प्रतिमाओं को लेकर फिर राजनीति

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 फीट की विश्व की सबसे ऊँची और भव्य प्रतिमा (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) बनवाकर उसकी स्थापना करने पर काँग्रेस समेत विपक्ष यह सवाल कर रहा है कि उसने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की इतनी विशाल प्रतिमा क्यों नहीं बनवायी ? ऐसा करके  भाजपा के सरदार पटेल जैसे स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों तथा नायकों की विरासत को ‘हाइजैक‘ करने का, जो आरोप वह लगा रहा है, उसमें कुछ सब कुछ गलत नहीं है उसमें बहुत कुछ सच्चाई भी है। वैसे सरदार पटेल की प्रतिमा के बहाने अब अचानक  काँग्रेस समेत देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के दिलों में अचानक महात्मा गाँधी के लिए हमदर्दी उठना फिजूल नहीं है। इनमें सबसे ज्यादा तकलीफ काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी से लेकर उनके कई छोटे-बड़े नेताओं को भी है। इनके इस असली दर्द की वजह इससे आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी बढ़त के रूप में देखना है। वैसे यह सच है कि सरदार पटेल का देश की आजादी की लड़ाई और उसके स्वतंत्र होने के बाद साढ़े पाँच सौ से अधिक राज्यों को भारतीय संघ में सम्मिलित करने में अप्रतिम योगदान रहा है। इस कारण उन्हें भारत को सुदृढ़ तथा संगठित करने श्रेय दिया जाना  चाहिए था, पर केन्द्र और गुजरात में काँग्रेस की सरकारों ने उन्हें अपेक्षित मान-महŸव तथा सम्मान प्रदान नहीं किया, जिसके वह अधिकारी थे। अब भाजपा सरकार ने काँग्रेस की जानबूझकर की गई चूक/उपेक्षा को दूर कर सही कदम उठाया, उसके लिए उसे साधुवाद दिया जाना चाहिए। वैसे हकीकत यह है कि  राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की तुलना में  काँग्रेस ही नहीं, देशभर में सर्वमान्य तथा उनके कद से कोई भी नेता बढ़ा नहीं है। विश्व में उनकी मान्यता  सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह जैसे अनूठे शस्त्रों से साम्राज्यवादी ब्रिटेन की दसता से भारत को आजादी दिलाने के साथ-साथ समूची मानवता को तरह-तरह के अन्यायों से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले विश्वनेता की है।
वैसे देश के लोग भी अब अपने राजनीतिक नेताओं की नीति और नीयत से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि उनका महापुरुषों की प्रतिमा बनवाने, लगाने, उनकी जयन्ती मनाने के पीछे उनका उद्देश्य उनके आदर्शों, सिद्धान्तों, आचरण पर चलना कतई नहीं होता, बल्कि उससे राजनीतिक लाभ उठाना होता है। यदि सचमुच वे उन महापुरुषों के दिखाये मार्ग पर चलते, तो देश के हालात कुछ और ही होते। इस कारण देश के लोग  प्रतिमा को लेकर चल रहे वर्तमान आरोप-प्रत्यारोप को लेकर गम्भीर नहीं हैं। 
  अब काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह कह कर आलोचना की है कि  एक ओर तो वह सरदार पटेल की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं,वहीं वे उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं को योजनाबद्ध ढंग से नष्ट किया जा रहा है,जो एक तरह का देशद्रोह है। इस मामले में उन्हें ऐसे आरोप लगाने का कोई हक नहीं है। उनके लिए बेहतर होगा कि किसी दूसरे पर आरोप लगाने पहले अपने गिरबां में झांक लें। उन्हें अपने पूर्वजों तथा पार्टी की सरकारों के इतिहास को पढ़ना चाहिए, जिन्होंने  संविधान से छेड़छाड़ से लेकर  सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज तक में दखलदांजी करने से परहेज नहीं किया। उस दौरान सरकारी जाँच एजेन्सियों का  जमकर दुरुपयोग करते हुए अपने विरोधियों को जीभर का सताया-डराया गया था।
