिका के तिब्बत को लेकर बनाये कानून को लेकर दुनिया के देश के चीन की नाराजगी के डर से भले उसे बधाई न दें या खुशी व्यक्त न करें, किन्तु सही बात यह है कि उसने यह कानून बनाकर चीन को आईना दिखाया है। भारत को भी अमेरिका से यह सबक लेना चाहिए, ताकि चीनी अजदह की मनमानी पर लगाम लगे। 

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