इधर काँग्रेस वरिष्ठ नेता शशि थरूर का कहना है देश में महात्मा गाँधी की विशाल प्रतिमा नहीं है। ऐसे में भाजपा ने महात्मा गाँधी की इतनी विशाल प्रतिमा क्यों नहीं बनवायी? कायदे से उन्हें सवाल अपनी पार्टी के नेताओं से पूछना चाहिए। उधर काँग्रेस के लोकसभा में पार्टी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे इस आरोप में दम है कि यह भाजपा का चुनावी हथकण्डा है और स्वच्छ भारत मिशन में महात्मा गाँधी के चित्र लगाकर उनका बेजा फायदा उठा रही है।  ऐसा ही सवाल भारतीय कम्युनिस्ट के महासचिव एस.सुधाकर रेड्डी ने भाजपा से किया है कि महात्मा गाँधी के बजाय सरदार पटेल की विशालकाय मूर्ति क्यों बनवायी। फिर खुद ही जवाब देते हुउ कहा,क्यों कि महात्मा गाँधी धर्मनिरपेक्ष विचारों के थे, इसलिए उनकी प्रतिमा न बनवाकर भाजपा ने दक्षिणपन्थी विचारों के सरदार पटेल की मूर्ति बनवाना बेहतर समझा है। वैसे वामपन्थी नेताओं को तो ऐसे प्रश्न  पूछने का कोई अधिकार ही नहीं है, क्योंकि उनके किसी भी कार्यालय में स्वतंत्रता आन्दोलन से सम्बन्धित  किसी भी भारतीय नेता/राजनेता का चित्र नहीं लगा है। उनके शासित राज्य रहे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल में उनकी सरकारों में से  किसी ने भी एक भी राष्ट्रीय नेता की प्रतिमा नहीं लगवायी है, जबकि इनमें से कुछ में कम्युनिस्ट नेता लेनिन, कार्ल मार्क्स, स्तालिन की मूर्तियाँ लगवायी हैं, जिनका भारत या उसके लोगों से कोई सीधा सम्बन्ध कभी नहीं रहा है। सरदार पटेल की प्रतिमा को लेकर बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के भाजपा आरोप और भी दिलचस्प हैं।उनका पहला आरोप है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने सरदार पटेल को एक क्षेत्र तक सीमित कर संकीर्ण मानसिकता का परिचय दिया है। क्या उनकी सरकारें  कुछ जाति विशेष के नेताओं की मूर्तियाँ और उनके नाम पर शहरों, विश्वविद्यालयों के नाम बदल कर क्या व्यापक मानसिकता प्रदर्शित करती रही है? वह  अपने शासन में अन्धाधुंध मूर्तियों ,स्मारक, अपनी पार्टी चुनाव चिन्ह बनवाये जाने की तुलना सरदार पटेल की प्रतिमा से करते हुए भाजपा से बहुजन समाज से माफी माँगने की कह रही है।क्या उन्होंने अपनी भूल-चूकों के लिए कभी कुछ किया है,जो उससे अपेक्षा कर रही हैं? 
 भाजपा समेत दूसरे राजनीतक दलों को जितनी फिक्र वोट बैंक से जुड़े नेताओं की,  उतनी उन नेताओं की नहीं, जिनसे कोई जाति/ मजहब विशेष की वोट बैंक नहीं है। भाजपा दलित समाज में अपनी पैठ ही नहीं,उनकी सबसे बड़ी पैरोकार/हमदर्द दिखाने को उनके नेता के जीवन काल से जुड़े देश-विदेश में पाँच स्थलों का निर्माण करा चुकी है। कुछ जातियों को अपनी ओर आकर्षित करने को उनके नये-नये नायक गढ़े जा रहे हैं और उनकी स्मृति में प्रतिमा लगाये जाने के साथ-साथ भवन, अस्पताल, विद्यालय आदि का नामकरण भी किया जा रहा है। देश के सभी राजनीतिक दल जातिवाद के उन्मूलन के बहाने जातिवाद की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं भाजपा भी इसका अपवाद नहीं है। भाजपा केन्द्र और विभिन्न राज्यों में अपनी सरकारों के रहते देश के लिए हजारों से साल से देश में अपना सर्वस्व न्योछावर रहने को तत्पर रहने वाले जातियों के नायकों को लेकर उसने शायद कहीं कुछ किया हो,क्यों कि वे जातियाँ राजनीतिक रूप से संगठित नहीं हैं। चूँकि महात्मा गाँधी का कोई जातिवादी वोट बैंक नहीं है। इस कारण देश के किसी भी राजनीतिक दल को उनके नाम पर कुछ करने में कोई रुचि नहीं है,भाजपा भी उनमें से एक है। अब भाजपा कहे कुछ भी हकीकत यह है कि उसने उसने अपने चुनावी फायदे देखकर ही उनकी मूर्ति के निर्माण निर्णय लिया था। सरदार पटेल राष्ट्रीय आन्दोलन के न केवल अप्रतिम नायक थे,बल्कि  अपने विचारों पर दृढ़ होने के कारण उन्हें ‘लौह पुरुष‘ कहा जाता था,किन्तु पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न पार्टियों ने उन्हें  दूसरे राष्ट्रीय नेताओं की तरह ही अपने वोटों के लिए कुर्मी जाति का नायक बनाने की धृष्टता की है। गुजरात में कुर्मी राजनीतिक और आर्थिक रूप सबल-समर्थ एक महŸवपूर्ण पिछड़ी जाति है, जिसकी उपेक्षा कर कोई भी राजनीतिक राज्य में सत्ता हासिल नहीं कर सकता। फिर गुजरात में आरक्षण को लेकर यह जाति भाजपा से नाराज  है, इसका राज्य में काँग्रेस ने पिछले विधानसभा में जमकर फायदा उठाया था। गुजरात के अलावा भी कुर्मी जाति उ.प्र.समेत देश के कई दूसरे राज्यों में राजनीति में प्रभावी है। इसे देखते हुए अगर विपक्षी दल भाजपा पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की अपेक्षा  सरदार पटेल को अधिक महŸव दिये जाने का जो आरोप लगा रहे हैं,तो उसमें गलत क्या है? 
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63 ब, गाँधी नगर, आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

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